भ्रष्टाचार की भागवत का अंतिम अध्याय

3
185

अनिल त्‍यागी

ऐसे समय में जब ट्रासपेरेंसी इन्टरनेशनल के कर्ताधर्ताओं ने भारत को भ्रष्टतम देशों की जमात में सबसे ऊपर रखा है। आम भारतीय का सिर शर्म से झुक रहा है। उ.प्र. में पुराने खाद्यान्न घोटाले का जिन्न फिर बोतल से बाहर निकल पडा है। इस घोटाले का अभी यह निश्चित अनुमान लगाने में ही समय लगेगा कि घोटाला कितने का है 35 हजार करोड से2 लाख करोड या और भी ज्यादा?

लगता है हमारा पूरा का पूरा सिस्टम सड़ गया है या फिर ऐसी कोई मूलभूत कमी है, जिससे घोटाले और घोटालेबाजों को पनपने का मौका मिल रहा है। कल ही शरद पवार जी की टिप्पणी पर गौर करें तो पूरा तंत्र सामने आ सकता है। उ.प्र. के खाद्यान्न घोटाले पर बोलते हुए पवार जी ने कहा कि केन्द्र का काम सिर्फ अनाज मुहैया कराना है ये राज्य सरकार की जिम्मेवारी है कि वो इसका वितरण कैसे करती है।

यही हमारी व्यवस्था की खामी है। केन्द्र सरकार की लापरवाही है या भारतीय संविधान के संघीय लोकतांत्रिक व्यवस्था की खामी? इस पर विचार ही नहीं इस पर पूरा परिणामात्मक प्रयास आवश्यक है। किसी जमाने में स्वर्गीय राजीव गाधी ने इसके मूल को पकडने का प्रयास किया था उन्होंने बिना किसी झिझक के स्वीकार किया था कि केन्द्र से भेजे गये 1 रूपये में 15 पैसे ही आम आदमी पर खर्च होते हैं। आजकल श्री राहुल गांधी भी इसी बात को और आगे ले जाने की कोशिश मे है उनके अनुसार तो आम आदमी तक 8 पैसे ही पहुंचते है। पर यहॉ तो सारे के सारे अनुमान और आलोचनाएं ध्वस्त हो गई इस घोटाले में तो आम आदमी तक पहुंचने वाले धन का आंकडा शून्य ही है।

सोचने की बात है कि केन्द्र सरकार क्यों इतनी उदार है कि राज्यों को मुंहमांगा धन मुहैया कराती है और फिर अपने माल को यूं बरबाद होते देखती है। मुलायम राज हो या माया राज कल्याण सिंह हो या कोई और उ.प्र. में तो भ्रष्टाचार की प्रक्रिया ही अजीब है। विकास योजना हो या कल्याण योजना लखनऊ से मुहॅ मांगा पैसा जनपदों को और स्थानीय निकायों को निश्चित कमीशन देकर ही मिल रहा हैं। जनपद में आते ही इस धन की बंदरबांट शुरू हो जाती है। अफसर नेता और सत्ता के दलाल व ठेकेदार ऐसी कवायद करते हैं कि विकास के श्यामपट तो नजर आते है बाकी कुछ नहीं। जब अफसर और नेता अपना पेट भरा महसूस करते है, तब सत्ता के पद का टिकट पाने के लिये नेता सब कुछ कमाया धमाया अपने नेता को थैली भेंट करने में देकर फिरसे कमाई के नये स्रोत खोजने लगता है। अफसर भी अपने पद पर बने रहने के लिये सारी कमाई धमाई वापस राजधानी की भेंट चढा कर अपना पिण्ड छुडाने में ही भलाई मानता है और फिर से उसी कमाई में लग जाता है। नतीजन यहां भ्रष्टाचार दो जमा दो चार न हो कर दो दुनी चार दुनी सोलह यानी वर्गफलों मे बढ रहा है। ऐसे में कोई ट्रासपेरंसी इन्टरनेशनल हो या कोई और जब हम में कमी है तो सुननी तो पडेगी ही। दो ही रास्ते है या तो चुपचाप सुनते रहे या शरद पवार की तरह बेशर्मी से अपनी कमीज दूसरों से उजली बताते रहे।

वास्तव में यह सारी कमी हमारी अधूरी कोशिशो की है बिना तैयारी युद्ध करने जैसी है। स्वर्गीय राजीव जी ने गांधीवादी अवधारणाओं पर रामराज्य के सपने को साकार करने के लिये सत्ता के विकेन्द्रीकरण के लिये पंचायती राज का विकल्प अपना तो लिया लेकिन केन्द्र की सरकारें उसे संरक्षण नहीं दे पायी। पंचायती राज के प्रयास सिर्फ इतने हुए कि केन्द्र से भेजा धन जो पहले राज्य सरकार के अधिकारियों के स्तर पर खाया जाता था अब सिर्फ एक पायदान नीचे ऊतरा, उस धन को खाने में खुर्दबुर्द करने में अब ग्राम प्रधान मुख्य जरिया हो गया है। पंचायत का प्रधान इस हेराफेरी में इतना व्यस्त हो गया है कि उसका सारा समय जिला मुख्यालय के दफ्तरों के चक्कर काटने में ही लगा रहता है। और फिर उसके लिये कोई ऐसी निश्चित नियमावली तो है नहीं कि वो उसके अन्तर्गत अपना रोजनामचा दाखिल करे आज पंचायत का प्रधान ग्राम का सेवादार न होकर अफसरों का दलाल बन कर रह गया है। वो बेचारा करे भी क्या ग्राम प्रधानी का चुनाव अब योग्यता का चुनाव न होकर लाखों में लडा जाने वाला चुनाव हो गया है। यदि सर्वे किया जाये जो साफ हो जायेगा कि जितनी शराब ग्रामीण क्षेत्रों में पॉच वर्षो मे बिकी हो उसके बराबर शायद चुनाव के पॉच सप्ताह में बिक जाती है।

