यह देश एक दावतप्रधान देश है।
विवाह-शादी,नामकरण-सालगिरह-मुंडन,रिटायरमेंट और तेरहवीं के ब्रह्मभोज पर
हंसते-हंसते दावत का दंड भोगना भारत के हर शरीफ नागरिक की सर्वोच्च नियति
है। अपनी हैसियत और औकात के मुताबिक इन अवसरों पर वह भोजन प्रतियोगिताओं
का आयोजन करता है। और भयानक काच-छांट के बाद चुनिंदा लोगों को जीमने के
लिए न्यौता भी है। मेजबान बेचारे की यह ठीक उसी टाइप की मजबूरी होती है
जैसी कि दिलतोड़ पेट्रोल की बढ़ती कीमतों के बाद गड्डी की टंकी में
पेट्रोल ठुसवाने की गाड़ी के मालिक की ज्वलनशील मजबूरी। कुछ–कुछ ऐसी ही
नस्ल की मजबूरी से ओतप्रोत होकर वो निमंत्रणपत्र भेजकर आ बैल मुझे मार की
तर्ज पर लोगों को अपने यहां बुलाता है। उस दौर में जब मेहमान अतिथि देवो
भव का ह्यूमन एडीशन हुआ करता था मेजबान खुद पंगत में अपने हाथों से
मेहमानों को खाना खिलाता था। आज औसत मेजबान मेहमान को उतनी ही पवित्र नजर
से देखता है जितने श्रद्धाभाव से दिग्गी राजा आर.एस.एस को देखते हैं।
मेजबान बेहतरीन इनवीटेशन कार्ड छपवाता है। कांपते हाथों से उसे
दोस्तों-रिश्तेदारों तक भेजता भी है। वह निमंत्रणपत्रों को लेटरबाक्स में
ऐसे भारीमन से डालता है मानो अपने पिता की अस्थियां गंगा में विसर्जित कर
रहा हो। विसर्जित हड्डियां जैसे वापस नहीं आतीं वैसे ही डाक-डब्बे में
डाले इनविटेशन कार्ड भी जो एक बार डल गए वे फिर वापस नहीं आते। इनविटेशन
कार्ड की भाषा चाहे कितनी भी चिकनी-चुपड़ी क्यों न हो मगर उसकी
अंतर-आत्मा की आवाज़ से जो भूमिगत संगीत निकलता है वह कुछ इस तरह का होता
है-
भेज रहे हैं तुम्हें निमंत्रण केवल रस्म निभाने को
ए मानस के राजहंस तुम ठान न लेना आने को
मगर आज जिस दौर में शरीफ लोग लात-घूंसों के मंत्रोच्चार के सात्विक
वातावरण में शास्त्रार्थ करते हों वहां नक्कारखाने में इस तूती की आवाज़
को सुनने की कुव्वत कौन रख पाता है। गफलत में अधिकांश लोग इस शरीफाना
चुहुल को सीरियसली ले लेते हैं। अखिल भारतीय स्तर के मेहमान रिजर्वेशन के
चक्रव्यूह को भेदते हुए और लोकल स्तर के मेहमान ट्रेफिक जाम के घल्लूघारा
को झेलते हुए अपनी जान पर खेलते हुए हम होंगे कामयाब की भावना में बहते
हुए मेजबान की छाती पर मूंग दलने आखिर पहुंच ही जाते हैं। मेजबान भी
पराजित मुद्रा में गिद्ध भोज में चरने के लिए मेहमानों को हांक देता है।
खाली-खल्लास, ठलुए भोजन-भट्ट टपोरी मेजबानों को देखकर वह मन-ही-मन
भुनभुनाता है। गिफ्ट से लैस मेहमानों को देखकर वह रिश्वत देनेवाले
कर्मचारी को देख खुशहोते भ्रष्ट अधिकारी की तरह मुदित-प्रमुदित होता है।
मगर उन मेहमानों को क्या कहें जो किन्नरों की तरह ताली बजाते, गालबजाते
बलात आमंत्रण हथियाते हुए मंगल उत्सव के मौका-ए-दंगल पर अपनी आतंकी
मौजूदगी दर्ज कराते हैं। वे फटे जूते-सा मुंह खोलकर रेंकते हुए गर्दभस्वर
में कहते हैं- हो जाता है..ऐसा हो जाता है। प्रोग्राम की व्यस्तता में
लोग अपने खास लोगों को ही भूल जाते हैं। मगर खास थोड़े ही अपने खासों को
थोड़े ही भूलते हैं। वो खुद पहुंचकर अपने खासों को भूल सुधार का नाजुक
मौका देते हैं। फिर वे गोपनीय तथ्यों को सार्वजनिक करते हुए मेजबान के
बारे में धाराप्रवाह बोलते हैं कि-क्लासमेट तो ये बहुतों का होगा मेरा तो
ये खाटमेट है। यहां कई इसके क्लास फैलो होंगे मगर मेरा तो ये गिलासफैलो
है। दो-तीन भयानक बायलॉजिकल गालियों के जरिए फिर वह अपने जघन्य प्रेम का
कुत्सित प्रदर्शन करने लगता है। अनाहूत अन्ना हजारे के सामने बेचारा
मेजबान कांग्रेसी सरकार-सा कांपने लगता है। भय बिन प्रीति न होय की
खिसियाई मुद्रा में होठों की खूंटी पर हंसी की फटी कमीज टांगता हुआ नृशंस
प्रीति में पग कर वह मेजबान मेहमान को प्रीतिभोज-अड्डे की तरफ ससम्मान
धकेल देता है। सच है हमारी मांगें पूरी करो वाली मुद्रा के जुझारू मेजबान
एक तुच्छ निमंत्रण पत्र के कभी मोहताज नहीं होते हैं। वे अपना हक लेना
अच्छी तरह जानते हैं। दावतों का सुराग निकालनें में ये खोजी पज्ञकार और
सूंघा सीआईडी के टू-इन-वन संस्करण होते हैं। अगर आप खालिस स्वदेशी इंडियन
मेजबान हैं तो इन ठलुओं को झेलना आपकी नियति है। क्योंकि दुनिया के
ठुल्लाप्रधान देशों में भारत नंबर वन देश है। और कहीं अगर आप सुपरभाग्य
से बिन बुलाए मेहमान प्रजाति के जंतु हैं तो फिर आपकी तो बल्ले-बल्ले है।
क्योंकि फिर आप तो संरक्षित प्राणी हैं। आपको काहे की चिंता। चिंता तो
उसे होगी जिसके घर आपके ये चरण कटहल तशरीफ ले जाएंगे।
नीरव जी धनी है आप
जिस सच्चाई को आप हस्ते हस्ते काबुल कर रहे है .
उसी सचाई को लोग रो रो कर काबुल करते है .
नारा लगते है —
लूट गए हम
बर्बाद हो गए ठेलुओ के चक्कर में .
धन्यवाद