कोरोनाई-संकट में विश्व स्वास्थ्य संगठन की विश्वसनीयता

-डॉ.वीरेन्द्र सिंह चौहान-

गोस्वामी तुलसीदास ने कहा है – “धीरज, धर्म, मित्र, अरु, नारी आपद काल परखिए चारी।” परखने और परीक्षा की यही कसौटी किसी भी व्यक्ति, संगठन या संस्थान की उपयोगिता आंकने के काम आती है। भूमंडलीय संकट का कोरोना काल कथित वैश्विक संस्थानों को अपनी कसौटी पर कसने निकल पड़ा है। मानव जाति की सेहत की चिंता करने के लिए दूसरे विश्वयुद्ध के बाद अस्तित्व में आया विश्व स्वास्थ्य संगठन बड़े सवालों के दायरे में आ गया है। उस पर कोरोना की महामारी को लेकर न केवल ढुलमुल रवैया अख्तियार करने बल्कि आपराधिक लापरवाही बरतने के आरोप लग रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के सबसे बड़े वित्त पोषक अमेरिका ने उसके बर्ताव से आहत होकर अपनी ओर से हर साल दी जाने वाली आर्थिक सहायता फिलहाल रोक दी है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस आशय का निर्णय विश्व को बताते समय बगैर लाग लपेट के वह सारे आरोप दुनिया के सामने उछाल दिए हैं जिनका जवाब विश्व स्वास्थ्य संगठन की वर्तमान कमान को हर हाल में देना होगा। ऐसा न हुआ तो अपनी प्रामाणिकता गंवाने की कगार पर खड़ा विश्व स्वास्थ्य संगठन अपना अस्तित्व खो देने की दिशा में बढ़ चलेगा।

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप विश्व स्वास्थ्य संगठन के कामकाज के तरीके और कोरोना युद्ध के संदर्भ में उसकी भूमिका पर सवाल उठाने वाले पहले व्यक्ति नहीं हैं। उसकी आलोचना अनेक वैश्विक मंचों पर हो रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन पर यह आरोप लग रहा है कि उसने वैश्विक पटल पर बीमारियों और महामारियों पर निगाह रखने वाले वॉच डॉग की अपनी भूमिका कोरोना के मामले में कायदे से अदा नहीं की। चीन के वुहान में इस वायरस के प्रकट होने के बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन की जिम्मेदारी संसार को इस नए वायरस की आमद की खबर देकर उसका सामना करने के लिए तैयार रहने की चेतावनी देना थी। मगर विश्व स्वास्थ्य संगठन दिसंबर और जनवरी के माह में इस विषय पर सटीक सूचना व सलाह संसार के देशों को नहीं दे पाया। चीन में दिसंबर में प्रकट हुआ कोरोना नाम का नया वायरस मनुष्य से मनुष्य में फैल सकता है इसको लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन पर स्वयं भ्रम में रहने या फिर सुनियोजित धर्म फैलाने का गंभीर आरोप है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन की आर्थिक सहायता वाली अमेरिकी टोंटी बंद करने का ऐलान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जिस पत्रकार वार्ता में किया, उसी में उन्होंने विश्व स्वास्थ्य संगठन पर लगने वाले अधिकांश आरोपों को पुरजोर ढंग से दोहराया। ट्रंप ने कहा कि वायरस की खबर मिलने के बाद जब उन्होंने चीन पर यात्रा संबंधी प्रतिबंध लगाने की बात की तो विश्व स्वास्थ्य संगठन ऐसे प्रतिबंधों का विरोध करने के लिए सामने आ खड़ा हुआ। मनुष्यों से मनुष्यों में फैलने वाला वायरस रोकने के लिए जिस तरह क्वॉरेंटाइन की उपयोगिता है ठीक वैसे ही संक्रमित इलाके में आना जाना बंद करने के फायदों से इनकार करना आखिर किस ओर इशारा करता है? ट्रंप ने कहा कि उन्होंने विश्व स्वास्थ्य संगठन के विरोध के बावजूद यातायात संबंधी प्रतिबंधों की जिद नहीं की होती तो अमेरिका मैं कोरोना से मरने वालों की संख्या में लाखों का इजाफा होना तय था।

कोरोना के भूमंडलीय दुष्चक्र की वैश्विक समझ विश्व स्वास्थ्य संगठन के चरित्र को दागदार बनाते हुए एक राष्ट्र के रूप में चीन की भूमिका और बर्ताव को उससे कहीं अधिक गहरे संदेह के साथ देख रही है। दुनिया की बिरादरी को कोरोना के संकट से आगे बढ़कर अवगत कराना विश्व स्वास्थ्य संगठन से भी पहले मानवीय आधार पर तो चीन की जिम्मेदारी बनती थी। मगर अमानवीय वामपंथी जकड़ ने चीन को ऐसा करने नहीं दिया। अपनी तथाकथित छवि और अर्थ तंत्र की सेहत की रक्षा करने के लिए चीन में मानवता के प्रति अपना दायित्व निभाने में कोई रुचि नहीं दिखाई। विश्व भर के निष्पक्ष चिंतक यह मानकर चल रहे हैं कि चीन ने न केवल कोरोना वायरस के आविर्भाव को विश्व से छुपाया बल्कि क्रूरता की सभी सीमाएं पार करते हुए इस वायरस के कारण काल का ग्रास बने अपने नागरिकों की सही संख्या भी उसने आज तक सामने नहीं आने दी। लुकाछिपी के इस चीनी चक्रव्यूह का एक खतरनाक आयाम यह भी उभर कर सामने आ रहा है कि चीन ने वायरस के संबंध में अपने देश में हुई अधिकांश वैज्ञानिक और शोधात्मक गतिविधियों को भी दुनिया से छुपा कर रखा।

डोनाल्ड ट्रंप इस मामले में चीन से ज्यादा सवाल विश्व स्वास्थ्य संगठन से करते नजर आ रहे हैं। ट्रंप ने सीधा सवाल दागा है कि कोरोना वायरस से संबंधित रिसर्च और उस रिसर्च से जुड़े डॉक्टरों व अन्य विशेषज्ञों के गायब होने का सिलसिला जब चल रहा था तो विश्व स्वास्थ्य संगठन रूपी नीरो कहां बंसी बजा रहा था? यह सवाल भी पूछा जा रहा है कि कोरोना को इंटरनेशनल हेल्थ इमरजेंसी घोषित करने का निर्णय लेते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन कई दिन तक किंतु परंतु मे क्यों लगा रहा? यहां यह उल्लेख करना भी उपयोगी रहेगा कि स्वयं विश्व स्वास्थ्य संगठन को सार्वजनिक रूप से अपने उन तीन रिपोर्टों के लिए माफी मांगनी पड़ी थी जिनमें उसकी मशीनरी ने कोरोना के चीन में पकड़े जाने के बाद उसके वैश्विक फैलाव की संभावनाओं को ‘हाई’ की श्रेणी में रखने के बजाय ‘मॉडरेट’ बताया था।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के संदिग्ध व्यवहार की एक बड़ी वजह इसके वर्तमान मुखिया की कथित वामपंथी पृष्ठभूमि बताई जा रही है। दरअसल इथियोपियाई मूल के विश्व स्वास्थ्य संगठन के वर्तमान प्रमुख डॉ. टेड्रोस मलेरिया विशेषज्ञ माइक्रोबायोलॉजिस्ट हैं। मगर उनकी पहचान चिकित्सक के साथ साथ वामपंथी पृष्ठभूमि के राजनेता की भी है। इसके कारण विश्व भर में उन्हें चाइना सेंट्रिक डब्ल्यूएचओ चीफ कहकर पुकारा जा रहा है। सारा संसार जब चीन की भूमिका पर संदेह करते हुए सवालों की बौछार कर रहा है डॉ. टेड्रोस के मुख से चीन के लिए आज तक केवल और केवल तारीफ ही सुनी गई है। ऐसे में ट्रंप का विश्व स्वास्थ्य संगठन के लिए यह कहना पहली नजर में तो गलत नहीं दिखता कि विश्व स्वास्थ्य संगठन को सच बोलना चाहिए था जो कि बहुत कठिन काम नहीं था।

बहरहाल, अमेरिकी आर्थिक सहायता बंद होना विश्व स्वास्थ्य संगठन पर उठ रहे सवालों के जवाब तराशने में मानव जाति की कितनी मदद करेगा, यह फिलहाल कठिन है। मगर यह सच है कि कोरोना के रहस्यमयी साए में तमाम तरह की बंदिशों में जकड़े भूमंडल की दिक्कतें इसे लेकर सब तरफ फैल रही तरह-तरह की ‘कांस्पीरेसी’ कथाओं ने और बढ़ा दी हैं। डॉ. टेड्रोस की अगुवाई वाला विश्व स्वास्थ्य संगठन इन कथाओं का एक पात्र बनकर कर सामने आ रहा है। संदेशों और सवालों का यह साया कोरोना की कालिमा से किसी मायने में कम नहीं। जिसके जिम्मे दूध की पहरेदारी हैं, वह बिल्लियों का साझीदार दिखने लगे या खुद ही ऊदबिलाव साबित हो जाए, इससे खतरनाक स्थिति भला क्या हो सकती है?

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