गोधरा पर निर्णय-धर्मनिरपेक्ष साजिशों का भण्डाफोड़

मृत्युंजय दीक्षित

 

आज से नौ वर्षों पूर्व गुजरात के गोधरा रेलवे स्टेशन पर साबरमती एक्सप्रेस की एस-6 बोगी में धटी वीभत्स हृदय विदारक घटना पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा रोक हटाये जाने के बाद आखिरकार विशेष अदालत ने अपना निर्णय सुना ही दिया।अयोध्या के विवादित स्थल पर निर्णय सुनाये जाने के बाद यह देश का ऐसा महत्वपूर्ण निर्णय था जिस पर पूरे देश की निगाहें लगी हुई थी। अहमदाबाद की विशेष अदालत ने साबरमती काण्ड को एक गहरी साजिश मानते हुए 11 अभियुक्तों को सजा – ए -मौत तथा 20 अभियुक्तों को आजीवन कारावास की सजा सुनायी है। विशेष अदालत ने 1983 में सर्वोच्च न्यायालय ने जो यह व्यवस्था दी थी कि फांसी की सजा दुर्लभ से भी दुर्लभतम श्रेणी के तहत दी जानी चाहिए का अनुपालन करते हुए 11 प्रमुख अभियुक्तों अब्दुल रज्जाक कुक्कूर, बिलाल इस्माइल उर्फ बिलाल हाजी, रमजारी बिनयामीन बहरा, हसन अहमद चरखा उर्फ लालू, जाबर बिरयामीन बहरा, महबूब खालिद चंद्रा, सलीम उर्फ सलमान चंद्रा, सिराज मुहम्मद मेड़ा उर्फ बाला, इरफान कलंदर उर्फ इरफान भोपो, इरफान मोहम्मद पाटलिया व महबूब हसन उर्फ लती को फांसी की सजा सुनायी है। वहीं 20 अन्य अभियुक्तों को आजीवन कारावास की सजा सुनायी है। देश के न्यायिक इतिहास में ंऐसा पहली बार हुआ है कि इतने बड़े अपराध में 31 मिनट में 31 अभियुक्तों को एक साथ सजा सुनायी गयी। हालांकि अभी यह प्रकरण 90 दिनों के बाद हाईकोर्ट जाएगा व फिर सर्वोच्च न्यायालय होते हुए राष्ट्रपति भवन तक का सफर दया याचिका के माध्यम से लम्बा सफर तय करेगा। अतः पुरा मामला अभी काफी लम्बा चलेगा। हिंदू विरोधी व मुस्लिम तुष्टिकरण में लगे तथाकथित धर्मनिरपेक्ष दलों व वामपंथी लेखकों को अयोध्या निर्णय की तरह यह निर्णय भी अच्छा नहीं लग रह है। अदालत ने साबरमती काण्ड को एक सुनियोजित साजिश बताकर उन धर्मनिरपेक्ष नेताओं विशेष रूप से पूर्व केंद्रीय रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव सरीखे नेताओं की बोलती तो अवश्य बंद ही कर दिया है जिन्होने अपनी हिंदू विरोधी मानसिकता के चलते व मात्र मुसलमानों को प्रसन्न करने के लिए तथा निरापराध हिंदुओं के साथ हुए अन्याय को नजरांदाज करते हुए 4 सितम्बर, 2004 को सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व जज यू सी बनर्जी के नेतृत्व में एक कमेटी का गठन कर दिया जिसने 12 जनवरी, 2005 को प्रस्तुत अपनी रिपोर्ट में कहा कि ,साबरमती एक्सप्रेस की एस – 6 बोगी में आग जानबूझकर किसी षड्यंत्र के तहत नहीं लगायी गयी। यह रिपोर्ट पूरी तरह से नानावटी आयोग के निष्कर्षों के विपरीत थी क्योकि नानावटी आयोग का मत था कि, यह पूरी घटना एक साजिश थी।आज यही कारण है कि हिंदू विरोधी मानसिकता के चलते लालू प्रसाद यादव बिहार की जनता की नजरों में अछूत हो गये हैं। उन्होंने सोचा था कि निरापराध हिंदुओं की हत्या के षड़यंत्रों में मुसलमानों को बचाकर वे बिहार की सत्ता का सुख भोग लेंगे लेकिन यह दिवास्वप्न ही रह गया। गोधरा काण्ड व उसके बाद भड़के दंगों को लेकर देश के तथाकथित सेक्यूलरों व मानवाधिकारियों ने जिस प्रकार से अपनी विकृत मानसिकता के आंसू बहाए अब उक्त निर्णय से उनके आंसुओं का पर्दाफाश हो चुका है। विशेष अदालत का निर्णय उन लोगों के लिए गहरा आघात है जो उक्त निर्मम व दुर्लभतम धृणित हत्याकाण्ड को महज राजनैतिक स्वार्थों के चलते इस बर्बर दुर्घटना को मात्र घटना