खेल जगत

राष्ट्रमंडल खेल और दिल्ली को सुसभ्य बनाने की कवायद

-निर्मल रानी

देश की राजधानी दिल्ली में राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारी इन दिनों अपने चरम पर र्है। इसी वर्ष 3 अक्तूबर से लेकर 14 अक्तूबर तक होने वाले राष्ट्रमंडल खेलों में हजारों विदेशी सैलानियों की दिल्ली पहुंचने की संभावना है। भारत में 1982 में हुए एशियाई देशों के खेलों के आयोजन एशियाड 82 के पश्चात अब दूसरी बार कोई इतना बड़ा आयोजन भारत में किया जा रहा है। इस आयोजन की तैयारी में जहां अनेक बड़ी परियोजनाओं जैसे कई नए स्टेडियम का निर्माण, अनेक नए पांच सितारा होटलों का निर्माण, कई नई मैट्रो परियोजनाओं को अक्तूबर से पहले पूरा कर लेने की योजना, कई नए फ्लाईओवर तथा उपमार्ग बनाने के कार्य तथा कई स्टेडियम के आधुनिकीकरण करने जैसी महत्वपूर्ण योजनाओं पर दिन-रात एक कर समय से पूर्व इन्हें पूरा किए जाने की कोशिश की जा रही है। वहीं दूसरी ओर सरकार द्वारा यह सुनिश्चित करने का प्रयास भी किया जा रहा है कि राष्ट्रमंडल खेलों के अवसर पर दिल्ली पहुंचने वाले पर्यटकों के मस्तिष्क पर दिल्ली व दिल्लीवासियों के विषय में पूरी तरह सकारात्मक प्रभाव पड़े। उन्हें लगे कि भारत की राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली एक सुसभ्य एवं सुसंकृत राजधानी है तथा यहां सभ्य समाज के लोग वास करते हैं।

दिल्ली को ‘सभ्य राजधानी’ प्रदर्शित करने की इन कोशिशों में जो महत्वपूर्ण कदम उठाए जा रहे हैं उनमें दिल्ली वालों को यह प्रशिक्षण दिए जाने की योजना बनाई गई है कि वे अपनी ‘पारंपरिक आजादी’ का लाभ उठाकर अब सड़कों के किनारे खुली जगहों पर कहीं भी खड़े होकर पेशाब करने जैसी बुरी आदतों से बाज आएं। निश्चित रूप से खुली जगह में शौचालय जाना या पेशाब करना अथवा सार्वजनिक स्थलों पर थूकना अथवा गंदगी फैलाना किसी सभ्य समाज के लक्षण कतई नहीं हैं। परंतु दुर्भाग्यवश यह सभी बुरी आदतें हमारे भारतीय समाज के एक कांफी बड़े वर्ग की दिनचर्या में शामिल हो चुकी हैं। प्रश्न यह है कि क्या इन पारंपरिक दुव्यसनों से हमें इतनी जल्दी छुटकारा मिल सकता है? राष्ट्रीय स्तर पर भी ऐसे कई प्रयास गत् कई वर्षों से किए जा रहे हैं। परंतु अभी भी शौचालयों के अभाव के चलते शत-प्रतिशत भारतवासियों का शौचालय में जाकर अपने नित्य कर्म से निपट पाना संभव नहीं हो पा रहा है। रहा सवाल महानगरों में खुली जगह पर शौच करने, पेशाब करने अथवा जगह-जगह थूकने व कूड़ा फेंकने का तो इसके लिए हम यह कह सकते हैं कि महानगरों पर अप्रवासी लोगों का बढ़ता दबाव इसका मुख्य कारण है।

बहरहाल, राष्ट्रमंडल खेलों के मौके पर ऐसी ‘पारंपरिक बुराईयों’ को नियंत्रित करने हेतु सरकार द्वारा समाचार पत्रों, विज्ञापनों, टी वी चैनल्स तथा होर्डिंग्स आदि का सहारा लिए जाने की योजना है। इनके माध्यम से दिल्ली वासियों को यह प्रशिक्षण देने की कोशिश की जाएगी कि वे ऐसी हरकतों से बाज आएं जो उन्हें व उनकी दिल्ली को बदनाम करती हों। दिल्लीवासियों को यह भी प्रशिक्षण देने की कोशिश की जाएगी कि वे अतिथि देवो भव: जैसी अपनी प्राचीन एवं पारंपरिक शिक्षाओं का अनुसरण करते हुए विदेशी सैलानियों से सहयोगपूर्ण एवं मृदुभाषी तरीके से पेश आएं ताकि यह विदेशी सैलानी राष्ट्रमंडल खेलों की समाप्ति के पश्चात अपने देश वापस जाएं तो वे राजधानी दिल्ली तथा यहां के रहने वालों के संबंध में सकारात्मक प्रभाव अपने साथ ले जाएं। ज्ञातव्य है कि केंद्रीय गृहमंत्री पी चिदंबरम तथा दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित द्वारा अब तक कई ऐसे वक्तव्य जारी किए जा चुके हैं जिनमें दिल्लीवासियों से राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान सभ्य आचरण अपनाने की अपील की गई है।

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली को चमकाने व दमकाने की मुहिम के अंतर्गत दिल्ली को भिखारी मुक्त बनाने की योजना पर भी अमल करना शुरु हो गया है। एक अनुमान के अनुसार राजधानी में लगभग साठ हजार भिखारी इधर-उधर घूमते फिरते अथवा भीख मांगते देखे जा सकते हैं। यह सत्य है कि इन भिखारियों के चलते प्राय: आम आदमी को उस समय बड़ी परेशानी का सामना करना पड़ता है जबकि यह भिखारी किसी व्यक्ति के पीछे ही पड़ जाते हैं। चाहे वह व्यक्ति कुछ खा पी रहा हो, किसी से बात कर रहा हो या अपने मोबाईल से किसी से वार्तालाप में व्यस्त हो। इन सब की परवाह किए बिना भिखारी भीख देने की रट लगाए रहता है। सोचने का विषय है कि जब भिखारियों की इन आदतों से भली-भांति परिचित एक साधारण भारतीय नागरिक उस समय स्वयं को असहज महसूस करता है ऐसे में यही भिखारी जब किसी विदेशी सैलानी के पीछे पड़ जाएंगे तो वह हमारे देश तथा देश की राजधानी के संबंध में आख़िरकार क्या सोचेंगे?

हालांकि भिखारियों के विरुध्द मुहिम छेड़ने की योजना इस देश में कोई नई योजना नहीं है। राजस्थान,कोलकाता ,दिल्ली व हरियाणा में पहले भी कई बार भिखारियों को खदेड़ने की मुहिम चलाई जा चुकी है। परंतु राष्ट्रमडल खेलों के मद्देनार सरकार ने अब दिल्ली को पूरी तरह भिखारी मुक्त करने का संकल्प लिया है। भिखारियों को सैलानियों की नारों से दूर रखने के लिए दिल्ली में 11 भिक्षु गृह बनाए गए हैं। जहां इनके लिए सभी सुविधाएं मुहैया कराई गई हैं। भिखारियों की धर पकड़ के लिए 13 विशेष पुलिस दस्ते सक्रिय हैं जो भिखारियों को पकड़ कर तथा उनकी जांच पड़ताल कर या तो उन्हें उनके गृह राय में वापस भेजने के प्रयत्न कर रहे हैं या फिर उन्हें भिक्षु गृह में डाला जा रहा है।

एक ओर जहां राष्ट्रमंडल खेलों को देश की प्रतिष्ठा का प्रश् मानकर सरकार दिल्ली को चमकाने-दमकाने की अपनी मुहिम के अंतर्गत बड़े से बड़े महत्वाकांक्षी निर्माण कार्य करने से लेकर भिखारियों को नियंत्रित करने तथा आम लोगों को सभ्याचार सिखाने की कोशिश कर रही है वहीं कुछ सामाजिक संगठन व कार्यकर्ता भिखारियों को लेकर नाना प्रकार के तर्क भी प्रस्तुत कर रहे हैं। यह लोग राष्ट्रमंडल खेलों के इस ऐतिहासिक अवसर पर यह बहस छेड़ना चाह रहे हैं किसी भिखारी के भीख मांगने के लिए आंखिर दोषी कौन है। स्वयं भिखारी या फिर समाज या सरकार? भिखारियों की पैरवी करने वालों का यह तर्क वास्तव में सराहनीय है कि भिखारियों को अपनी दयनीय स्थिति से उबरने का अवसर प्रदान किया जाना चाहिए। यह भी सच है कि एक अत्यंत वृध्द,असहाय अथवा अपाहिज ऐसा व्यक्ति जिसे उसके अपने परिवार के लोगों ने उसके अपने घर से निष्कासित कर दिया हो अथवा वृध्दावस्था के चलते कोई व्यक्ति मानसिक रूप से विक्षिप्त अथवा विकलांग हो गया है तो निश्चित रूप से ऐसा व्यक्ति दया का पात्र है। समाज व सरकार को उसके पुनर्वास हेतु कुछ ऐसे उपाय ज़रूर करने चाहिए ताकि वह भीख मांगने के बजाए शांतिपूर्ण तरींके से किसी निर्धारित स्थान पर अपने जीवन के शेष दिन रोटी, कपड़ा व छत जैसी बुनियादी जरूरतों के साथ गुजार सके।

परंतु इसी तस्वीर का एक दूसरा व ख़तरनाक पहलू यह भी है कि इन्हीं भिखारियों की आड़ में कई निकम्मे तथा बिना कुछ काम किए रोटी खाने की इच्छा रखने वाले तमाम हट्टे-कट्टे लोग भी भिखारियों के झुंड में शामिल हो गए हैं। तमाम भिखारी तो सपरिवार इस पेशे में संलिप्त हैं। उनके छोटे -छोटे बच्चे भी भिखारियों के वातावरण में पल बढ़ रहे हैं। इसी नेटवर्क की आड़ में तमाम तरह के अपराध विशेषकर नशीले पदार्थों की बिक्री व सेवन तथा चोरी जैसे अपराध पनप रहे हैं। दया का पात्र बने इस प्रकार के पाखंडी भिखारी भीख से मिले पैसों से अपनी रोटी व कपड़े की जरूरत पूरी करने के बजाए शराब व अन्य नशीली वस्तुओं की खरीद फरोख्त में अपने पैसो को खर्च करते हैं। निश्चित रूप से ऐसे भिखारियों के विरुद्ध न केवल कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए बल्कि इन्हें खदेड़कर इनके घरों तक पहुंचाने की कोशिश भी की जानी चाहिए। दया के पात्र भिखारियों के प्रति सहानुभूति तथा उनसे सहयोग किए जाने की जितनी सख्त ारूरत है उससे अधिक ज़रूरत है पाखंडी, शराबी, दुष्ट व दुराचारी हट्टे-कट्टे कामचोर तथा निकम्मे भिखारियों से देश को मुक्ति दिलाने की। नि:संदेह देश की मान प्रतिष्ठा ऐसे पाखंडियों के बेवजह पालन पोषण से कहीं ऊपर है। अत:इसे सुनिश्चित किए जाने के उचित उपाय सरकार को अवश्य करने चाहिए।