दादरी हत्याकांड का अतिरंजित प्रचार – सोची समझी साजिश |

0
260

एक छोटे से पशु चराने के मुद्दे पर मुसलमानों द्वारा उत्तर प्रदेश के एक मंदिर में गोलीबारी कर 15 वर्षीय हिंदू बालक की बेरहमी से हत्या कर दी जाती है । या एक मुस्लिम बकर ईद के एक दिन पूर्व बलि का बकरा मार दिए जाने के मुद्दे पर अपनी माँ की गर्दन काट देता है, तब ये राजनेता और मीडिया के लोग कहाँ थे ? इन्हें अपने चारों ओर केवल दादरी की घटना ही क्यों दिखाई देती है?
‘दादरी हत्या’ जितनी दुर्भाग्य पूर्ण है, वस्तुतः उतनी ही विचारणीय व चौंकाने वाली भी है। यह हिन्दू भावनाओं पर लगातार हो रहे कुठाराघात का परिणाम है | ऐसा पहली बार हुआ है कि केवल संदेह के आधार पर जमीनी स्तर पर इतना भीषण प्रतिशोध लिया गया हो | उत्तर प्रदेश के दादरी इलाके का भूला बिसरा गाँव “बिसरा” आज देश विदेश की सुर्ख़ियों में है, क्योंकि वहां एक बछड़े को मारकर मांस पकाने की अफवाह के चलते 52 वर्षीय मोहम्मद अखलाक की ग्रामवासी भीड़ ने ह्त्या कर दी । उस परिवार ने मांस पकाया हो या न पकाया हो, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मीडिया ने अवश्य इस समाचार को बहुत कुशलता से नमक मिर्च लगाकर बेहतरीन पकाया है |

यद्यपि अब मामला जांच के अधीन है तथा संदिग्धों में से दो को गिरफ्तार भी कर लिया गया है। पहली बार किसी पीड़ित परिवार को 45 लाख रुपये की भारी भरकम राशि मुआवजे के रूप में मिल रही है | मृतक का एक बेटा भारतीय वायु सेना की सेवा में है, अतः भारतीय वायु सेना मृतक के परिवार को सुरक्षित क्षेत्र में शिफ्ट करने हेतु प्रयत्नशील है | किन्तु राजनीति के शातिर खिलाड़ी तथाकथित सिक्यूलर राजनेता और राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय मीडिया दादरी के इस मामले को महत्वपूर्ण हथियार के रूप में भाजपा को कोसने और गोहत्या के खिलाफ हिंदू भावनाओं को हतोत्साहित करने की खातिर लगातार उपयोग जारी रखे हुए हैं |

जो भी हो, शायद इसीलिये भाजपा नेता और केंद्रीय मंत्री महेश शर्मा ने इशारों इशारों में तथा हिन्दू नेता साध्वी प्राची ने स्पष्ट रूप से इस ह्त्या के पीछे किसी राजनीतिक साजिश की बात कही है । साध्वी प्राची ने तो दादरी ह्त्या मामले पर मच रहे हंगामे के मद्देनजर उत्तर प्रदेश के मंत्री आजम खान और AIMIM सांसद असदुद्दीन ओवैसी के खिलाफ प्रकरण दर्ज करने की भी मांग की है ।

यदि आप टीवी समाचार और उस पर होने वाली बहस को देखते सुनते रहे हैं, या आप सोशल मीडिया पर जो कुछ चल रहा है, उस पर ध्यान दें तो लगेगा कि इस समय देश में “दादरी ह्त्या” के अतिरिक्त कोई अन्य विषय ही नहीं बचा है | बाक़ी सब बातें महत्वहीन हो गई हैं | और आज तो हद ही हो गई, जब आजमखान ने इस विषय को संयुक्त राष्ट्र के हस्तक्षेप के योग्य मान लिया | आजम खान ने संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून को पत्र लिखकर मांग कर डाली कि संयुक्त राष्ट्र भारत में मुसलमानों और ईसाईयों की दुर्दशा को लेकर एक गोलमेज कांफ्रेंस बुलाये |

कुछ अन्य गंभीर विषय भी हैं, जिन पर कभी कोई चर्चा नहीं हुई | जैसे कि एक मुस्लिम पिता अपनी चार वर्षीय बेटी को महज इस लिए मार डालता है, क्योंकि उसने उसका सर नहीं दबाया | या एक मुस्लिम केवल इसलिए अपनी माँ का गला काट देता है, क्योंकि उसने बकर ईद के एक दिन पूर्व बलि के लिए सुरक्षित बकरे को मार दिया | शायद मीडिया की नज़रों में माँ को जिबह करना अथवा बेटी को सर न दबाने के कारण मारना उनकी अपनी धार्मिक आस्था का विषय है, और उन्हें इसकी आजादी हासिल है | अतः यह एक साधारण मामला है |

