मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह धीरे-धीरे ही सही मगर हाशिये पर धकेले जा रहे हैं| तीन वर्ष पूर्व दिग्विजय सिंह ने एकदम से पाला बदलते हुए जिस सेक्युलर राजनीति की शुरुआत की थी, उससे कांग्रेस को भले ही कोई लाभ न हुआ हो मगर दिग्विजय सिंह ज़रूर राष्ट्रीय राजनीति में विवादित हस्ती बन गए थे जिसका उन्होंने भरपूर फायदा उठाया| अब दिग्विजय सिंह की वही सेक्युलर राजनीति कांग्रेस के लिए गलफाँस बन गई है| उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव के मद्देनज़र यू.पी.ए सरकार ने ओ.बी.सी. कोटे के २७ प्रतिशत आरक्षण में से ४ प्रतिशत आरक्षण पिछड़े मुस्लिमों के लिए स्वीकृत किया था जिस पर चुनाव आयोग ने चुनाव संपन्न होने तक रोक लगा दी थी| अल्पसंख्यक वोट पाने की जद्दोजहद में लगी कांग्रेस के लिए चुनाव आयोग का यह कदम निश्चित रूप से अप्रत्याशित था मगर फिर भी कांग्रेस के रणनीतिकारों को विश्वास था कि मुस्लिम चुनाव में उसका साथ देंगे| मगर तभी दिग्विजय सिंह ने पुनः बाटला हॉउस एनकाउन्टर का जिन्न बोतल से बाहर निकाल कांग्रेसी नेताओं की पेशानी पर बल ला दिए| गौरतलब है कि दिग्विजय सिंह पहले भी बाटला हॉउस एनकाउन्टर को फर्जी ठहराते रहे हैं जबकि गृह मंत्रालय से लेकर सरकार तक इसे सही ठहराती रही है| बाटला हॉउस एनकाउन्टर की वजह से ही दिग्विजय सिंह और पी.चिदंबरम में ठन चुकी थी लेकिन दोनों अपनी बात से तस से मस नहीं हुए| बडबोले दिग्विजय सिंह ने तो आजमगढ़ जाकर यह तक कह डाला कि वे राहुल गाँधी को यहाँ लेकर आयेंगे और इंसाफ दिलाकर रहेंगे| मगर न तो राहुल आजमगढ़ गए न दिग्विजय सिंह का इंसाफ ही अब तक मिल पाया| इस वायके से मीडिया में दिग्विजय सिंह की काफी छीछालेदर हुई| दिग्विजय सिंह उस वक़्त को मन-मनोसकर रह गए थे मगर ठीक चुनाव के वक़्त बाटला हॉउस एनकाउन्टर का मुद्दा उठाकर उन्होंने सरकार सहित कांग्रेस पार्टी को ही चुनौती दे डाली| लिहाज़ा पार्टी ने दिग्विजय सिंह को लखनऊ स्थित पार्टी मुख्यालय में सीमित कर दिया| जिस प्रदेश में दिग्विजय सिंह राहुल गाँधी की परछाई बन उनके साथ कदमताल करते थे, अब उनकी जगह वरिष्ठ कांग्रेसी जनार्दन द्विवेदी ने ले ली है| दिग्विजय सिंह को किनारे कर पार्टी ने एक तरह से उन्हें चेतावनी भी दे डाली है|
इससे पहले दिग्विजय सिंह की कारगुजारियों एवं बयानों पर कांग्रेस हमेशा पर्दा डालती रही है| उनके हर विवादास्पद बयान को उनकी निजी राय बताकर अपना पलड़ा झाड़ने वाली पार्टी इस बार उत्तरप्रदेश में कोई गलती नहीं करना चाहती| दरअसल हाल ही में जिस दिन दिग्विजय सिंह ने बाटला हॉउस एनकाउन्टर पर अपना मुंह खोला, उसके कुछ दिन बाद ही आजमगढ़ में राहुल गाँधी के पुतले जला दिए गए| दिग्विजय सिंह की ओर से अब तक निश्चिन्त रही पार्टी अचानक जाग गई| पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को अहसास हो गया कि यदि दिग्विजय सिंह को यहीं नहीं रोका गया तो वे राहुल गाँधी की छवि को तो मटियामेट करेंगे ही, कांग्रेस को मिलने वाले मुस्लिम वोट भी उससे छिटक जायेंगे| लिहाजा पार्टी ने दिग्विजय सिंह के ही पर क़तर दिए| पार्टी ने उन्हें नई जिम्मेदारी तो दी मगर राजनीति की थोड़ी बहुत समझ रखने वाला भी यह बता सकता है कि उनको जिम्मेदारी मिली है या उनके बुरे दिन शुरू हो चुके हैं| दिग्विजय सिंह जैसे कद्दावर नेता को यूँ घर बिठा देना गहरे निहितार्थ रखता है| तीन सालों तक मीडिया की सुर्ख़ियों की शोभा बने दिग्विजय सिंह ने अपने बयानों द्वारा पार्टी को हर मुसीबत से निकाला किन्तु संघ परिवार पर हमले और हिन्दू आतंकवाद का हौवा पैदा कर उन्होंने बहुसंख्यक समाज की नाराजगी भी मोल ली| कांग्रेस को हालांकि इससे भी फर्क नहीं पड़ा मगर जब बात अल्पसंख्यक वोटों की आई तो दिग्विजय सिंह की एक गलती उनको भारी पड़ गई| राहुल की प्रतिष्ठा से जुड़े उत्तरप्रदेश चुनाव में दिग्विजय सिंह यक़ीनन कांग्रेस का पतीला निकाल देते|
