दारुल उलूम देवबंद में बवाल

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नए कुलपति को हटाने के लिए पर्दे के पीछे से खेल जारी

वसतानवी के खिलाफ खबर नहीं छापने के लिए उर्दू के दो अखबार ने लाख लाख रुपए मांगे

ए एन शिबली

भारत की सबसे बड़ी और विश्व की कुछ बड़ी इस्लामी शिक्षण संस्थाओं में शामिल दारुल उलूम देवबंद की खबरें हिन्दी और अंग्रेज़ी मीडिया में आम तौर पर नहीं के बराबर छपती हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि इस संस्था में हिन्दी और अंग्रेज़ी के अखबार जाते ही नहीं। यहाँ की खबरें तभी प्रकाशित होती हैं जब चुनाव के समय मुस्लिम वोट हासिल करने के लिए कोई नेता इस संस्था का दौरा करता है या फिर जब यहाँ से कोई फतवा जारी होता है। इन दिनों दारूल उलूम एक बार फिर फिर सुर्खियों में है। हमेशा की तरह इस बार भी जहां उर्दू के अखबार दारुल उलूम की खबरों से भरे रहते हैं वहीं हिन्दी और अंग्रेज़ी के अखबारों में यहाँ की खबरें या तो नहीं या फिर नहीं के बराबर ही आ रही हैं। इन दिनों चूंकि भारत की इस सब से बड़ी इस्लामी संस्था में एक बहुत बड़ा गेम चल रहा है इस लिए मैंने खास तौर पर उर्दू नहीं जानने वाले लोगों के लिए वहाँ जारी गेम को सामने लाने के लिए यह लेख लिखने का फैसला किया है। दारुल उलूम में इन दिनों बवाल मचा हुआ है, पढ़ाई लिखाई ठप्प है और बहुत से छात्र भूख हड़ताल पर बैठे हैं। यह सब क्‍यूं हो रहा हैं आइये आपको बताते हैं।

पिछले दिनों जनाब मर्गूबुर्रहमान रहमान की मौत के बाद गुजरात के मौलाना ग़ुलाम मोहम्मद वसतानवी को यहाँ का मोहतमीम यानि कुलपति बनाया गया। उनके कुलपति बनते ही देवबंद में जो बवाल शुरू हुआ है वो धीरे उग्र रूप लेता जा रहा है। वसतानवी का विरोध कई कारणों से हो रहा है। पहला उन पर यह इल्ज़ाम है कि वो चूंकि बड़े अमीर मौलाना हैं इस लिए उन्‍होंने अपने हक़ में वोट खरीद लिया और इस बड़े ओहदे पर क़ाबिज़ हो गए। उनके विरोध की दूसरी बड़ी वजह है उनका अखबारों में प्रकाशित वो बयान जिसमें उन्‍होंने गुजरात के मुख्य मंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ की। उनके विरोध की तीसरी और सबसे बड़ी वजह यह है कि उनकी एक ऐसी तस्वीर सामने आई है जिसमें गुजरात में एक प्रोग्राम के दौरान वो किसी को एक मूर्ति भेंट कर रहे हैं। सामान्य तौर पर आम मुसलमानों को मौलाना वसतनवी के विरोध की यही तीन कारण समझ में आ रहे हें।

अब बात करते हैं पहले कारण की। वसतानवी पर आरोप है कि उन्‍होंने पैसे के बल पर यह पद हासिल किया है। जो लोग ऐसा आरोप लगा रहे हैं उन्हें यह समझना चाहिए कि यह संभव नहीं है। मजलिसे शुरा यहनी गवार्निंग काउंसिल में देश के बड़े बड़े मौलाना शामिल हैं। उनसे यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि वो पैसा लेकर वोट करेंगे। और अगर ऐसा है भी तो फिर ऐसे लोगों को गवार्निंग काउंसिल में क्‍यों रखा गया है। विरोध की दूसरी वजह हजारों मुसलमानों के हत्यारे मोदी की तारीफ है। यह सही है कि कोई भी सच्चा मुसलमान जिसे अपनी क़ौम से और मानवता मोहब्बत होगी वो मोदी को हमेशा एक हत्यारा ही समझेगा। हर किसी को पता है कि गुजरात दंगे में पूरी कमान मोदी के हाथ में थी यह सब उन्हें पता था कि राज्य में मुसलमानों को कत्ल किया जा रहा है। महिलाओं की इज्ज़त लोटी जा रही है और बच्चों को अनाथ किया जा रहा है। इसलिए यह सब जानते हुये कोई भी अच्छा आदमी मोदी की तारीफ नहीं कर सकता।

