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सेक्युलर सरकार के धर्म निरपेक्ष मापदण्ड ?

  डॉ. मयंक चतुर्वेदीpragya singh thakur
साध्वी प्रज्ञा और असीमानंद क्यों बंद हैं जेल में ?
सरकार कोई भी हो लोकतंत्र व्यवस्था वाले राज्य प्रशासन में सरकार निरपेक्ष और सापेक्ष कहलाती है। निरपेक्ष इस अर्थ में कि जनता का जनता के द्वारा जनता के लिए बनाई शासन व्यवस्था में जो सरकार बनेगी वह समान रूप से लोक के प्रति उत्तरदायी होगी और सापेक्ष होने का आशय यह है कि किसी भी धर्म-समुदाय को मानने वाला व्यक्ति हो या देश का आम नागरिक सभी सरकार की नजरों में एक समान होंगे। संविधान भी यही कहता है, इस मामले में हम  भारतीय  संविधान को मिसाल के तौर पर देख सकते हैं, जिसनेें अपने नागरिकों को बहुत से अधिकार दे रखे हैं, जिन्हें हम मौलिक अधिकारों के नाम से जानते हैं। लेकिन क्या संविधान में वॢणत नागरिक अधिकार और व्यवहार में भारत के आम नागरिक के अधिकार समान हैं? मुम्बई ब्लास्ट में अप्रत्यक्ष सहभागी बने अभिनेता और मालेगाव ब्लास्ट में आरोपी बनाईं गई साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को देखकर तो कहीं से ऐसा नहीं लगता। कानून की नजर में दोनों अपराधी हैं लेकिन एक को पिछले साढ़े साल सालों से बिना अपराध सिद्ध हुए सलाखों के पीछे डाल कर रखा है और दूसरे को सजा में इसलिए छूट दिए जाने की तैयारी है क्यों कि जो सरकार आज देश की सत्ता संभाल रही है, उच्चतम न्यायालय द्वारा घोषित उस अपराधी के सीधे केंद्र में संबंध हैं।
अभिनेता संजय दत्त का अपराध साबित हो चुका है, देश की सर्वोच्च न्यायपालिका ने प्रतिबंधित हथियार रखने के आरोप में उसे 5 साल के कारावास की सजा सुनाई है। संजय दत्त पर अंडरवल्र्ड सरगनाओं से प्राप्त प्रतिबंधित घातक हथियार रखने का आरोप है, जिन्होंने सन् 1993 में भारत की आर्थिक राजधानी मुम्बई को आधार बनाकर इस देश के आर्थिक ढ़ांचे को नष्ट करने की योजना बनाई थी। अपनी साजिश को अंजाम देने के लिए यह निरीह लोगों की जान लेने से भी नहीं चुके। इन साजिशकर्ता आतंकवादियों ने 12 मार्च, 1993 को शृंखलाबद्ध 13 बम धमाकों से 250 से अधिक लोगों को मौत देने के साथ 700 से अधिक लोगों को गंभीर रूप से घायल किया था।
यह कोई सामान्य अपराध नहीं जो संजय दत्त माफी का हकदार है और उसके लिए जो फिल्म जगत, मीडिया, मानवाधिकारी-बुद्धिजीवी और भारतीय प्रेस परिषद के अध्यक्ष मार्कंडेय काटजू द्वारा स्यापा किया जा रहा है, विडम्बना देखिये कि संजय दत्त की सजा माफ कराने के लिए कई केन्द्रीय मंत्री भी अपना समर्थन दे रहे हैं ।
वास्तव में वह समझ के परे है।  दूसरी ओर साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर, स्वामी असीमानंद जैसे लोग हैं जिन पर कथित भगवा आतंकवाद  फैलाने के आरोप हैं, और उन्हें सालों से जेल में बंद कर रखा है। बावजूद इसके कि पिछले पांच सालों में राष्ट्रीय जांच एजेंसी एनआईए इन पर कोई भी आरोप तय नहीं कर पाई।
एनआईए द्वारा साध्वी प्रज्ञा को पहले दिन से पकड़े जाने के बाद से उन पर जो अत्याचार किए, वह तो संसद हमले के आरोपी अफजल गुरूऔर मुम्बई हमले में एक मात्र जिंदा पकड़े गए आतंकी अजमल कसाब के साथ भी नहीं किए गए। आखिर देश की संप्रभुता पर प्रहार करने वाले मामलों में केंद्र सरकार का यह दोहरा चरित्र क्यों? क्या सेक्युलर सरकार के धर्म निरपेक्ष मापदण्ड यही कहते हैं या फिर केंद्र की संप्रग सरकार अल्पसंख्यकवाद की राजनीति करती है।
अपनी बेगुनाही को लेकर साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने पूर्व राष्ट्रपति और उच्च न्यायालय मुम्बई को आपबीती भरा मार्मिक पत्र लिखा है, उसे पढक़र प्रत्येक देशभक्त की आंॅखें भर आती हैं। अक्टूबर 2008 को राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए)ने उन्हें मालेगांव बम ब्लास्ट के आरोप में गिरफ्तार किया था लेकिन पिछले साढ़े चार साल बीत जाने के बाद भी एनआईए उन पर कोई आरोप तय नहीं कर पाई है। गिरफ्तारी के बाद उन पर हुए पुलिसिया कार्यवाही के बाद ही साध्वी प्रज्ञा को कैंसर होने का पता चला था जिसके बाद से उनका इलाज चल रहा है। कैंसर के बाद अब उनका बायां भाग लकबा ग्रस्त हो गया है, वे आज अस्पताल में जीवन-मरण के बीच संघर्ष कर रही हैं। आज जरूरत उन्हें ऐसे मानवाधिकारवादी, सोशलिस्ट मीडिया और तमाम उन लोगों की है जो निरअपराधी के साथ अपराधी के भी भारतीय संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकारों की लड़ाई का दंभ भरते और उनके हित में सडक़ से न्यायालय तक की लड़ाई लड़ते हैं।
एनआईए ने साध्वी प्रज्ञा के साथ बेहोशी की अवस्था में अरेस्टिंग दिखाए बगैर, कोर्ट की अनुमति के बिना जो  नार्कों, पॉलीग्राफी जैसे टेस्ट किए गए, फिर अरेस्टिंग दिखाने के बाद एक बार फिर यही सारे टेस्ट दोहराए गए । जिसके बाद साध्वी के पेट और फेफड़ों की झिल्ली फट गर्इं। आज उसी का परिणाम है कि प्रज्ञा सिंह अपने मान-सम्मान के साथ जिंदगी की लड़ाई लड़ रही है।
प्रज्ञा सिंह ने राष्ट्रपति से पत्र में कहा था कि उन्होंने कोई अपराधा नहीं किया। वे हमेशा एक राष्ट्रभक्त, संवैधानिक नियमानुसार जीवन जीती रही हैं। इसलिए उनका आज तक कोई आपराधिक रिकार्ड मौजूद नहीं। उन्हें एटीएस ने जबरन फंसाया है। वस्तुत: आज इस बात पर ध्यान देने की जरूरत है। वहीं साध्वी ने राष्ट्रपति से आग्रह करते हुए लिखा था उस जैसी विचाराधीन महिला बंदी के लिए (जिस पर अभी आरोप भी तय नहीं किए जा सके हैं को) यदि कानून संमत स्वतंत्रता दी जा सकती है तो उसे जमानत दे दी जाए।
आतंकी गतिविधियों में संलग्न होने के कारण जेलों में बंद मुस्लिम युवाओं की रिहाई के लिए सैकुलर दल एक सुर से नारे लगाते हैं, केंद्र सरकार को भी ऐसे लोगों की चिंता सताती है, उसे ऐसे अपराधियों के मानवाधिकारों की चिंता होती है किन्तु स्वामी असीमानंद और साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर जैसे लोग जिन पर अभी तक कोई अपराध भी सिद्ध नहीं हो सका है की सुध लेने वाला कोई नहीं।
़आखिर ऐसा क्यों? इन दोनों को कथित भगवा आतंकवाद फैलाने के आरोप लगाकर  सालों से जेल में बंद कर रखा हैै। साध्वी प्रज्ञा सिंह को बेहतर चिकित्सा दिए जाने की जरूरत है किन्तु कोई सुनवाई नहीं। यह कैसी सरकार और कैसा लोकतंत्र हैं ? सेक्युलर सरकार के धर्म निरपेक्ष मापदण्डों में अपराधी मजे कर रहे हैं और जिन पर अपराध सिद्ध नहीं हुआ वे सजा काट रहे हैं, उस अपराध की जिसके बारे में कई साल बीत जाने के बाद भी यह नहीं कहा जा सकता कि वह अपराध उन्होंने किए भी हैं अथवा नहीं।