गाय: सभी पक्षों का रूख़ गलत!

-इक़बाल हिंदुस्तानी
cowसियासत न हो तो हिंदुओं की भावना का सम्मान हो सकता है!
गाय हिंदुओं भाइयों के लिये हज़ारों साल से पूजनीय और सम्माननीय रही है। गाय में सौ करोड़ देवी देवताओं का वास माना जाता है। गाय एक समय था हमारी खेती के लिये भी लाइफलाइन मानी जाती थी लेकिन आज तर्क और यथार्थ यह है कि प्रसिध्द अर्थशास्त्री भरत झुनझुनवाला कहते हैं कि गाय घाटे का सौदा बन चुकी है इसलिये उसे चाहे कानून बनाकर जितना भी बचाने की कोशिश की जाये वह बचेगी नहीं लेकिन यह अलग बहस का मुद्दा है फिलहाल तो यह आस्था और श्रध््दा का विषय है। अल्पसंख्यक, आर्यसमाजी, नास्तिक, सेकुलर तर्कवादी और उदारवादी कोई भी हो उनको यह अधिकार नहीं है कि वे हिंदू भाइयों की भावना और आस्था को ठेस पहुंचायें या मज़ाक उड़ायें लेकिन जब यूपी के दादरी में एक मुस्लिम को केवल इस शक पर जान से मार दिया जाता है कि शायद उसने गाय का मांस खाया है तो इसमें राजनीति का खेल प्रवेश कर जाता है।
हर वर्ग की धार्मिक भावना का सम्मान किया जाना चाहिये लेकिन आप भावना आहत होने का संदेह होने मात्र से गाय के लिये किसी की जान ले लेंगे और कानून हाथ में लेंगे यह अधिकार किसी भी सभ्य समाज में किसी भी वर्ग को नहीं दिया जा सकता। सबको पता है कि हमारे देश में जहां अल्पसंख्यक मुस्लिम साम्प्रदायिकता और हिंदू जातिवाद की सियासत सेकुलर समीकरण के नाम पर की जाती रही है वहीं बहुसंख्यक हिंदू साम्प्रदायिकता की राजनीति भी भारतीय जनता के नाम पर एक पार्टी कई दशक से कर रही है। सबसे पहला सवाल तो यही पूछा जाना चाहिये कि जब एक हिंदूवादी सरकार केंद्र में डेढ़ साल से सत्ता में है तो वह पूरे देश में गोकशी पर कानून बनाकर अब तक रोक क्यों नहीं लगा रही है? क्या उसे भी मुस्लिम वोटबैंक की तरह अपने हिंदू वोटबैंक के दरक जाने का ख़तरा है?
अगर हां तो आप सेकुलर राजनीति के नाम पर मुस्लिमों का धार्मिक और मानसिक तुष्टिकरण करने वाले कथित सेकुलर दलों से कहां अलग हैं? आप तो उनसे भी अधिक ख़तरनाक और हिंसक हैं क्योंकि जब अल्पसंख्यक साम्प्रदायिकता का मुकाबला बहुसंख्यक साम्प्रदायिकता से किया जाता है तो वह अकसर बेलगाम और फासिस्ट हो जाती है जिससे देश में अलगाव और आतंकवाद को फलने फूलने का बेहतर अवसर मिल जाता है। यूपीए की सरकार के दौरान जब आज के पीएम मोदी साहब पश्चिमी उत्तर प्रदेश में चुनावी रैली किया करते थे तो चिल्ला चिल्लाकर दावा करते थे कि यूपी में पिंक रेवोलूशन यानी गुलाबी क्रांति हो रही है….आज आप सत्ता में हैं तो कैसे भारत दुनिया का गोमांस सप्लाई का दो नंबर का देश बन गया?