रहा सवाल किसी को मूर्ति भेंट करने का तो चूंकि मौलाना वसतानवी गुजरात के हैं और वहाँ वो कई प्रकार के बिजनेस में शामिल हैं इसलिए किसी प्रोग्राम में उन्‍होंने किसी को मूर्ति भेंट की होगी। यह इस्लाम के हिसाब से गलत है इसलिए उन्हें इस सिलसिले में माफी मांग लेनी चाहिए। देवबंद के पूरने छात्र और देवबंद को अच्छी तरह से समझने वाले बताते हैं कि वसतानवी के विरोध की असली वजह यह तीन बिन्दु नहीं हैं। सच्चाई यह है कि चूंकि दारुल उलूम भारत का सब से बड़ा इस्लामी इदारा है। यहाँ से जारी बयान का असर न सिर्फ भारत बल्कि दुनिया के दूसरे मुल्कों के मुसलमानों पर भी होता है इस लिए कुछ खास लोग ऐसे हैं जो हमेशा इस बड़ी संस्था पर अपना कब्जा बनाए रखना चाहते हैं। अब चूंकि वसतानवी का इस पर कब्जा हो गया है इस लिए उन के खिलाफ तरह तरह के बयान जारी किए जा रहें। संस्था में पढ़ाई लिखाई के माहौल को ठप्प अकर्के वसतानवी को यहाँ से भगाने की कोशिश की जा रही है। देवबंद के साथ साथ पूरे देश के मुसलमान जिन्हें इस संथा से लगाव है आज दो गरोहों में बाँट गए हैं। एक वो हैं जो वसतानवी के साथ है और एक वो हैं जो उनका विरोध कर रहें हैं। अलबत्ता कुछ विरोध करने वाले ऐसे हैं जो यह नहीं कह रहे कि उनको पद छोड़ देना चाहिए मगर उनका यह कहना सही है कि मोदी की तारीफ और मूर्ति भेंट करने वाली बात उचित नहीं है इस के लिए उन्हें मुसलमानों से माफी मांगनी चाहिए। बाक़ी जो दूसरे विरोध करने वाले हैं उनके साथ एक बड़ी समस्या यह है कि वो उनका विरोध तो कर रहें हैं मगर खुल कर सामने नहीं आ रहे हैं। विरोध करने वाले तो इस हद तक गिर गए हैं कि उन्‍होंने उर्दू के एक अखबार को वसतनवी का विरोध करने के लिए पूरा ठेका ही दे दिया है। इस अखबार में देश की दूसरी सभी बड़ी खबरें इन दिनों गायब रहती हैं इसमें सिर्फ यही छप रहा है कि वसतनवी ने यह गलत किया और वो गलत किया। कभी उन्हें आर एस एस का एजेंट कहा जा रहा है तो कभी उनके खिलाफ फतवा जारी करके यह कहा जा रहा है कि मूर्ति भेंट करने के बाद अब वो मुसलमान ही नहीं रहे। खबर यह है कि उर्दू के दो अखबारों के संपादक या मालिक ने एक बड़े मौलाना के साथ मिलकर वसतानवी से यह कहा कि आप हम दोनों अखबार को एक एक लाख रूपए दे दें तो हम आप के खिलाफ खबर नहीं छपेंगे। मगर वसतानवी ने ऐसा नहीं किया और यही वजह है कि उनके वीरोध में खबर और लेख के छपने का सिलसिला जारी है। यानि अगर इन दो अखबारों को लाख लाख रूपये मिल जाते तो मोदी की तारीफ भी गलत नहीं होती और एक मौलाना के जरिया किसी को मूर्ति भेंट करना भी इस्लाम के वीरुध नहीं होता। ज़रा ग़ौर कीजिये इस बात पर। कितना घिनौना खेल खेला जा रहा है इस संस्था के नाम पर। अफसोस की बात तो यह है कि यह सारा खेल पर्दे के पीछे से एक ऐसे मौलाना खेल रहे हैं जिन्हें भारतिए मुसलमान बड़ी इज्ज़त की निगाह से देखता है। सच्चाई यह है कि दुनिया के दूसरे धर्मों के मानने वालों की तरह मुसलमानों में भी कुर्सी की लड़ाई है। एक ओर जहां राजनेता मुसलमानो को मात्र एक वोट बैंक समझते हैं वहीं मौलाना हाजरात भी मुसलमानों के जज़्बात से खेलते हैं। जिस तरह बाल ठाकरे, नरेंद्र मोदी, विनय कटियार जैसे लोग अपने लाभ के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं उसी तरह मुसलमानों में भी ऐसे बहुत से लोग है जो बड़ी गंदी सियासत में लिप्त है। अफसोस की बात तो यह है कि ऐसी हरकत वो लोग कर रहे हैं जो बड़े बड़े मौलाना कहलाते है। हजारों मुसलमान ऐसे हैं जो इन्हें इज्ज़त की नज़र से देखते हैं और आँख बंद करके इन पर भरोसा करते हैं। इन मौलाना लोगों में से सब ने कई कई संस्था बनाकर अपनी अपनी दुकान खोल ली है और आम मुसलमानों को उल्लू बनाकर अपनी अपनी दुकान चला रहें है। इन दिनों दारुल उलूम देवबंद में जो खेल जारी है उसकी असलियत का पता हर बड़े मौलाना को है। सबको पता है कि वसतनवी का सही मायेने में विरोध कौन लोग कर रहे हैं और उनके विरोध की वजह किया है। सब को यह भी पता है कि वसतनवी के खिलाफ मोर्चा किसने और किस मक़सद से खोला हुआ है। मगर कोई कुछ नहीं बोल रहा हैं। कारण यह है कि हर किसी को अपनी अपनी दुकान चालानी है। संस्था में हँगामा हुआ, विद्यार्थी ज़ख्मी हुये, पढ़ाई डिस्टर्ब हो रही है मगर इसकी चिंता किसी को नहीं हैं।

