संदीप सृजन
भारतीय राजनीति में नेताओं के विवादित बयान कोई नई बात नहीं हैं। समय-समय पर विभिन्न दलों के नेता अपनी टिप्पणियों के कारण सुर्खियों में आते हैं जिससे न केवल उनकी पार्टी को असहज स्थिति का सामना करना पड़ता है बल्कि समाज में भी तनाव और बहस का माहौल बनता है। हाल ही में मध्य प्रदेश के वनमंत्री विजय शाह के कर्नल सोफिया कुरैशी पर दिए बयान ने पूरे देश में हलचल मचा रखी है और इसी बीच म.प्र. के उपमुख्यमंत्री जगदीश देवड़ा के एक बयान ने राजनीतिक गलियारों में हलचल को तेज कर रहा है। उन्होंने जबलपुर में एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि “पूरा देश, देश की सेना और सैनिक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चरणों में नतमस्तक हैं।” इस बयान ने न केवल विपक्षी दलों को हमलावर होने का मौका दिया बल्कि सेना जैसे सम्मानित संस्थान को राजनीतिक बयानबाजी में शामिल करने के लिए व्यापक आलोचना भी झेलनी पड़ रही है।
16 मई 2025 को मध्य प्रदेश के जबलपुर में सिविल डिफेंस वॉलिंटियर्स के एक प्रशिक्षण कार्यक्रम में उपमुख्यमंत्री जगदीश देवड़ा ने अपने भाषण में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल 2025 को हुए आतंकी हमले का जिक्र किया। इस हमले में आतंकियों ने पर्यटकों से उनका धर्म पूछकर चुन-चुनकर हत्याएं की थीं जिससे देश में गुस्से और तनाव का माहौल था। देवड़ा ने इस घटना का उल्लेख करते हुए कहा कि इस हमले ने पूरे देश को झकझोर दिया था, और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय सेना ने ऑपरेशन सिंदूर के तहत आतंकियों के ठिकानों को नष्ट करके इसका बदला लिया। इसी संदर्भ में उन्होंने कहा, “प्रधानमंत्री जी ने जो साहसिक निर्णय लिया, उसके लिए पूरा देश और देश की सेना उनके चरणों में नतमस्तक है।”
भारतीय सेना एक ऐसी संस्था है जो अपनी निष्पक्षता, अनुशासन और देश के प्रति समर्पण के लिए जानी जाती है। सेना किसी भी राजनीतिक दल या नेता के प्रति नतमस्तक नहीं होती बल्कि वह भारत के संविधान और राष्ट्र की सेवा में कार्य करती है। देवड़ा के बयान को कई रक्षा विशेषज्ञों और पूर्व सैनिकों ने अनुचित ठहराया, क्योंकि यह सेना की स्वतंत्रता और गरिमा को कमतर करता है। सेना का काम देश की सुरक्षा करना है, और इसे किसी व्यक्ति विशेष की प्रशंसा से जोड़ना न केवल गलत है, बल्कि सेना के बलिदान को राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल करने का प्रयास भी माना जा सकता है। सोशल मीडिया पर भी इस बयान को लेकर तीखी बहस देखने को मिल रही है। जहां कुछ लोगों ने इसे प्रधानमंत्री के नेतृत्व की प्रशंसा के रूप में देखा, वहीं अधिकांश ने इसे सेना की गरिमा के खिलाफ बताया है।
भाजपा ने देवड़ा के बयान का बचाव करते हुए कहा कि इसे गलत तरीके से पेश किया जा रहा है। पार्टी के प्रवक्ता ने दावा किया कि देवड़ा का उद्देश्य केवल प्रधानमंत्री के नेतृत्व की सराहना करना था न कि सेना का अपमान। उन्होंने कहा कि भाजपा हमेशा सेना का सम्मान करती है और उनके बलिदान को सर्वोच्च मानती है। लेकिन, विपक्ष ने इस बचाव को खारिज किया है।