दूसरी बात यूपी में गोकशी पर कानूनी रोक है लेकिन एक पत्रकार के रूप में हम तीन दशक से ज़्यादा से देख रहे हैं कि पुलिस की जेब गर्म कर गोकशी न केवल हो रही है बल्कि इसमें खुद हिंदू बड़ी संख्या में शामिल हैं। मुस्लिम और उर्दू अरबी नामों पर धोखा देने को लगभग सारे बड़े स्लॉटर हाउस खुद गैर मुस्लिमों ने खोल रखें हैं और तो और गाय और हिंदुओं की भड़काने वाली सियासत करने वाले यूपी के एक भाजपा विधायक का नाम तो आजकल गोमांस निर्यात करने वाली फर्म के डायरेक्टर के तौर पर सामने आ रहा है और तो और जब कोई हिंदू अपनी घरेलू गाय को खुले बाज़ार में पेट भरने के लिये खुल छोड़ देता है और वह इधर उधर डंडे खाकर कूड़ा करकट और पॉलिथिन से अपना पेट भरती फिरती है या दूध न देने पर कोई हिंदू मौत के घाट के उतारने को गाय को किसी क़साई के हाथ बेच देता है तब गोरक्षकों की भावना आहत नहीं होती।
जब यूपी के एक गांव में एक गाय कुएं में गिर जाती है और सारे गोरक्षक खड़े तमाशा देखते हैं तो एक मुस्लिम युवक कुंए में उतरता है और घबराई गाय की बार बार लात खाकर भी उसे बचाकर मौत के मंुह से सुरक्षित बाहर ले आता है लेकिन गोरक्षक उसका स्वागत नहीं करते। एक दाढ़ी वाले बड़े मियां जब रोज़ अपनी दुकान के सामने से गुज़रने वाली गाय को पुचकारकर रोटी खिलाते हैं तब गोरक्षक उनका कभी सम्मान नहीं करते लेकिन दादरी में अख़लाक़ को केवल शक की बिना पर पीट पीटकर मौत के घाट उतार देते हैं जबकि उसने न तो गोकशी की थी और न ही उसने गोमांस खाया था। एक तरफ संघ परिवार दावा करता है कि जो मुस्लिम देशभक्त हैं उनसे हमें कोई शिकायत नहीं लेकिन अख़लाक़ का बेटा तो वायुसेना में देश को अपनी सेवा दे रहा है और कैसा देशभक्त मुसलमान चाहिये आपको?
केंद्रीय संस्कृति मंत्री इस घटना को पहले तो गलतफहमी का मामला बताकर न्यायोचित ठहराते हैं और फिर हत्यारों के पक्ष में इसकी सीधे निंदा करने की बजाये हादसा ठहराते हैं क्या इसका यह मतलब नहीं निकलता कि अगर अख़लाक ने वास्तव में गाय का मांस खाया होता तो उसकी हत्या सही थी? गोभक्तों को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस काटजू ललकारते हैं कि वे भी गोमांस खाते हैं और कोई पशु किसी इंसान की माता नहीं हो सकता। राजद के लालू और रघुवंश दावा करते हैं कि खुद विदेश में हिंदू गोमांस खाते हैं और रिषि मुनि भी आदिकाल में गोमांस खाते थे लेकिन ये ताकतवर लोग हैं इनका गोभक्त कुछ नहीं बिगाड़ पाते। कश्मीर में एक निर्दलीय विधायक इंजीनियर अब्दुल रशीद बीफ पार्टी देते हैं तो विधानसभा में उनकी पिटाई हो जाती है चूंकि वह मुस्लिम हैं।