किन्तु जब एक मवेशी चराने जैसे बेहद मामूली विवाद के चलते मुसलमानों द्वारा एक हिंदू लड़के की गोली मारकर हत्या कर दी गई, उसकी कोई चर्चा न करना क्या है | वह घटना भी उत्तर प्रदेश में हुई, किन्तु क्या कोई बताएगा कि उस पीड़ित हिन्दू परिवार को कितना मुआवजा दिया गया ? छोडिये मुआवजे की बात को, उस घटना पर मीडिया ने कितना ध्यान दिया ? क्योंकि मीडिया की नजर में हिंदू लड़के का मरना कोई ख़ास बात नहीं है, वे बेचारे तो बने ही मरने के लिए हैं | शिवपुरी जैसे छोटे से शहर में उत्सव नामक एक आठ वर्षीय अबोध वालक को तीन मुस्लिम हैवानों ने फिरौती के लिए अपहरण किया और मार दिया | अगर आप भी अपने आसपास नजरें दौडायेंगे तो पायेंगे कि ऐसी ह्रदय विदारक घटनाएँ रोज घटती रहती हैं, किन्तु कोई चर्चा नहीं होती | क्योंकि ये विषय मीडिया के लिए कम रूचि के हैं । लेकिन, दादरी मामला उनका उच्चतम टीआरपी है, क्योंकि पीड़ित मुस्लिम है और हिंदुओं को हत्यारे के रूप में चित्रित करना उनका मिशन ।

इसी वर्ष 30 जुलाई को 15 वर्षीय संजू सिंह राठौड़ नाम के एक हिंदू लड़के की उत्तर प्रदेश के रामपुर (कुपगाँव-मीलक) में मुसलमानों ने गोली मारकर हत्या की | क्या कोई मीडिया कवरेज हुआ ? क्या कोई नेता उस पीड़ित परिवार से मिलने गया ? क्या ओबैसी या केजरीवाल ने गरमागरम बयान जारी किये ? क्या उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने पीड़ित परिवार के लिए किसी भी मुआवजे की घोषणा की ? जबकि विवाद कितना छोटा सा था, महज पशु चराने का मुद्दा और मुस्लिम भीड़ ने उस बेचारे को मार डाला । गाय हिन्दू समाज के एक सदस्य की थी और गलती से मुस्लिम के खेत में चरने चली गई थी | पहले तो मारपीट कर जितेंद्र सिंह और राजू सिंह को गंभीर रूप से घायल कर दिया गया, और बाद में दोपहर की नमाज के बाद मस्जिद की छत से हिंदू मंदिर की ओर गोलीबारी की गई, जिसमें 15 वर्षीय निर्दोष बालक संजू की मौत हो गई | संजू मंदिर की साफ़ सफाई कर रहा था, जब उसकी गर्दन में गोली लगी |

बेचारा संजू एक हिंदू लड़का था और हमलावर उन्मादी मुसलमान, तो इस कहानी में पकाने लायक कुछ भी नहीं था । लेकिन, दादरी मामले में पीड़ित अखलाक है, और सोने पे सुहागा यह कि हत्या “गौ” को लेकर हुई, जिसमें तड़का लगाकर हिन्दू आस्था को मजाक बनाया जा सकता है । शायद इसीलिए आजमखान ने मजाक उड़ाते हुए मांग की है कि चमड़े की बनी हर चीज पर प्रतिबन्ध लगा दो |

भारत के प्रेस्टीटयूट हमेशा ऐसे किसी मामले की तलाश में रहते है, जिसमें मुस्लिम तुष्टीकरण हो तथा हिन्दू समाज को अपमानित किया जा सके । उनकी धर्मनिरपेक्षता हमेशा इस्लामी सांप्रदायिकता को हवा देने के लिए है। दादरी का शिकार अखलाक इसीलिए मीडिया की सुर्ख़ियों में हैं जबकि हिंदू शिकार संजू या उत्सव को भारतीय राजनीतिक दिग्गजों और मीडिया ने ध्यान देने योग्य भी नहीं माना |

हिंदुओं और हिंदू भावनाओं के साथ मीडिया की बेईमानी पूर्ण पक्षपात भारतीय राजनीति और मीडिया की ‘धर्मनिरपेक्षता’ के वास्तविक स्वरुप को परिलक्षित करता है | लेकिन वे इसे नहीं समझ रहे कि इस सबसे हिंदू प्रतिशोध की भावना और प्रबल होगी, जो शायद सबसे दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति होगी । यह देश की सर्व धर्म समभाव वाली हिन्दू संस्कृति ही है, जिसके चलते अल्पसंख्यक सुरक्षित हैं |

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

17,834 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress