खेल जगत

क्रिकेट-अल्लाह और भगवान

निर्मल रानी

 

मोहाली क्रिकेट स्टेडियम में भारत ने पाकिस्तान पर 29 रनों से अपनी बढ़त बनाते हुए आखिरकार फतेह हासिल कर ली। भारत-पाक के बीच खेला गया विश्व कप क्रिकेट टूर्नामेंट 2011का यह सेमीफाईनल मैच निश्चित रूप से अत्यंत रोमांचकारी रहा। भारत व पाकिस्तान दोनों ही देशों की टीमें चूंकि अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट की सर्वाधिक मज़बूत टीमों में गिनी जाती हैं लिहाज़ा इन टीमों के बीच हुई इस कांटे की टक्कर ने खेल के अंत तक दर्शकों का भी खूब मनोरंजन किया। इसमें कोई दो राय नहीं कि किसी भी खेल के मैदान में आखिर हार या जीत किसी एक पक्ष की ही होती है। फिर भी इस मैच को लेकर भारत व पाकिस्तान दोनों ही देश अपने-अपने देशों की टीमों को जिताने के लिए तरह-तरह के धार्मिक तथा भावनात्मक प्रयत्न करते देखे गए। इस में कोई दो राय नहीं कि क्रिकेट के मुकाबले में जब कभी भी भारत व पाकिस्तान की टीमें आमने-सामने होती हैं तो इन दोनों देशों के खेल में कुछ अतिरिक्त ही रोमांच तथा उत्सुकता पैदा हो जाती है। न जाने इस बात को लेकर कि यह खेल दो भाईयों जैसे पड़ोसी देशों के बीच हो रहा है या फिर यह सोच कर कि यह खेल दो परस्पर दुश्मन देशों या दो विभिन्न धर्मों की टीमों के बीच खेला जाने वाला मैच है।

भारत-पाक के खेल में सनसनी पैदा करने में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया काफी हद तक अपनी नकारात्मक भूमिका अदा करता है। संभवत: ऐसा उनकी व्यापारिक मजबूरियों के चलते हो। उदाहरण के तौर पर कभी भारत-पाक के बीच होने वाले खेल को महायुद्ध कह कर संबोधित किया गया तो कभी इसे महासंग्राम अथवा जंग की संज्ञा दी गई। कभी मीडिया ने दोनों टीमों के कप्तानों को क्रिकेट यूनीफार्म में दिखाने के बजाए फौजी यूनिफार्म में दिखाया तो कभी खिलाडिय़ों की पृष्ठभूमि में कारगिल का दृश्य प्रसारित किया। गोया मीडिया ने क्रिकेट जैसे आकर्षक व हरदिल अज़ीज़ खेल को युद्ध जैसा रंग देने में कोई कसर बाकी नहीं रखी। यह नज़ारा केवल भारतीय मीडिया का ही नहीं था बल्कि कमोबेश पाकिस्तान में भी यही हाल देखा गया। पाक मीडिया ने पाकिस्तानी खिलाडिय़ों की तुलना पाकिस्तानी मिसाईल ‘शाहीन’ से करते हुए यह दिखाया कि पाक ‘शाहीन’ भारतीय टीम पर बरसेगी। इतना ही नहीं बल्कि दोनों देशों के दर्शकों के बीच दीवानगी की हदें उस समय और अधिक पार होजाती हैं जबकि मात्र मनोरंजन के लिए खेले जाने वाले इस खेल को धर्म, भगवान या अल्लाह से जोडऩे की भरपूर कोशिश की जाती है।