हालांकि उनका बीफ पार्टी देकर गोभक्तों को चिढ़ाना और काटजू, लालू व रघुवंश का इस तरह का बयान भी उतना ही गलत है लेकिन यहां दुखद और आश्चर्य की बात यह है कि गुस्सा केवल मुस्लिमों पर उतर रहा है इसके पीछे सियासत नहीं तो और क्या है? हालांकि पीएम मोदी ने काफी थू थू होने पर इस बारे में अप्रत्यक्ष बयान दिया कि हिंदू मुस्लिम किसी भी मुद्दे पर आपस में न लड़कर गरीबी से लड़े और भड़काने व बांटने वाले बयान देने वाले नेताओं के बयानों पर कान न दें चाहें ऐसा करने वाले वे खुद मोदी ही क्यों न हों लेकिन सवाल यह है कि यह नफरत हिंसा और बदले की जो आग आज गाय को लेकर लगी है इसके लिये क्या खुद संघ परिवार दोषी नहीं है जिसने हिंदुओं के दिमाग़ में लंबे समय से यह ज़हर मुसलमानों के बारे में भरा है और बात बात पर लोग आपे से बाहर होकर एक वर्ग का नाम सुनते ही कानून हाथ में लेकर उनको सबक सिखाने पर उतर आते हैं।
हाल ही में मैनपुरी में गोकशी की अफवाह पर हुयी हिंसा में दक्षिणपंथी शक्तियों का खुलकर नाम सामने आया है। ऐसे ही मुसलमान जब जानते हैं कि गाय हिंदुओं की पूजनीय और माता मानी जाती है तो कानून हो या न हो क्यों चोरी छिपे गोकशी और गोवंश का अवैध कारोबार करने से बाज़ नहीं आते? और यह तय है कि जिस दिन मुसलमानों ने गाय के कारोबार से हाथ खींच लिये उसके पांच से दस साल के अंदर गाय के दर्शन दुर्लभ हो जायेंगे। ऐसे ही हमारी कानून व्यवस्था इतनी कमज़ोर लेट और लचर हो चुकी है कि लोग बात बात पर कानून हाथ में लेकर हाथो हाथ आरोपी को सबक सिखाने पर मजबूर होने लगे हैं यह अलग बात है कि इसके पीछे राजनीति अधिक है वास्तविक समस्या कम है।
गाय पर गंदी और घटिया सियासत करने वाले चाहे बहुसंख्यक नेता हों या अल्पसंख्यक एक बात साफ समझ लेनी चाहिये कि अगर गाय को बहाना बनाकर इस तरह केवल मुस्लिमों पर हमले होते रहेंगे तो वो दिन दूर नहीं जब मुस्लिम भी बदले में कानून हाथ में लेने लगेंगे और इससे देश गृहयुध््द आतंकवाद और अलगाववाद का शिकार हो सकता है।
सच की हालत किसी तवायफ़ जैसी है,
तलबगार बहुत हैं तरफ़दार कोई नहीं ।।

Previous articleआद्याशक्ति दुर्गतिनाशिनी भगवती श्रीदुर्गा
Next articleसूचना का अधिकार व सामाजिक परिवर्तन
इक़बाल हिंदुस्तानी
लेखक 13 वर्षों से हिंदी पाक्षिक पब्लिक ऑब्ज़र्वर का संपादन और प्रकाशन कर रहे हैं। दैनिक बिजनौर टाइम्स ग्रुप में तीन साल संपादन कर चुके हैं। विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में अब तक 1000 से अधिक रचनाओं का प्रकाशन हो चुका है। आकाशवाणी नजीबाबाद पर एक दशक से अधिक अस्थायी कम्पेयर और एनाउंसर रह चुके हैं। रेडियो जर्मनी की हिंदी सेवा में इराक युद्ध पर भारत के युवा पत्रकार के रूप में 15 मिनट के विशेष कार्यक्रम में शामिल हो चुके हैं। प्रदेश के सर्वश्रेष्ठ लेखक के रूप में जानेमाने हिंदी साहित्यकार जैनेन्द्र कुमार जी द्वारा सम्मानित हो चुके हैं। हिंदी ग़ज़लकार के रूप में दुष्यंत त्यागी एवार्ड से सम्मानित किये जा चुके हैं। स्थानीय नगरपालिका और विधानसभा चुनाव में 1991 से मतगणना पूर्व चुनावी सर्वे और संभावित परिणाम सटीक साबित होते रहे हैं। साम्प्रदायिक सद्भाव और एकता के लिये होली मिलन और ईद मिलन का 1992 से संयोजन और सफल संचालन कर रहे हैं। मोबाइल न. 09412117990

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

17,027 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress