आधार तकनीक से रूकेगा भ्रष्टाचार ?

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प्रमोद भार्गव

संप्रग की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने 21 करोड़वां आधार कार्ड उदयपुर जिले के दूदु कस्बे की कालीबार्इ को सौंप दिया। देश के नागरिकों के लिए अब विशेष व बहूउददेशीय पहचान पत्र ‘आधार बुनियादी जन सुविधाओं एवं उपभोक्ता को नकद छूट ;सबिसडी का आधार भी बनता दिखार्इ दे रहा है। इस कार्ड के मार्फत राजस्थान में सरकारी अनुदान और योजनाओं का लाभ जनता को सीधे देने की शुभ शुरूआत कर दी गर्इ। जाहिर है, यदि इस कार्ड से बिना किसी बाधा के नकद छुट उपभोक्ता के सीधे बैंक खाते में जमा होती है तो भ्रष्टाचार पर अंकुश लगेगा और सार्वजानिक वितरण प्रणाली के दुरूस्त हो जाने की उम्मीद बढ़ेगी। इससे कांग्रेस और उसके सहयोगी धटक दलों का खिसकता जमीनी आधार भी मजबूत होगा। बशर्ते कार्ड में उपभोक्ता के वास्तविक ब्यौरे दर्ज हों, क्योंकि सभी गरीब परिवारों के उचित दस्तावेजों के अभाव में बैंक खाते नहीं खुल पा रहे हैं। ग्राम पंचायत के प्रमाण्ीकरण से उनके खाते खुल जाएं और आधार तकनीक से जुड़े जो सहायक उपकरण है उनकी गुणवत्ता मानक हो। ये उपकरण मानक नहीं हुए तो आधार कर्नाटक की तरह परेशानी का सबब भी बन सकता है।

आजादी के बाद से ही कर्इ ऐसे कारगर उपाय होते चले आ रहे हैं, जिससे देश के प्रत्येक नागरिक को राष्ट्रीय नागरिकता की पहचान दिलार्इ जा सके। मूल निवासी प्रमाण पत्र, राशन कार्ड, मतदाता पहचान पत्र और अब आधार योजना के अंतर्गत एक बहुउददेषीय विशिष्ट पहचान पत्र हर नागरिक को देने की देशव्यापी कवायद चल रही है। सोनिया गांधी ने 21 करोड़वां आधार कार्ड भेंट करते हुए दावा किया है कि ‘आधार विश्व की सबसे बड़ी परियोजना है, जो आम आदमी को उसकी पहचान देगी। उसका जीवन बदल जाएगा। उपभोक्ता को सरकारी मदद शत प्रतिशत मिलने की गारंटी मिल जाएगी। इसी परिप्रेक्ष्य में खाध साम्रगी, घासलेट और रसोर्इ गैस में मिलने वाली नकद सबिसडी हकदार के सीधे बैंक खाते में डाल दी जाएगी। तय है भ्रष्टाचार, हेर-फेर और धोखाधड़ी कम होगी। मनरेगा की मजदूरी, विधार्थियों के वजीफे, बुजुर्गों की पेंशन सीधे लाभार्थियों के खाते में जमा होंगे। यदि यह संभव हो जाता है तो व्यकित अनिवार्य रूप से आधार कार्ड धारण करने को विवश होगा और इसकी स्वीकार्यता भी बढ़ेगी। फिलहाल विपक्षी दल पिछले दो दशक से नकद सबिसडी उपभोक्ता को देने की मांग करते चले आ रहे थे, उसकी शुरूआत संप्रग सरकार ने राजस्थान के दूदू कस्बे से कर दी है। कुछ दिनों में इसके दूरगामी परिणाम देखने में आएंगे। फिलहाल आधार को वजूद कायम करने में कर्इ जटिलताएं पेश आ रही हैं। इन्हें दूर करने की जरूरत है। इसके अमल में आने के बाद मानवीय लालच के चलते जो गड़बडि़या व चार सौ बीसियां सामने आर्इं हैं, उनमें यदि सख्ती नहीं बरती गर्इ तो महत्वकांक्षी आधार योजना भी ढांक के तीन पांत बनकर रह जाएगी। क्योंकि आधार कंप्युटर आधारित ऐसी तकनीक है, जिसे संचालित करने के लिए तकनीकी विषेशज्ञ, इंटरनेट कनेक्टविटी तथा उर्जा की उपलब्धता जरूरी है। केवल व्यकित को राष्ट्रीय स्तर पर पंजीकृत करने की संख्या दे देने से काम चलने वाला नहीं है। महज आधार संख्या सुविधा और सशक्तीकरण का बड़ा उपाय अथवा आधार नहीं बन सकता। यदि ऐसा संभव हुआ होता तो मतदाता पहचान पत्र मतदाता के सशक्तीकरण और चुनाव सुधार की दिशा में बड़ा कारण बनकर पेश आ गया होता। आधार को पेश करते हुए दावा तो यह भी किया गया था कि इससे नागरिक को ऐसी पहचान मिलेगी जो भेद सहित होने के साथ उसे विराट आबादी के बीच, अपनी असिमता भी कुछ है, यह होने का आभास कराती रहेगी। लेकिन जातीय, शैक्षिक और आर्थिक असमानता के भेद बरकरार हैं।

दसअसल आधार योजना जटिल तकनीकी पहचान पर केंदि्र्रत है। इसलिए इसके मैदानी अमल में दिक्कतें भी सामने आने लगी हैं। असल में राशन कार्ड और मतदाता पहचान पत्र में पहचान मुख्य आधार फोटो होता है। जिसे देखकर आखों में कम रोशनी वाला व्यकित भी कह सकता है कि यह फलां व्यकित का फोटो है। उसकी तसदीक के लिए भी कर्इ लोग आगे आ जाते हैं। व्यकित की पहचान को एक साथ बहुसंख्यक लोगो की सहमती मिल जाती है। जबकि आधार में फोटो के अलावा उंगलियों, अंगूठे के निशान और आखों की पुतलियों के डीजिटल कैमरों से लिए गए महीन पहचान वाले चित्र हैं, जिनकी पहचान तकनीकी विषेशज्ञ भी बमुश्किल कर पाते है। ऐसे में सरकारी व सहकारी उचित मूल्य की दुकानों पर राशन, गैस व कैरोसिन बेचने वाला मामूली दुकानदार कैसे करेगा ? आधार के जरिए केवल सबिसडी की ही सुविधा दी जानी थी तो इसके लिए तो फिलहाल आधार की भी जरूरत नहीं है। यह काम उपभोक्ता का बैंक में खाता खुलवाकर र्इ – भुगतान के जरिए किया जाता तो और भी आसान होता। पूरे देश में इसकी तत्काल शुरूआत भी की जा सकती थी। क्योंकि मनरेगा के मजदूरों का शत प्रतिशत मजदूरी का भुगतान बैंक खाते के मार्फत र्इ पेंमेट के द्वारा ही होने लगा है। मनरेगा में काम करने वाले अधिकांश वही लोग हैं जो गरीबी रेखा के नीचे जीपन यापन करने वाले हैं और जिन्हें सबिसडी की पात्रता है। ऐसे में आधार का औचित्य केवल सबिसडी के लिए उचित सिद्ध नहीं होता ? कर्नाटक में ऐसे दो मामले सामने आ चुके है, जो आधार की जटिलता सामने लाते हैं। कुछ दिनों पहले खबर आर्इ थी कि मौसूर के अशोकपुरम में राशन की एक दुकान को गुस्सायें लोगों ने आग लगा दी और दुकानदार की बेतरह पिटार्इ भी लगार्इ। दरअसल दुकानदार कोर्इ तकनीकी विषेशज्ञ नहीं था, इसलिए उसे ग्राहक के उंगलियों के निशान और आंखों की पुतलियों के निशान मिलाने में समय लग रहा था। चार – पांच घंटे लंबी लाइन में लगे रहने के बाद लोगों के धेर्य ने जबाव दे दिया और भीड, हुड़दंग, मारपीट व लूटपाट का हिस्सा बन गर्इ। बाद में पुलिसिया कारवार्इ में लाचार व वंचितों पर लूट व सरकारी काम में बाधा डालने के मामले पंजीबद्ध कर इस समस्या की इतिश्री कर दी गर्इ।

अब तो जानकारियां ये भी मिल रही हैं कि इस योजना के मैदानी अमल में जिन कंप्युटराइस्ड सहायक इलेक्टोनिक उपकारणों की जरूरत पड़ती है, उनकी खरीद में अधिकारी बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार बरत रहे हैं। बंगलुरू के अखबर ‘मांर्डन इंडिया ने खबर दी है कि एक सरकारी अधिकारी ने उंगलियो के निशान लेने वाली 65 हजार घटिया मशीनें खरीद लीं। केंद्र्रीकृत आधार योजना में खरीदी गर्इ इन मशीनों की कीमत 450 करोड़ रूपये है। इस अधिकारी की षिकायत कर्नाटक के लोकायुक्त को की गर्इ है। जाहिर है योजना गरीब को इमदाद से कहीं ज्यादा भ्रष्टाचार का सबब बनती दिखार्इ दे रही है।

तय है आषंकाए बेबुनियाद नहीं हैं। इसलिए जो षिकायतें आ रहीं हैं उन्हें दूर करने की जरूरत है। इसलिए लिहाजा जरूरी है कि जिस उपभेक्ता को राशन और र्इधन की सुविधा दी जा रही है, उसकी पहचान केवल फोटो आधारित हो। आंखों की पुतलियाें और अंगूठे से उसकी पहचान इस बाबत न हो। यदि पहचान के आधार जटिल होंगे और गरीब की पहचान मुश्किल होगी तो इससे जनता में संदेश जाएगा कि गरीबों के हक को नकारा जा रहा है।

