जनकल्याणकारी और समाजोन्मुखी पत्रकारिता के आदि संवाददाता देवर्षि नारद

                  प्रवीण दुबे

विश्व गुरु की पदवी से अलंकृत हो चुके भारत देश के धर्म ग्रंथ, वेद , उपनिषद आदि में निहित व्यक्तित्वों में हमारे जीवन के हर पहलू का समाधान  छुपा है  जरूरत है इसे समझने की और उसमें दिखाए मार्ग पर चलने की। जहां तक मीडिया का सवाल है इसे लोकतंत्र के चौथे स्तंभ का दर्जा प्राप्त है परंतु इसे विडंबना ही कहेंगे कि आज मीडिया पर अनेक प्रकार के आरोप लगते हैं कहीं यह कहा जाता है की मीडिया अपने व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए निष्पक्ष खबरों का प्रसारण नहीं करता यह भी कहा जाता है कि अपनी प्रसार संख्या बढ़ाने के लिए मीडिया राष्ट्रहित को अहमियत नहीं देता इसके अलावा मीडिया  पर जनकल्याण मानवीय संवेदनाओं  को दरकिनार करके नकारात्मक भाव से कार्य करने  आरोप भी लगते रहते हैं। ऐसी स्थिति में आदर्श पत्रकारिता कैसी हो पत्रकार और मीडिया संस्थान आखिर किसे अपना आदर्श मानकर कार्य करें यह सवाल बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है। इस सवाल के जवाब के लिए भारतीय धर्म ग्रंथों मैं देवर्षि नारद का व्यक्तित्व और कृतित्व हमारे लिए खास करके मीडिया जगत के लिए आदर्श कहा जा सकता है।

 देवर्षि नारद को पृथ्वीलोक का सबसे पुराने संवाददाता पत्रकार व मीडिया पर्सन कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होना चाहिए पुरातन भारतीय ग्रंथों जिन्हें कि आधुनिक विज्ञान भी स्वीकार कर चुका है इस बात के साक्षी है कि देवर्षि नारद ने एक संवाददाता के रूप में कुशलतापूर्वक कार्य किया । संदेशवाहक के रूप में देवर्षि नारद के बुद्धि कौशल्य  को उनके व्यक्तित्व कृतित्व से बखूबी समझा जा सकता है। देवर्षि नारद ने कभी भी समाज हित को दरकिनार नहीं किया संदेशवाहक के रूप में उन्होंने जनकल्याण और राष्ट्रहित को सदैव सर्वोपरि रखा देव और दानवों दोनों के बीच नारद ने समाचार प्रेषित करने का काम किया लेकिन अपने नारदीय व्यक्तित्व को कभी भी धूमिल नहीं होने दिया।

देवर्षि नारद इस लोक से उस लोक में परिक्रमा करते हुए संवादों का आदान-प्रदान करते थे, यानी एक लोक के समाचार दूसरे लोक तक पहुंचाने का काम करते थे। इसलिए उन्हें सृष्टि का प्रथम पत्रकार माना जाता है। मीडिया के क्षेत्र में में कार्य करने वाले संस्थानों और पत्रकारों तथा तमाम मीडिया पर्सन के लिए देवर्षि नारद एक महत्वपूर्ण आदर्श  हैं। देवर्षि हमेशा देव-दानव और मानव को महत्वपूर्ण जानकारी देते रहते हैं। देवर्षि नारद का ध्येय सदैव सर्वहितकारी, लोक मंगल व समग्र सृष्टि के कल्याण का रहा। श्रीमद्भगवद गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने इनकी महत्ता को स्वीकार करते हुए कहा है कि देवर्षियों में मैं नारद हूं। 

इस प्रकार देवर्षि नारद एक घुमक्कड़, किंतु सही और सक्रिय-सार्थक संवाददाता की भूमिका निभाते हैं और अधिक स्पष्ट शब्दों मे कहा जाए तो नारद देवर्षि ही नहीं दिव्य पत्रकार भी हैं ।

महर्षि वेदव्यास विश्व के पहले संपादक हैं  क्योंकि उन्होंने वेदों का संपादन करके यह निश्चित किया कि कौन-सा मंत्र किस वेद में जाएगा अर्थात्‌ ऋग्वेद में कौन-से मंत्र होंगे और यजुर्वेद में कौन से, सामवेद में कौन से मंत्र होंगे तथा अर्थर्ववेद में कौन से? वेदों के श्रेणीकरण और सूचीकरण का कार्य भी वेदव्यास ने किया और वेदों के संपादन का यह कार्य महाभारत के लेखन से भी अधिक कठिन और महत्वपूर्ण था।