जगदीश देवड़ा का यह बयान मध्य प्रदेश में भाजपा नेताओं के विवादित बयानों की श्रृंखला में एक और कड़ी है। हाल ही में राज्य के वन मंत्री विजय शाह भी अपने एक बयान के कारण विवादों में घिरे थे। शाह ने ऑपरेशन सिंदूर में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली भारतीय सेना की कर्नल सोफिया कुरैशी को “आतंकियों की बहन” कहकर संबोधित किया था। इस बयान ने न केवल सेना के एक सम्मानित अधिकारी का अपमान किया बल्कि पूरे देश में आक्रोश पैदा किया। सुप्रीम कोर्ट ने शाह को इस बयान के लिए कड़ी फटकार लगाई, और उनके खिलाफ कई जगहों पर मामले दर्ज किए गए। कांग्रेस ने शाह के इस्तीफें की मांग की, और भाजपा को इस मामले में बैकफुट पर आना पड़ा है। विजय शाह का यह बयान भी पहलगाम हमले के संदर्भ में आया था, जहां उन्होंने कहा था कि “प्रधानमंत्री ने आतंकियों की बहन को भेजकर उनकी ऐसी-तैसी कर दी।” इस टिप्पणी को न केवल आपत्तिजनक बल्कि महिला विरोधी और सेना के प्रति असम्मानजनक माना गया। शाह पहले भी कई बार विवादित बयानों के लिए चर्चा में रहे हैं, लेकिन इस बार उनकी टिप्पणी ने पार्टी को गंभीर संकट में डाल दिया।
विवादित बयान केवल मध्य प्रदेश या भाजपा तक सीमित नहीं हैं। भारतीय राजनीति में विभिन्न दलों के नेताओं ने समय-समय पर ऐसी टिप्पणियां की हैं, जिन्होंने सामाजिक और राजनीतिक तनाव को बढ़ाया है। कांग्रेस के नेताओं ने भी कई बार विवादित बयान दिए हैं।
जगदीश देवड़ा और विजय शाह जैसे बयान सेना जैसे निष्पक्ष और सम्मानित संस्थान को राजनीति में घसीटते हैं। यह न केवल भारतीय सेना की गरिमा को ठेस पहुंचाता है, बल्कि जनता के बीच अविश्वास भी पैदा करता है। धर्म, जाति, या लिंग जैसे संवेदनशील मुद्दों पर दिए गए बयान समाज में विभाजन पैदा करते हैं। पहलगाम हमले जैसे मामलों में धर्म आधारित टिप्पणियां सामुदायिक तनाव को बढ़ाती हैं। विवादित बयान अक्सर पार्टी की छवि को नुकसान पहुंचाते हैं। भाजपा, जो अपनी राष्ट्रवादी छवि के लिए जानी जाती है, को ऐसे बयानों के कारण विपक्ष के निशाने पर आना स्वाभाविक है। सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट जैसे संस्थान कई बार नेताओं को उनके बयानों के लिए फटकार लगाते हैं। विजय शाह के मामले में कोर्ट की सख्ती इसका उदाहरण है।
राजनीतिक दलों को अपने नेताओं को संवेदनशील मुद्दों पर बोलने से पहले प्रशिक्षण देना चाहिए। सार्वजनिक मंच पर बोलने से पहले बयानों की समीक्षा जरूरी है। विवादित बयानों के खिलाफ त्वरित और सख्त कानूनी कार्रवाई से नेताओं में जवाबदेही बढ़ेगी। मीडिया को विवादित बयानों को सनसनीखेज बनाने के बजाय तथ्यपरक विश्लेषण करना चाहिए। जनता को भी ऐसी टिप्पणियों के खिलाफ अपनी आवाज उठानी चाहिए, ताकि नेता अपनी जिम्मेदारी समझें।
जगदीश देवड़ा का बयान भारतीय राजनीति में विवादित टिप्पणियों की एक लंबी श्रृंखला का हिस्सा है। सेना जैसे सम्मानित संस्थान को राजनीतिक बयानबाजी में शामिल करना न केवल अनुचित है, बल्कि देश की एकता और अखंडता के लिए भी हानिकारक हो सकता है। मध्य प्रदेश में विजय शाह जैसे अन्य मंत्रियों के बयानों ने भी यह साबित किया है कि नेताओं को अपनी भाषा और संदेश पर अधिक ध्यान देने की जरूरत है। भारतीय राजनीति को ऐसी बयानबाजी से ऊपर उठकर रचनात्मक और समावेशी संवाद की ओर बढ़ना होगा, ताकि देश का सामाजिक ताना-बाना मजबूत रहे और संस्थानों की गरिमा बनी रहे।
संदीप सृजन