मस्जिदों का नियंत्रण देसी मुसलमानों के हाथ में हो

-डा॰ कुलदीप चन्द अग्निहोत्री
                   यह रहस्य किसी से छिपा नहीं है कि महमूद गजनवी से लेकर औरंगजेब तक के लगभग छह सात  सौ साल के कार्यकाल में अरबों ,तुर्कों और मुगल मंगोलों ने हिन्दुस्तान में मंदिरों को ही नहीं गिराया बल्कि बहुत से लोगों को मतान्तरित भी किया । बंगाल और सप्त सिन्धु/पश्चिमोत्तर भारत में यह काम बड़े स्तर पर हुआ । हिन्दुस्तान के जो लोग अपने मजहब को छोड़ कर मुसलमान बन गए ,उन्हें देसी मुसलमान या डीएम कहा जाता है । आज भारत के कुल मुसलमानों में से 5% अशरफ मुसलमानों को यदि निकाल दिया जाए तो शेष 95% मुसलमान  देसी मुसलमान ही हैं । लेकिन 5% अशरफ समाज के मुसलमानों जिन्हें  एटीएम (अरब + तुर्क +मुगल मंगोल) कहा जाता है , का भारत के 95% देसी मुसलमानों पर पूरी तरह नियंत्रण हैं । आज स्थिति यह है कि मस्जिदों में इबादत के लिए देसी मुसलमान जाते हैं और मस्जिदों पर कब्जा अशरफों का है । मस्जिदों में जो चढ़ावा चढ़ता है,  वे देसी मुसलमान देते हैं और उसके उपयोग का अधिकार अशरफ के पास है । एटीएम मूल के मुसलमान , जिस संस्था को  ‘आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड’ कह कर दिन रात चिल्लाते रहते हैं , वह दरअसल ‘अशरफ क्लब’ के सिवा कुछ नहीं है । वह तो भारत के देसी मुसलमानों को डराने का तमंचा है । अशरफ समाज भारत के देसी मुसलमानों पर अरब के असूल और तहज़ीब लादना चाहता है । उसी को वह शरीयत कह कर देसी मुसलमानों की गर्दन पर सवार रहता है । शरीयत का जो सामाजिक ताना बाना है , वह मूल रूप में अरब का कल्चर है । तीन तलाक़ और हलाला उसी में से उपजा है । वहाँ के लोग हो सकता हैं इसके पक्ष में हों ।  भारत का देसी मुसलमान भला हलाला जैसी विदेशी अरबी प्रथा को क्यों स्वीकार करेगा ? लेकिन मस्जिद का सैयद मौलवी भारत के देसी मुसलमान को इसका विरोध करने पर उसे डराता है । उसे दोज़ख़ की तस्वीरें दिखाता है ।  दुर्भाग्य से देश की सरकार ऐसे समय में सैयद मौलवी के पक्ष में खडी दिखाई देती है न कि देसी मुसलमानों के पक्ष में । यदि कोई शाहबानो इन अमानवीय अरबी रीति रिवाजों और विधि विधानों से लडने का दम भी दिखाती है तो उस पर दो तरफ़ से हमला होता है । अशरफ उसे दाएँ से घेरता है और सरकार उसे बांएं से घेरती है । तब शाहबानो जीत कर भी हार जाती है और सैयद अशरफ हार कर भी जीत जाता है ।
                    पिछले दिनों उत्तराखंड की विधान सभा ने राज्य में समान सिविल कोड पारित किया है । समान सिविल संहिता लागू करने वाला यह दूसरा राज्य बन जाएगा । इससे पहले गोवा समान सिविल कोड का पालन करता है । इस क़ानून में बहु विवाह पर रोक है । लिव-इन के ल्ए भी रजिस्ट्रेशन जरुरी है । विवाह का पंजीकरण  लाज़िमी क़रार दिया गया है , चाहे विवाह करने वाला हिन्दु ,मुसलमान, सिख, ईसाई इत्यादि किसी भी मजहब का हो । पारिवारिक सम्पत्ति बंटबारे का क़ानून भी सब पर समान रूप से लागू होगा । महिलाओं को अधिकार दिए ए हैं । लेकिन उत्तराखंड में यह क़ानून पास होने पर सैयद अशरफ कपड़ों से बाहर हो रहे हैं । वैसे संविधान के चौथे अध्याय में सरकार को स्पष्ट निर्देश दिया हुआ है कि यह क़ानून लागू करना चाहिए । लेकिन एटीएम अशरफ का कहना है कि शरीयत ही उसका संविधान  है । अशरफों का कहना है कि इस क़ानून से इस्लाम ख़तरे में पड जाएगा । हलाला बन्द होने से इस्लाम को क्या ख़तरा हो सकता है ? अलबत्ता हलाला की आड में नारी शोषण करने वालों का काम जरुर ठप्प हो जाएगा । भारत के डीएम यानि देसी मुसलमान को तो कोई आपत्ति नहीं है लेकिन उनका नाम लेकर अशरफ हकलान हो रहा है । पंजाबी में कहावत है,”रौंदी यारां नूं, लै लै नां भरावां दे” ।
                       काशी के विश्वनाथ मंदिर के आधे हिस्से में ज्ञानवापी नाम का ढाँचा खड़ा है । औरंगजेब के वक़्त में शासकीय आज्ञा से विश्वनाथ मंदिर को गिरा कर इस ढाँचे का निर्माण किया गया था । मंदिर का कुछ हिस्सा ही सुरक्षित रहा था । ज्ञानवापी की दीवारें ही चिल्लाकर कह रही हैं कि वहाँ मंदिर था । कई दशकों से काशी के लोग काशी विश्वनाथ मंदिर को उसके मौलिक रूप में स्थापित करने के लिए कोर्ट कचहरी के चक्कर काट रहे थे । न्यायालय ने आर्कियोलाजी सर्वे आफ इंडिया को आदेश दिया कि इस ज्ञानवापी ढाँचे के एक हिस्से का सर्वेक्षण किया जाए । सर्वेक्षण में पता चला कि ढाँचे के अन्दर और बाहर काफी सामान है जो यह सिद्ध करता है कि विश्वनाथ मंदिर को ही तोड़ा गया था । न्यायालय ने  पर्याप्त प्रमाण देखकर तहख़ाने  में , जहाँ 1993 तक पूजा होती थी, पूजा करने की अनुमति भी दे दी । इससे एटीएम अशरफ आग बबूला हो रहा है । जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष ने मौलाना अरशद मदनी ने तीखी प्रतिक्रिया करते हुए कहा कि ऐसे फ़ैसले देने से बेहतर है कि देश में से कानून की सब किताबें ही जला दो । उन्होंने और भी आगे जाते हुए कहा कि इससे देश में दंगे शुरू हो जायेंगे । वैसे तो जमीयत उलेमा-ए-हिंद का भी आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड की तरह भारत के देसी मुसलमानों से कुछ लेना देना नहीं है । यह भी एक अशरफ क्लब ही है । क़ानून की किताबों को जलाने की मौलाना अरशद मदनी की इच्छा समझ में आती है । भारत का अशरफ क्लब अभी भी मध्ययुगीन मुगलों की सत्ता की छाया से बाहर नहीं निकल पा रहा है ।यदि भारत में अभी भी औरंगजेब , शाहजहाँ , जहांगीर या बाबर की सत्ता होती तो मदनी और उसके लोग जरुर क़ानून की किताबों को जला देते । आख़िर औरंगजेब ने भी विश्वनाथ का मंदिर क़ानून की किताबों को जलाकर ही तोड़ा होगा । अब क़ानून की किताबें उस मंदिर को दोबारा बनाने का रास्ता साफ़ कर रही हैं तो मदनी उन किताबों को ही एक बार फिर जलाने का सपना देख रहे हैं ।