आखिर अपने देश से प्यार किसे नहीं होता? हर देश का प्रत्येक व्यक्ति यही चाहता है कि किसी भी प्रतियोगिता में विजयश्री उसी के ही देश को मिले । परंतु खेल जैसी प्रतियोगिता में विजयश्री किसी के चाहने न चाहने, हवन यज्ञ करने, नमाज़ पढऩे, अल्लाह से या भगवान से दुआएं मांगने, गला फाडऩे ताली बजाने या अफसोस करने से तो हरगिज़ हासिल नहीं हो सकती। किसी भी खेल के मैदान में हमेशा जीत सिर्फ अच्छा खेल खेलने वाले व्यक्ति या टीम की ही होती है। अल्लाह या भगवान यदि खेल में दखल देता भी है तो वह भी अपना निर्णय उसी के पक्ष में सुनाता है जो अच्छे खेल का प्रदर्शन करता है। अब मोहाली में हुए इस सेमीफाईनल मैच को ही ले लीजिए। पाक खिलाडिय़ों ने मैच से पूर्व स्टेडियम में सामूहिक नमाज़ भी अदा की, तमाम पाकिस्तानी दर्शक हाथों में तसबीह (माला )लिए हुए उसे जपते हुए भी दिखाई दिए। तमाम दर्शक कुरान शरीफ की आयतें पढ़ते रहे। उधर खेल के दौरान पूरा पाकिस्तान अल्लाह को इस तरह मदद के लिए पुकार रहा था गोया अल्लाह के पास क्रिकेट में जीत या हार दिलवाने के सिवा दूसरा और कोई काम ही नहीं है। उधर भारत में भी जहां बहुसंख्यक हिंदू समुदाय के लोग अपने ईश्वर व भगवान से प्रार्थना करने में लगे थे वहीं अन्य समुदायों से जुड़े भारतीय भी अपने-अपने ईश को इस अवसर पर याद कर उनसे भारतीय टीम को विजयश्री दिलाने की प्रार्थना कर रहे थे। मुनाफ पटेल, ज़हीर खान तथा युसुफ पठान जैसे भारतीय क्रिकेट टीम के मुस्लिम खिलाडिय़ों के माता-पिता भी पूरे खेल के दौरान नमाज़ें पढ़कर अपने बच्चों की तथा देश की टीम की जीत के लिए दुआएं मांग रहे थे। माना जा सकता है इन भारतीय मुस्लिम खिलाडिय़ों के परिजनों का तो अल्लाह ने साथ दिया तथा इनकी दुआएं कुबूल कीं जबकि पूरे पाकिस्तान की दुआओं को अल्लाह ने नकार दिया। हालांकि हकीकत में ऐसा कुछ भी नहीं हैं। भारत की जीत में सचिन तेंदुलकर के शानदार 85 रनों की महत्वपूर्ण भूमिका रही। यदि खुदा न खास्ता सचिन तेंदुलकर भी युवराज की ही तरह बिना कोई रन बनाए या थोड़े बहुत रनों पर आऊट हो गए होते तो इसी मैच का नज़ारा कुछ और ही होता। परंतु क्रिकेट के महानायक सचिन तेंदुलकर ने अपनी श्रेष्ठ बल्लेबाज़ी का प्रदर्शन कर भारत को आखिरकार जीत दिलाई।

जहां मीडिया ने अपनी व्यवसायिक रणनीति पर अमल करते हुए मोहाली सेमीफाईनल को सनसनीखेज़ व तनावपूर्ण बनाने की कोशिश की वहीं भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने खेल भावना का शानदार परिचय देते हुए इस अवसर का कूटनीतिक लाभ उठाने का सफल प्रयास किया। मनमोहन सिंह के इन सकारात्मक प्रयासों को समान देते हुए जहां पाकिस्तानी प्रधानमंत्री यूसुफ रज़ा गिलानी के नेतृत्व में एक उच्चस्तरीय शासकीय दल पाकिस्तान से भारत आया तथा मोहाली में क्रिकेट मैच का लुत्फ उठाया वहीं प्रधानमंत्री के सकारात्मक कूटनीतिक प्रयासों के प्रति अपना समर्थन देते हुए भारत की तमाम अतिविशिष्ट तथा विशिष्ट हस्तियां मोहाली स्टेडियम में खिलाडिय़ों की हौसला अफज़ाई करने आ पहुंची। इन में लोकसभी अध्यक्ष मीरा कुमार, सोनिया गांधी, राहुल गांधी, शरद पवार, प्रफुल्ल पटेल, मुकेश अंबानी, विजय माल्या सहित तमाम राजनीतिज्ञ, उद्योगपति तथा फिल्मी हस्तियां मौजूद थीं। भारतीय दर्शकों के मध्य बार-बार एक विशाल बैनर दिखाया जाता रहा जिसमें भारत-पाक राष्ट्रीय ध्वज के साथ लिखा था ‘इंडिया-पाकिस्तान: फ्रैंडस फॉर ऐवर।’ मैच के दौरान जहां देश-विदेश के तमाम विशिष्ट दर्शकों ने खिलाडिय़ों की हौसला अफज़ाई की वहीं इसी क्रिकेट कूटनीति का सहारा लेते हुए दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों ने परस्पर सहयोग व मधुर रिश्ते कायम करने के मद्देनज़र अलग से उच्चस्तरीय वार्ता भी की। गोया भारत-पाक के मध्य हुए इस सेमीफाईनल मैच में ही दोनों देशों के मध्य मधुर रिश्ते कायम किए जाने के पक्ष में सकारात्मक कदम उठाए जाने का रास्ता हमवार किया गया।