 देवर्षि नारद दुनिया के प्रथम पत्रकार या पहले संवाददाता हैं, क्योंकि देवर्षि नारद ने इस लोक से उस लोक में परिक्रमा करते हुए संवादों के आदान-प्रदान द्वारा पत्रकारिता का प्रारंभ किया। इस प्रकार देवर्षि नारद पत्रकारिता के प्रथम पुरुष/पुरोधा पुरुष/पितृ पुरुष हैं। जो इधर से उधर घूमते हैं तो संवाद का सेतु ही बनाते हैं। जब सेतु बनाया जाता है तो दो बिंदुओं या दो सिरों को मिलाने का कार्य किया जाता है।

दरअसल देवर्षि नारद भी इधर और उधर के दो बिंदुओं के बीच संवाद का सेतु स्थापित करने के लिए संवाददाता का कार्य करते हैं। इस प्रकार नारद संवाद का सेतु जोड़ने का कार्य करते हैं तोड़ने का नहीं। परंतु चूंकि अपने ही पिता ब्रह्मा के शाप के वशीभूत (देवर्षि नारद को ब्रह्मा का मानस-पुत्र माना जाता है। ब्रह्मा के कार्य में पैदा होते ही नारद ने कुछ बाधा उपस्थित की। अतः उन्होंने नारद को एक स्थान पर स्थित न रहकर घूमते रहने का शाप दे दिया।)

नारद को इधर से उधर (इस लोक से उस लोक में) घूमना पड़ता है तो इसमें संवाद की जो अदला-बदली हो जाती है उसे लोगों ने नकारात्मक दृष्टि से देखा और नारद को ‘भिड़ाने वाले’ या ‘कलह कराने वाले’ किरदार के फ्रेम में फिट कर दिया। नारद की छवि को इस प्रकार प्रस्तुत किया कि वे ‘चोर को कहते हैं कि चोरी कर और साहूकार को कहते हैं कि जाग।’ लेकिन यह सच नहीं है। सच तो यह है कि नारद घूमते हुए सीधे संवाद कर रहे हैं और सीधे संवाद भेज रहे हैं इसलिए नारद सतत सजग-सक्रिय हैं यानी नारद का संवाद ‘टेबल-रिपोर्टिंग’ नहीं ‘स्पॉट-रिपोर्टिंग’ है इसलिए उसमें जीवंतता है। 

मेरे मत में पत्रकारिता, पाखंड की पीठ पर चुनौती का चाबुक है और देवर्षि नारद इधर-उधर घूमते हुए जो पाखंड देखते हैं उसे खंड-खंड करने के लिए ही तो लोकमंगल की दृष्टि से संवाद करते हैं। रामावतार से लेकर कृष्णावतार तक नारद की पत्रकारिता लोकमंगल की ही पत्रकारिता और लोकहित का ही संवाद-संकलन है। उनके ‘इधर-उधर’ संवाद करने से जब राम का रावण से या कृष्ण का कंस से दंगल होता है तभी तो लोक का मंगल होता है। अतः देवर्षि नारद दिव्य पत्रकार के रूप में लोकमंडल के संवाददाता हैं।

ऐसे में नारद जयंती का दिन भारतीय पत्रकारिता में निहित मूल्यों के मूल्यांकन व आगे की राह तय करने का दिन है। ऐसे में महर्षि नारद मुनि पत्रकारों के प्रेरणास्रोत हैं। महर्षि नारद देव व दानव सभी के मध्य सूचनाओं का आदान-प्रदान बिना किसी स्वार्थ के लोकहित को ध्यान में रखकर किया करते थे। आज भी पत्रकारों को उनके पदचिन्हों पर चलकर मूल्य आधारित व शुद्ध पत्रकारिता निर्भयता के साथ करनी चाहिए। मीडिया से समाज की बहुत अपेक्षाएं रहती हैं इसलिए मीडिया पर भारी नैतिक दबाव भी रहता है, जिसे पूरा करने का प्रयास मीडिया करता ही है। भारत में सदैव लोकहित में संवाद करना यही मीडिया की परंपरा रही है।

