दिग्गी जी! दिमागी दिवालियापन दूर करो

राकेश कुमार आर्य
digvijay-singh11-205x300कांग्रेस ने विपक्षी दलों का उपहास उड़ाकर व्यंग्य पूर्ण किंतु अतार्किक भाषा में उनकी बातों का उत्तर देने के लिए अपने पास कोई न कोई स्तरहीन नेता अवश्य रखा है। वर्तमान में इस कांग्रेसी प्रवृत्ति का नेतृत्व दिग्विजय सिंह कर रहे हैं। वह जो चाहे बोल जाते हैं, कांग्रेस की ‘राजमाता’ की चुप्पी यह बताती है कि वो भी दिग्गी के अतार्किक बयानों से खुश रहती हैं। वह जानती हैं कि इससे कांग्रेस के विरोधियों को तो उत्तर मिल जाएगा पर किरकिरी स्वयं दिग्गी की होगी, क्योंकि कांग्रेस अक्सर जब दिग्गी के बयान पर फंसती है तो वह उस बयान को दिग्गी की व्यक्तिगत राय बताकर पल्ला झाड़ लेती है।
अभी दिग्गी ने अपनी बौद्घिक अक्षमताओं का परिचय देते हुए एक नई बात कही है कि हिंदुत्व जैसे शब्द को भारत में पहली बार कट्टर आर्य समाजी वीर सावरकर लाए थे। आर्य समाजियों की सनातन धर्म को लेकर कट्टरता सबको पता है।
अब दिग्गी राजा को कौन समझाए कि भारत में हिंदुत्व इस सनातन देश की प्राणशक्ति है। इस शब्द के प्रति वीर सावरकर की निष्ठा केवल इसलिए थी कि वे इसे भारत की राष्ट्रीयता का प्रतीक मानते थे। इस देश का दुर्भाग्य ही ये है कि जो व्यक्ति इस देश की महानता और गौरवपूर्ण अतीत को वर्तमान के साथ बैठाने का प्रयास करता है, वही कट्टर हो जाता है। जबकि कट्टरता हिंदुत्व का ना तो कभी गुण थी और ना है। इसे भारत की जीवन पद्घति कहकर अभिहित किया गया है। बेस्टर के तृतीय अंतर्राष्ट्रीय शब्दकोश में हिंदुत्व का अर्थ करते हुए कहा गया है-
‘हिंदुत्व एक ऐसा दृष्टिïकोण है जो समस्त रूपों तथा सिद्घांतों को एक सनातन सत्ता तथा सनातन सत्य के ही भिन्न भिन्न पक्ष और भिन्न भिन्न विभूतियां मानता है, तथा जो अहिंसा, कर्म, धर्म, संसार और मोक्ष में श्रद्घा रखता है और कर्मयोग, ज्ञानयोग, और भक्तिभोग द्वारा पुनर्जन्मों के चक्र से मुक्ति में आस्था रखता है।’
एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका के 15वें संस्करण में हिंदुत्व को सिंधु नदी के क्षेत्र के लोगों की संज्ञा के रूप में 2000 वर्षों से जन्मी एक सभ्यता मानते हुए कहा गया है कि यह एक विराट अविच्छिन्न समग्र का अत्यंत जटिल संपुंजन है। हिंदुत्व में समस्त जीवन का समावेश है। इसीलिए इसके धार्मिक सामाजिक, आर्थिक, साहित्यिक, तथा कलात्मक पक्ष है।…..सिद्घांतत: हिंदुत्व समस्त विश्वासों श्रद्घारूपों तथा उपासना रूपों मो समाविष्टï करता है, वह किसी की भी वर्जना या विरोध नही करता।
इस एनसाईक्लोपीडिया की हिंदुत्व की सारी परिभाषा पढ़ने योग्य है। दिग्गी जैसे लोग इसे पढ़ेंगे तो उन्हें पता चलेगा कि हिंदुत्व के प्रति वीर सावरकर ही नही अपितु विश्व के अन्य विद्वान भी कैसा सम्मान भाव रखते हैं। इस सम्मानित विचारधारा को दूसरों के प्रति आक्रामक दिग्गी जैसे लोग ही बनाकर प्रस्तुत करते हैं। क्योंकि दिग्गी जैसे लोग शिवाजी के नही अपितु अफजल बेग के उपासक हैं और शिवाजी को मारने के लिए अपने हाथ में खंजर छुपाए खड़े अफजल को न देखकर ये लोग शिवाजी की वीरता को कोसते हैं और कहते हैं कि आक्रामकता हिंदुत्व की पहचान नही हो सकती। जबकि इन्हें पता है कि अफजल किस स्थिति में खड़ा है और उसका इरादा क्या है? तो क्या अपनी वीरता को, अपने शौर्य को और अपने चौकन्नेपन को स्वयं कोसना ही हिंदुत्व है? हो सकता है दिग्गी कर्मकाण्डी हिंदू हों, लेकिन वह कर्मवीर और धर्मवीर हिंदू नही है। यदि हैं तो उन्हें ‘कल्चरल हैरिटेज ऑफ इण्डिया’ की हिंदुत्व के विषय में यह मान्यता भी पढ़नी चाहिए ‘हिंदुत्व ऐसा कोई रिलीजन बिल्कुल नही है जिसकी मान्यताओं को प्रत्येक अनुयायी को मानना आवश्यक हो। यह तो असीम ब्रह्मï के प्रति अपनायी गयी विभिन्न मान्यताओं का समुच्चय मात्र है।
प्रिंसीपल ऑफ हिंदू लॉ के लेखक डी.एफ. मुल्ला लिखते हैं-‘हिंदू शब्द किसी रिलीजन या सम्प्रदाय के लोगों को व्यक्त नही करता है। यह अनीश्वरवादी, गैर परंपरावादी एवं ब्राह्मïणवाद के विरोधियों के लिए भी प्रयुक्त किया गया है। लेकिन फिर भी ये लोग हिंदू विधि विधान के अंतर्गत रहते हुए आये हैं।
महर्षि दयानंद जी महाराज ने सावरकर से पूर्व अमृतसर के कमिश्नर एच परकिंस को उत्तर देते हुए कहा था कि सभी मत मतांतर इस विशाल हिंदुत्व रूपी समुद्र में विलीन हो जाते हैं।
इस हिंदुत्व को ढूंढ़ने के लिए और इसकी प्राचीनता को स्थापित करने के लिए दिग्गी जैसे लोगों को भारत की आत्मा वेद, उपनिषद, महाभारत, रामायण, गीता आदि को समझना पड़ेगा और समझना पड़ेगा श्री राम से लेकर शिवाजी तक के आर्य राजाओं की एक लंबी श्रंखला को, और उसी श्रंखला से जन्मी भारतीय स्वातंत्रय समर की क्रांतिकारी विचारधारा को, जिसकी फलश्रुति स्वातन्त्रय वीर सावरकर थे। सावरकर को समझने के लिए भारत को समझो और भारत को समझने के लिए दिग्गी महोदय! सावरकर को समझो। तब आपको पता चलेगा कि सावरकर हिंदुत्व के जनक नही थे अपितु मात्र उसकी फलश्रुति थे। हिंदुत्व ईसाईयत से भी पुरानी विचारधारा है। दिग्गी जैसे अध कचरे ज्ञान वाले लोगों का मानना है कि भारत को इंडिया सर्वप्रथम अंग्रेजों ने कहा था, लेकिन नही। भारत को सर्वप्रथम इण्डिया सिकंदर के साथ आए महान यूनानी लेखक मेगास्थनीज ने अपनी पुस्तक इण्डिका लिखकर कहा था। यह घटना ईसाईयत के जन्म से भी सदियों पूर्व की है। इस भूमि को हिंद की भूमि मुसलमानों ने नही, अपितु इस्लाम के जन्म के सदियों पूर्व अरब की शेरे ओकाकुल नामक संस्था के कवि नबी की एक कविता में कहा गया था। जिसकी खूबसूरत पंक्तियां दिल्ली के बिड़ला मंदिर के पीछे स्थित मंदिर की बगिया में बनी यज्ञशाला की दीवारों पर अंकित है। उसमें भारत की पवित्र भूमि की वंदना (वंदेमातरम का विरोध करने वाले अवश्य पढ़ें) बड़ी ही खूबसूरती से की गयी है।
स्वामी श्रद्घानंद जी ने अपनी पुस्तक ‘हिंदू संगठन’ की प्रस्तावना में लिखा है-संवत 666 विक्रमी (मई 609 ई.) ज्येष्ठ मास में स्थानेश्वर (थानेश्वर) में हर्ष जिस समय गद्दी पर बैठा तो उस समय आर्यों की मातृभूमि का नाम आर्यावर्त्त से बदलकर हिंदुस्थान हो गया।
इसीलिए सावरकर ने कहा था कि वह हिंदू नाम जो हमारी जाति तथा देश को हमारे महान पूर्वजों ने प्रदान किया है, जिसका उल्लेख विश्व के सबसे अधिक प्राचीन और पूज्य ग्रंथों में भी प्राप्त है, जिस नाम से कश्मीर से कन्याकुमारी तक अटक से कटक पर्यन्त हमारे समग्र देश की अभिव्यक्ति होती है, जो नाम एक ही शब्द में हमारी जाति और देश की भौगोलिक स्थिति को सुस्पष्ट कर देता है, जो नाम हमारी विशिष्टतया और श्रेष्ठता का परिचायक राष्ट्रमार्यस्य चोत्तमम् का दिग्दर्शक माना गया है, उस नाम का कोई परित्याग कैसे कर सकता है?
अपने संस्कृति गौरव के प्रति उपेक्षा भाव कांग्रेसी मानसिकता के लोग ही अपना सकते हैं। क्योंकि हिंदुत्व पूर्णत: हमारी राष्ट्रीयता का वाचक शब्द है, यह सिंधुस्थान से हिंदुस्थान बनने की एक गौरव गाथा का नाम है और उस सत्य सनातन वैदिक धर्म का झण्डा उठाकर चलता है जो मानव मात्र से ही नही अपितु प्राणिमात्र से भी प्रेम करता है। इसका एक हाथ ब्रह्ममबल का प्रतीक है तो दूसरा दुष्टों को दण्ड देने के लिए क्षात्रबल से भी युक्त है। दिग्गी जैसे लोगों को इसका ब्रह्मबल (सर्वथा कायरता का प्रतीक) ही अच्छा लगता है। जबकि प्रत्येक राष्ट्रभक्त को और व्यावहारिक बुद्घि रखने वाले व्यक्ति को इसका ब्रह्मबल और क्षात्रबल दोनों ही प्यारे लगते हैं। बस ऐसे राष्ट्रभक्त ही दिग्गी जैसे लोगों के लिए घृणा के पात्र हैं।
दिग्गी महाशय को हिंदुत्व के प्रति अपनी संकीर्णता का परित्याग करना चाहिए और उन्हें 1995 में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दी गयी यह व्यवस्था भी पढ़नी चाहिए-हिंदुत्व शब्द का कोई संकीर्ण अर्थ समझना आवश्यक नही है। उसे केवल हिंदू धार्मिक अनुष्ठानों या रीतियों तथा व्यवहारों तक सीमित करके संस्कृति से असम्बद्घ रूप से देखना आवश्यक नही है। वह तो भारतीय जन की जीवन शैली है और संस्कृति से सम्बद्घ है। जब तक हिंदुत्व शब्द का किसी भाषा में इससे विपरीत अर्थ में प्रयोग न किया गया हो तब तक हिंदुत्व का प्रमुख अर्थ है भारतीय जन की जीवन शैली न कि किसी हिंदूमत के लेागों के रीति रिवाज मात्र।
सचमुच वास्तविक हिंदुत्व को समझने के लिए दिग्गी को अभी और दिमाग लगाने की आवश्यकता है। यह एक सनातन ध्वज है जिसके ध्वजवाहक सावरकर जैसे लोग हैं, कही अनंत से आते हिंदुत्व के तीव्र प्रकाश ने सावरकर को आलोकित किया था। इसलिए दिग्गी सावरकर को ही उस प्रकाश का स्रोत ना समझें अपितु स्वयं को संकीर्णताओं से निकालकर अनंत की खोज करें। लगता है वह स्वयं अभी भ्रमित हैं और भ्रमवश देश को भी भ्रमित कर रहे हैं।

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राकेश कुमार आर्य
उगता भारत’ साप्ताहिक / दैनिक समाचारपत्र के संपादक; बी.ए. ,एलएल.बी. तक की शिक्षा, पेशे से अधिवक्ता। राकेश आर्य जी कई वर्षों से देश के विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं। अब तक चालीस से अधिक पुस्तकों का लेखन कर चुके हैं। वर्तमान में ' 'राष्ट्रीय प्रेस महासंघ ' के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं । उत्कृष्ट लेखन के लिए राजस्थान के राज्यपाल श्री कल्याण सिंह जी सहित कई संस्थाओं द्वारा सम्मानित किए जा चुके हैं । सामाजिक रूप से सक्रिय राकेश जी अखिल भारत हिन्दू महासभा के वरिष्ठ राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और अखिल भारतीय मानवाधिकार निगरानी समिति के राष्ट्रीय सलाहकार भी हैं। ग्रेटर नोएडा , जनपद गौतमबुध नगर दादरी, उ.प्र. के निवासी हैं।

9 COMMENTS

  1. दिग्गी जी क्या कहते हैं और देश गिग्गी को कितना भाव देता है. ये अब सभी को ज्ञात हो चुका है, लेकिन हिन्दू होने का मतलब इस देश के ९० फीसदी हिन्दुओं के लिए और सभी हिन्दू स्त्रियों के लिए क्या है? इसे वे सभी जानती हैं और हर दिन भोगती हैं! जीवन सुप्रीम कोर्ट, सावरकर, सोनिया, दिग्गी, भाजपा, संघ, कांग्रेस, सपा, बसपा या अन्य किसी की नीति या कुनीति से नहीं, बल्कि जमीनी सच्चाई से चलता है! और जमीनी सच्चाई ये है कि बेशक लेखक की निम्न बात सच है कि-

    “प्रिंसीपल ऑफ हिंदू लॉ के लेखक डी.एफ. मुल्ला लिखते हैं-’हिंदू शब्द किसी रिलीजन या सम्प्रदाय के लोगों को व्यक्त नही करता है। यह अनीश्वरवादी, गैर परंपरावादी एवं ब्राह्मïणवाद के विरोधियों के लिए भी प्रयुक्त किया गया है। लेकिन फिर भी ये लोग हिंदू विधि विधान के अंतर्गत रहते हुए आये हैं।”

    मगर ये केवल तकनीकी सच्चाई है, व्यावहारिक सच्चाई देखनी हो तो मध्य प्रदेश, छतीसगढ़, गुजरात, राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड, उत्तराखंड, उडीसा, आदि प्रदेशों के किसी सवर्ण बहुल गाँव में दलितों की हालत को देखकर किसी त्यौहार के दिन किसी मंदिर के सामने खड़े रहकर देखी जा सकती है! सच पता चल जायेगा कि हिंदुत्व और हिन्दू धर्म कितना महान है!