मोहाली सेमीफाईनल जहां भारत-पाक रिश्तों को बेहतर बनाने के प्रयासों के साथ-साथ भारत की जीत के लिए एक यादगार घटनाक्रम साबित हुआ वहीं नफरत की दुकान चलाने वाले लोग इस अवसर पर भी अपना ज़हर उगलने से बाज़ नहीं आए। उदाहरण के तौर पर भारतीय समाज में वैमनस्य फैलाने का ठेका लिए बैठे बाल ठाकरे जैसे संकीर्ण मानसिकता के व्यक्ति को पहले तो मनमोहन सिंह द्वारा पाक प्रधानमंत्री यूसुफ रज़ा गिलानी को मोहाली क्रिकेट मैच देखने हेतु निमंत्रण दिया जाना ही बहुत नागवार गुज़रा। उन्होंने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के इस कूटनीतिक कदम की सत आलोचना की। उसके पश्चात ठाकरे ने पाक क्रिकेट खिलाडिय़ों द्वारा स्टेडियम में नमाज़ अदा किए जाने पर भी एतराज़ जताया। क्रिकेट पिच खोदने तथा पाकिस्तानी कलाकारों व खिलाडिय़ों का विरोध करने के नाम पर यह प्राईवेट लिमिटेड तथाकथित राजनैतिक परिवार पहले भी काफी शोहरत हासिल कर चुका है। ऐसे में मोहाली सेमीफाईनल को लेकर यदि ठाकरे अपनी ऐसी नकारात्मक टिप्पणी न करते तो शायद उनकी राजनैतिक दुकानदारी में कुछ कमी आ जाती। इसी प्रकार जमू में भी खेल खत्म होने के बाद एक शर्मनाक समाचार की खबर मिली। जीत का जश्र मनाते हुए तमाम उत्साही लोग अल्पसंयक समुदाय की बस्ती की ओर निकल पड़े जिसमें पत्थरबाज़ी की मामूली घटनाओं का समाचार है। कितने हैरत की बात है कि सांप्रदायिक तनाव फैलाने वाले लोग यह भी नहीं समझ पाते कि धर्मनिरपेक्ष भारतवर्ष की ही तरह भारतीय हॉकी अथवा क्रिकेट टीम ने भी हमेशा ही अपने धर्मनिरपेक्ष स्वरूप का प्रदर्शन किया है और वह आज भी कर रही है। ऐसे में खेल को सांप्रदायिक रंग देना न केवल अज्ञानता तथा कट्टरपंथी सांप्रदायिकता की निशानी है बल्कि इससे हमारे देश के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप को भी झटका लगता है।

लिहाज़ा बेहतर यही है कि खेल को केवल खेल भावना से ही देखा जाए तथा इसका लुत्फ उठाया जाए। हमारी यही पक्की सोच होनी चाहिए कि अल्लाह, भगवान, हवन-यज्ञ या मन्नतों के बल पर न कभी कोई जीता है और न भविष्य में जीतेगा। पहले भी अच्छे खेल व अच्छे खिलाडिय़ों की ही जीत होती रही है तथा भविष्य में भी ऐसा ही होगा। अत: यदि संभव हो तो प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की ही तरह खेल को खेल भावना की नज़रों से देखते हुए इसका लाभ उठाने की ही कोशिश करनी चाहिए। खेल भावना का इस्तेमाल प्रेम व सद्भाव को बढ़ाने तथा रिश्तों को जोडऩे के पक्ष में किया जाना चाहिए। अपनी राजनैतिक दुकानदारी या व्यवसायिक दृष्टिकोण के अंतर्गत जनता में बेवजह की राष्ट्रवादी भावना पैदा करना देश हित में हरगिज़ नहीं है। और कोशिश की जानी चाहिए कि खेल के मैदान में सार्वजनिक रूप से अल्लाह, भगवान या ईश्वर आदि को हरगिज़ न शामिल किया जाए क्योंकि इन्हें तो पूरी सृष्टि चलानी है न कि केवल किसी एक मैच की जीत-हार का निर्धारण मात्र करना है।