समाचारों में मुद्दों पर सामूहिक चेतना का प्रचलन बढ़ा है, परन्तु व्यावसायिक पत्रकारिता के कारण वैचारिक पत्रकारिता में कमी आयी है, जो कि युवा शक्ति के लिए शुभ नहीं है। मनोरंजन को प्रमुखता दे कर समाज को दिशा भ्रमित भी किया जा रहा है। पत्रकारिता लोकहित व राष्ट्रहित को ध्यान में रखकर की जानी चाहिए, यही पत्रकारिता का धर्म भी है। आज देश की जी.डी.पी. तो बढ़ी है परन्तु मानव विकास एवं सामाजिक सरोकार घट रहा है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की विषय वस्तु में सुधार करना तथा जनता के प्रति जवाबदेह बनाना यह आज समय की आवश्यकता व अनिवार्यता है। आज इंटरनेट मीडिया के कारण पत्रकारिता का विस्तार भी हो रहा है। भारत में इंटरनेट मीडिया का एक बड़ा बाज़ार है जिसके कारण इस मीडिया पर परोसा जाने वाला कंटेंट एक बड़े वर्ग को प्रभावित करता है। यह सब ओर अधिक चिंताजनक हो जाता है जब हमें पता है कि डिजिटल मीडिया में विदेशी निवेश की भागीदारी यहां के विचार, आचार व व्यवहार को किस हद तक प्रभावित करती है। ऐसे में भारत केंद्रित पत्रकारिता की सीमाओं को तय करना होगा, ताकि इस बेलगाम होते डिजिटल मीडिया को भी सही दिशा दी जा सके। मीडिया का कार्य मुख्यत: सूचना संचार की व्यवस्था करना है़। संचार व्यवस्था के माध्यम बदलने से उसके प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक, वेब, सोशल मीडिया आदि अनेक प्रकार हुए हैं। प्राचीन काल में सूचना, संवाद, संचार व्यवस्था मुख्यत: मौखिक ही होती थी और मेले, तीर्थयात्रा, यज्ञादि कार्यक्रमों के निमित्त लोग जब इकट्ठे होते थे तो सूचनाओं का आदान-प्रदान करते थे। देवर्षि नारद भी सतत् सर्वत्र संचार करते हुए अलग-अलग जगह के वर्तमान एवं भूत की सूचनाएं लोगों तक पहुंचाते थे। वे अच्छे भविष्यवेत्ता भी थे। इसलिए भूत और वर्तमान के साथ-साथ कभी-कभी वे भविष्य की सूचनाओं से भी लोगों को अवगत कराते थे। यह कार्य वे निरपेक्ष भाव से लोकहित में एवं धर्म की स्थापना के लिए ही करते थे। एक आदर्श पत्रकार के नाते उनका तीनों लोक (देव, मानव, दानव) में समान सहज संचार था।

पत्रकारिता में नारदीय दृष्टि मीडिया से जुड़े प्रत्येक व्यक्ति के लिए एक पथ प्रदर्शक का मार्ग प्रशस्त करती है। क्योंकि हमें पता है कि न्यूज़ में व्यूज का समावेश करने से पत्रकारिता एजेंडे में बदल जाती है, इसलिए पत्रकार केवल समाचार दें और पक्षकार न बनें और समाचार देते समय समाचार की सत्यता की भी जांच करें। समाज भी पत्रकार से अपेक्षा करता है कि वो ‘पत्रकार बनें, पक्षकार नहीं’। पत्रकार समाज का दर्पण है। पत्रकार का प्रमुख कार्य समाज की समस्याओं को उजागर करना है। आज के युग में पत्रकारिता की जिम्मेदारी और प्रासंगिकता बहुत बढ़ गई है क्योंकि पत्रकार समाज की दिशा तय करने की ताकत रखता है। मीडिया ही देश की छवि विश्व के सामने रखता है। मीडिया को निष्पक्ष रहकर कार्य करना चाहिए। पत्रकार अपनी लेखनी से समाज की दशा और दिशा बदलने की ताकत रखता है। प्रत्येक पत्रकार अपनी कलम से किसी न किसी रूप में समाज की सेवा करता है।

