शर्म मगर इनको नहीं आती..

बुराई हर क्षेत्र में घर कर गई है और कलयुग में यह सच्चाई पर विजय भी प्राप्त करने लगी है| मीडिया भी इससे अछूता नहीं है| वर्तमान मीडिया में ऐसे लोगों का समूह बन गया है जो मात्र चाटुकारिता या चरण वंदना कर अपना हित साधने में लगे हैं| ऐसे समूह अपने हित के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं| वे अपना स्वाभिमान तथा अपना कर्तव्यबोध ताक पर रख सिर्फ यह जुगत भिड़ाने में लगे रहते हैं कि कैसे उन्हें उनके सहयोगियों से श्रेष्ठ घोषित किया जाए और कैसे उनकी धाक बनी रहे? कई कर्मठ पत्रकार साथी अपने कार्यक्षेत्र में इन स्थितियों से दो-चार होते होंगे| कभी-कभी उनके मन में यह कुंठा भी उठती है कि उनका अच्छा कार्य किसी को नहीं दिखता परन्तु चमचा संस्कृति के पोषक दिन दूनी रात चौगुनी प्रगति करते जा रहे हैं| आखिर मीडिया में यह चमचामूलक संस्कृति का चलन क्यूँ चल पड़ा है? मूल प्रश्न यह है कि किसी पत्रकार को आखिर इतना नीच कर्म क्यों करना पड़ता है?

दरअसल मीडिया आज एक ऐसा क्षेत्र बन गया है जहां आगे बढ़ने के स्वर्णिम अवसर हैं| यदि आप थोड़े से भी जागरूक तथा समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को समझने वाले हैं तो आप मीडिया के लिए बने हैं| मगर कुछ स्वयंभू पत्रकार या पत्रकारिता की एक-दो डिग्रीधारी स्वयं को जन्मजात पत्रकार समझने लगते हैं| प्रतिभा तो इनमें होती नहीं; अब चूँकि पत्रकारिता के पवित्र पेशे में आए हैं तो कुछ तो करना होगा| बस; यहीं से उनकी खोजी नज़र ऐसे व्यक्ति को खोजती है जो अव्वल तो उच्च पद पर बैठा हो और जो चमचा संस्कृति को न तो गलत मानता हो और न ही उसे अपनाने में उसे गुरेज हो| जब इनकी खोजी नज़र ऐसे व्यक्ति को ताड़ लेती है तो ये चाटुकारिता की अपनी जन्मजात प्रतिभा का बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए उस व्यक्ति की ज़रूरत बन जाते हैं| आखिर स्वयं की प्रशंसा किसे अच्छी नहीं लगती? वैसे इस तथ्य से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि जो उच्चपदासीन व्यक्ति स्वयं की चाटुकारिता से खुश होता है, दरअसल उसके लिए पत्रकारिता का एक भी अक्षर; काला अक्षर की भांति होता है| ऐसे तथाकथित वरिष्ठ पत्रकार न तो अपने जीवन में पत्रकारिता धर्म का निर्वहन करते हैं; न ही अपने इर्द-गिर्द फैले चमचों को पत्रकार बना पाते हैं| ऐसी स्थिति में चमचे सिर्फ चमचे बन स्वयं को ठगा महसूस करते हैं और वरिष्ठ वरिष्ठता की सीढियां चढ़ते हुए प्रसिद्धि प्राप्त करते हैं|

यह तो बात हुई चमचामूलक संस्कृति की| मीडिया में एक और गलत कृत्य इन दिनों घर करता जा रहा है जिससे मीडिया की छवि धूमिल हो रही है| कई स्वयंभू पत्रकार साथी चोरी जैसा ओछा कृत्य करने में लगे हैं| यह चोरी है; किसी के विचारों एवं मौलिकता को अपना नाम देकर जगह-जगह प्रकाशित होने की| मैं स्वयं ऐसे कई मीडियाकर्मियों को जानता हूँ जो किसी और के विचारों को अपना नाम देकर विभिन्न प्रकाशनों में प्रकाशित होकर सस्ती लोकप्रियता हासिल करना चाहते हैं| जो ऐसा नहीं कर पाते वे अपने ब्लॉग में ऐसी सामग्री को स्वयं के नाम से प्रकाशित कर पत्रकार होने का दंभ भरते हैं| धिक्कार है ऐसे पत्रकारों को जो किसी की मौलिकता से छेड़-खानी कर उसकी कल्पनाशीलता पर कुठाराघात करते हैं| किसी के विचारों की चोरी करना स्वयं को दिमाग से खाली सिद्ध करना है|