करार दे रहे थे। अतः वे सभी राजनैतिक दल व्यक्ति व संगठन भी उस घटना के उतने ही बड़े आरोपी हैं जो कि उक्त घटना के आरोपियों को बचाने का घृणित खेल खेल रहे थे। यह हत्याकाण्ड आजादी के बाद देश का ऐसा शर्मनाक हत्याकाण्ड था जिसने मानवता को हिला कर रख दिया था लेकिन उसके बाद की राजनैतिक घटनाओं ने तो देश को और भी बुरी तरह से झकझोर दिया। भारतीय संविधान व धर्मनिरपेक्षता के रक्षकों ने भी अपनी सारी मर्यादाएं तोड़ दी तथा उन्हें पूरी घटनाओं में केवल एक ही व्यक्ति पर सारा दोष नजर आया वह थे नरेंद्र मोदी। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने गोधराकाण्ड के फैसले पर लगी रोक हटाकर उक्त सभी लोगों की राजनीति पर ब्रेक लगा दी है। लेकिन वे लोग अब भी अपने घृणित कारनामों से पीछे नहीं हटने वाले। वामपंथी विचारधारा के लेखको ने उक्त निर्णय की आलोचना करते हुए अपनी लेखनी उठा ली है तथा ऐसे लेखक न्यायपालिका की निष्पक्षता पर भी प्रश्नचिन्ह उठाने लगे हैं । ऐसे लेखकों, मानवाधिकारियों व सेकुलरिस्टों को हिंदुओं के साथ घटी घटना महज कल्पना लगती है। पता नहीं क्यों ऐसे लोग अपने आप को हिंदू लिख रहे हैं। सवतंत्र भारत में अंग्रेजी मानसिकता से वशीभूत लोग ही हिंदूओं व मुसलमानों के बीच उत्पन्न होती सामाजिक समरसता को ध्वंस करने का षड़यंत्र करते हैं व फिर कोई घटना घटित होने पर विकृत रूप से अपने खेल में लग जाते हैं। आज धन्य हैं वे लोग जिन्होंने गोधरा को लेकर अपने अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी और आज उक्त दुर्लभतम ऐतिहासिक हत्याकाण्ड पर न्याय का मार्ग प्रशस्त हुआ है। आज वे सभी लोग भी उक्त हत्याकाण्ड में उतने ही दोषी हैं जो कि येन केन प्रकारेण उसे दुर्घटना करार दे रहे थे। यह निर्णय उन लोगों को भी करारा जबाब है।अतः वे सभी लोग भी लोकतांत्रिक ढंग से सजा के हकदार हैं जो उस वीभत्स घटना पर वोटबैंक की राजनीति कर रहे थे। रही बात गोधरा काण्ड के बाद भड़के दंगों की तो उसके पीछे एक बडा महत्वपूर्ण कारण यह भी है कि उस समय तथाकथित सेक्यूलर मीडिया ने उक्त वीभत्स घटना को दरकिनार करके बेहद पक्षपातपूर्ण ढंग से घटनाओं का प्रकाशन-प्रसारण किया था जिसके कारण भी वहां पर तनाव बढ़ा। अतः अब चूंकि पूरा मामला न्यायपालिका में गति पकड़ चुका है तो अब इस प्रकार की घटनाओं पर विकृत राजनीति बंद होनी चाहिए तथा आशा की जानी चाहिए की अन्ततः जीत सत्य व न्याय की होगी।

 

3 COMMENTS

  1. Godhara kand has unmasked yet again the so called secularists who should be ashamed of themselves.
    Lalu Prasad Yadav the opportunist , is now standing naked with Jusice U.C.Banerjee who was proved to be wrong when 11 were given death sentence and 20 given life imprionment by the court.
    Lalu should be banned from politics.

  2. कृपया क्षमा करें यह टिपण्णी मैंने किसी दुसरे लेख के लिए दी थी जो गलती से यहाँ पेस्ट हो गयी है.

  3. यह लेख मैंने संयोग से बहुत देर बाद पढ़ा और पहली बार किसी मुस्लिम ब्लॉगर से प्रभावित हुआ हूँ (सिर्फ इस लेख के लिए )मेरे एक रिश्तेदार जिन्होंने कई साल ईराक में व्यतीत किये थे ये सच्चाइयां रोते रोते बयान करते थे वे सद्दाम को देवता स्वरुप मानते थे और भारत का सबसे बड़ा दोस्त. लेकिन यह भी सच है की भारत ने कभी भी ईराक का खुलकर समर्थन नहीं किया ईराक की मुहब्बत लगभग एकतरफा रही.

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