दारुल उलूम में ठीक ऐसी ही स्थिति 30-32 साल पहले भी हुई थी। तब मौलाना कारी तैयब साहब दारुल उलूम के मोहतमीम थे। यही लोग जो आज पर्दे के पीछे से वसतनवी के खिलाफ मोर्चा खोले हुये हैं ने उस समय भी खून हंगाम किया था। तैयब साहब ने तब हार मान कर सब कुछ उन लोगों के हवाले कर दिया था जो इसे अपनाना चाहते थे। उस समय भी हंगामे में कई विद्यार्थी ज़ख्मी भी हुये थे और एक मौलाना साहब जो आज भी बड़े मौलाना हैं ने उस समय दोनों हाथों से विद्यार्थियों पर गोली चलाई थी। हद तो तब हो गयी जब इसी मौलाना ने एक विद्यार्थी के मुंह में उस समय पेशाब करवा दिया जब उसने प्यास से पानी की मांग की। कुल मिलाकर विद्यार्थियों का इस्तेमाल कर के आज एक बार फिर दारुल उलूम पर क़ब्ज़े की तैयारी हो रही है। इस संस्था पर हमेशा एक खास ग्रूप का कब्जा रहा है और अब जबकि गुजरात का एक मौलाना इस संस्था पर क़ाबिज़ हो गया है तो यह बात इस ग्रूप को पच नहीं रही है और इस मौलाना यानि वसतनवी को हटाने के लिए वो किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं। एक सीधी सी बात यह है कि यदि गवार्निंग काउंसिल को लगता है कि मौलाना वासतानवी इस ओहदे के लायक नहीं हैं तो हंगामा करने के बजाए उन्हें सीधे से हटा दिया जाये। देवबंद पर क़ब्ज़े के यह राजनीति आने वाले दिनों में क्या रुख लेगी यह तो आने वाला समय ही बताएगा।

4 COMMENTS

  1. श्री शिबली जी, अच्छा लिखा है.

    आपने अपने तीसरे पेराग्राफ ने श्री मोदी जी को दोषी ठहरा दिया है. आपने लिखा है “विरोध की दूसरी वजह हजारों मुसलमानों के हत्यारे मोदी की तारीफ है।……………………, हजारो मुसलमानों का हत्यारा………….., महिलाओं की इज्ज़त लोटी जा रही है और बच्चों को अनाथ किया जा रहा है………..”

    उपरोक्त पाराग्राफ में मोदी जी के ऊपर आरोप लगा दिया जाना ठीक नहीं है. उपरोक्त पाराग्राफ से लेख कुछ विवादग्रस्त हो गया है.

  2. मुसलमानों और isaiyo ने हिन्दुओ के ऊपर कम अत्याचार किये है , उन पर तो कोई kucch नहीं बोलता

  3. अभिषेक जी आपको कुछ गलतफहमी है। मोदी ने गुजरात में तरक़्क़ी के बड़े काम किए हैं इस से किसी को इंकार नहीं हो सकता। विकास के काम काम के हिसाब से देखें तो उनसे बेहतर मुख्यमंत्री कोई नहीं होगा। मगर किया आप इस से इंकार करेंगे की अधिकतर लोगों को यह शक है की गुजरात दंगे में मोदी भी कहीं न कहीं शामिल रहे। वो चाहते तो गुजरात में ऐसी मनहूस घटना नहीं घटती। रहा सवाल हिन्दू का तो मैंने कभी नहीं कहा की हिन्दू हत्यारे होते हैं। भाई ईमानदारी की बात यह है की हर धर्म में बुरे लोग होते हैं। धर्म बुरा नहीं होता। रहा सवाल मुसलमानों का तो कौन कहता है की निहत्तों को मारने वाले बड़े अच्छे मुसलमान हैं। इस्लाम में तो कहा गया है की यदि कोई किसी एक बेक़सूर की हत्या करता है तो समझो यह पूरे मानवता की हत्या है। आपका यह भी कहना गलत है की मुसलमान दूसरे को जाहिल कहता है। दूसरे धर्म को बुरा भला कहके कोई सच्चा मुसलमान हो ही नहीं सकता। अभिषेक साहब आपके दिल में कुछ गलतफहमी है उसे दूर करें।

  4. सच्चे musalaman ki यह परिभाह्स है की वो मोदी को हत्यारा कहे??बिना koyi साबुत के v बिना कोई तथ्य व् न्यायलय के???तो जनाब हिन्दुओ ने hatyara kahana शरु kiya तो शायद ही कोई मुस्लिम पहचान बचेगा जो हत्या के आरोपों se mukt न हो,kya कहते है is par??गुजरात समेत पुरे भारत me मोदी को chahane वाले kam nahi है agar सच्चे मुसलमान की यह परिभाश है तो अप apane dharm की क्ताबे वापस पढ़िए jisame मोदी ka जिक्र nahi है ………………जिन logo ने देश को काट डाला वो sacche मुस्लमान थे??जो बंधुके लेकर masumo पर व् निहथो को मार रहे है वो सच्चे मुस्लमान है??अपक मुस्लिम की परिभाषा गजब है??वैसे जहा tak मेरा अनुभव है हर मुस्लिम फिरका खुद को मुस्लिम व् दुसरे फिरको को “jahil” {ji ha जाहिल,ye shabd bahut ही udar व् samajhadar mere ek mitr के है जो कम से कम मेरी जानकारी में तो पक्का मुस्लिम है} कहता है ……………

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