    • मीना जी, निश्चित रूप से हिन्दू समाज मे कुछ सामाजिक बुराईया हैं,जिन्हे दूर करने के लिए समय समय पर लोगो ने महान पुरुषार्थ किया हैं। कमिया फिर भी बनी हुई हैं ,मैं कहता हूँ कि बनी भी रहेंगी। हम रोज नहाते हैं ,फिर भी शरीर अगले दिन अपने आप नहाने के लिए हमसे कहने लगता हैं। हिन्दू समाज में यदि अभी भी कमिया हैं तो गलती मेरी ओर आपकी हैं। आप अपने पूर्वाग्रहों में जी रहे होंगे, मेँ नहीं जीता। दलित शोषित जैसे शब्द आप जैसे लोगो ने ही घड़े हैं । सबको मानव के रूप मे देखो और वैसा ही व्हवहार करो।जो लोग किनी खास लोगो को मंदिरो मे जाने से रोकते है, वो मानवता के प्रति अपराध करते हैं। ऐसे अन्याए को मिटाने के लिए कार्य योजना बनाओ ,हम आपके साथ हैं । आलोचना के लिए आलोचना जब की जाती हैं तो बुद्धि नकारात्मक्ता की और जाने लगती हैं फिर भी मे आपकी पीड़ा को समझ सकता हूँ। निश्चित रूप से बुराई ऐसे स्तर की अभी भी हैं जिसे ग्रहणास्पद ही कहा जा सकता हैं।लेकिन इसका अर्थ यह नहीं की दूरियाँ पेड़ा की जाए बल्कि दूरियाँ मिटानी हैं।

  2. विदुषकों का भी काम होता ही है, नाटक में।
    विदुषक में वैदुष्य? ढूंढने से भी शायद मिले।
    जिस दिन उनकी “विदुषकी” कांग्रेस को भारी पडेगी, उस दिन उस मन्नु सिंघवी की भांति गति होगी।
    लेखक को धन्यवाद।

    • श्रद्धेय डॉक्टर साहब, सादर नमस्कार।निश्चित रूप से दिग्गी जैसे लोग विदूषक से भी आगे भारतीय राजनीति के भी प्रदूषक हैं ।आपकी सुंदर टिप्पणी के लिए आपका धन्यवाद । सादर

  3. दिग्विजय सिह कोइ मूर्ख नहि है वो तो जन बूज्ह कर इस तरह क व्यव्हार कर रहे है तकि वे चर्चित होते रहे.कान्ग्रेस को
    भी इससे कोई फर्क नही पदता इस्लिये वह इसक खन्दन नही करती

    बिपिन कुमार सिन्ह

    • बिपिन जी ।आपके कथन मे सार हैं ।धन्यवाद

  4. दिग्गी जैसा कोई मुर्ख व पागल नेता नहीं.मीडिया में चर्चित रहने के लिए वह काफी बड़ी बड़ी मुर्खता ,पूर्ण व बेतुके बयान देते रहते हैं,और इसलिए बुद्धिजीवी वर्ग ने उनको व उनकी बातों पर त्वजह देना बंद कर दिया है.वे आत्मप्रेरित पगलाए हुए नेता हैं,जिन्हें पार्टी ने खुले मरखने सांड की तरह छोड़ दिया है,जो कभी कही कभी कही सींग लडाता रहता है. पार्टी भी उस मालिक की तरह है,जो ज्यादा शोर सुन ने पर कभी उन्हें बचाने पहुँच जाती है,ज्यादा उत्पात होता देख उस सांड पर मालिकाना हक छोड़ खुद को अलग कर लेती है.बहुत ही हास्यास्पद लगती है वह हालत, जनता की भी मज़बूरी है की इस देश में रहने के लिए उसे इन जैसे लोगों तथाकथित नेताओं को सहन करना पड़ता है.आखिर जाएँ तो जाएँ कहाँ?

    • गुप्ता जी, दिग्विजय सिंह के बारे मे जो आपने कहा हैं मेँ उससे सहमत हूँ लेकिन महोदय पगलाये हुए मरखने सांड को भी नियंत्रित कर हतोत्साहित करने का प्रयास किया जाता है यथा वह भारी विनाश मचा सकता हैं इसलिए मेँ किसी प्रकार की आपराधिक तटस्थता को अपनाने के पक्ष मेँ भी नही हूँ ।सारे देश को एक आदमी हांक कर चलाये और सब ये सोचते रहे कि पागल हो गया हैं,छोड़ो, यह भी तो उचित नही। धन्यवाद।

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