आखिर किसी के विचारों से छेड़-खानी कर उसे अपने नाम क्यों देना? हर व्यक्ति को अपनी वैचारिक ताकत तथा कल्पनाशीलता का पता होता है| अरे भैया; जब आपको ज्ञात है कि आप विचारोत्तेजक लेखन कार्य नहीं कर सकते तो दूसरे के विचारों को अपना नाम देकर क्या सिद्ध कर लेंगे? ऐसे पत्रकार साथी भले ही लेखक के रूप में पहचान बना लें मगर जब इनका भांडा फूटता है जो आम-आदमी के मन में निश्चित ही मीडिया की छवि को लेकर नकारात्मकता घर करती होगी| फिर बदनामी मिलती है सो अलग| जब सब जगह से बेगैरत होना है तो ओछे कृत्य क्यों? पर कौन समझाए ऐसे साथियों को जो येन-केन प्रकरेण किसी भी तरह स्वयं को उच्च प्रतिभा संपन्न सिद्ध करने में लगे हैं?

ऊपर बताये गए दोनों तरह के व्यक्तित्वों का मीडिया में कोई स्थान नहीं होना चाहिए मगर हमारी विडम्बना है कि हमें इन्ही के बीच काम करना और स्वयं को सिद्ध करना है| इनका चरित्र तो सुधर नहीं सकता; हमारी कोशिश होना चाहिए कि ऐसे तथाकथित पत्रकार का सामुहिक बहिष्कार करें ताकि इन्हें इनकी असल वस्तुस्थिति पता चल सके| मीडिया में बुराई का जो घुन घर कर गया है उसे आप और हम; समाज के बीच ले जाकर मिटा सकते हैं| बस थोड़ा धैर्य धारण करने की ज़रूरत है| वो सुबह कभी तो आएगी जिसका हम सभी को इंतज़ार है|

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सिद्धार्थ शंकर गौतम
ललितपुर(उत्तरप्रदेश) में जन्‍मे सिद्धार्थजी ने स्कूली शिक्षा जामनगर (गुजरात) से प्राप्त की, ज़िन्दगी क्या है इसे पुणे (महाराष्ट्र) में जाना और जीना इंदौर/उज्जैन (मध्यप्रदेश) में सीखा। पढ़ाई-लिखाई से उन्‍हें छुटकारा मिला तो घुमक्कड़ी जीवन व्यतीत कर भारत को करीब से देखा। वर्तमान में उनका केन्‍द्र भोपाल (मध्यप्रदेश) है। पेशे से पत्रकार हैं, सो अपने आसपास जो भी घटित महसूसते हैं उसे कागज़ की कतरनों पर लेखन के माध्यम से उड़ेल देते हैं। राजनीति पसंदीदा विषय है किन्तु जब समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का भान होता है तो सामाजिक विषयों पर भी जमकर लिखते हैं। वर्तमान में दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, हरिभूमि, पत्रिका, नवभारत, राज एक्सप्रेस, प्रदेश टुडे, राष्ट्रीय सहारा, जनसंदेश टाइम्स, डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट, सन्मार्ग, दैनिक दबंग दुनिया, स्वदेश, आचरण (सभी समाचार पत्र), हमसमवेत, एक्सप्रेस न्यूज़ (हिंदी भाषी न्यूज़ एजेंसी) सहित कई वेबसाइटों के लिए लेखन कार्य कर रहे हैं और आज भी उन्‍हें अपनी लेखनी में धार का इंतज़ार है।

3 COMMENTS

  1. सारा समाज और देश जब भ्रष्ट हो चूका है तो अकेले मिडिया को कैसे पाक साफ रखा जा सकता है? ज़रुरत पूरी व्यवस्था ठीक करने की है वर्ना सब एक दुसरे पर ऊँगली उठाते रहेंगे ठीक कुछ भी नहीं हो पायेगा.

  2. Dear sid yaar har admi safalta ke liye pagal hai jab insan aisi saflata ke liye pagal hota hai to usko to saflta milti hai par o samaj me vikrati our samaj ko pagal kartahai ……. dikkat to tab dur hogi jab admi khud ka jamir jinda kar le par o possible nai hai………. tum to luge ruho jugao jugao logo ka jamir jagao gud going…………………………..

  3. मस्जिद की पवित्रता पर दाग, मौलवी ने मासूम संग की शर्मनाक हरकत! – Maulvi raped teenager in masjid – w…
    ये मौलवी सच्चा भारतीय मुसलमान हो ही नहीं सकता…..जरूओर कोई पाकिस्तानी जेहादी परिवार का हिस्सा होगा…..देश में ३५% आबादी पाकिस्तानी ,बंगलादेशी और जेहादी मुसलमानों की है और २०%जेहाद के हिव से संक्रमित हो चुके है ,अब केवल ४५% सच्चे मुस्लमान बचे है जिनको जेहादी बनाने के लिए …उनके बच्चो को शिकार बनाया जा रहा है…..इस हरामी की जड़े पकिस्ताम में है…….

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