पंचायती राज की कितनी अपरिपक्व कल्पना है कि पंचायत के सदस्यों के बिना चुने प्रधान शपथ नहीं ले सकता पर बाद में इन पंचायत सदस्यों को कोई नहीं पूछता, यहां तक कि अब उन्हें अविश्वास प्रस्ताव से प्रधान को हटाने का अधिकार तक नहीं है। यदि पंचायती राज की कल्पना को कार्यरूप में लाना है तो प्रधान के अधिकार तो हैं ही पंचायत के अधिकारों को और नीचे ले जाना होगा ग्राम पंचायत के सदस्यों को भी अपने पचायत वार्ड में प्रधान के समकक्ष अधिकार देने होंगे तब ही हमारा पचायती राज परिपक्व होगा।

और केन्द्र को भी सोच व कार्यप्रणाली में परिवर्तन कराना होगा। यह नहीं कि डायरेक्ट व इनडायरेक्ट टैक्स का पैसा बिगडै़ल रईस की तरह राज्य सरकारों को दे बल्कि उस पैसे के उपयोग पर पूरी निगाह हो उसकी मानिटरिंग को राज्य सरकारों को अधिकार तो हैं ही केन्द्र सरकार की भी पैसे के उपयोग पर निगाह रखने की तथा जनता को जवाब देने की जिम्मेवारी हो। इसके लिये यदि कोई नया तंत्र चाहे वो कितना भी मंहगा क्यों न हो विकसित तो करना ही पडेगा। वैसे भी बाद को भी केन्द्र सरकार को ही दखल कराना ही पडता है जिसका माध्यम सी.बी.आई. बनती है। पर तब तक इतनी देर हो चुकी होती है कि जॉच एजेंसी सांप निकलने के बाद लकीर पीटने वाली स्थिती में ही रह जाती है।

आरोपों के घेरे में घिरे केन्द्रीय सतर्कता आयुक्त, जो अभी तक अपराधी नहीं है सिर्फ आरोपी है, आज एक नई बहस छेडने के मूड में नजर आये। रिश्वत लेने वालों के साथ साथ उन्होंने रिश्वत देने वालों पर भी तल्ख टिप्पणीया कर दी है, टाटा और चन्द्रशेखर भी आपने सामने वाकयुद्धरत है। मायावती मुलायम सिंह को दोषी बता रही हैं तो मुलायम सिंह मायावती पर भ्रष्टाचारियों को बचाने का आरोप लगा रहे है लगता है। भारत में भ्रष्टाचार की भागवत का अंतिम अध्याय चल रहा है जहॉ सारे के सारे भ्रष्टाचारी आपस में संघर्ष कर एक दूसरे का समाप्त कर देंगे। नया भारत बनेगा, विश्वास करना ही होगा।

3 COMMENTS

  1. “मैंने बार बार लिखा है की हमाम में सब नंगे हैं.सब मतलब सारे भारत वासी. इस भ्रष्टाचार की गाडी में जाने अनजाने हम सब सवार हैं.कभी रिश्वत लेकर कभी रिश्वत देकर.”

    श्री आर सिंह जी ने सही लिखा है, सबसे पहले तो इस पर बिना पूर्वाग्रह के विचार करना होगा. तब कहीं कोई रास्ता खोजा जा सकता है.

  2. इसका नाम भ्रष्टाचार की कुरान रख सकता था तू? ये भागवत शब्द इतना सस्ता नहीं गंदे कलंक जो भ्रष्टाचार के साथ जोड़ कर लिख दिया . .. …

  3. काश,आपका यह सपना सच्च हो जाता,पर मुझे नहीं लगता की ऐसा कुछ होने वाला है.भ्रष्टाचार की ये यह गाड़ी यों ही सरपट दौड़ती रहेगी और हम इसके बारे में बहस करते रहेंगे और एक दूसरे को दोष देते रहेंगे.मैंने बार बार लिखा है की हमाम में सब नंगे हैं.सब मतलब सारे भारत वासी. इस भ्रष्टाचार की गाडी में जाने अनजाने हम सब सवार हैं.कभी रिश्वत लेकर कभी रिश्वत देकर.और नहीं तो अपने अवसर की प्रतीक्षा करते हुए.हो सकता है एक आध अपवाद हो पर उनकी गिनती तो मूर्खों में होती है.

Leave a Reply to R.Singh Cancel reply

Please enter your comment!
Please enter your name here