कुलभूषण जाधव को ऐसे बचाएं

कुलभूषण जाधव को मौत की सजा पर हमें जिस तीखी प्रतिक्रिया का अंदाज था, वह सही निकला। संसद में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और गृहमंत्री राजनाथसिंह के साथ-साथ विरोधी दलों के सांसदों ने भी गहरा रोष व्यक्त किया है। सारे अखबारों और टीवी चैनलों ने भी जाधव की सजा को बिल्कुल अनुचित बताया है। जाधव के मामले में भारतीय गुस्से का अंदाज पाकिस्तान के नेताओं, पत्रकारों और कूटनीतिज्ञों को भी हो चुका था। परसों जब जाधव की सजा की घोषणा हुई तो कुछ पाकिस्तानी चैनलों ने मुझे इंटरव्यू किया। मैं यह सुनकर दंग रह गया कि कुछ पाकिस्तानी वक्ता मुझसे सहमत थे।

उनकी भी यह राय थी कि यदि सचमुच जाधव ने जासूसी की है या बलूच बगावत भड़काई है तो कम से कम पाकिस्तानी मीडिया को तो प्रमाण बताए जाते। यदि जाधव ने जासूसी की है तो भी जासूसों को मौत की सजा कब दी जाती है? यदि जासूसी की सजा मौत है तो सारे देशों के जितने भी राजदूतावास हैं, उनके आधे से ज्यादा सदस्यों को क्या आप मौत की सजा दे सकते हैं? कौनसा देश ऐसा है, जो अन्य देशों में जासूसी नहीं करता? यहां तक कि मित्र-देशों और गठबंधन के देशों के बीच भी जासूसी चलती रहती है।

जासूसी तो मानव-व्यवहार का स्वाभाविक हिस्सा है। सास-बहू, पति-पत्नी और बाप-बेटे के बीच भी जासूसी जारी रहती है। जासूसी के लिए मौत की सजा का यह दुस्साहस तो दक्षिण एशिया में पहली बार हो रहा है और यह उसी दिन हो रहा है, जिस दिन गिरफ्तार भारतीय मछुआरों ने डूबते हुए पाकिस्तानी मछुआरों की जान बचाई। पाकिस्तान की फौज अपने मछुआरों से ही कुछ सीखे। पाकिस्तानी सुरक्षा—बल ने भारतीय मछुआरों को तत्काल ही रिहा कर दिया।

कुलभूषण जाधव को भी पाकिस्तान की फौज यदि रिहा कर देगी तो लोग उसे भी शाबाशी देंगे। यों तो जाधव पाकिस्तान के सर्वोच्च न्यायालय में जा सकते हैं। वह न माने तो राष्ट्रपति से अपील कर सकते हैं। भारत सरकार अपने वकील भेज सकती है। यदि पाकिस्तान सरकार बिल्कुल भी सहयोग न करे तो एमनेस्टी इंटरनेशनल, हेग की अंतरराष्ट्रीय अदालत, संयुक्तराष्ट्र संघ और दक्षेस (सार्क) राष्ट्रों के दरवाजे भी खटखटाए जा सकते हैं। अगले 60 दिनों में भारत चाहे तो चीन, अमेरिका, ईरान और रुस से भी दबाव डलवा सकता है।

ये सभी राष्ट्र भारत को उपकृत करने की कोशिश करेंगे। हो सकता है कि पाकिस्तानी फौज ने यह कदम इसलिए भी उठाया हो कि मोदी ने बलूच आंदोलन का खुले-आम समर्थन किया था। यदि मोदी पाकिस्तान की फौज और नेताओं को इस मुद्दे पर आश्वस्त कर सकें तो शायद उनके घावों पर मरहम लग जाएगr। मोदी को सीधे नवाज शरीफ से बात करनी चाहिए अन्यथा भाजपा सरकार के पास कुछ ऐसे लोग भी होने चाहिए, जो नवाज शरीफ, सरताज अजीज और सेनापति कमर जावेद बजवा से सीधे बातचीत कर सकें।

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