                           मदनी जैसे लोग ही अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय को लेकर हकलान हो रहे हैं । यह विश्वविद्यालय 1857 की आजादी की लडाई के बाद सैयदों ने खोला था । मक़सद अशरफ मुसलमानों को अंग्रेज़ी सरकार के पक्ष में करना था । सैयदों को लगता था कि मुगल इस देश पर कब्जा किए हुए थे लेकिन अंग्रेज़ों ने उनसे सत्ता छीन ली । जिन दिनों मुगल राज था उन दिनों सैयद उनको शरीयत पढ़ा पढ़ा कर भारतीयों का ख़ून चूसते थे । लेकिन अंग्रेज़ों के आ जाने से वे दर बदर हो गए हैं । लेकिन जल्दी ही उन्होंने अपने को नए सत्ता दरबारों में स्थापित करने का नया रास्ता तलाश लिया ।  अंग्रेज़ तो अपने ही भाई हैं । ‘पीपुल्स आफ दी बुक’ । लेकिन देसी मुसलमान अशरफ के शिकंजे से निकल रहा है । वह अंग्रेज़ के खिलाफ हो रहा है और अपने दूसरे भाई बन्धुओं के साथ मिल कर अंग्रेज़ों को गालियाँ दे रहा है । यह देसी अलजाफ , अरजाल और पसमान्दा मुसलमान हाथ से निकल गया तो सैयद अशरफ क्या घास खोदेंगे ? इनको राह पर लाने के लिए इल्म का यह बड़ा मदरसा खोला गया  और यहाँ से ऐसी तालीम दी गई , जिसने देश का ही बँटवारा कर दिया । हद तो तब हो गई , जब मुगलों व अंग्रेज़ों के चले जाने के बाद भी अशरफ जिद कर रहे हैं कि इस ‘दानिशगाह’ को मुसलमानों की दानिशगाह मान लिया जाए । इसमें भारत के एससी के छात्रों के लिए आरक्षण न रखा जाए । विश्वविद्यालय का ख़र्चा सरकार उठाए और नियंत्रण एटीएम अशरफ का रहे । इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने ऐसा करने से इंकार कर दिया । उसका कहना था कि यह सरकारी विश्वविद्यालय है , इसलिए वैधानिक नियमों के अनुसार दाख़िले में भी और नौकरी में भी एससी को आरक्षण देना पड़ेगा । यह अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है । तब इंदिरा गान्धी की सरकार थी । उसने अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय को लेकर संसद में क़ानून ही बदल दिया और कहा कि  अलीगढ का यह बड़ा मदरसा मुसलमानों के कब्जे में ही रहेगा । शब्द तो ‘मुसलमान’ ही प्रयोग किया गया था लेकिन व्यवहारिक रूप में उसका अर्थ अशरफ यानि एटीएम मुसलमान से ही था । अब मदनी जैसे पता नहीं कितने अशरफ क़ानून की किताबों को जला देने की बातें करने लगे हैं । देसी मुसलमान मुँह बाए देख रहा है ।
             लेकिन असली सवाल यह है कि पाँच प्रतिशत एटीएम यानि अशरफ के पास 95%  देसी मुसलमानों को घेरने की ताक़त आख़िर कहाँ से आती है ? उसकी ताक़त का राज भारत की मस्जिदों पर उसका कब्जा है । भारत के देसी मुसलमानों को इस्लाम का हाथ पकड़े हुए पाँच सौ से भी ज्यादा साल हो गए हैं लेकिन दिल्ली की मस्जिद पर अभी भी बुखारा वालों का ही कब्जा है । क्या कोई देसी मुसलमान इन पाँच सौ साल में भी इतना क़ाबिल नहीं हो पाया कि वह इस मस्जिद का इंतज़ाम संभाल सके ? क्या कोई गुज्जर मुसलमान इस मस्जिद का अध्यक्ष नहीं बन सकता ? देसी मुसलमान को पाँच प्रतिशत एटीएम अशरफ ने घेरा हुआ है और उसका मानसिक व आर्थिक दृष्टि से शोषण कर रहा है । अयोध्या से कुछ हट कर जो मस्जिद बन रही है ,पता चला है कि उसका पहला पत्थर रखवाने के लिए अरब से किसी को बुलाने का षड्यन्त्र हो रहा है । हिन्दुस्तान के देसी मुसलमान को यह अवसर क्यों नहीं दिया जा सकता ? उत्तर साफ़ है । उस मस्जिद पर भी अशरफ, उसके  जन्म से पूर्व ही कब्जा कर लेना चाहता है । यही उसकी वह ताक़त है जिससे वह हिन्दुस्तान के देसी मुसलमान की शाह रग दबाता है ।

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