दरअसल आधार के रूप में भारत में अमल में लार्इ गर्इ इस योजना की शुरूआत अमेरिका में आतंकवादियों पर नकेल कसने के लिए हुर्इ थी। 2001 में हुए आतंकी हमले के बाद खुफिया एजेंसियों को छूट दी गर्इ थी कि वे इसके माध्यम से संदिग्ध लोगों की निगरानी करें। वह भी केवल ऐसी 20 फीसदी आबादी पर जो प्रवासी हैं और जिनकी गतिविधियां संदिग्ध हैं। लेकिन हमारे यहां इस योजना को संपूर्ण आबादी पर लागू किया जा रहा है। इससे यह संदेश भी जाता है कि देश का वह गरीब संदिग्ध है, जिसे रोटी के लाले पड़े हैं। खासतौर से इस योजना को कष्मीर और असम तथा पूर्वोत्तर के उन सीमांत जिलों की पूरी आबादी के लिए लागू करने की जरुरत थी, जहां घुसपैठियें आतंकी गतिविधियों को तो अंजाम दे ही रहे हैं, जनसांख्यकीय घनत्व भी बिगाड़ रहे हैं। इसलिए पी चिदंबरम जब देश के गृहमंत्री थे, तब इस आधार योजना के वे प्रबल विरोधी थे और उन्होंने इसे खतरनाक आतंकवादियों को भारतीय पहचान मिल जाने का आधार बताया था। लेकिन वित्तमंत्री बनते ही उनका सुर बदल गया है। राजस्थान में उन्होंने हिन्दी में भाषण देते हुए आधार का गुणगान किया। जाहिर है आधार की परिकल्पना निर्विवाद नहीं है। केंद्र में सत्ता परिवर्तन हुआ तो कहो, इसे सिरे से खारिज ही कर दिया जाए।

 

2 COMMENTS

  1. सरकारी धन ( जनता का धन) लूटने की बड़ी योजना का नाम है आधार.इस योजना के सम्बन्ध में “चौथी दुनिया” में बहुत कुछ लिखा गया है और यदि उसमे दी गयी जानकारी सही है तो ये वास्तव में देश की सुरक्षा के लिए भी खतरा बन सकता है. क्योंकि जिस प्रकार की जानकारी एकत्र की जा रही है उसको सुरक्क्षित रखने की व्यवस्था देश में नहीं है. और संभवतः उसे किसी अन्य देश के कंप्यूटर में प्रोसेस किया जायेगा. और संगृहीत किया जायेगा. योजना के सूत्रधारों को खरबों रुपये लूटने का अवसर जरूर मिल जायेगा. अगर वर्तमान मतदाता पहचान पत्र को व्यापक बना कर उसी में बायोमेट्रिक फीचर्स दाल दिए जाते और उसे क्रेडिट/डेबिट कार्ड की तरह बना दिया जाता तो ज्यादा बेहतर होता. इसी के साथ मतदान मशीन को भी ए.टी.एम्. मशीन भांति बना दिया जाता तो बेहतर होता. इस मचिनों को सेटेलाईट के जरिये आपस में जोड़ दिया जाये तो पूरे देश में कहीं पर भी कहीं का भी मतदाता वोट डाल सकता है.साथ ही जिस प्रकार ए.टी.एम्. के प्रयोग के बाद ट्रांजेक्शन की रसीद मिल जाती है उसी प्रकार वोट डालने के बाद रसीद मिल सकती है. इस कार्ड का प्रयोग बहुउपयोगी कार्ड ( अमेरिका के सोशियल सेक्युरिटी कार्ड) की तरह भी हो सकता है. लेकिन अलग अलग कार्यों के लिए अलग अलग कार्ड जरी कर जनता के धन का भरी दुरूपयोग किया जा रहा है.पिछले दिनों मैं अमेरिका में था. वहां आज कल अमेरिकी राष्ट्रपति और सीनेट के चुनाव हो रहे हैं. चुनाव छः नवम्बर को हैं. लेकिन चुनाव से लगभग एक माह पूर्व ही सरकारी ‘इलेक्शन मेल’ के जरिये जल्दी मतदान के विवरण भेज दिए गए. जहाँ मैं था वहां चुनाव सत्ताईस अक्टूबर से एक नवम्बर तक ‘अर्ली वोटिंग’ की सुविधा थी और वो भी पांच स्थानों पर. साथ ही ‘ वोट बायीं मेल’ यानि डाक ( ई-मेल) द्वारा वोट की सुविधा भी थी. उनतीस व तीस अक्तूबर को सेंडी के कारन मतदान बंद रहा जिसके बदले आगे समय दिया गया. यहाँ भी ये सुधार लागु होने में कोई रूकावट यदि कोई है तो केवल चुनाव सुधार के प्रति उदासीन रवैया.
    बात आधार कार्ड की थी. मैंने चुनाव सुधार पर लिख दिया. लेकिन ये इसलिए की आधार की सफलता संदिग्ध है जबकि यदि इस योजना को चुनाव सुधार के व्यापक कार्य के साथ जोड़ दिया जाये तो एक ही कार्ड से सारे काम हो सकेंगे.

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