विविधा

धर्म तोड़ता नहीं, जोड़ता है

imagesस्वामी श्रद्धानंद ने छात्रों को वेदान्त की शिक्षा देने हेतु गुरुकुल कांगड़ी विद्यालय की स्थापना की थी।

इस विद्यालय में वेदान्त ही नहीं सिखाया जाता था बल्कि कई अन्य विद्याओं की शिक्षा भी दी जाती थी जिनमें हिन्दी भी एक थी। एक दिन स्वामी श्रद्धानंद के पास एक पत्र आया। पत्र एक ईसाई पादरी ने भेजा था जिसमें लिखा था ‘भारत के अधिकांश निवासी हिन्दी जानते हैं इसलिए मैं उनके बीच ईसाई धर्म का प्रचार करने के लिए हिन्दी सीखना चाहता हूं। अपने गुरुकुल में मुझे अध्ययन करने का अवसर दीजिए ताकि मैं हिन्दी सीख सकूं। मैं आपको वचन देता हूं कि अपने प्रवास काल के दौरान गुरुकुल में ईसाई धर्म का प्रचार नहीं करुंगा।’

स्वामी श्रद्धानंद ने पत्र के उत्तर में एक पत्र पादरी को भेजा जिसमें उन्होंने लिखा था ‘गुरुकुल खुशी-खुशी आपको हिन्दी सिखाने के लिए तैयार है। लेकिन आपको एक शर्त पूरी करनी होगी। शर्त यह है कि गुरुकुल में आपको ईसाई धर्म का प्रचार भी करना होगा ताकि गुरुकुल के अन्य छात्र महात्मा ईसा मसीह के जीवन व उनके उपदेशों को जान सकें। हम समझते है धर्म आपस में प्रेम करना सिखाता है, नफरत नहीं।’