अब परिदृश्य बदला हुआ है| गुरु-शिष्य की जोड़ी टूट चुकी है| राहुल को भी समझ में आ गया होगा कि दिग्विजय सिंह उन्हें और पार्टी को अबतक कितना नुकसान पहुंचा चुके हैं? वैसे लोग सोच रहे होंगे कि कांग्रेस के अधिकृत प्रवक्ता से भी अधिक बोलने वाले दिग्विजय सिंह अब क्या करेंगे? तो उसका उत्तर है कि उत्तरप्रदेश चुनाव के बाद दिग्विजय सिंह वापस अपने गृहप्रदेश की ओर रुख करेंगे| पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने भी उन्हें माह के १० दिन मध्यप्रदेश में रहने का आदेश दिया है| यानी हर मोर्चे पर केंद्र सरकार की किरकिरी करवा चुके दिग्विजय सिंह अब प्रदेश में लगभग मृतप्रायः कांग्रेस में जान फूंकेंगे| आप और हम अंदेशा लगा सकते हैं कि अब मध्यप्रदेश कांग्रेस का क्या होगा? फिलहाल तो दिग्विजय सिंह अपनी नई जिम्मेदारी को बखूबी निभा रहे हैं और लखनऊ स्थित कांग्रेस कार्यालय में हर आने-जाने वाले का स्वागत-सत्कार कर रहे हैं|
भाई किसी गलतफहमी में मत रहना. दिग्गी अभी भी अपने ‘पिग्गी लश्कर’ के साथ खान्ग्रेस के ‘डर्टी ट्रिक्स’ विभाग के प्रमुख हैं. जिसे खान्ग्रेस समय -समय पर अपने हक़ में इस्तेमाल करती रही है और करती रहेगी.
उन्होंने अपेक्षित रूप से कम जागरुक दलितों का हिस्सा ‘ज्यादा जागरुक’ और ‘संगठित’ मुस्लिमो को दे दिया है. और यह सोची समझी रणनीति है. बतला हॉउस के बारे में खान्ग्रेस की सोच भी दिग्गी की सोच जैसी ही है लेकिन वह अधिकृत रूप से कुछ नहीं कहना चाहती.
देश की जनता जितना जल्दी इन्हें समाजग जाए उतना बेहतर है.
अच्छी खबर है.
कांग्रेस की मुस्लिम परस्ती और तुष्टिकरण की नीति देश का एक बार विभाजन करा चुकी है और कांग्रेस का ओ बी सी कोटे से ४.५% आरक्षण अल्पसंख्यकों(मुस्लिमों)को देने का अदूरदर्शी देश्घतक कदम देश के दुसरे विभाजन की शुरुआत करेगा. चुनाव आयोग द्वारा चुनावी राज्यों में इसके अमल पर रोक लगाने से ये प्रमाणित हो जाता है की ये कदम चुनाव की द्रष्टि से भ्रष्टाचरण की श्रेणी में आता है. और इसका उद्देश्य केवल मुस्लिम मतदाताओं को लोलीपोप दिखाकर उनके मत बटोरना ही था. वर्ना मुस्लिमों की असली समस्या उन्हें अच्छी सेकुलर शिक्षा न मिलना है. जो मुस्लिम्युवक अच्छी सेकुलर शिक्षा प्राप्त कर लेते हैं वो किसी न किसी काम में लग जाते हैं और उनमे से आई ऐ एस, आई पी एस, आई ऍफ़ एस भी बन रहे हैं. दिग्गी राजा को मुंह की बवासीर है इसलिए उसकी बातों पर ध्यान देना बेकार है. मध्य प्रदेश में कांग्रेस का बंटाधार करने के बाद अब उत्तर प्रदेश भी उनके हाथों बंटा धार कराने को तैयार है.मुस्लिमों को आरक्षण के खतरे को हिन्दू समाज समझ चूका है और ओ बी सी के प्रभावित होने वाले वर्ग उन सबका सूपड़ा साफ़ कर देंगे जो इस मुस्लिम आरक्षण के समर्थक हैं. कांग्रेस अनुच्छेद ३४१ के तहत दलित की परिभाषा में ईसाई व मुस्लमान बन चुके दलितों को भी शामिल करने की तयारी कर रही है और ओ बी सी के बाद अगला नंबर दलितों के कोटे पर डाका डालने का है. यदि दलित समाज इस और सजग नहीं रही और मुस्लिम वोट बेंक की खातिर लपक रहे तथाकथित सेकुलर दलों के झांसे में आ गए तो हमेशा के लिए ठगे जायेंगे और पछताने का मौका भी नहीं मिल सकेगा. इसलिए सावधान रहें और मुस्लिम वोटों की खातिर ओ बी सी व दलित कोटे पर डाका डालने को तैयार दलों को सबक सिखाएं.