नारद मुनि पत्रकारिता के पितामह थे, जिन्होंने समाज में संवाद का कार्य शुरू किया था। नारद के पास श्रुति स्मृति थी। आजादी से पहले और अब की पत्रकारिता में काफी बदलाव देखने को मिल रहा है। आजादी से पहले अधिकतर पत्रकारों, संपादकों ने देश को आजाद करवाने के लिए लेख लिखे। जिस जनून के साथ उन्होंने काम किया उनकी पत्रकारिता रंग लाई और लोगों में जागृति आने के अलावा भारत आजाद भी हुआ लेकिन वर्तमान में कुछ कॉरपोरेट घरानों के हाथ पत्रकारिता का सिस्टम आने के बाद इसमें काफी बदलाव आया है। पत्रकारिता के लिए व्यवसाय करना तो ठीक है, लेकिन व्यवसाय के लिए पत्रकारिता करना उचित नहीं है।

आज भी बहुसंख्यक पत्रकारों के लिए पत्रकारिता शौक या रोजी-रोटी का जरिया न होकर स्वप्रेरित कार्य ही है। कोरोना संकट के दौरान जिस प्रकार की भूमिका पत्रकार निभा रहे हैं, वह उसी प्रेरणा व संकल्प के कारण है। आज कोरोना काल की संकट घड़ी में भी पत्रकार अपनी जान हथेली पर रखकर रिपोर्टिंग कर रहे हैं और देश दुनिया के समाचार हम तक पहुंचा रहे हैं। समाज पत्रकारों का सदैव ऋणी रहेगा। इसलिए पत्रकारिता की पवित्रता एवं विश्वसनीयता सदैव निष्कलंक रहनी चाहिए।

वैश्विक स्तर पर नारद सही मायनों में लोक संचारक थे। जिनके प्रत्येक संवाद की परिणति लोक कल्याण पर आधारित थी। जो औपचारिक मान्यता न होने पर भी सर्वत्र सूचना प्राप्त व प्रदान करने के लिए स्वीकार्य थे, जिनकी विश्वसनीयता पर कभी कोई संदे. जिनकी विश्वसनीयता पर कभी कोई संदेह नहीं रहा। इसलिए आज नारद जयंती पर मीडिया में भारत केंद्रित दृष्टि को संकल्पित करने का दिन है। अव्यवस्था, गड़बड़ियों, खामियों को उजागर करने के साथ-साथ सूचना के माध्यम से समाज का प्रबोधन, जागरण करते हुए समाज को ठीक दिशा में ले जाना, समाज की विचार प्रक्रिया को सही दिशा देना यह भी मीडिया का कर्तव्य है। मीडिया को आज अपनी इस भूमिका का निर्वहन करना ही चाहिए। यही समाज व देश की आवश्यकता है और पत्रकारिता में यही नारदीय दृष्टि मीडिया के स्वर्णिम भविष्य को तय भी करेगी।

राष्ट्र के निर्माण में पत्रकारों की अहम भूमिका रहती है। आजादी के आंदोलन में भी पत्रकारों का विशेष योगदान रहा है। देवर्षि नारद ने समाज को जीविका की नहीं जीवन दर्शन की शिक्षा देने का काम किया। देवर्षि नारद पत्रकारिता के जनक माने गए हैं। आज इंटरनेट मीडिया के जन्म के कारण पत्रकारिता के क्षेत्र में चुनौती बढ़ गई हैं। विश्वसनीयता को बनाए रखना पत्रकारों के लिए बड़ी चुनौती है। पत्रकारों को चाहिए कि वह बिना किसी दबाव में राष्ट्र हित को ध्यान में रखकर पत्रकारिता करें और अपनी कलम के माध्यम से समाज को नई दिशा देने का काम करें।

Previous articleअगर जीतना स्वयं को, बन सौरभ तू बुद्ध !!* 
Next articleएशिया का प्रकाश कहलाते हैं-गौतम बुद्ध 
प्रवीण दुबे
विगत 22 वर्षाे से पत्रकारिता में सर्किय हैं। आपके राष्ट्रीय-अंतराष्ट्रीय विषयों पर 500 से अधिक आलेखों का प्रकाशन हो चुका है। राष्ट्रवादी सोच और विचार से प्रेरित श्री प्रवीण दुबे की पत्रकारिता का शुभांरम दैनिक स्वदेश ग्वालियर से 1994 में हुआ। वर्तमान में आप स्वदेश ग्वालियर के कार्यकारी संपादक है, आपके द्वारा अमृत-अटल, श्रीकांत जोशी पर आधारित संग्रह - एक ध्येय निष्ठ जीवन, ग्वालियर की बलिदान गाथा, उत्तिष्ठ जाग्रत सहित एक दर्जन के लगभग पत्र- पत्रिकाओं का संपादन किया है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

17,335 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress