परिचर्चा : राष्ट्रमंडल खेल और सेक्स

यह पतन की पराकाष्ठा है। पश्चिमी सभ्यता भारतीय जीवन-मूल्यों को लीलने में जुटा हुआ है। भारतीय खान-पान, वेश-भूषा, भाषा, रहन-सहन, जीवन-दर्शन इन सब पर पाश्चात्य प्रवृति हावी होती जा रही है। हम नकलची होते जा रहे हैं। हम अपना वैशिष्टय भूलते जा रहे हैं। हम स्व-विस्मृति के कगार पर हैं। अच्छी प्रवृतियों की नकल करने में कोई बुराई नहीं है, लेकिन हम गलत प्रवृतियों का भी अंधानुकरण करने से बाज नहीं आ रहे हैं। यह राष्ट्र के लिए घातक है। मन को व्यथित करनेवाला समाचार यह है कि अब यूपीए सरकार और दिल्ली सरकार ने राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान विदेशियों को सेक्स परोसने के लिए दिल्ली में 37900 सेक्स वर्कर पंजीकृत किए हैं। अनुमान यह है कि खेलों के दौरान उक्रेन, जियोर्जिया, कजाकिस्तान, उजबेकिस्तान, किर्गिजिस्तान और अन्य जगहों से लगभग 30,000 विदेशी सेक्स वर्कर भी भारत आकर अपना धंधा करेंगे। सवाल यह है कि विकास और प्रगतिशीलता की आड़ में आखिर हम कहां तक गिरेंगे?

गौरतलब है कि दिल्ली में इस समय 50 से 60 हजार लोग एचआईवी पॉजिटिव है। इनमें से करीब 1500 लोग एड्स पीड़ित हैं। दिल्ली भारत का ऐसा चौथा राज्य है जहां एड्स से पीड़ित रोगियों की संख्या सर्वाधिक है। सरकार ने चोरी-छिपे विदेशी खिलाड़ियों और खेल प्रेमियों के लिए जिन सेक्स वर्कर्स को तैयार किया है उनके स्वास्थ्य परीक्षण और एचआईवी संक्रमण की जांच के लिए कोई तंत्र ही नहीं तैयार किया है। इससे खतरा इस बात का है कि दिल्ली में एड्स रोगियों की संख्या 1500 से बढ़कर कई गुना अधिक हो सकती है। इसकी जिम्मेदार पूरी तरह से केन्द्र सरकार और दिल्ली सरकार होगी। सरकार ने सिर्फ 37900 सेक्स वर्कर्स की ही पहचान की है। इनकी वास्तविक संख्या इससे तीन गुना अधिक है।

ज्ञात हो कि जहां भी वैश्विक स्तर के खेल होते हैं वहां की सरकारें यौन बीमारियों के बारे में पहले से ही सचेत रहती हैं और इसके लिए बाकायदा एक तंत्र बनाती हैं जो उस देश के सैक्स वर्कर्स पर निरंतर निगरानी रखता है। इसी कारण खेलों के आयोजन वाले देश में यौन संक्रमण संबंधी बीमारियां नहीं होती हैं। भारत में इस प्रकार के आयोजन से पहले ऐसा कोई तंत्र विकसित नहीं किया गया है। भारत में एड्स संबंधित बीमारियां जोरों से फैल रही हैं। दिल्ली में एड्स कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन ने 1500 एड्स पीड़ितों को पहले से ही चिन्हित कर रखा है। अनुमान है कि खेलों के दौरान एड्स संक्रमण अवश्य होगा। इससे दिल्ली के स्वस्थ्य परिवार भी एड्स के चपेट में आ जायेंगे। दिल्ली में जी.बी. रोड जैसा पुराना मशहूर रेड लाइट एरिया सबको पता है। यहां की सैक्स वर्कर्स का नियमित स्वास्थ्य परीक्षण नहीं किया जाता है। कागजों पर ही खानापूर्ति कर ली जाती है। खेलों के दौरान यौन संक्रमण फैलने का पूरा खतरा मौजूद है।

सीता, सावित्री के देश भारत में जहां नारी की पूजा की जाती है, वहां सरकार की ओर से नारी को भोग की वस्तु बनाकर प्रस्तुत करना क्या उचित है? आप क्या सोचते हैं?

144 COMMENTS

  1. इस पूरे आलेख में सर्वप्रथम में राजेश जी कों बधाई देना चाहूँगा. जिस

    तरह उन्होने देशद्रोहियों कों (हाँ देशद्रोहियों कों सही समझा ) सही

    आयना अपने तर्कों के माध्यम से दिखाया हैं वह उसके लिए निसंदेह

    बधाई के पात्र हैं | उनमें से एक दो का नाम में बिना किसी शंका के

    लेना चाहूँगा क्योंकि भारत की उदार जनता कों ऐसे लोगो का सच

    जानना चाहिए | जनता के सामने आना चाहिए उन लोगो का सच जो

    अपना चेहरा बदलकर व थोड़ा सा विद्वतापूर्ण लेख कर भारत के लोगो कों

    गुमराह करना चाहते हैं ………उनमें हैं दीपा शर्मा जो कि एक छदम नाम हैं वो एक स्त्री का नाम लिखकर भारत की उच्च वर्ग की नई पीडी की सहानभूति प्राप्त करना चाहता हैं और ऊपर से ब्राहमण का गोत्र लगा रखा हैं क्योंकि जब दलित और स्त्री विमर्श की बात आये तो में ये सिद्ध कर सकूँ की हम वही ब्राहमण हैं जो हमेशा से स्त्री और दलितों के उत्थान की बात उठाते आये हैं और फिर ये लोग संघ के उन पदाधिकारिओं का गोत्र बताएँगे की ये वही ब्राहमण हैं जो हमेशा से स्त्री और दलित विरोधी बातें कहते आये हैं. ये भारत की स्त्रिओं के शोषण की बात इसलिए करना चाहते हैं क्योंकि भारत ,परिवार पर टिका हुआ हैं और परिवार स्त्री पर ,और जब स्त्री कों लगेगा कि हमारे साथ ऐसा हो रहा हैं तो थोड़ा तो उसकी सोच में फर्क पड़ेगा. और भारत बिखराव कि और बढेगा | और भी विभिन्न तरीके से ये लोग भारत कों तोगाने के लिए लगे हुए हैं .और इस काम के लिए बकायदा इन लोगो कों चर्च से पैसा मिलता हैं | और हर जगह संघ कों गरियाते हैं क्योंकि संघ उनके काम में सबसे बड़ी बाधा हैं | संघ में किसी का कोई जाति नहीं हैं सभी इस भारत माता कि संतान हैं ….वो चाहे वाल्मीकि ,वैश्य ,क्षत्रिय ,ब्राहमण हो | अतः ये लोग सभी जातियों कों अलग अलग करने के काम में लगे हुए हैं जिससे कि भारत विरोधी कांग्रेस कि सरकार कों समर्थन मिलता रहे और सारी विदेशी कंपनियां नहीं चाहती कि भारत में बी जे पी कि सरकार नहीं आये | दूसरा नाम हैं डॉ पुरुषोत्तम मीना निरंकुश का वो एक ऐसे मीना हैं जो अपने भाईओं भील मीणाओं का हक मरकर इतने ऊँचे तक पहुंचे और अब चर्च कि गोद में बैठ गए हैं और वही उन्हें आदेशित कर रहा हैं ये वास्तव में अब ईसाई हो चुके हैं और अन्य दलित बंधुओ का समर्थन पाने के लिए अपना नाम नहीं बदला हैं नविन चावला कि तरह और अब इन्हें काम दिया गया हैं कि भारत के युवाओ के दिमाग में ये ढूस ढूस कर ये भर दो कि तुम्हारे पूर्वज सब दुष्ट थे हमारे देश में जो कुछ भी हैं वो सब विदेशी लोगो का दिया हुआ है ………और इस तथ्य के पीछे प्रेरणा ये हैं कि हिटलर के प्रचार मंत्री गोयबल्स ने कहा था कि किसी भी झूंठ कों कई वर्षों तक बोला जाये तो वह सच हो जाता हैं आगामी कुछ वर्षों में. ६० वर्षों से यही चल रहा हैं लेकिन में इन सभी मूर्खों कों बताना चाहूँगा कि जब ईसाईयों ने अपने धर्म कों सर्वश्रेष्ट सिद्ध करने के लिए विश्वधर्मं सम्मलेन का आयोजन किया था तब स्वामी विवेकानन्द ने भारत कि विद्वता के माध्यम से उनके सारे किये धरे पर पानी फेर दिया था व आज इसी कारण पूरे संसार में इस्कोन टेम्पल हैं व योग सारे संसार में लोक प्रिय हैं. अतः राजेश जी आप अपनी बात ऐसे ही विद्वता से रखते रहे वो दिन दूर नहीं जब भारत में मोदी राज्य आएगा और ऐसे सभी राष्ट्र द्रोहियों कों सबक सिखाया जायेगा

    • मनमोहन क्रिष्ण महोदय,
      आपकी टिप्पणि आज ही देखी. इस सार्गर्भित टिपणि के लिये अभार.

  2. कितनी शर्मनाक बात है की इस देस खेल बहाने इन कलि करतूत करने वालो को सेक्स वर्कर खेल के दुरन बुलाने की जरुरत आ पड़ी सिर्फ पैसो के लिए ये क्या-क्या करते जा रहे है ,इस्वर इनकी बुद्धि को शुद्ध करे तथा मेरे हिसाब से इन्हें देश से निकाल देना चाहिए जो यहाँ पर गंदगी फेलाते है

  3. आज महिला शाश्क्तिकरण अभियान का यह भी एक भाग है इसमें सोचने जैसी क्या बात है
    वो गणमान्य टी वी चेनल क्या ये शरेआम नहीं दिखाते

  4. अनुपम दीक्षित जी ! आपको भारत के अतीत से ग्लानि है शायद ! मुझे भी है …पर रुकिए….. पहले ज़रा अतीत को चिन्हित कर लिया जाय. किस काल खंड वाला अतीत ? मुझे अंतिम हिन्दू सम्राट के पश्चात का अतीत ग्लानि देता है उससे पहले वाले का अतीत नहीं….वह तो गौरव शाली रहा है …उसी के प्रताप से तो आज तक हम अपने टूटे -फूटे अस्तित्व को बचा पाने में सफल रहे हैं. हमें उसी अतीत को पुनर्जीवित करने के लिए प्रयास करना है. मध्य युग में आयी बुराइयाँ हमें शर्मिन्दा करती हैं ..पर हम अभी भी उसी रास्ते पर चल रहे हैं. उस रास्ते को क्यों नहीं पहचानना चाहते हैं लोग ? जातिगत भेदभाव की बात है तो बता दूं की इस देश पर क्षत्रियों एवं क्षत्रियेतर जातियों ने ही सदा राज्य किया है. ब्राह्मण तो शायद ही कभी राजा रहा हो . मैं डॉक्टर कपूर जी की बात से पूरी तरह सहमत हूँ कि अस्पृश्यता भारतीय आर्ष परम्परा नहीं रही है. दैनिक जीवन में अशौच के कारण प्रति दिन हर व्यक्ति कुछ देर के लिए अस्पृश्य होता है. दुर्भाग्य से यह जीवन शैली रूढ़ हो गयी और भारतीय समाज को इसका भारी खामियाजा भुगतना पडा. इस स्थिति में क्रमशः सुधार हुआ है …और आगे भी होता रहेगा. किन्तु इस बात को लेकर हीन ग्रंथि पैदा करने की आवश्यकता नहीं है. परिवर्तन और परिमार्जन प्रकृति का नियम है इसे पहचान कर हमें अपनी भूमिका तय कर लेनी चाहिए.

  5. सर.
    आपको बधाई हो की अपने ऐसा बिचार दिया जिससे नव युग में एक बार लोगओ को सोचना पड़ेगा. लेकिन मेरा मन्ना है की हम महिलाओ को पूरी आजादी देकर भी अभी तक अपनी मानसिकता को नहीं बदल पाए है. और जब तक हम अपनी मानसिकता को नहीं बद्लेगे तबतक हमें दुसरो के बीसी में नहीं बोलना चाहिए.पहले हम बदले और अपनी मानसिकता को बदले.
    अभिमन्यु सिंह बक्सर

  6. थैंक्स फॉर थिस स्तातेमेंट तो पुब्लिश इन प्रवक्ता .कॉम

  7. मुझे तो लगता है .नारियों को आगे बढ़ने के लिए खुद hi कदम बढ़ाना होगा.

  8. मेरे देखे तो भाई साहब…..नारी का कहीं सम्मान होता ही नहीं……बहुत कम ही मैं देखता हूँ….कि नारी का सचमुच और स्वभावतः सम्मान होता हो…हमारे रोजमर्रा के सारे व्यवहार और काम-काज में नारी की उपयोगिता को आज भी दोयम समझा जाता है….और गालियाँ तो जैसे करेला ऊपर से नीम चढ़ा वाली मिसाल हैं…हर तरफ पुरुष की हेंकड़ी….और ताकत का रूतबा वातावरण में शर्मनाक ढंग से तैरता रहता है….और तरह-तरह से नारी को बुरी तरह से असम्मानित करता रहता है….बेशक कुछेक संवेदनशील लोगों को यह गवारा ना लगे….मगर कहीं भी….कुछ भी बदलता हुआ सा नहीं लगता….मैं अपने पूरे वक्त यह सब देखता रहता और अचंभित होता रहता हूँ…..कितने ही नारी हिमायतियों को देखता हूँ….पीठ पीछे नारी के अंगों और और उनसे मिलने वाले मज़े का सरेआम वर्णन करते हुए….किसी महिला-विशेष का वर्णन किसी ख़ास तरीके से करते हुए….या ऐसी ही कई बाते और….आदमी ऊँचे दर्जे का हो या….नीचे दर्जे का….अपने मित्रों के साथ महिला की मौजूदगी या गैरमौजूदगी में….शालीनता की सारी हदें पार कर जाते हैं….किसी को कोई हिचक महसूस नहीं होती….शर्मींदगी तो बहुत दूर की बात है….बाकी घर और बाहर हम खुद भी कैसे और किस हद तक नारी का निम्नतम सम्मान रख पाते हैं….यह ज़रा खुद में कभी झाँक कर देखें….और हाँ ईमानदारी से देखें….मैं सच बताता हूँ कि हममें से शायद ही कोई पूरे का पूरा बेदाग़ निकल पायें….दोस्तों नारी और पुरुष विषय नहीं है…..विषय तो यह कि किसी आदमी का सम्मान हम कब करना सीख पायेंगे…., क्यूंकि सच तो यह है कि अभी जो सम्मान वगैरह हम जानते हैं….वो सम्मान ताकत का….पैसे का या किसी और चीज़ का सम्मान है…निर्लिप्त और निजता का सम्मान नहीं….आदमी होने भर का सम्मान नहीं…..इसीलिए हर वह,जो कमजोर है….निरीह है….वो दुत्कारा जाता है….या फिर सम्मान के काबिल ही नहीं होता…. नारी भी एक ऐसी ही दुर्भाग्यशाली जाति है….जो जहां जिस किसी भी रूप में है…..पुरुष की सहगामिनी होने के बावजूद भी अपमानित है….और सदा-सर्वदा भोग्या होने से ज्यादा अपमानजनक और भला क्या है….और क्या विस्तार दूं मैं इस बात को…..सब तो समझदार लोग ही हैं….कम-से-कम नेट पर …..!!

  9. कितनी शर्मनाक बात है की इस देस खेल बहाने इन कलि करतूत करने वालो को सेक्स वर्कर खेल के दुरन बुलाने की जरुरत आ पड़ी सिर्फ पैसो के लिए ये क्या-क्या करते जा रहे है ,इस्वर इनकी बुद्धि को सुध्ह करे

  10. अनुपम जी आपके सकारात्मक उत्तर से संवाद की गुंजाईश निकलती नज़र आती है और यह लगता है की आप पूर्वाग्रहों से हट कर विचार करने को तत्पर हैं, स्वागत है.
    – आपको लगता है की मैंने तथ्यों को जाना नहीं है. अगर ऐसा है तो में जानना चाहूँगा की वे क्या हैं. पर आपने तथ्यों को जान लिया है क्या ? यदि नहीं तो क्या आप उन्हें जानना चाहेंगे ?

    # तथ्य यह है की जिन उपायों से हमारे देश और समाज को समाप्त करने के गुप्त प्रयास किये गए और किये जा रहे हैं, उन्हें जाने-समझे बिना हम हवा में तलवार घुमाने जैसे निरर्थक प्रयास करते रहेंगे और या फिर अपने प्रयासों से स्वयं अपने आप को आहत करते रहेंगे.
    – हमारे सशक्त,सबल समाज को तोड़ने के जो शक्तिशाली और प्रभावी प्रयास किये गए उनकी एक बानागे देखिये—-
    कट्टरपंथी ईसाई ( स्वयं उसके अनुसार वह एक कट्टर ईसाई था ) इतिहासकार मिल भारत के विस्तृत इतिहास की भूमिका में वह लिखता है की —-
    ” ये वे लोग हैं जो संसार में सभ्य समझे जाते हैं. ये वे लोग हैं जो हम लोगों को असभ्य मानते हैं. हमें इनका इतिहास इस प्रकार लिखना है जिससे हम इन पर राज कर सकें ”
    – मिल के कथन से तीन महत्वपूर्ण बातें सामने आती हैं —-
    १. अंग्रेजों के भारत में आने तक हम भारतीयों की पहचान संसार में एक सभ्य देश व समाज की थी. अन्य अनेक ऐतिहासिक तथ्यों से भी इसके प्रमाण मिलते हैं की तब तक भारत संसार में में सबसे समृद्ध, सभ्य व विकसित देश था.
    २. तब अंग्रेजों को हम भारतीय असभ्य मानते थे. अनेक ऐतिहासिक प्रमाणों से पता चलता है कि तब तक इंग्लैण्ड सहित यूरोप के देश असभ्य, गंदे रहनेवाले, लुटेरे, जंगली और अत्यंत निर्धन थे. भारत की अपरिमित लूट के बाद ही ये देश अमीर बने और सभ्य कहलाने लगे.
    ३. तीसरे बात मिल के कथन से यह पता चलती है कि उन्होंने भारत के इतिहास को इमानदारी से और सही नहीं लिखा. केवल वही झूट सच का मिश्रण लिखा जो भारत में अंग्रेज़ी शासन की जड़ें मजबूत करने में सहायक था.
    # अगली महत्वपूरण जानकारी ये है कि सन १८०० तक भारत में जातिवाद के नाम पर छुआ-छूत, घृणा, अस्पृश्यता थी ही नहीं. आप क्या, कोई भी इस बात पर आसानी से विश्वास नहीं करेगा. पर बात पूरी तरह प्रमाणिक है. सन १८०० के बाद अंग्रेजों द्वारा भारत की शिक्षा को नष्ट करने के लिए जो सर्वेक्षण शिक्षा की स्थिती पर हुए, उन पर आधारित एक सुप्रसिद्ध पुस्तक ” दी ब्यूटीफुल ट्री ” श्री धर्मपाल जी ( गांधीवादी विचारक ) द्वारा लिखी गयी है.
    – इस पुस्तक में वे सर्वेक्षण रपटें हैं जो भारत की विश्व की सर्वोत्तम और अविश्वसनीय शिक्षा के स्तर व व्यवस्था को आंशिक रूप से बतलाती है. वर्तमान सन्दर्भ में जो कास बात उन सर्वेक्षणों से सामने आई है वह यह है कि ——-
    ### तब भारत के विद्यालयों में द्विज ( ब्राहमण, क्षत्रीय आदि ) जातियों के छात्र २०% के आसपास तथा अन्य क्षुद्र जातियों के छात्र ७०-८०% इकठे पढ़ते थे. इनमें मुसलमान छात्र भी बड़ी संख्या में थे. शिक्षकों में भी द्विज जाती के लगभग २०% तथा बड़ी संख्या में डोम, नाई, कुम्हार जाती के शिक्षक थे.
    प्रमाणित जानकारी उपलब्ध है कि भारत में तब तक जातियां तो थीं पर जातिवाद या छुआ-छूत व्यवहार में कहीं नहीं थी. जिस मनु स्मृती और ब्राहमण वाद की नाम पर हिन्दू समाज को पिछले १८०-२०० साल से पानी पी-पी कर कोसा, प्रताड़ित, अपमानित किया जा रहा है ; वैसा तो इस समाज में तब था ही नहीं.
    ( मैं और मेरे जैसे लोग अगर हिन्दू समाज को इस अतीत की जानकारी देकर जातिवाद के दंश से मुक्त करने का प्रयास करें तो इसमें गलत या बुरा क्या है ?)

    # मूल्यवान प्रश्न है कि फिर ये अस्पृश्यता का विश आया कहाँ से ? अनेकों प्रमाण है कि ये घृणा का विश अँगरेज़ ओं व यूरोप के धर्मांध ईसाईयों द्वारा इतिहास को विकृत करके फैलाया गया.
    ** प्रिय मित्र आप और आप जैसे इमानदारी से जातिवाद के नाम पर अस्पृश्यता के अमानवीय विश को फैलाने वाले दुर्जनों के विरुद्ध काम करना चाहते हैं , तो इसके लिए हिन्दू समाज को गरियाने,अपमानित करने, हिन्दू धर्म ग्रंथों को लांछित करने, मनु स्मृती ( जिसे कभी भी किसे भी समाज या राजा ने कभी लागू नहीं किया और न इसका कभी आग्रह किया ) के नाम पर हरिजन विरोधी बतलाने के बदनीयती भरे प्रयास तो नहीं होने चाहियें. या फिर इन शरारती प्रयासों का विरोध इमानदार लोगों को करना चाहिए.
    ** अंतिम बात यह है कि आप जातिवाद के समर्थकों के विरुद्ध काम करें तो इसमें मेरे जैसे तन,मन धन से सदा सहायक हैं.
    -पर अगर अस्पृश्यता के इस दानव का समाधान इतिहास के तथ्यों के आधार पर, हिन्दू समाज का अतीत कालीन इतिहास का गौरव जगा कर मुझ जैसे करना चाहते हैं तो इसमें किसी समझदार, इमानदार व्यक्ती या संस्था को ऐतराज़ क्यों होना चाहिए ? दोनों प्रयास मिल कर एक साथ चल सकते हैं न ? इनमें विरोध कहाँ है ? क्या ये दोनों प्रयास एक दूसरे की पूरक नहीं हैं ?

    – विरोध केवल तभी तक है जब तक हम बात को समझे नहीं हैं. या फिर विरोध तब होना निश्चित है जब हमारी नीयत में खोट है, हम कह कुछ और रहे हैं और हमारा गुप्त अजेंडा कुछ और है. विदेशी ताकतों के एजेंट यही तो कर रहे हैं, वे हमारे हित की बात करते जाते हैं और हमें भीतर ही भीतर तोड़ते जाते हैं. ऐसे देश व समाज के दुश्मनों की पहचान करना हम लोगों को सीखना ही होगा, वरना घातक परिणाम भुगतने होंगे.

    • बहुत बेहतर ढंग और तथ्यात्मक तरीके से आपने अपनी बात रखी!

      धन्यवाद् !!

  11. कपूर साहब अब आपने ठीक बात की. स्वाभिमान को गिराने का काम अंग्रेजों ने किया है और ठीक इसी तरह किया है जैसा आपने लिखा है. लेकिन कपूर साहब आलोचना और गरियाने में अंतर होता है. आलोचना सुधर की अपेक्षा के साथ की जाती और गरियाया केवल मनोबल गिराने के लिए जाता है लेकिन अपने ही बनाये fool’s paradise (हवा महल) में रह कर दोसरों को गरिया कर हम अपना स्वाभिमान बिलकुल नहीं उठा सकते. इसके लिए गाँधी, विद्यासागर, राममोहन राइ, हरविलास शारदा जैसे सुधारकों की भांति कार्य करना होगा. संघ से मेरा यही आग्रह है. आपके पास सामर्थ्य है. जनशक्ति है, प्रभाव है, संसाधन हैं इन्हें बर्बाद करने से क्या फायदा होगा. इन अमूल्य संसाधनों को मुसलमानों इसाईओं या निरर्थक मुद्दों की ओर लगाने की अपेक्षा क्या ही अच्चा हो की आप ये संसाधन हिन्दू समाज के उद्धार में लगायें. भ्रूण हत्या, दहेज़, छुआ छूत, बीमारी, गन्दगी और अशिक्षा जैसी बुराईयाँ हिन्दू अतीत का गुणगान करके नहीं काम करके ही दूर होंगी. कपूर साहब असली दुश्मन को तो आप पहचानते नहीं हमें चिन्हित करने में लगे हैं. समाज के इन रावनों को चिन्हित कर उदा दीजिये अपने तेज से हम आपको राम की तरह पूजने लगेंगे वादा रहा. लेकिन वैचारिक रूप से भारत के अतीत का गुणगान तो बचपन से ही सुन रहा हूँ, शिशु मंदिर में भी और फ़िल्मी गानों और राजनीती में भी लेकिन मलाल हैं कोई वर्त,मान को नहीं देखता. देश अब हमारा है. इसमें रहने वाले सभी वर्ग अब हमारे हैं और कुछ देश द्रोहियों की सजा पूरे समाज को नहीं दी जा सकती. देश के अतीत से meine तो यही seekha है आप loogon ने pata नहीं kaun sa अतीत padh liya है.

    • नमस्कार अनुपम जी , यदि आपको संघ की कार्य प्रणाली की जानकारी चाहिए तो पांचजन्य पत्रिका पढ़िए, आपको उसमे संघ द्वारा किये गए हिन्दू धर्म और राष्ट्र उत्थान में किये गए सभी कार्यों की जानकारी मिल जाएगी !

  12. अनुपम दीक्षित जी आप ने बहुत कुछ मेरी टिप्पणियों के जवाब में लिखा है. बिना अपशब्दों का प्रयोग किये आप अपनी बात लिखते तो लोगों को आपकी बात अधिक प्रभावी लग सकती थी. खैर आप की बातों के जवाब में मुझे नवेदन करना है की——-
    – भारत में महिलाओं के साथ होनेवाले किसी भी दुर्व्यवहार की खबर से मुझे भी बहुत कष्ट होता है और मैं चाहता हूँ कि इसे रोका जाए.
    – इतिहास और मनोविज्ञान की जितनी समझ मुझे है उसके अनुसार इसका एक समाधान यह है कि भारतीयों को याद दिलाया जाए कि बर्बर मुगलों और असभ्य यूरोपियों के भारत में आने से पहले वे स्त्रियों का कितना सम्मान करते थे. अतः पुनः वैसे ही बनाने का प्रयास करें जैसे वे पहले थे.
    – किसी समाज या व्यक्ती को आप जितना अधिक गरियाते हैं वह उतना अधिक पतित होने लगता है. उसके सद्गुणों को जितना प्रोत्साहित करें उतना उसके सुधार की आशा होती है.
    – भारत की शत्रु ताकतें इस मनोविज्ञान की बात को भली-भांती समझती -जानती हैं. अतः वे हम भारतीयों के दोषों को बढ़ा-चढा कर बतलाने व दुर्गुणों को बढाने के काम करती रहती हैं.
    – ईसाई ताकतों और अंग्रेजों ने हम भारतीयों को निर्धन व पतित, चरित्र हीन बनाने के अनेकों प्रयास किये ; इसके अनेक प्रमाण उपलब्ध हैं. आज भी वे ताकतें अपने षड्यंत्र अनेक गद्दारों की मदद से चला रही हैं.
    – सवाल यह है कि हमको उन दुश्मनों के सहायक बनना है या उनके षड्यंत्रों को समझकर उनकी काट करनी है ?

    – ### आप अपनी टिप्पणियों को पढ़ कर देखें तो आपको भी लगेगा कि आप भारत की स्त्रियों की दुर्दशा से इतने विचलित नहीं जितने भारत और भारतीयता की गौरव की बातों से हैं. जरा बतलायेंगे कि ऐसा क्यों है ? आप की नीयत क्या है ? अब हिन्दू समाज इतना नासमझ नहीं कि अपने दुश्मनों को न पहचान सके. अब हम अपने दुश्मनों की ख़ास तरह की भाषा,शैली और तकनीक को पहचानने लगे हैं.###

    – भारत में आतंकवाद फैलाने वाले जिहादी, धोखे से धर्मांतरण व हत्याएं करने वाले ईसाई संगठन, कांग्रेस द्वारा देश के हितों के सौदे, मिजोरम-मेघालय में चल रहे चर्च के देश द्रोह के अलगाव वादी प्रयास तो अनदेखे कर दिए जाते हैं. मुद्दे केवल वे ही उठाये जाते हैं जिनसे हिदू समाज शर्मिन्दा हो, अपमानित हो. इसका अर्थ अब भारत का समाज समझने लगा है.
    – स्पष्ट है कि इन विदेशी ताकतों के एजेंट ; ईसाई ताकतों की २०० साल से आजमाई तकनीक का प्रयोग अभी तक हम पर कर रहे हैं और हमारे हीनता बोध को बढाने का काम कर रहे हैं. इस प्रकार वे हमारे आत्मविश्वास को तोड़ रहे हैं और धर्मांतरण का रास्ता साफ़ कर रहे हैं.
    *** जिन लोगों को भारत- भारतीयता के गौरव की बातों से बहुत तकलीफ होती है वे कौन और कैसे लोग हैं, इसे समझना कोई मुश्किल बात नहीं है. अछा है कि ऐसे लोगों की असलियत किसी न किसी बहाने सामने आ जाए.

  13. धन्यवाद dixit ji ………
    आपकी टिपण्णी मनोबल बढाती है पर मुझे इस बात का आश्चर्य और ख़ुशी है की आपको किसी ने मुसलमान देशद्रोही , हिंदुविरोधी और अन्य छद्म …… जेसे नामो की उपाधि प्रदान नहीं की .. पर सचमुच आपने बहुत खूब सत्य कहा … शायद कुछ बंधुओं को आइना दिखे

  14. डा. मीना जी आपसे अधिक कटु, अप्रिय, असभ्य, समाज को तोड़ने वाली भाषा का प्रयोग करने वाला कोई विरला ही होगा. अतः सबसे पहले तो आप के देश व समाज तोड़क, घृणा फैलाने वाले लेखों व टिप्पणियों पर रोक लगाने की ज़रूरत है. किसी दुसतरे पर तो यह रोक लगाने की ज़रूरत उसके बाद ही विचारणीय होनी चाहिए.

  15. mai apki baat se poori tarah sehmat hoo gopal ji.
    jaha bharat ki arthik vyavastha ek or itni kharab hai,,,wahi karodo rupaye lagakar ye games karvane jaroori hain kya??
    jaha dilli k har kone ko develop karne ki koshish ki jaa rahi hai,,waha ye q nahi dekha a raha k kai kone achoote hain???

  16. यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः की संस्कृति के देश में नारी को भोग की वस्तु बना दिया …और इनके समर्थक भी हैं इस देश में …जरा ये लोग सोचें की देश को कहाँ ले जाना चाहते हैं …इनको शर्म आना चाहिए और अपनी बहन बेटियों को भी…………………

  17. भूपेन्द्र जी, टिप्पणी हेतु धन्य्वा!
    आप यदि इमानदारी से सोचते हैं तो
    १. जिसप्रकार आपने मुझसे प्रश्न किये ( जो की आपका अधिकार है ) उसी प्रकार आपने दीपा जी से उनकी झूठी पहचान, झूठी फोटो की बेईमानी के बारे में कोई प्रश्न किया कभी ? उनकी नीयत की खराबी इससे नहीं झलकती है क्या ?
    २.वर्तमान समय के अनुसार स्त्रियों की स्थिती पर कहने-लिखने का उपदेश देने के लए धन्यवाद. पर स्त्रियों की स्थिती की जो बात मैंने वर्तमान सन्दर्भ में कही उसपर आपने दयां क्यों नहीं दिया? क्या अनजाने और जल्दी में ऐसा हो गया या आपके मन में कोई पूर्वाग्रह है ? अपनी बात फिर दोहराता हूँ, क्रोइप्या इसपर ध्यान दें—-
    * आज मीडिया में स्त्रियों को अत्यंत चरित्रहीन, षड्यंत्रकारी, पतित दिखाया जा रहा है. उसके शरीर से कपडे निरंतर घटते जा रहे हैं. उसका मन, बहन का पवित्र रूप गायब हो रहा है. उसे वासना की पुतली बनाकर बार-बार पेश किया जा रहा है.
    इसके कारण बलात्कार, व्यभिचार, यौनाचार और यौनरोग बढ़ रहे हैं. इसपर आप सब लोग आवाज़ क्यों नहीं उठाते?
    * स्त्री कल्याण, समानता और अधिकारों की बात करने वालों की नीयत ठीक है, उनका कोई गुप्त अजेंडा नहीं है तो स्त्रियों के इस अपमान पर आवाज़ क्यों नहीं उठा रहे? क्या इसका यह मतलब नहीं की ये लोग स्त्री हित के नाम पर वास्तव में भारत की चरित्रवान स्त्रियों को यूरोप और अमेरीका की तरह वासना का बाज़ार बना देना चाहते हैं जिससे हमारी परिवार व्यवस्था बिखर जाए जो की हमारी ताकत है, खासियत है. ऐसे लोगों को विदेशी ताकतों का एजेंट क्यों न समझा जाये? मेरे ख्याल में अब भारत के लोग ऐसे गुप्त शत्रुओं को पहचानने लगे हैं. आशा है की आप भी इस स्थिती को समझने का प्रयास करेंगे.
    * जहां तक आप के विचार में में अपनी प्रशंसा करवाना चाहता हूँ तो ये जान लें की हम जैसों को प्रताड़ना ही अधिक सहनी पड़ती है क्योंकि भारत विरोधी ताकतों बहुत बड़ा शिकंजा समाज के हर क्षेत्र पर है. हम तारीफ़ के लिए नहीं, अपने देश, समाज और मानवता के हित में लिखते हैं.

  18. डा मीना जी आपका सुझाव अछा है, पर मर्यादा का पालन करने की अपेक्षा आप केवल दूसरों से ही करेंगे ? स्वयं उसका पालन नहीं करेंगे ? आप अनेकों बार भातीय संस्कृति-समाज और सभ्यता के विरोध में बड़ी गैरजिम्मेदार और अपमानजनक टिप्पणियाँ कर चुके हैं. आपका तर्क है कि हिन्दू समाज के सुधार और कल्याण के लिए उसकी बुराईयाँ उजागर करना जरूरी है.
    *मेरे प्यारे आदरणीय भाई , इसी तर्क के आधार पर ईसाई समाज और सम्प्रदाय की कमियों को सामने लाया जाए तो बुराई क्या है? धोखे,छल-कपट से धर्मांतरण करना ; सेवा के नाम पर धर्मांतरण, केवल धमान्त्रण के लिए सेवा, पादरियों में फ़ैल रहा दुराचार दूर करने पर भी तो आप सरीखे विद्वानों को विचार नहीं करना चाहिए क्या? फिर आपकी कृपा दृष्टी केवल हिन्दू समाज पर ही क्यों है?
    *दूसरों पर कीचड़ उछालने का एकाधिकार प्राप्त करने की मंशा है न ? जिससे हीन भावना के समाज को आसानी से धर्मान्तरित किया जा सके. वही मैक्समुलर और मैकाले वाली तकनीक है न कि पहले हीनता जगाओ फिर ईसाई बनाओ. पर यादरखिये कि हिन्दू समाज अब इतना भोला नहीं रहा कि हमको कजोर बनानेवालों की नीयत को न समझें और उसका करारा जवाब न दें.
    * आप पूर्वाग्रहों के साथ भारतीय संस्कृति को अपमानित करने के सुनियोजित प्रयास करेंगे तो प्रती प्रश्नों का सामना भी करना पडेगा. पर आप तो अपनी परम्परा के अनुसार विरोधयों की जुबान बंद करने में ही विश्वास रखते हैं न. हमारे प्रश्नों का जवाब न आप लोग कभी दे पाए और न कभी दे पायेंगे, यह हम अब जान गए हैं.

  19. चलो अब इस बिसय पर चर्चा यहीं ख़तम करतें है , सच में रास्ट्र मंडल क्रीडा में इस तरह कुछ भी नहीं हो रहा है , इस मंच की अलावा कहि भी इस बारे में चर्चा नहीं यह इस का प्रमाण है , लेखक ओलिम्पिक गेम की दौरान हुए घटनाओं का काल्पनिक कहानी ही यहं लगा कर कमेन्ट के तौर पर अपना नाम बटोर रहा है , यह तो प्रमाणित हो ही गया , लेकिन यद् रहे journalisim में नाम बटोरने का यह अछा तरीका नहीं . बाकि लोग अब चुप हो जाओ यह मेरा निवेदन है

  20. लगता जैसे जंग छेड गया हो ! अब तो बकवास बंद करें ! आगे का कुछ परिचर्या भी पब्लिश हो , रास्ट्र मंडल क्रीडा में ऐसा कुछ प्रबंध हो रहा इस का कहीं चर्चा तक नहीं, सिर्फ यहाँ जारी है , पिछले एक महीनो से इस बारें में रोज रोज नए नए बिचार बात को बतंगड़ बना दिया है , सर्कार इस तरह कुछ काम कर रही है इस का कोई ठोस प्रमाण भी नहीं मिल रहा है, तो इस लेख को क्या कहंगे ‘ बकवास ‘ या और कुछ ? आप ही बतये जो यहाँ टिपण्णी कर रहे हैं , अब इस बकवास पर और बहस न करें तो अछा ही होगा,यह मेरा निवेदन है . हम किस पर कीचड़ उछल रहे हैं यह पहले सोचे, हम अब मुहं ऊपर कर थूंक रहें हैं अगर किसी को इस का अहसास होरहा हो तो अच्छा है , हम ओउर कुछ नहीं कहेंगे

  21. श्रीमान नीर जी

    बहुत सारी अनचाही और अप्रासंगिक जानकारी देने और प्रस्तुत विषय पर टिप्पणी किये बिना बच निकलने के लिए आभार.

    आशा है की आगे भी आपका मार्गदर्शन मिलता रहेगा.

    वैसे भी मुझे आपकी भांति दुनियदारी की जानकारी नहीं है.

    मेहरबानी करके प्रकट होते रहें, जिससे मेरे ज्ञान की अधजल भरी गगरी में आपकी विद्वता की कुछ बूंदे शामिल हो सकें. मुझे आलोचक सबसे अच्छे लगते है.

    एक बार फिर से आपका आभार.

  22. !! प्रवक्ता.कॉम के पाठकों से पाठकों से विनम्र अपील !!

    आदरणीय सम्पादक जी,

    आपके माध्यम से प्रवक्ता.कॉम के सभी पाठकों से विनम्रतापूर्वक अनुरोध/अपील करना चाहता हूँ कि-

    1- इस मंच पर हम में से अनेक मित्र अपनी टिप्पणियों में कटु, अप्रिय, व्यक्तिगत आक्षेपकारी और चुभने वाली भाषा का उपयोग करके, एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे हैं।

    2- केवल इतना ही नहीं, बल्कि हम में से कुछ ने प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से सम्पादक की नीयत पर भी सन्देह किया है। लेकिन जैसा कि मैंने पूर्व में भी लिखा है, फिर से दौहरा रहा हूँ कि प्रवक्ता. कॉम पर, स्वयं सम्पादक के विपरीत भी टिप्पणियाँ प्रकाशित हो रही हैं, जबकि अन्य अनेक पोर्टल पर ऐसा कम ही होता है। जो सम्पादक की नीयत पर सन्देह करने वालों के लिये करार जवाब है।

    3- सम्पादक जी ने बीच में हस्तक्षेप भी किया है, लेकिन अब ऐसा लगने लगा है कि हम में से कुछ मित्र चर्चा के इस प्रतिष्ठित मंच को खाप पंचायतों जैसा बनाने का प्रयास कर रहे हैं। मैं उनके नाम लेकर मामले को बढाना/तूल नहीं देना चाहता, क्योंकि पहले से ही बहुत कुछ मामला बढाया जा चुका है। हर आलेख पर गैर-जरूरी टिप्पणियाँ करना शौभा नहीं देता है।

    4- कितना अच्छा हो कि हम आदरणीय डॉ. प्रो. मधुसूदन जी, श्री आर सिंह जी, श्री श्रीराम जिवारी जी आदि की भांति सारगर्भित और शालीन टिप्पणियाँ करें, और व्यक्तिगत टिप्पणी करने से बचें, इससे कुछ भी हासिल नहीं हो सकता। कम से कम हम लेखन से जुडे लोगों का उद्देश्य तो पूरा नहीं हो सकता है। हमें इस बात को समझना होगा कि कोई हमसे सहमत या असहमत हो सकता है, यह उसका अपना मौलिक अधिकार है।

    5- समाज एवं व्यवस्था पर उठाये गये सवालों में सच्चाई प्रतीत नहीं हो या सवाल पूर्वाग्रह से उठाये गये प्रतीत हों तो भी हम संयमित भाषा में जवाब दे सकते हैं। मंच की मर्यादा एवं पत्रकारिता की गरिमा को बनाये रखने के लिये एकदम से लठ्ठमार भाषा का उपयोग करने से बचें तो ठीक रहेगा।

    6- मैं माननीय सम्पादक जी के विश्वास पर इस टिप्पणी को उन सभी लेखों पर डाल रहा हूँ, जहाँ पर मेरी जानकारी के अनुसार असंयमित भाषा का उपयोग हो रहा है। आशा है, इसे प्रदर्शित किया जायेगा।

  23. जानकार बड़ा दुःख हुआ की हमारी सरकार औरतों के देह व्यापार की समर्थक ही नहीं सहयोगी भी है. सरकार के अधिकृत व्यक्ती की ओर से इसके खंडन न करने का क्या हः अर्थ नहीं की ये आरोप सच हैं ?

  24. डा. मीना जी. अति कर दी है आपने अपने पक्षपाती और पूर्वाग्रही व्यवहार की. कई-कई पत्नियों के पति बनकर उनकी दुर्दशा करने वाले, नन्ज़ के साथ दुराचार करने वाले हज़ारों पादरियों के अन्याय पूर्ण किस्से ; इन सब की अनदेखी करके केवल हिन्दू समाज पर ही आपकी कृपा दृष्टी क्यों है? भारतीय समाज में अनेकों कमियाँ है, हम उनका सुधार बड़ी अच्छी तरह कर लेंगे, समाज सुधारकों की बड़ी विशाल और महान परम्परा है हमारी. पर अगर हमारा कल्याण करने की बातें करके हमको हीनता बोध से ग्रसित करके हमें समाप्त करने वालों से हमारा पीछा छूटे, तब न.
    अस्प तो कटिबद्ध लगते हैं यह सिद्ध करने के लिए की हिन्दू समाज से अधिक दुर्दशा और कहीं स्त्रियों की नहीं है. माना कि कई कमियाँ हैं और उन्हें दूर भी करना है. पर करोड़ों की भावनाओं को आहत करने वाले पक्षपाती कथन बार-बार. चाहते क्या हैं आप? अगेंदा क्या है जनाब आपका?
    नहीं जानते तो बता दूँ कि विदेशी इतिहासकारों के अनुसार भारत से अधिक स्त्रियों का सम्मान संसार के किसी भी देश में अरबों और यूरोपियों के आने से पहले नहीं था. प्रमाण मांगेंगे तो ज़रूर दूंगा. तब यूरोप में स्त्रियों को आदम की पसली से बना ( बाइबल-ओल्ड टेस्टामेंट ) पशुओं से भी बदतर व्यवहार करते थे.
    दक्षिण में महिलाओं को अम्बा, अक्का, माँ कहने की आजतक प्रचलित परम्परा उसी स्त्री सामान की भारतीय परम्परा का प्रतीक है.
    * स्त्रियों के सामान का नाटक करने वालों से मेरा प्रश्न है कि मीडिया में महिलाओं को जो षड्यंत्रकारी, क्रूर, कई-प्रेमियों की प्रेमिका यानी वेश्या जैसा दिखाने, नग्नता- अश्लीलता की प्रतीक बनाने का जो अभियान चल रहा है ; उसके खिलाफ आपकी वाणी व लेखनी क्यों नहीं उठती. आप लोग जानते हैं न कि इन अश्लील प्रदर्शनों के बाद देश में गर्भ निरोधकों की खपत अत्यधिक बढ़ गाती है, गर्भपात, तलाक, नपुंसकता, यौन रोगों की संख्या में अविश्वसनीय वृद्धी हुई है. बलात्कार के मामले बढे हैं. यदि आप लोगों की स्त्री-चिंता सच्ची है तो स्त्रियों की असुरक्षा और अपमान को भयावह रूप से बढाने वाले वास्तविक कारणों का विरोध क्यों नहीं करते ? इससे लगता है कि स्त्री कल्याण के नाम पर वास्तव में आप लोगों को दो ही काम करने हैं
    १. कामवासना का विशाल बाज़ार बनाने की रुकावटों को दूर करने के अंतर्गत, स्त्रियों की समानता, अधिकारों के नाम पर उन्हें अधिक से अधिक अनैतिक जीवन की और धकेलना. इसके लिए भारतीय जीवन मूल्यों के विरुद्ध वातावरण बनाना, अश्रधा जगाना.
    २. हर प्रकार के हथकंडे अपनाकर भारत को जोड़ने वाले सांस्कृतिक, राष्ट्रीय प्रतीकों को खंडित, अपमानित करना.
    यदी आप लोगों की नीयत साफ़ है तो फिर ये हिन्दू और हिंदुत्व विरोधी अतिवादी व्यवहार क्यों है ? मुझे जवाब देने के लिए आप बाध्य नहीं पर यही प्रश्न अनेकों के मन में हिंगे .
    !! ईश्वर भारतीय संस्कृति के विरोधियों को सद – बुद्धी दे और आप लोग विश्व कल्याणकारी भातीय संस्कृति के महत्व को समझकर इसके शरणागत हों, इन्हीं शुभकामनाओं की साथ आपका शुभ चिन्तक !!

  25. दीपा जी या जो भी आप हैं,
    * प्रेत लेखन करने बातों की बातों का जवाब देने का कोई औचित्य नहीं बनता. पर आपके कहे से गलत सन्देश जा रहा है अतः
    १. विवेकानंद, भगत सिंह, दयानंद. राजा राम मोहन राय के बारे में मेरी कही बात को गलत उद्धृत किया जा रहा है. क्या यह यह जानबूझकर, विषय से भटकाने, उलझाने की भारत विरोधियों की सुपरिचित तकनीक है. ? ( घोस्ट लेखन करने वालों के दबाव में आकार पोस्ट को हटाना उचित नहीं, ऐसा दबाव सम्पादक पर पड़ने की आशंका है.)
    २. हिन्दू समाज की जड़ों को खोखला करने की इसाइयों तथा साम्यवादियों की ( अब इसमें जिहादी भी शामिल हैं ) सुपरिचित तकनीक है की हमारे उन प्रतीकों को पूरी ढिठाई के साथ कलंकित, अपमानित करना जो हम को जोड़ते हैं, हमारे मन में गौरव का भाव जागते हैं.
    अगर ये इमानदार होते तो हमारे इष्ट / राष्ट्र पुरुष श्री राम के उन अनंत गुणों की प्रशंसा भी करते जिनके कारण आज भारत ही नहीं विश्व के करोड़ों लोग प्रेरित, उत्साहित आनंदित होते हैं. है विश्व की कोई ऐसी कथा जिसके करोड़ों पाठ होने के बाद भी उस रामायण को सुन कर हम हर बार प्रेरित, आनंदित होते हैं, भक्ती के गहन सागर में डूब जाते हैं. दुन्या के हर देश में राम की स्मृतियाँ, प्रतीक मिलते हैं. अफ्रीकी सम्राट हेल सलासी के अनुसार उनके पुवाज शासक राम के पुत्र ‘कुश’ थे. अतः वे ( अफ्रीकी ) अपने आप को कुश के वंशज ‘कुशाईत’ आज भी कहते हैं, मानते हैं. इतने बड़े हमारे गौरव को ये भारत के दुश्मन सहन नहीं कर पाते.इसी लिए राम और रामायण की श्रद्धा समाप्त करने के हथकंडे अपनाए जाते हैं. हम रावन के नाम पर एक जुट हुए तो इनको उससे भी ऐतराज होगा. असली मकसद तो हमारे आत्म विश्ववास को तोड़ना है जिससे ईसाईकरण और पश्चिम के साम्राज्यवाद के रास्ते में कोई दीवार न हो.
    अतः श्री राम. कृष्ण आदी पर इनके आक्षेपों का उत्तर इन्हें देने की ज़रूरत नहीं. इनको कुछ समझना ही नहीं है, बस हमें समझाना है की अपने देश, धर्म, संस्कृति , परम्पराओं से ग्रीना करो.
    इतना ही कहना व जानना पाठकों के लिए पर्याप्त होना चाहिए की इनका उद्देश्य हम भारतीयों की आस्थाओं की जड़ें खोदना है, हमारे शुभचिंतक बन-बन कर. अतः इनकी भाषा से इन्हें समझने, पहचानने की समझ हमें विकसित करनी ही होगी.

    • kapoor ji
      aap vartman ki mahilao ke baare me sochiye na.jyada aitihasik nahi hona chahiye koun kya kiya kyo kiya …..aaj kya ho raha kyo nahi dekhte kya hindu mahilae mahilae nahi hote ahi kya ab aap stri atyachar ko dharm se jodkar kisi mahila atyachar aise hi nahi chod sakte.
      sorry to say but ………….prtikriyao par aap aisa reply mat kariye jaisa aapne deepa ji ke reply kiya hai kyonki log sirf aapki taarif karne ke liye vichar nahi padhte……………….

    • ये सब ठीक है कपूर साहब पर ये तो अतीत की बात है. हमारा देश महान था, स्त्रियों का सम्मान होता था,ढूढ़ की नदियाँ बहती थीं , सोने की चिड़ियाँ दाल दाल पर बसेरा करती थीं, जहाँ सूरज को एक नया सहारा मिलता था, जहाँ के रजा पुरुषोत्तम थे. लेकिन अब क्या है? कैसा है देश यह, भ्रष्टाचार का पुलिदा, व्यभिचार का अड्डा आज कहाँ हैं कुश के वंशज. शायद अफ्रीका चले गए यह जगह तो उन्हें रास नहीं आइ. कपूर साहब आत्मालोचना से ही सुधर का रास्ता निकलता है. जब सब कुछ महान है तो सुधार की जरूरत क्या है. इसीलिए “निंदक नियरे राखिये आंगन कुटी छवाय. .

  26. कथित रूप से स्त्री की पूजा करने वाले देश में, स्त्री की हकीकत : –
    ========================
    तीसरी बीबी की पीट पीट कर हत्या
    ————————-
    रायगढ़ (एनएनएस24) 10अगस्त 2010। रायगढ़ जिले में एक वृद्ध ने अपनी तीसरी पत्नी की हत्या कर दी। पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार कर लिया है। धर्मजयगढ़ पुलिस अधिकारियों ने आज बताया कि पिरिमार निवासी शिव कुमार सारथी (65) ने खाना नहीं बनाने को लेकर हुई कहा सुनी के बाद अपनी तीसरी पत्नी रानी की लाठी डण्डे से पीट -पीट कर हत्या कर दी।

  27. सुनील पटेल जी,वर्धापन हेतु धन्यवाद ! आपने यह भी देखा होगा कि माँ के रूप में जो सम्मान नारी को भारत में दिया गया है, वह और कहीं नहीं. दक्षिण भारत की यात्रा पर गया तो देखा कि हर बच्ची, बूढी, जवान को अम्बा या माँ कहकर बुलाते हैं. क्या यह प्रमाण नहीं स्त्री सम्मान की हमारी परम्परा का? देवियों की पूजा, कन्याओं का पूजन है और कहीं ? पर भारत विरोध अन्धाये अंधों को ये सब तो देखना है नहीं. जो पश्चिम वाले औरत के एक ही रूप को जानते और मानते हो, वे वासना के कीट हमें क्या सिखायेंगे. हमारे देश में स्त्रियों की आज जो और जितनी भी दुर्दशा है, उसका सबसे बड़ा कारण अरब और पश्चिमी जगत की कामवासना से परिपूर्ण प्रकृती है.
    दुनिया की औरतों को सम्मान दिलवाने के लए राम, लक्षमण, शिवाजी, प्रताप, गांधी, दयानंद अरविन्द, विवेकानंद के जो अनगिनत आदर्श हम भारतियों के पास हैं, उसके मुकाबले में दुनिया के देशों के पास इसका एक अंश भी है ? तो हमको अपनी जड़ों से प्रेरणा लेकर अपने बिगड़े हालात सुधारने हैं. पश्चिम के पतित कंगालों के पास वह ऊंचे आदर्श, परम्पराएं व संस्कृति कहाँ है ! ज़रा हीनता की ग्रंथी से मुक्त होकर देखें, हमसा समृद्ध संस्कृति वाला कोई है ही नहीं.
    * वर्तमान शासकों, सत्ताधारियों की जड़ें भारतीय संस्कृति में है ही नहीं.याद है न कि क्रिकेट-खेलों में ‘चीयर गर्ल्स’ को बार-बार लाने के प्रयास इसी सत्ता के द्वारा हुए थे. इस खेल आयोजन में भी वेश्यावृत्ते को बढ़ावा देने के इनके प्रयास पर संदेह करने का कोई कारन नहीं. विश्व की अपराधिक व्यापारे ताकतों का एक बहुत बड़ा व्यापार ब्वेस्यावृत्ती तथा गर्भ-निरोधकों की बिक्री है. उन व्यापारियों की जेब में हमारी सरकार है, इसपर संदेह तो कोई उनका एजेंट करेगा या वह करेगा जो देश के हालत को समझने लायक अक्ल नहीं रखता होगा.
    इनसे देश के कल्याण की कोई आशा वर्तमान शासकों से करना एक मृगमारीचिका सिद्ध हुई व आगे भी होगी. मुझ जैसों को कोई संदेह नहीं कि ये शासन भारतीय संस्कृति के विरोध का हर कार्य जोर-शोर से करता है. कोई चाहे तो इसपर हमसे बहस कर ले, असंख्य प्रमाण मिल जाएँगे. अतः —————
    ‘प्रवक्ता.काम’ द्वारा उठाया गया यह मुद्दा अत्यंत महत्वपूर्ण है और इसकी गंभीरता को कम करने व भटकाने के प्रयासों को संदेह की नज़र से देखने की ज़रूरत है, ऐसा मुझे लगता है.

    • आदरणीय राजेश कपूर जी , शत शत नमन करते हुए ,
      महोदय आप कुछ दुविधा में नज़र आ रहे हैं , आपकी टिप्पणियों में निरंतर विरोधाभास की स्तिथि दिक्लाई पद रही है ,
      पुर्व में आपने एक जगह टिपण्णी की थी की कुछ लोग प्रवक्ता पर भारत निंदा के उसी रोग का शिकार हैं जिसके शिकार विवेकानंद, दयानंद, भगत सिंह , रजा राम मोहन और अन्य लोग भी बताये थे हमने वापस उस पर टिपण्णी भी की थी परन्तु अब आप —
      दुनिया की औरतों को सम्मान दिलवाने के लए राम, लक्षमण, शिवाजी, प्रताप, गांधी, दयानंद अरविन्द, विवेकानंद के जो अनगिनत आदर्श हम भारतियों के पास हैं,
      ये टिपण्णी करते हैं तो समझ नहीं आ रहा है की दयानंद और विवेकानंद को हम क्या माने, महोदय से निवेदन है की हमारी दुविधा को दूर करने का कष्ट करें , हम आपकी विचित्र टिप्पणियों में उलझते जा रहें हैं या आप खुद उलझते जा रहे हैं,
      महोदय, रामचंद्र जी ओर लक्षमण जी को आप ला ही दिए हैं तो दुनिया जानती है की ये अपनी पत्नियों को ही सम्मान न दे पायें अग्नि परीक्षा के बाद भी धोभी के कह देने मात्र से राज काज तो न छोड़ा पर पत्नी को ही त्याग दिया , ओर लक्षमण जी तो भी का धर्म निभाने साथ चले गए थे लेकिन पत्नी का क्या दोष था जो उसके साथ अन्याय कर गए थे ,
      इनसे अच्छा तो रावण था जो सीता की पवित्रता पर धर्म के रास्ते पर रहा ,
      गाँधी जी का राम राज हमको इसलिए ही पसंद नहीं था उसमे सीता के साथ अन्याय होता जो नारी ही थी , अग्नी परीक्षा के बाद भी दुर्गति होती
      —————– प्रेतबाधा दीपा शर्मा

    • अरे कपूर साहब दक्षिण की छोडिय में तो यहीं उत्तर भारत में माताओं बहनों का खूब सम्मान रोज़ होते देखता हूँ. बसों में, गलियों में चौराहों आम बातचीत में लोग एक दूसरे को मा–चो, भें-चो जैसे अद्भुत वाक्य बोलते हैं तो सच सर गर्व से ऊंचा हो जाता है. कितना सम्मान है भारतियों में पानी माताओं और बहिनों के लिए. पश्चिम वाले तो जो करते हैं सो करते ही हैं लेकिन अपने भारतीय पुरुषों को ज़रूर स्त्री में केवल कामुकता दिखाए देती है. पूरा भारत ही जैसे दमित और कुंठित हो. भारत की सड़कों या रेल मार्गों के दोनों ओर आपने भी हकीमों और वैद्यों के धात, वीर्य, कमजोरी और ताकत के प्रचार देखे होंगे . कोई बाहरी देख ले तो यही कहेगा की भारत के पुरुषों में नपुंसकता महामारी का रूप लेती जा रही है. हमारे पुरुष सार्वजनिक स्थानों पर नारी के ही सामने अपने अन्डकोशों और लिंग को रगड़ना कभी नहीं भूलते. शायद यह सम्मान देने का तरीका है. और आप अपनी हर टिपण्णी के अंत में “भटकाने के प्रयासों को संदेह की नज़र से देखने की ज़रूरत है, ऐसा मुझे लगता है.” जैसे वाक्य जोड़ देते है तो मुझे लगता है की आपको संदेह से देखने की आवश्यकता है क्यूंकि आप ज्यादा ही संदेह करने है. कॉमन वैल्थ खेलों में वैश्यावृत्ति को बेशक बढ़ावा नहीं मिलना चाहिए लेकिन अपने साज की गंदगी को दूर करने का प्रयास तो कीजिये. वलेंतिने दिवस पर स्चूली बच्चों को लाठियों से धमकाने वाले अगर खेलों के nazdik base red light aria के लिए kuch करते nazar aate tab तो baat thi. और रही baat deviyon का poojan की तो bhaiya yahan deviyon का poojan तो hamne jooton से होते dekha है और kanya bhron hatya तो tathya है. भारतीय sanskriti का तो में bhari prashansak हूँ लेकिन हर baat को aankh mood कर koopmandookon की tarah maahaan mannemein yakin नहीं rakhta. bharta mahan था लेकिन ab नहीं. आपने जिन महानुभावों के नाम ginaye हैं ve sabhi samaj sudharak थे और unhonne भारतीय sanskriti की हर burai को samapt करने ak प्रयास kiya. raja ram mohan rai अगर sati pratha की alochana na करते, harvilas sharda, ishwar chandra vidhya sagar yadi balika shiksha की taraf प्रयास na करते तो aaj जो pragati huyi है voh भी naa hoti. आप logon की bhanti ve भी यही maan कर baith gaye होते की भारतीय sanskriti तो bahut maahan है और hamein तो bas iski burai करने वालों पर ही chillana है isi से iski raksha हो jayegi. Janab sanskritiyan mahan नहीं hoti ve लोग mahan होते हैं jinse sanskritiyan bantin है.

  28. हर चर्चा और हर मंच पर एक ख़ास बात ध्यान में रखने योग्य है जिसपर हम सबको समझना चाहिए. क्या ऐसा नहीं लगता की हर बार देश के छद्म दुश्मनों के खिलाफ खड़े किये गए मुद्दे को भटका दिया जाता है ? द्श्भाक्त व्यक्तियों और संगठनों की प्रमाणिकता, व्श्वस्नीय्ता पर प्रश्न चिन्ह खड़े किये जाते हैं ? जिन्हें कटघरे में खड़े करने की ज़रूरत है, उन्हें बरी करके चर्चा करने वाले को ही कटघरे में खडा कर देते हैं ? उपरोक्त मुद्दे या लेख के साथ भी यही शरारत होती नज़र आरही है. मुद्दे की प्रमाणिकता को संदेहास्पद बनाने का काफी प्रयास हुआ है. ठीक उसी प्रकार जैसे ‘सुरेश चिपलूनकर’ जी के ”ई.वी.एम” पर लिखे हाहाकारी लेख के बारे में हुआ. एक टिप्पणीकार ने तो यहाँ तक लिख डाला की ‘प्रवक्ता.काम’अपनी पाठक संख्या बढाने के लियी विवाद को बढ़ावा दे रहा है, लेखक इस विषय पर लिखी पुस्तक की मानो बिक्री बढाने के लिए लेख लिख रहे हैं.
    * इस प्रकार के बदनीयत प्रयासों को पहचानते रहना पडेगा.

    • महोदय शत शत नमन ,
      यहाँ चर्चा का मुद्दा एक बार फिर ख़ास आपके लिए लिख रही हूँ —
      सीता, सावित्री के देश भारत में जहां नारी की पूजा की जाती है, वहां सरकार की ओर से नारी को भोग की वस्तु बनाकर प्रस्तुत करना क्या उचित है? आप क्या सोचते हैं?
      आप क्या सोचते हैं? इस शब्द से कोई भी सामान्य बुद्धि वाला व्यक्ति जान सकता है की चर्चा नारी पर हो रही है जिसका पहला बिंदु है की यहाँ नारी की पूजा की जाती थी , ये ही साफ़ नहीं हो पाया है की नारी की पूजा कब की जाती थी और यदि की भी गयी तो वो कोन सी नारी थी अत: महोदय से निवेदन है की यहीं रहें चिपलूनकर जी की तरफ न भटकें इससे यहाँ मामला उलझ सकता है धन्यवाद के साथ …………… प्रेतबाधा दीपा शर्मा

      • तुमने स्वयं उनका उल्लेख किया है इस टिप्पणी मे। फिर क्यों पूछ रहे हो?

  29. आदरणीय डा कपूर साहब जी का धन्यवाद जिह्नोने इतिहास को बताया जिसे साजिश के तहत खत्म कर दिया गया है. सारा वाद विवाद नारी पूजा पर आ गया है.
    जैसा कि श्री कपूर जी ने और अन्य महानुभावो ने बताया कि दुनिया मे नारियो को सबसे ज्यादा समंमान हमारे देश मे मिलता है.
    पिछ्ले कुछ सो सालो की लूट खसोट से हमारे देश मे कुछ वर्ग गरीब हो गये है. अन्याय, अत्याचार मे बढोतारि हुई है. महिलाओ पर अत्त्याचार बदे है किन्तु फिर भी अन्य देशो के मुकबले हमारे देश मे महिलाओ की स्तिथि बहुत अच्हि है.
    जैसे जैसे लोगो मे जागरुक्ता आ रहि है, सिक्शा का प्रसार हो रहा है, महिलाओ को खोया समान वापस मिल रहा है.

    • महोदय सुनील जी
      आपके लिए चर्चा का विषय या विवाद वस्तु——-
      सीता, सावित्री के देश भारत में जहां नारी की पूजा की जाती है, वहां सरकार की ओर से नारी को भोग की वस्तु बनाकर प्रस्तुत करना क्या उचित है? आप क्या सोचते हैं?
      आप क्या सोचते हैं? इस शब्द से कोई भी सामान्य बुद्धि वाला व्यक्ति जान सकता है की चर्चा नारी पर हो रही है जिसका पहला बिंदु है की यहाँ नारी की पूजा की जाती थी , ये ही साफ़ नहीं हो पाया है की नारी की पूजा कब की जाती थी और यदि की भी गयी तो वो कोन सी नारी थी ?
      तो महोदय से निवेदन है की आप दिग्भ्रमित न हों ………
      दीपा शर्मा

  30. Dear Editor,
    As per your claim regarding the registration of the sex workers for Common Wealth Games’ visitors, i simply ask…. What is the documentary evidence to support your claim. Kindly mail me the same at arif@amarbharti.com

  31. मैकाले के मानस पुत्रों के लिए मेरा सुझाव है कि वे चुन-चुन कर भारत के विरुद्ध प्रचार के अपने प्रिय कार्य को करते हुए मेरे कुछ प्रश्नों का उत्तर दें. जनता हूँ कि आपसे इमानदार जवाब की आशा करना बेकार है क्योंकि आप लोग भारत को लांछित, अपमानित करने की रोटी खाते हैं. आप सरीखे भारत विरोधी महानुभावों से प्रश्न के बहाने मैं आप लोगों की असलियत सामने लाना चाहता हूँ जिसे आपलोग छुपाने का प्रयास कर रहे हैं.
    १. ज़रा बतलाईये कि क्या सैंकड़ों साल तक यूरोपीय लोग बाईबल के अनुसार स्त्रियों को निर्जीव मानकर उसके साथ पशुओं जैसा व्यवहार नहीं करते रहे ? आधुनिक कहलानेवाले देशों में भी बेचारी को मतदान के अधिकार से वंचित राखागया. आन्दोलन करने पड़े उसे इस अधिकार को पाने के लिए. आपलोगों के श्री मुख से एक शब्द भी निकला उस असभ्य समाज के विरोध में ? आप तो सुनना ही नहीं चाहेंगे कि अरबी अक्रमंणकारियों के आने से पहले तक भारत में बाल विवा, पर्दा प्रथा थी ही नहीं. क्यों नहीं थी ? अरे भाई ज़रा स्मरण करो कि फाह्यान ह्वेनसांग, मेगास्थनीज़ आदि विदेशीयों ने आपके भारत के बारे में क्या कहा है ? वे कहते है कि ——-
    **भारत में सोने के गहने पहने कोई सुन्दर स्त्री अकेली जा रही हो तो भी उसकी और कोई बुरी नज़र से नहीं देखता. यानी उनके अपने देश में यह नहीं होता था, उनके देशों में अकेली औरत सुरक्षित नहीं थी. इस एक प्रसंग से इस बात का अनुमान होजाना चाहिए कि भारतीय समाज सदा से बड़े ऊंचे नैतिक चरित्र का था तथा तुलनात्मक रूप से भारत में स्त्रियों के प्रती बड़ा सम्माज्जनक व्यवहार था. जानता हूँ कि भारत विरोधियों को इस प्रसंग को पढ़ कर कोई प्रसन्नता नहीं होगी, उलटे काफी कष्ट होगा.
    ** सभी सम्प्रदायों के प्रती सोहार्द व सहअस्तित्व की जो भावना भारतीयों में सदा से है, संसार में कोई भी समाज उसके जैसा अभी तक तो मुझे नहीं मिला. अतः इस्लामी सम्प्रदाय के प्रती सद्भाव रखते हुए इन ‘स्त्रियों की दुर्दशा के ऊपर घडियाली आंसू बहाने वालों से पूछना चाहता हूँ कि संसार के मुस्लिम देशों सहित भारत के मुस्लिमों में औरतों की जो भयानक हालत है, वह उनको नज़र आती है या नहीं? तस्लीमा नसरीन की ‘लज्जा’पुस्तक के नाम से तो आपकी जुबांन को लकवा मार जाता होगा? या फिर सांप पर पाँव पड़ने जैसी सकते की हालत होती होगी?
    अरे मेरे प्यारो! ऐसा भी जूतों सहित हमारे आँखों में घुसने का प्रयास न करो. औरतों का खतना करना , बलात्कार की शिकार औरत को संगेसार करना (पत्थरों से मार-मार कर ह्त्या करना), दो औरतों की गवाही एक आदमीं के बराबर मानना, एक तरफ़ा तलाक की मनमर्जी आदि-आदि ; ये सारे अन्याय, अत्याचार आप लोगों की हिन्दू व हिंद विरोध से अंधी आँखों को क्यों नज़र आने लगे ? इन सब पर लिखते-बोलते तो आप को सांप सुघ जाता है न, रतोंधी हो जाती है, नज़र ही नहीं आता. आपको तो बस केवल कोई बहाना मिलना चाहिए भारत और भारत भक्ती को गली देने, लताड़ने, बदनाम करने का.
    * पश्चिमी ताकतों के एजेंटों से हम कहते है कि वे यूरोप और भारत की तुलना करके बतलाएं कि आज भी स्त्रियों की सुरक्षा, सम्मान, कहाँ अधिक है ?
    * आपके आका और आदर्श अमेरिका में १० लाख अवैध बच्चे हर साल नाबालिक लडकियों के गर्भ से जन्म लेते हैं. ५७% से अधिक परिवार तलाक लेते हैं अर्थात पारिवारिक असुरक्षा पराकाष्ठा पर है. तो स्त्रियाँ असुरक्षा, तनाव में हैं न ?. बलात्कार की दुर्घटनाएं ससार में सर्वाधिक वहीँ हैं. चाहें तो अमेरिकी सीनेट के चेयरमैन निमोट गिमिश का कथन देख लें जो दुखी मन से कह चुके हैं कि, ”girls 14 are producing babies…” क्या यही सम्मान भारत की महिलाओं को दिलवाने के लिए आप लोग मेहनत कर रहे हैं ? कोई शक नहीं कि स्त्रियों के हितों के नाम पर कुछ लोग भारत की स्त्री को पश्चिमी देशों की तरह चरित्र हीन, वासना की पुतली , बाजारी वास्तु, बेशर्मी की अति करने वाली बनादेना चाहते हैं ; ये साफ़ नज़र आ रहा है. आपलोग हमारी परिवार व्यवस्था से बड़े परेशान हैं. ये भारत की बहुत बड़ी ताकत और सुरक्षा की गारंटी है, जिसे समाप्त करना आपका अजेंडा है. आज भी संसार की सबसे ऊँचे चरित्र की भारत की औरतें हैं , उनको आप वैश्याओं जैसे चरित्र का बानाने की जीतोड़ कोशिशें करते साफ़ नज़र आ रहे हैं.
    * भारत में स्त्रियों के प्रती होने वाले अन्याय को समाप्त करने के लिए हम भी चिंतित हैं तथा अनेक प्रयास भी चल रहे हैं. पर हम स्त्री-हित की आड़ में भारत के हितों का शिकार करने वालों के षड्यंत्रों का शिकार नहीं बनना चाहते.
    ** कुल जमा बात है कि इस्लाम और यूरोपियों के आगमन से पहले भारत में स्त्रियों का सम्मान आदर्श स्थिति में था, पर्दा प्रथा जैसी कुरीतियों की ज़रूरत ही नहीं थी. क्योंकि ये ख़तरा नहीं था कि कोई हमारे बहु-बेटी को उठाकर अपने हरम में मुर्गियों की तरह ठूंस देगा.( तभी मुस्लिम शासकों के हरम में सैकड़ों हज़ारों स्त्रियाँ पशुओं से बदतर जीवन जीने को मजबूर होती थीं.) लार्ड डलहौजी जैसे सैंकड़ों ओरतों की इज्ज़त लूट लेंगे. अर्थात स्त्रियों के साथ दुराचार, अनाचार, व्यभिचार का सिलसिला अरबी अक्रमंकारियों और अंग्रेजों (यूरोपियों) के द्वारा शुरू हुआ. उनकी पतित परम्पराओं का शिकार बनकर हमारा समाज भी पतित हुआ
    *हम भारत की स्त्रियों की बिगाड़ी गई स्थिती का सुधार यानी भारत के हुए पतन का समाधान भारतीय संस्कृति, परम्पराओं के अनुसार करेंगे न कि समानता, स्वतन्त्रता के नामपर अपनी देवियों जैसी महिलाओं को वेश्याओं जैसा बनने की प्रेरणा देंगे जो कि आप लोग कर रहे हैं.
    *दोहरा दूँ कि ये हम जैसे सब लोग समझ चुके हैं कि भारत के दुश्मनों को भारत के पक्ष में एक भी तर्क नहीं सुनना है,ऐसों को हमें सुनाना भी नहीं है. मेरा सारा आलेख भारत, भारतीयता के पक्षधरों के लिए है और है उनके नकाब को अतारने के लिए जो भारत के हित का नाटक करके भारत को कमज़ोर बनाने कि कुटिल चाल चल रहे हैं.
    * क्षमा चाहूँगा कि मैं देश के दुश्मनों को शुभकामनाये देने का अपराध नहीं कर सकता. एक ‘प्रेत टिप्पणीकार’ लेखिका ने वेदों को उधृत करके बतलाया है कि वेद दुष्टों, दुर्जनों (ध्यान दें कि मुनकिर, मुशरिक या काफिर नहीं कहा गया है) के हनन का निर्देश देता है, गीता भी दुर्जनों की समाप्ती का निर्देश देती है. अतः जब भी देशभक्त सत्ता संभालेंगे तब अजमाल कसाव, अफज़ल गुरुओं की नहीं ; सज्जनों और देशभक्तों की सुरक्षा होगी, दुष्टों का दालन होगा.
    * याद रहे कि हम भारतीयों जैसा सज्जन संसार में कोई नहीं और दुष्टों के लिए हमसे बड़ा भय भी कोई नहीं. हमारी सज्जनता, भोलेपन का इतना दुरूपयोग न करो कि हमारी सहनशक्ती समाप्त हो जाए. हम बड़ी इमानदारी से सारे संसार का हित चाहते हैं. यही हमारी हज़ारो नहीं लाखों साल की संस्कृति, परम्परा है. दुष्टों के दालान की भी हमारी सबसे प्राचीन परम्परा है; ये भूल न जाना !

    • महोदय शत शत नमन करते हुए ,
      वेसे तो आपने ये लिखकर –
      जनता हूँ कि आपसे इमानदार जवाब की आशा करना बेकार है क्योंकि आप लोग भारत को लांछित, अपमानित करने की रोटी खाते हैं.
      जवाब देने का रास्ता बंद कर दिया था परन्तु आपका अपार स्नेह हमको आपकी और खिंच लाता है और फिर प्रेतबाधा आसानी से जाती भी नहीं है, आपके लिए क्रमानुसार जवाब दे रही हूँ ……….
      १- महोदय ज़रा ये बताये आप भारत में रहते हैं या यूरोप में, जो यूरोपीय लोगो के कुकर्म सामने रखकर भारतीय नारी की दुर्दशा को जायज़ तेहरा रहे हैं आपकी निष्ठां यूरोप के प्रति है या भारत के प्रति? क्या आपको यूरोप सुधारना है ?
      २- लज्जा पुस्तक- पता नहीं क्यों सदेव संस्कृति को सुधरने का ज़िम्मा कट्टरपंथियों के ही हाथ में होता है , कट्टरता चाहे इस्लामिक हो या hinduzm की या annay की ghor निन्दनिये है ,
      ३- बलात्कार की शिकार पर संगसारी-
      यहाँ आपको पाकिस्तान की कितनी चिंता दिख रही है क्या आप भी उसी रास्ते पर हैं जिस पर हमारे एक माननीय वैकल्पिक प्रधानमंत्री रहे व्यक्ति चले थे
      ४- यहाँ पर आप पश्चिम के एजेंटों के लिए कितने फिकरमंद नज़र आ रहें हैं
      ५- महोदय, आगे आपको अमेरिकेन ओरतों की कितनी चिंता है पता नहीं आपकी द्रष्टि भारतीय ओरतों की दुर्दशा पर कब जायेगी , महोदय उत्तराखंड में सरकारी और गेरसरकारी संगठोनो के माध्यम से एड्स से बचाव की जानकारी के लिए वैश्शियों को जागरूक किया जा रहा है वो जानकारी r .t .i के तहत आप मांग सकते हैं अगर सत्यता पर शक हो तो, इसका कारन है की यहाँ एक हिंदूवादी पार्टी की सरकार है और उनकी सोच भी कुछ ऐसी ही है की सब ठीक है हमारी संस्कृति में कुछ गलत होता ही नहीं , jab एक atee pichde क्षेत्र के ये हाल हैं तो delhi की baat तो क्या ही करनी है , nivedan है की iskee जानकारी kara lein
      ६— ** कुल जमा बात है कि इस्लाम और यूरोपियों के आगमन
      ab आप अपनी शैली में आ ही गए सब कुछ विदेशी आक्रमणकारियों पर मढ़कर चैन से सो जाओ, महोदय यही एक कारन है की जो हमको सुधारवादी नहीं होने देता है
      ७—- *दोहरा दूँ कि ये हम——————–कुटिल चाल चल रहे हैं.
      महोदय,
      महोदय अभी तक आपने हमारे समाज में व्याप्त कुरित्यों को दूर करने या समझने का एक भी प्रयास नहीं किया है , चाहे वे वर्तमान समाज में हो या पुरातन समाज में हों ,
      ८— * क्षमा चाहूँगा कि मैं देश के दुश्मनों को शुभकामनाये देने का अपराध नहीं कर सकता. एक ‘प्रेत टिप्पणीकार’ लेखिका,,,,,,,
      महोदय हम ऐसा कोई काम नहीं जान भूजकर नहीं करते जिसके लिए क्षमा मांगनी पड़े , ये आपका बड़प्पन है , महोदय आपके लिए शुभकामनाये हमेशा , हम आपसे उम्र और तजुर्बे में बहुत छोटी हूँ आपका आशीर्वाद हमेशा चाहूंगी, एकलव्य की ही भांति सही ,
      ९—- तः जब भी देशभक्त सत्ता संभालेंगे—— तो महोदय निम्न कार्य होंगे ,
      १- झूठा शपथपत्र सुप्रीमकोर्ट में उ.प सरकार देगी
      २- नोबले पुरूस्कार की लालसा में आगरा शिखर वार्ता का तमाचा खाना पड़ेगा और कारगिल यौध में पैसा और जवान दोनों खोये जायेंगे
      ३– अफज़ल गुरु जेसे लोग छोड़ दिए जायेंगे जो फिर संसद पर हमला करेंगे और देश्भाल्ट उसकी फांसी पर राजनीति करेंगे
      ४– अमृतसर में खड़े वायुयान को ससम्मान कंधार भेजकर एक आंतरिक मामले को विदेशी मामला बनाया जायेगा और फिर अजहर मसूद जेसे लोगो को बिलकुल बहिन के पति की तरह सम्मान देते हुए आज़ाद किया जायेगा ताकि वो आराम से मुंबई, डेल्ही, और ताज होटल, नरीमन पॉइंट जेसे हादसे प्लान करेंगे ,
      ५— फिर एक वैकल्पिक प्रधानमन्त्री ही बन पाया व्यक्ति अपनी जनम भूमि जायेगा, और भारत माँ के टुकड़े करने वाले कातिल की मज़ार पर सर झुका कर उसको क्लीन चिट दे आएगा
      ६– फिर एक पुस्तक लिखी जाएगी जिसमे जिन्नाह (माफ़ करे उसका तो हो गया) मुशर्रफ , ज़रदारी आदि की स्तुती की जाएगी और पार्टी से अन्दर बहार का खेल शुरू हो जायेगा
      ———- अंत में आपने लिख ही दिया की आपस सज्जन कोइ नहीं हम दुर्जन भी इसका समर्थन करते हैं , आपके आशरवाद की अभिलाषा में – शत शत नमन करते हुए ——- प्रेतबाधा दीपा शर्मा, हमने अपना पता प्रवक्ता को भेज दिया है

    • जवाब देने वालों को तो आप पहले ही मैकाले पुत्र बता चुके हैं अतः मेरा भी हक़ बनता है की मैं भी आपको कुछ ठहरा दूं फिर कुछ कहूं. मैंने नाम खोजा है koop-mandook के मानस पुत्र. अरे भाई हर समय तुम लोग भारतीय संस्कृति को चिल्ला चिल्ला कर महान बताने में लगे रहते हो. क्यूँ चिल्लाते हो इतना. क्या महान लोग ऐसे ही चिल्लाते हैं? या फिर हो नहीं माहन ये जानते हो लेकिंग सिद्ध करना चाहते हो. या फिर तर्कों की गहरायी को आवाज़ की ऊंचाई से बराबर करते हो. इस्लाम, कसब, गुरु, के रूप में ही तुम्हारे पास तर्क हैं. उन्हीं के प्रकाश में हर बात क्यूँ तोलते हो. हिन्दू संस्कृति की म्हणता इस्लाम या अन्य संस्कृतियों को गरिया कर ही सिद्ध क्यूँ होती है? मुस्लिम देशों में अगर स्त्रियों की हालत भयानक है तो इससे हमारे देश में स्त्रियों पर हो रहे अत्याचारों से कैसे मुह मोड़ा जा सकता है?. वहां संग्बाज़ी की जाती है यहाँ तो राजस्थान, गुजरात, पंजाब, हरयाणा में पैदा होने से पहले ही मार दिया जाता है? लड़की मर्जी से विवाह कर ले तो हत्या हो जाती है? इन बातों पर शर्म से सर झुकने की बजाये आप लोगों का सर ऐंठ कर और ऊंचा क्यूँ हो जाता है और उसमें जे इस्लाम, यूरोप के लिए गालियाँ क्यूँ निकलने लगती हैं. लड़की विवाह के बाद नरक भोगती रहे, और एक दिन दहेज़ के लिए उसकी बलि ले ली जाये इस पर आप क्या कहेंगे.किसी हिन्दू से पूछिए तो यहोई बोलेगे जी दहेज़ के लिए तो शास्त्रों में लिखा है. क्या यह किसी संग बाजी के कमतर गुनाह है.. संग्बज़ी तो तब भी किसी गुनाह की सजा है पर किसी के पति की मृत्यु हो जाने पर उसे जिंदा जला देना महान कार्य है? तुम्हारी नज़रें शर्म से क्यूँ नहीं झुकतीं. यह संकल्प पैदा क्यूँ नहीं होता की इस्लाम और ईसाईयों पार भोंकने के बजाये अपना घर सुधारना है. swayam को महान बनाओ. देश ab हमारे haathon में है ab हर kamzori का doshi musalman aakrantaon या angrezon me सर madh कर kaam नहीं chalega और ना hii shuturmurg की bhanti सर chupa कर.. prashnon का saamna करो और viiron की bhanti un kamzoriyon को door करो.tabhi ham bharat को महँ keh payenge. abhit तो bas ham apne ही banye fool’s paradise में रहते हैं.

      • चेयरमैन निमोट गिमिश का कथन देख लें जो दुखी मन से कह चुके हैं कि, ”girls 14 are producing babies…” कपूर साहब वे लोग कम से कम दुखी तो हैं इस स्थिति पर और मामलों को संसद में ले जा रहे तुम लोग तो वह भी नहीं कर रहे.

    • लज्जा जैसी पुस्तक कोई हिन्दू स्त्री कब लिखेगी और तब कपूर साहब उस पुस्तक को सराहेंगे या लतिया देंगे? लज्जा चुकी एक मुलिम ने अपने समुदाय की आलोचना करते हुए लिखी है इसलिए कपूर साहब को पसंद आई है लेकिन हिन्दू स्त्रियों की दुर्दशा सामने लेन पर ये उन्हें घड़ियाल कहेंगे, विदेशों का एजेंट कहेंगे, वामपंथी कहेंगे फतवे जारी करेंगे. असल में जिन कठमुल्लों ने तसलीमा को परेशां किया वैसे ही काठमुल्ले हमारे समाज में भी हैं जिन्हें देखना हो यहाँ आ जाएँ दर्शन के लिए.

  32. मुझे इस पोस्ट को इस पर लिखी प्रतिक्रियाओं को पढने में रात को कई घण्टे तक बैठना पडा। इसलिये रात को नींद भी पूरी नहीं हुई। जागने के बाद कई जरूरी काम निपटाये और अब जबकि मैं कुछ लिखने बैठा हँू तो देखता हँू कि आज फिर से कई पाठकों के विचार सामने हैं। सब कुछ पढने के बाद और इसकी आगे की सम्भावनाओं को ध्यान में रखते हुए मैं इस उम्मीद के साथ कि मेरी टिप्पणी को पाठक अन्यथा नहीं लेंगे, मैं अपने विचार बिना पूर्वाग्रह के व्यक्त करना चाहता हँू।

    मैं इस नतीजे पर पहुँचा हँू कि यहाँ जिस विषय पर चर्चा करवाई गयी है, उसके पीछे के निहितार्थ वे नहीं हैं, जो कि दिखावे के लिये इसके शीर्षक में लिखे गये हैं।

    जिसे शुरू करते हुए पहली टिप्पणी करने वाले श्री गोपाल सामन्तो (अंग्रेजी से हिन्दी अनुवाद करने में कोई गलति हो तो क्षमा करें) की टिप्पणी से चर्चा को कोई दिशा नहीं मिल पायी।

    दूसरी टिप्पणी करने वाले श्री चण्डीदत्त शुक्ल शायद प्रवक्ता डॉट कॉम सम्पादक मण्डल की नजर में सबसे महत्वपूर्ण पाठक हैं। जिनकी ओर से उठाये गये सवाल का वाकायदा जवाब दिया गया है और इससे पहले ही शुक्ल जी चुप बैठ गये।

    इसी प्रकार तीसरी टिप्पणी श्री विश्वनाथ जेना जी की है, जिसकी ओर किसी का ध्यान ही नहीं गया, क्योंकि उनकी टिप्पणी चर्चा की धारा को बढाने या रोकने या बदलने में कारगर नहीं रही।

    चौथी टिप्पणी आरती जी की है, जिसमें भी कोई दम नहीं है।

    पांचवी टिप्पणी की पहली लाइन में ही श्री विश्वास प्रभुदेसाई ने इस चर्चा के लिये लेख में प्रस्तुत तथ्यों पर सन्देह जताया, लेकिन इनके सन्देह पर आज तक प्रवक्ता डॉट कॉम को स्पष्टीकरण देने की फुर्सत नहीं मिली है।

    चर्चा की असल शुरूआत डॉ. पुरूषोत्तम मीना निरंकुश जी की छठी टिप्पणी से होती है, जिसमें उन्होंने पहली ही पंक्ति में चर्चा की असलियत को उजागर कर दिया है। इसके बाद तो अधिकर पाठक या तो डॉ. निरंकुश जी की बात का विरोध कर रहे हैं या फिर समर्थन।

    जबकि कुछ पाठक तो तर्क-वितर्क के दौरान जबरदस्ती बीच में आतंकवाद, मुसलमान, धर्मनिरपेक्षता, आएएसएस, भाजपा, तागडिया जैसे विचारों को ले आये हैं। एक महाशय ने तो प्रवीण तोगडिया की तुलना सुभाषचन्द्र बोस तक से कर डाली है, जिससे उनके विचारों एवं सोचने के दायरे का पता चलता है।

    बीच में रश्मी के. शाह की ओर से चर्चा पर पांच गम्भीर सवाल उठाये गये हैं, जिन पर आज तक प्रवक्ता डॉट कॉम की ओर से किसी भी प्रकार का जवाब नहीं देना और श्री चण्डीदत्त शुक्ल की कम गम्भीर टिप्पणी का जवाब देना प्रवक्ता डॉट काम की निष्पक्षता पर सवाल खडे करता है।

    इसके बाद डॉ. राजेश कपूर की टिप्पणी पर विवाद हुआ, जिसका समाधान निकालने के लिये डॉ. निरंकुश ने डॉ. कपूर पर सब कुछ छोड दिया और डॉ. कपूर ने भी उदारता एवं समझदारी का परिचय देकर अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी, हालांकि उन्होंने अन्ततक अपने व्यंगात्मक तेवर नहीं छोडे हैं।

    दीपा शर्मा ने डॉ. निरंकुश द्वारा उठायी गयी आपत्ति को अन्त तक पकडे रखा है, हालांकि बीच-बीच में अन्य कुछ और पाठकों ने भी पक्ष में एवं विपक्ष में टिप्पणी की हैं।

    इसी बीच में मोहम्मद राशिद की टिप्पणी में कई अच्छी और चर्चा को दिशा देने वाली बातें लिखी गयी हैं, लेकिन लगता है कि उनकी ओर किसी का ध्यान नहीं गया।

    इसी प्रकार रश्मि के. शाह एवं श्री पटेल की ओर से प्रस्तुत डांडिया नाच के समय होने वाले अनैतिक क्रियाकलापों एवं उनमें धर्म से जुडे लोगों के शामिल होन की अत्यन्त गम्भर बात पर भी पाठकों ने तनिक भी ध्यान नहीं जाना आश्चर्यजनक है?

    इससे यह लगता है कि यह बहस दो प्रकार के पाठकों के बीच बंट गयी, एक वे जो प्रवक्ता डॉट कॉम की केन्द्रीय सरकार को कटघरे में खडी करने वाली बात का समर्थन कर रहे हैं और इसे सिद्ध करने के लिये वे भाषा एवं संयम की सारी सीमाओं को लांघते रहे हैं, फिर भी उनकी टिप्पणी प्रकाशित हो रही हैं।

    दूसरे वे पाठक हैं, जो डॉ. निरंकुश की ओर से चर्चा की मंशा को लेकर उठाये गये सवालों तथा उन सवालों को दबाने वालों का प्रतिकार करते हुए कभी-कभी संयम को तोडते हुए सटीक और तथ्यात्मक जवाब पेश कर रहे हैं।

    कुल मिलकर इस चर्चा से पाठकों, देश को या समाज को कोई लाभ हो न हो प्रवक्ता डॉट कॉम की पॉपुलरिटी तो बढ ही रही है। यही तो किसी भी न्यूज पार्टल का आजकल असली मकसद है। अब पाठकों पर निर्भर करता है कि वे अपने विवेक का इस्तेमाल करना चाहते हैं या फिर अपनी सोच का दूसरों के अनुसार संचालन चाहते हैं?

    अन्त में इस चर्चा का दूसरा मकसद जो पहली ही नजर में स्पष्ट हो रहा है, वह यह इसके पीछे काँग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार को कटघरे में खडा करना दूसरा मकसद लग रहा है।

  33. Dear Editor,
    As per your claim regarding the registration of the sex workers for Common Wealth Games’ visitors, i simply ask…. What is the documentary evidence to support your claim. Kindly mail me the same at arif@amarbharti.com

  34. सीता, सावित्री के देश भारत में जहां नारी की पूजा की जाती है, वहां सरकार की ओर से नारी को भोग की वस्तु बनाकर प्रस्तुत करना क्या उचित है? आप क्या सोचते हैं?…………………
    वेदों के दीर्घतमा ऋषि, पुराणों की अप्सराएँ, आर्ष काव्यों, रामायण एवं महाभारत की शताधिक उपकथाएँ मनु, याज्ञवल्क्य, नारद आदि स्मृतियों का आदिष्ट कथन, तंत्रों एवं गुह्य साधनाओं की शक्तिस्थानीया रूपसी कामिनियाँ, उत्सवविशेष की शोभायात्रा में आगे-आगे अपना प्रदर्शन करती हुई नर्तकियाँ किसी न किसी रूप में प्राचीन भारतीय समाज में सदैव अपना सम्मानित स्थान प्राप्त करती रही है। “नारी प्रकाशो सर्वगम्या” कहकर वेश्याओं की ही स्तुति की गई है। “पद्मपुराण” के अनुसार मंदिरों में नृत्य के लिए बालिकाएँ क्रय की जाती थीं। ये नर्तकियाँ वेश्याओं से भिन्न नहीं थीं। ऐसी मान्यता थी कि मंदिरों में नृत्य हेतु बालिकाएँ भेंटस्वरूप प्रदान करनेवाला स्वर्ग प्राप्त करता था। “भविष्यपुराण” के अनुसार सूर्यलोकप्राप्ति का सर्वोत्तम साधन सूर्यमंदिर में वेश्याओं का समूह भेंट करना माना जाता था। दशकुमारचरित, कालिदास की रचनाएँ, समयमातृका, दामोदर गुप्त का कुट्टनीमतम् आदि ग्रंथों में वीरांगनाओं का अतिरंजित वर्णन मिलता है। कौटिल्य अर्थशास्त्र ने इन्हें राजतंत्र का अविच्छिन्न अंग माना है तथा एक सहस्र पण वार्षिक शुल्क पर प्रधान गणिका की नियुक्ति का आदेश दिया है। महानिर्वाणतंत्र में तो तीर्थस्थानों में भी देवचक्र के समारंभ में शक्तिस्वरूपा वेश्याओं को सिद्धि के लिए आवश्यक माना है। वे राजवेश्या, नागरी, गुप्तवेश्या, ब्रह्मवेश्या तथा देववेश्या के रूप में पंचवेश्या हैं। स्पष्ट है कि समाज का कोई अंग एवं इतिहास का कोई काल इनसे विहीन नहीं था। इनके विकास का इतिहास समाजविकास का इतिहास है। त्रिवर्ग (धर्म, अर्थ, काम) की सिद्धि में ये सदैव उपस्थित रही हैं। वैदिक काल की अप्सराएँ और गणिकाएँ मध्ययुग में देवदासियाँ और नगरवधुएँ तथा मुसलिम काल में वारांगनाएँ और वेश्याएँ बन गइं। प्रारंभ में ये धर्म से संबद्ध थीं और चौसठों कलाओं में निपुण मानी जाती थीं। मध्युग में सामंतवाद की प्रगति के साथ इनका पृथक् वर्ग बनता गया और कलाप्रियता के साथ कामवासना संबद्ध हो ग पर यौनसंबंध सीमित और संयत था। कालांतर में नृत्यकला, संगीतकला एवं सीमित यौनसंबंध द्वारा जीविकोपार्जन में असमर्थ वेश्याओं को बाध्य होकर अपनी जीविका हेतु लज्जा तथा संकोच को त्याग कर अश्लीलता के उस पर उतरना पड़ा जहाँ पशुता प्रबल है।

    भारतवर्ष में वैवाहिक संबंध के बाहर यौनसंबंध अच्छा नहीं समझा जाता है। वेश्यावृत्ति भी इसके अंतर्गत है। लेकिन दो वयस्कों के यौनसंबंध को, यदि वह जनशिष्टाचार के विपरीत न हो, कानून व्यक्तिगत मानता है, जो दंडनीय नहीं है। “भारतीय दंडविधान” 1860 से “वेश्यावृत्ति उन्मूलन विधेयक” 1956 तक सभी कानून सामान्यतया वेश्यालयों के कार्यव्यापार को संयत एवं नियंत्रित रखने तक ही प्रभावी रहे हैं। वेश्यावृत्ति का उन्मूलन सरल नहीं है, पर ऐसे सभी संभव प्रयास किए जाने चाहिए जिससे इस व्यवसाय को प्रोत्साहन न मिले, समाज की नैतिकता का ह्रास न हो और जनस्वास्थ्य पर रतिज रोगों का दुष्प्रभाव न पड़े। कानून स्त्रीव्यापार में संलग्न अपराधियों को कठोरतम दंड देने में सक्षम हो। यह समस्या समाज की है। समाज समय की गति को पहचाने और अपनी उन मान्यताओं और रूढ़ियों का परित्याग करे, जो वेश्यावृत्ति को प्रोत्साहन प्रदान करती हैं। समाज के अपेक्षित योगदान के अभाव में इस समस्या का समाधान संभव नहीं है।

  35. महोदय , ये आंकड़े इसकी भयावह स्तिथि बताते हैं परन्तु परिचर्चा का दायरा बहुत छोटा कर दिया गया है , हमेशा की तरह इसको गोरव्शाली इतिहास और वर्तमान सरकार की बुराइयों तक सीमित करने का प्रयास किया जा रहा है , यहाँ अक्सर यही देखने में आ रहा है की परिचर्चा को एक निश्चित रुख देकर एक धरा विशेष का गुणगान किया जाता है जो की गलत है परिचर्चा को व्यापक प्रभाव दिया जाना चाहिए ताकि कुछ निर्णायक तथ्य सामने आ सकें . ये समस्या सिर्फ राष्ट्र मंडल खेलो तक सीमित नहीं की जनि चाहिए थी , इसका दायरा बड़ा होना चाहिए ,
    उम्मीद है की आगे इस पर ध्यान दिया jayega

  36. सबसे अहम सवाल है जब सरकार ने कहा कि वेश्यावृत्ति कानूनन जुर्म है तो रेड लाइट एरिया का निर्माण ही क्यों किया?

    राष्ट्रीय महिला आयोग की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि देश के 612 जिलों में से आधे से अधिक जिलों में महिलाओं और बच्चों से यौनाचार के लिए उनकी तस्करी की जा रही है। रिपोर्ट कहती है कि 378 जिलों में 1,794 ऐसे चिह्न्ति स्थान हैं जो देह व्यापार जैसे अनैतिक कार्य के केंद्र हैं और 1,016 ऐसे स्थान हैं जहां पेशेवर देह व्यापार हो रहा है। केरल, आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल के लगभग सभी जिले अनैतिक कार्यों के लिए महिलाओं और बच्चों की तस्करी की समस्या से ग्रस्त हैं। तमिलनाडु में 93. 33 प्रतिशत जिले, उड़ीसा में 86. 66 फीसदी जिले और बिहार में 86. 48 फीसदी जिले इस समस्या से प्रभावित हैं।

    रिपोर्ट के अनुसार, देश में 15 साल से 35 साल की उम्र की महिलाओं की कुल आबादी में से 2.4 फीसदी महिलाएं वेश्यावृत्ति से जुड़ी हैं। इसमें कहा गया है भारत में पेशेवर यौनकर्मियों की संख्या करीब 28 लाख है। इनमें से 43 फीसदी से अधिक महिलाएं उस समय अवयस्क थीं जब वे देह व्यापार से जुड़ी थीं। आयोग का कहना है कि वेश्यावृत्ति के 50 फीसदी से अधिक मामलों का सबसे बड़ा कारण रोजगार के नाम पर झांसा देना है। रिपोर्ट में कहा गया है कि देह व्यापार से जुड़ी और इसकी खातिर तस्करी की शिकार 22 फीसदी से अधिक महिलाएं ऐसी हैं, जिन्हें उनके परिवार के सदस्यों ने ही इस धंधे में जाने के लिए बाध्य किया।

    आयोग की रिपोर्ट आगे कहती है कि करीब आठ फीसदी महिलाओं को देह व्यापार के लिए उनके पतियों या ससुरालवालों ने बाध्य किया और 18 फीसदी महिलाओं को मित्रों या पड़ोसियों ने लालच दे कर इस धंधे में धकेला। पेशेवर देह व्यापार में लिप्त 51 फीसदी से अधिक महिलाएं ऐसी हैं, जिन्हें उनके परिवारवालों या ससुरालवालों ने इस धंधे में जाने के लिए मजबूर किया।

    गृह मंत्रालय ने वर्ष 2007 के आँकड़े जारी किए हैं, जिनके अनुसार वेश्यावृत्ति के 1199 मामले तमिलनाडु में और 612 मामले कर्नाटक में दर्ज किए गए। ये मामले वेश्यावृत्ति निवारण कानून के तहत दर्ज किए गए।

    दोनों राज्यों में ऐसे मामलों में 3700 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है। आँकड़ों के अनुसार दिल्ली में 217 व्यक्तियों को इस कानून के तहत गिरफ्तार किया गया और 112 को दोषी ठहराया गया।

    वर्ष 2007 में पुलिस ने वेश्यावृत्ति को बढ़ावा देने के आरोप में 9861 व्यक्तियों को गिरफ्तार किया और इस सिलसिले में 3568 मामले दर्ज किए। हालाँकि इस अपराध के लिए केवल 3220 व्यक्तियों को ही दोषी ठहराया गया।

    आंध्रप्रदेश में वेश्यावृत्ति के 612 मामले और महाराष्ट्र में 322 मामले दर्ज किए गए। इस सिलसिले में आंध्रप्रदेश में 1700 लोगों को गिरफ्तार किया गया, लेकिन 361 को ही दोषी ठहराया गया। महाराष्ट्र में कुल 1266 व्यक्तियों को गिरफ्तार किया गया।

  37. महोदय, आज मेरी परीक्षा होने के कारण में दो दिन नहीं आ पाई, कुछ लोगो ने मुझे पाकिस्तानी होने की भी संज्ञा दे डाली है ,
    जो मेरे लिए आश्चर्य और दुःख मिश्रित अनुभूती है , परन्तु नारी का सम्मान हमारे देश की परम्परा है और वो लोग इस परम्परा को कायम रख रहे है , और रखते रहेंगे, मुझे संपादक जी से शिकायत है की उनको इस प्रकार की तप्पनिया प्रकाशित नहीं करनी चाहिए थी, मेने पहले भी निवेदन किया था की व्यक्तिगत कमेन्ट न प्रकाशित किये जाएँ जो किसी की निजी पहचान पर होते हो , आलोचनाओ को प्रकाशित किया जा सकता है परन्तु मुझे पाकिस्तानी की संज्ञा दिए जाने का अफ़सोस है की वो भी प्रकाशित किया गया है …………..
    खैर आगे जरी रखते हुए में आप लोगो के सामने कुछ और तथ्य रखना चाहती हूँ जो परिचचा के अनुरूप हैं निवेदन है यदी किसी को मुझे जानना हो तो वो सीधे मेरे बारे में पूछे यदि किसी ने लांचन लगाया तो ……….
    कुछ नहीं होगा वो लगता रहे और प्रवक्ता.कॉम प्रकाशित करता रहे

  38. आजकल गर्म टोपिक आतंकवाद ही है रश्मि जी , तो घूम फिर कर वहीँ आना पड़ता है जी , मुसलमान तो बिलकुल युवराज सिंह जेसे हो गए हैं टीम में हो तो भी आफत न हो तो भी आफत , मंदिर का घंटा हैं जी बजाये जाओ जब तक दिल करे जी

  39. यह सारी चर्चा इस बात को मान के चल रही है कि:
    १. सारे सैक्स वर्कर स्त्रियां ही हैं
    २. जो स्त्रियां सैक्स वर्कर नहीं हैं उन सबका जीवन आत्मसम्मान से भरा है
    ३. एइड्स केवल व्यावसायिक यौन संबंधों से ही फैलता है और फैलेगा ही
    ४. एइड्स फैलने से कोई सामाजिक फ़ायदा नहीं होगा – ख़ास कर के आबादी कम नहीं होगी
    ऐसी पूर्वधारणाओं के रहते हुए आपको सही मानने के सिवाय कोई रास्ता तो आप छोड़ते नहीं हो! फ़िर किस बात की चर्चा?

  40. इस देश में नारी अपने उत्पीड़न की बात करें और ब्राह्मणवादी एवं मनुवादी विचारधारा के पोषक कट्टर हिन्दु उसे स्वीकार कर लें, ऐसा सम्भव ही नहीं. क्योंकि उन्हें नारी में माता-बहन तो दिखती ही नहीं. नारी उत्पीड़न में भी मुसलमानों और आतंकियों को शामिल करके बात को कहाँ से कहाँ घसीट लाते हैं. सुभाषचन्द्र बोस को इससे बड़ी कोई गाली हो सकती कि उनकी तुलना तोगड़िया जैसे साम्प्रदायिकता का जहर फैलाने वाले कानून के अपराधी से की जाये?

    आजादी का विरोध करने वालों के वंशजों को अब सुभाष चन्द्र बोस, भगत सिंह, चन्द्र शेखर आजाद, बाल, पाल, तिलक सभी अपने और अपनी विचारधारा के नजर आने लगे हैं. संसद पर हमला करवाने में कथित रूप से जिन लोगों का हाथ बतलाया जाता है, वे भी देशभक्ति की बात करते हैं. नारी की पूजा का स्वांग रचने वाले हिन्दू धर्म के ठेकदार आपनी बहन बेटियों के बारे में घिनौने से घिनौने शब्दों का प्रयोग करने और घटिया से घटिया कृत्य को अंजाम देने से नहीं चूकते हैं. वैचारिक विरोध को प्रायोजित बतलाते हैं.
    और तो और घटिया शब्दावलि का प्रयोग करने वालों की भाषा पर प्रवक्ता डॉट कॉम को भी आपत्ति नहीं है? ऐसे में इस साइट पर विचार प्रकट करने का कोई औचित्य नहीं रह गया है? सम्पादक को भी इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि राष्ट्रवाद की बात करने वाले धर्म का चोगा ओढ कर संयम की सीमाओं को किस प्रकार से नष्ट-भ्रष्ट कर रहे हैं?

    मुझे तो लगने लगा है कि यह परिचर्चा प्रस्तुत करने वालों एवं परिचर्चा पर फासीवादी विचारधारा में जहर उगलने वालों में वैचारिक समानता है. ऐसे में यहाँ पर न्याय की उम्मीद करना व्यर्थ है. फिर भी पाठकों की आवाज को दबाया नहीं जा सकता.

    अतः सीधा प्रवक्ता डॉट कॉम से सवाल है कि नारी की पूजा की बात आपने ही शुरू की है, लेकिन आपने उठाये गये सवालों के जवाब देने की जरूरत क्यों नहीं समझी है? आप बतायेंगे कि नारी की पूजा करने के लिये मनु के एक श्लोक के अलावा हिन्दू धर्म में कहाँ कोई उल्लेख है?

    आपकी बात का समर्थन करने वालों के पास फालतू की बकवास के अलावा कुछ भी नहीं है. बस हर बात में मुसलमानों को घसीट लाते हैं। कम से कम मैंने तो किसी मुसलमान आतंकवादी या हिन्दू आतंकवादी को संरक्षण का ठेका नहीं ले रखा है. यदि कोई सरकार ऐसा करती है तो आम जनता कर भी क्या सकती है?

    इन लोगों को अजमेर की दरगाह में पकड़े गये आतंकियों और कन्धार काण्ड याद ही नहीं आता? जब अटल सरकार ने आतंकियों को मेहमान की तरह कन्धार जाकर छोड़ा था, तब ये राष्ट्रभक्त किस बिल में छुपे हुए थे?

    सच्चाई को स्वीकार करो, आतंकियों, अतिवादियों, साम्प्रदायिकों, धर्म के नाम पर नारी और पुरुष में विभेद करने वालों, बहुओं को जालाने वालें, कन्या भ्रूण हत्या करने वालों, शोषक, भ्रष्टाचारियों, घोटालेबाजों, निरीह व कमजोर लोगों पर अत्याचार करने वाले एवं इनका समर्थन करने वाले दुष्ट लोगों की न तो कोई जाति होती न कोई धर्म. ये सब कानून, मानवता और राष्ट्र के अपराधी हैं, जिन्हें जेल में बन्द किया जाना चाहिये, दण्डित किया जाना चाहिये। इनमें भी जो लोग हिन्दू-मुसलमान का भेद करते हैं वे असंवैधानिक और अनैतिक कार्यों को बढावा देने के दोषी हैं।

  41. आप लोगो के विचारों को जाना मैंने यहाँ….और एक बात सत्य है जो वो यही है कि
    हमारे देश में नारी को आज भी दोयम दर्ज़ा हासिल है .
    अपने लिखा है

    ‘सीता, सावित्री के देश भारत में जहां नारी की पूजा की जाती है, वहां सरकार की ओर से नारी को भोग की वस्तु बनाकर प्रस्तुत करना क्या उचित है? आप क्या सोचते हैं?”

    हमारे यहाँ यही तो होता है..नारे को सम्मान कोई और क्या देगा जब घर में ही उसका सबसे जयादा अपमान कई प्रकार से करा जाता है.

  42. * श्रीयुत डा. मीना जी ! आशा नहीं थी कि मेरी बात के वे अर्थ निकाले जायेंगे जो मैंने कहे ही नहीं. मेरी कही बातों के जो अर्थ मोहंती महोदय निकाल रहे हैं, वे स्पष्ट अर्थ आपके ध्यान में क्यों नहीं आ रहे ? नीयत पर संदेह नहीं कर सकता, एक ही बात हो सकती है कि अत्यधिक व्यस्तता के कारण मेरे कहे के गलत अर्थ आपने लगा लिए. . कृपया मेरी उस टिप्पणी को एक बारफ़ फिर से पढ़ लें, विश्वास है कि भ्रम दूर हो जाएगा. आपको इंगित करके अपमानित, आहात करने वाला एक भी शब्द मेरी और से नहीं कहा गया है.
    आशा है कि अपना विश्वास व स्नेह पूर्ववत बनाए रखेगे.
    * मुझे शालीन भाषा के प्रयोग का उपदेश देते हुए मेरे विरुद्ध जिस शालीन भाषा का प्रयोग कुछ लोगों ने किया है, उस भाषा का जवाब देने जितना ऊंचा स्तर मेरा अभी तक नहीं बना और न में बनाना चाहूँगा. ऐसी भाषा अगर शालीन है तो ये शालीनता उन्हें मुबारक. ईश्वर उन्हें सदबुद्धी दे.
    #*मुझे बहुत स्पष्ट नज़र आ रहा है कि देश के हितो के खिलाफ साजिश करने वालों के लिए केवल कठोर शब्दों के प्रयोग का समय अब अधिक देर तक नहीं रहने वाला, इससे बहुत अधिक होने का समय बहुत निकट है. *#
    * अनापेक्षित रूप से जितनी तीव्र और अधिक संख्या में अतिवादी प्रतिक्रियाएं मेरे कहे के विरोध में आई हैं, वे यदि तर्क सांगत होतीं तो नीयत पर संदेह न होता. पर जो कहा ही नहीं, वे अर्थ निकालना, अपशब्दों का प्रयोग, जो कहा गया उसका एक भी तार्किक उत्तर न देकर फतवे जारी करने वाली आतंकवादी प्रवृत्ती; दाल में काला नहीं शायद दाल ही काली है. ज़रा एक बार मेरे कथनों को पढ़कर फैसला करें कि कटु टिप्पणीकारों की टिप्पणियाँ कितनी उचित या अनुचित हैं.
    * कुल मिलाकर एक बात बड़ी अच्छी तरह से रेखंकित हुई है कि ———-
    # जो लोग या संस्थाए भारत-भारतीयता के पक्ष में कुछ भी करने, बोलने, लिखने का साहस करते हैं, उनके खिलाफ काम करने वाली भारत में एक शक्तीशाली लॉबी है जो पूरी ताकत से उन व्यक्तियों और लोगों को प्रताड़ित, अपमानित, लांछित, निरुत्साहित तथा और भी बहुत कुछ करने के लिए काम कर रही है.
    # भारत, भारतीयता का उत्कर्ष चाहने वालों को मैं और मेरे जैसे अनेक लोग यही तो बतलाने का प्रयास कर रहे हैं कि आप लोगों के खिलाफ बहुत बड़ी साजिश है, आप लोगों को, आपके देश, धर्म व संस्कृती को समाप्त करने की.उसे समझें.
    # अतः मेरा निवेदन है कि जो लोग भारत की कमियों, दोषों, रुढियों से व्यथित और पीड़ित हैं तथा उन्हें सुधारने का इमानदार प्रयास कर रहे हैं ; उन्हें अपने देश, धर्म संस्कृति की अनुपम विशेषताओं का भी स्मरण करते रहना चाहिए जिससे वे स्वयं हीनता की ग्रंथी का शिकार बनने से बचे और दूसरे लोग भी आप लोगों के कारण हीनता के बोध का शिकार न हों. आशा है कि इसके महत्व को समझा जाएगा. अन्यथा देश के दुश्मनों की कुचालों को सफल बनाने में हम स्वयं सहयोगी सिद्ध होंगे. हमारे लोकप्रिय व देशभक्त पूर्व राष्ट्रपती डा. अब्दुल कलाम की पुस्तक ”अग्नी पथ”’ का कथन स्मरणीय है कि हमारे पास सबकुछ है बस एक आत्म विश्वास के इलावा. क्या हम इसका अर्थ समझ रहे हैं ? हमारे आत्म विश्वास को तोड़ने की ही तो सारी कवायद है, ये बात सभी देशभक्तों को समझनी होगी.
    * कुछ देवियों ने भी मुझ पर टिप्पणी करने की कृपा की है, धन्यवाद ! नकारात्मक टिप्पणियों के जवाब में इतना ही निवेदन है कि समय हो तो कृपया पूर्वाग्रह रहित होकर पुनह पढ़ कर कुछ कहें यो शायद आपको अपने कथन निराधार लगें. मेरे कहे के जो अर्थ आप ने निकाल दिए वह तो कहा ही नहीं गया. पर क्या मुझे आशा करनी चाहिए कि अनेक कथन प्रायोजित नहीं ? कुछ पाठक मित्रों का तो विश्ववास है कि ये प्रायोजित है. सच क्या है जनाब …? पाठक समझ रहे हैं तो काफी है.
    ** एक तो कमाल की बात है कि *अक्षर-धाम में बम फोड़ो, लाखों कश्मीरी हिन्दुओं को मारो-विस्थापित बनाओ, देश के हितों और हज़ारों की लाशों के सौदे (भोपाल त्रासदी) करो, सिखों की हत्याए होना, जेलों के अन्दर और बाहर देश के गद्दारों को संरक्षण व प्रोत्साहन ; ऐसी सैंकड़ों बातें कोई समस्या नहीं, कोई मुद्दा नहीं. बस एक अपराध आज अक्षम्य है इन छुपे देश के दुश्मनों की नज़र में; भारत, भारतीय संस्कृति के पक्ष में कोई एक शब्द नहीं. असह्य है ये गंभीर अपराध. यह है वह सच जो अनेक प्रकार से छुपाया जा रहा है. इस समझ के साथ देश में घट रही घट- नाओं को देखेंगे तो दिन की तरह सब स्पष्ट होजायेगा.
    * मुझे तोगडिया जी से प्रभावित बता कर कहने वालों ने स्पष्ट कर दिया कि उनकी नीयत क्या है. तोगडिया जी ने हिन्दुओं को जगाने का गंभीर अपराध किया है.
    बेशक उन्हों ने देश में कोई हत्याकांड न करवाए हों, देश की संसद पर हमला न करवाया हो, अवैध हथियार घर में छुपा कर न रखे हों. पर वे बहुत बड़े अपराधी हैं इन सेक्युलारिस्तों की जमात की नज़र में. क्योंकि * वे देशभक्ती जगाने की कोशिश करते हैं. * भारतीय संस्कृति के सशक्त प्रवक्ता हैं. * सुभाष चन्द्र बोस जैसी ओजस्वी उनकी वाणी है. ऐसे खतरनाक लोगों के खिलाफ तो इन देश के ठेकेदारों को लाम बंद होना ही है.
    देशभक्ती व संकृती के पक्षधरों की हर स्तर पर समाप्ती करने वाली इन ताकतों की पहचान करना, इनके चेहरों से नकाब नोंचना ज़रूरी है.
    !! बिकास मोहंती जी, संबल प्रदान करने हेतु हार्दिक आभार !!

    • आपके निम्न कथन के लिए धन्यवाद!

      “आपको इंगित करके अपमानित, आहात करने वाला एक भी शब्द मेरी और से नहीं कहा गया है.”

    • mahoday,
      लोग आपकी बहुमुखी प्रतिभा से घबरा गए हैं आप के अन्दर इतनी प्रतिभा है की लोगो को लगने लगा है यदि आप इसी तरह से टिपण्णी देते रहे तो उनके अस्तित्व का क्या होगा
      आप बिना घबराए इसे ही लगे रहें हम आपके साथ हैं जी

    • ** एक तो कमाल की बात है कि *अक्षर-धाम में बम फोड़ो, लाखों कश्मीरी हिन्दुओं को मारो-विस्थापित बनाओ, देश के हितों और हज़ारों की लाशों के सौदे (भोपाल त्रासदी) करो, सिखों की हत्याए होना, जेलों के अन्दर और बाहर देश के गद्दारों को संरक्षण व प्रोत्साहन ; ऐसी सैंकड़ों बातें कोई समस्या नहीं, कोई मुद्दा नहीं. बस एक अपराध आज अक्षम्य है इन छुपे देश के दुश्मनों की नज़र में; भारत, भारतीय संस्कृति के पक्ष में कोई एक शब्द नहीं. असह्य है ये गंभीर अपराध. यह है वह सच जो अनेक प्रकार से छुपाया जा रहा है. इस समझ के साथ देश में घट रही घट- नाओं को देखेंगे तो दिन की तरह सब स्पष्ट होजायेगा.
      * मुझे तोगडिया जी से प्रभावित बता कर कहने वालों ने स्पष्ट कर दिया कि उनकी नीयत क्या है. तोगडिया जी ने हिन्दुओं को जगाने का गंभीर अपराध किया है.
      बेशक उन्हों ने देश में कोई हत्याकांड न करवाए हों, देश की संसद पर हमला न करवाया हो, अवैध हथियार घर में छुपा कर न रखे हों. पर वे बहुत बड़े अपराधी हैं इन सेक्युलारिस्तों की जमात की नज़र में. क्योंकि * वे देशभक्ती जगाने की कोशिश करते हैं.
      ===================
      महोदय क्या हर लेख में इन्ही बातों को किया जाना आवश्यक है, फिर यदि आपको कोई जवाब देगा तो आप उसको पुरे लाव लश्कर के साथ तालिबानी फतवे जरी करते हुए पाकिस्तानी, उमरी कैर्वानी , जेहादी, कांग्रेस और पता नहीं जो भी आपकी gang bang बोल सकती है बोल देगी ,
      अथ महोदय से निवेदन है की यहाँ आतंकवाद जेसा कोइ मुद्दा नहीं चल रहा है न ही यहाँ इस बात पर चर्चा है की हिन्दुज्म का सच्चा भक्त कौन है अथ महोदय से निवेदन है एक अलग से परिचर्चा कराएँ या फिर तोगडिया जी या आप कोइ नया लेख इस भांति का लिख दे की टिपण्णी उसी प्रकार की आयें जिनको करना आपको पसंद है , हम वहां ज़रूर आपको जवाब देंगी चाहे आप अपने लाव लश्कर के साथ हमको नारी सम्मान देते हुए परम्पराओं के साथ कुछ भे तालिबानी फरमान सुनतें रहे , परन्तु यहाँ परिचर्चा अलग है …………..
      आशा है आपका मार्गदर्शन मिलता रहेगा / आशिर्वादभिलासी ……… दीपा शर्मा

  43. अरे तुम लोग बेकार में बहस कर रहे हो. तुम लोगो के बहस करने से क्या सरकार अपना कदम वापस ले लेगी. करना ही है तो सड़क पर उतरकर सरकार पर दबाव बनावो, तब तो देश का कुछ भला होगा.

  44. महोदय, ज़रा इन पंक्तियों को देखिये जो इस लेख के प्रारंभ में लिखी हुई हैं की…………
    यह पतन की पराकाष्ठा है। पश्चिमी सभ्यता भारतीय जीवन-मूल्यों को लीलने में जुटा हुआ है। भारतीय खान-पान, वेश-भूषा, भाषा, रहन-सहन, जीवन-दर्शन इन सब पर पाश्चात्य प्रवृति हावी होती जा रही है। हम नकलची होते जा रहे हैं। हम अपना वैशिष्टय भूलते जा रहे हैं। हम स्व-विस्मृति के कगार पर हैं……….
    महोदय आप की ये पंक्तिया बतला रही हैं की भारत में वेश्यावृती पश्चिम से आयी हुई है और हम हमेशा की तरह पाक साफ़ हैं मगर महोदय मुझे आपको बताते हुए अत्यंत दुःख है की .वेश्यावृत्ति का भारत में उदय आधुनिक युग की घटना नही , मानव सभ्यता के आरम्भ से है। न ही यह पश्चिम का प्रभाव है। वेश्यावृत्ति तो एशिया महाद्वीप की खासियत है।पश्चिम में इसे छिपाया नही जाता। लेकिन भारत जैसे परिवारवाद, नैतिकतावादी समाज मे इसका स्वरूप पश्चिम से अधिक भयंकर है।यहाँ के पुरुष पारिवारिक मूल्यों को बहुत महत्व देते हैं लेकिन परिवार से उनका मतलब परिवार के स्थायित्व से है ,यानि तलाक न हों , न कि पत्नी के प्रति वफादार होने से।इसलिए यहाँ की यौन संहिता का आडम्बर झूठा है। वर्तमान में इसलिए अधिक हल्ला किया जा रहा है की सारा प्रचार ऐसा ही हो की ये सरकार के द्वारा किया गया कार्य है ये जो आपने अंतिम पंक्ति लिखी है ये भी वही दर्शाती है ………
    सीता, सावित्री के देश भारत में जहां नारी की पूजा की जाती है, वहां सरकार की ओर से नारी को भोग की वस्तु बनाकर प्रस्तुत करना क्या उचित है? आप क्या सोचते हैं?
    महोदय , अभी तक किसी ने भी जो की बड़े बड़े महानुभव है ये नहीं बताया है की भारत में कोण सी नारी की पूजा हुई है …………
    अत: मेरा निवेदन है उस नारी के बारे में बता दें जिसकी पूजा हमारे समाज ने की है ……………….
    शुभकामनाओं के और व्यक्तिगत कट्क्ष की उम्मीद के साथ ….. दीपा शर्मा

    • दीपा जी मैंने आपके विचार पढ़े ये सही बात है की भारत में ऐसी एक भी महिला नहीं है जिनकी पूजा की गयी हो किन्तु जैसे भी हो नारी जाती के सम्मान की परम्परा भी केवल भारत में है ऐसे में यदि भारत में वैश्या वृत्ति यदि पूर्व काल से है भी तो लुक छिप कर यदि हम कामनवेल्थ गेम के लिए खुले में सेक्स वर्कर्स को नेवता देते है तो वो भारत में ही अपने पाव पसारने में कोई कसर नहीं छोड़ेगे इसलिए ये गलत है और आपको तो लेखक का समर्थन करना चाहिए कम से कम यहाँ के पुरुसो का तो नैतिक पतन होने से bachega

      • क्या बात कही है, पुरषों का नैतिक पतन , इसके लिए तो संघर्ष करना ही चाहिए, क्योंकि यहाँ नैतिक स्तर नहीं है , अब टिपण्णी देख कर ही पता चल रहा है की क्या नैतिक स्तर है पुरषों का , सही बात है हम साथ हैं भाई

  45. मुझे लगता है ये जो डा कपूर जी के खिलाफ टिप्पणियां की जा रही हैं यह एक व्यक्ति अलग अलग नामों से कर रहा है । एक योजनाबद्ध तरीके से मूल मुद्दे से भटकाने के लिए यह कार्य किया जा रहा हो, यह संभव है । इसलिए इस तरह के निराधार आरोपों को खारिज करना चाहिए ।
    सधन्यवाद

    विकास

    • आदरणीय विकास जी,
      (Vikas or Bikas Ji)

      (यहाँ आप सम्पादक जी पर दबाव बनाने का प्रयास कर रहे है.)

      आपकी ओर से गलत को गलत कहने वाले प्रत्येक व्यक्ति/पाठक की प्रतिक्रिया पर टिप्पणी दी है और मुझे भी अपनी टिप्प्णी से अवगत करवाया गया है। इसके लिये आपका आभार।

      आदरणीय विकासजी, एक ओर तो आप मुझे विद्वान कह रहे हैं, दूसरी ओर आप मुझ पर बिना मतलब बखेडा करने का आरोप लगा रहे हैं। दोनों विरोधाभाषी बातें एक व्यक्ति में आपको दिख रही हैं। आपकी दृष्टि को प्रणाम।

      आदरणीय विकासजी, आपने हर टिप्प्णीकार को डॉ. कपूर जी की अधूरी पंक्ति का उल्लेख करके बात को स्पष्ट करने का प्रयास किया है, आपने साथ ही प्रत्येक पर बखेडा खडा करने का आरोप भी लगाया है। इससे यह बात तो स्पष्ट है कि आपकी टिप्पणी सत्य निष्ठा एवं सुहृदयतापूर्वक की गयी निष्पक्ष टिप्पणी तो नहीं ही कही जा सकती। फिर भी आपने विचारों को दबाने का अनैतिक प्रयास करके उसी भाषा और अभिव्यक्ति को बढावा दिया है, जो डॉ. कपूर साहब ने शुरु किया है।

      भाई विकास जी हम तो हजारों सालों से चुप हैं। आप लोग माननीय सम्पादक महोदय से इतना सा कहलवा दो कि आपको (मुझे) इस मंच पर सच्चाई बयान करने का हक नहीं है। हम एक शब्द भी यहाँ पर नहीं लिखेंगे। रही बात डॉ. कपूर साहब की टिप्पणी तो श्री विकास जी आपको पढने के लिये उनकी टिप्प्णी की पूरी आपत्तिजनक लाईन को दौहरा रहा हँू-

      “अरण्य कुमार जी, धन्यवाद. डा. पुरुषोत्तम मीना जी के उद्धरणों के उत्तर में जो कहने की ज़रूरत थी, वह आपने प्रस्तुत कर दिया है. भारत विरोधी मानसिकता का सर्वाधिक शिकार अंग्रेज़ी पढ़े होते हैं. अतः अंग्रेज़ी में इस सामग्री का उनके लिए उपयोग है. ”

      आदरणीय विकासजी, आप इस पूरी पंक्ति को अपने अन्तःकरण को तटस्थ रखकर पढें। आपको खुद को ज्ञात हो जायेगा कि आपने जो उपरोक्त टिप्पणी की है, वह सही है या डॉ. कपूर साहब की टिप्पणी पर की जा रही आपत्तियाँ सही हैं? वैसे आपने अपनी अन्तिम टिप्पणी में यह लिखकर कि ये सभी टिप्पणियाँ एक ही व्यक्ति द्वारा की जा रही हैं। अपनी सत्यनिष्ठा सन्देह के कटघरे में खडी कर ली है एवं डॉ. कपूर साहब की गलत बयानी का पक्षपाती होने का आपने स्पष्ट प्रमाण भी दे दिया है। अतः आपको हमें समझाइश देने का कोई नैतिक हक नहीं है। फिर भी विचार प्रकट करने के आपके अधिकार का मैं सम्मान करता हँू।

      आदरणीय विकासजी, क्यों इस मामले को उलझाया जावे। मैं तो डॉ. कपूर साहब से हर प्रकार से बहुत छोटा हँू। मैं व्यक्तिगत रूप से उनका आदर भी करता हँू, यदि स्वयं कपूर साहब स्वयं ईमानदारी से एक लाइन लिखकर स्पष्ट करदें कि वास्तव में उन्होंने अरण्य कुमार जी के अ्रंगेजी में लिखे विचार को आधार बनकार व्यंगात्मक तरीके से उक्त लिखी टिप्पणी में मेरा अपमान नहीं किया है। बस कम से कम मेरी ओर से तो इस मुद्दे पर बात यहीं समाप्त हो जायेगी।

      आदरणीय विकासजी, अन्यथा सम्पादक जी को अपनी निष्पक्षता का परिचय देना ही होगा। मैं नहीं चाहता कि ऐसी स्थितियाँ निर्मित हों, जिनमें पाठकों के बीच उपस्थित होकर सम्पादक जी को अपने अधिकार का प्रयोग करना पडे। आभार सहित मेरी ओर से स्वस्थ एवं सफल जीवन की शुभकामनाएँ।

      • मीणा जी , आप इस बात की चिंता किये बिना अपनी बात को कहते रहें की कुछ लोग क्या टिपण्णी कर रहे हैं , उनके कुतर्को की चिंता न करे , ये उनके स्टार को बताता है, वेसे भी सही बात कहने वालों को ये परेशानी तो आती ही है ……………… आपके लिए शुभकामनाओं के साथ दीपा शर्मा

      • आदरणीय डा. पुरुषोत्तम जी
        प्रणाम
        आपने पहले हिन्दी मैं मेरा नाम लिखा है और उसके बाद अंग्रेजी में नाम लिखते समय मेरी गलती निकालने की कोशिश की है । इस बात से आप भली भांति परिचित होगें कि नाम कोई भी आदमी किसी प्रकार से भी लिख सकता है । आपने जो अंग्रेजी में लिख कर गलती निकालने की या मेरे साथ व्यंग करने की कोशिश की है उसकी आवश्यकता नहीं थी । हिन्दी में नाम लिख लेने के बाद आप ने जान बूझ कर वी और बी से विकास शब्द लिखा है ताकि सबको पता चले कि मैने गलत लिखा है । यह आपकी मानसिकता को दर्शाता है ।

        मैं यहां पर स्पष्ट कर देता हूं कि मैं पूर्व भारत का रहने वाला हूं और यहां विकास को अंग्रेजी में बी से शुरु होता है । आपने पहले मेरे नाम पर ही हमला कर प्रतिक्रिया प्रदान की है । इस बारे में मैं अधिक टिप्पणी नहीं करुंगा ।
        मैं आपको स्पष्ट कर दूं कि मैं संपादक जी पर किसी तरह का दबाव बनाने का प्रयास नहीं कर रहा हूं । मैं केवल मेरा पक्ष रखने की अधिकार का उपयोग कर रहा हूं । आप चाहते हैं कि कोई भी बिना आधार की टिप्पणी करे और करते रहे और उस पर कोई प्रतिक्रिया न दे । अगर कोई प्रतिक्रिया प्रदान करता है तो पक्षपाती हो जाता है ।शायद यह गलत होगा ।
        मैने आपको विद्वान कहा है और आगे भी कहता रहूंगा । आपने मुझ पर विरोधाभाषी बातें करने का आरोप लगाया है साथ ही व्य़ंग के जरिये मेरी दृष्टि के प्रणाम, ऐसा लिखा है । मैं यहां पर स्पष्ट तौर पर कहना चाहता हूं मैने विरोधाभाषी बातें नहीं की है । मैने केवल इतना कहा है कि आप विद्वान हैं । आप को डा कपूर ने क्या लिखा है इसकी पूरी समझ है । इसके बाद भी आप निराधार आरोप लगा रहे हैं । आप विद्वान हैं , अतः आप अपना विद्वता का परिचय दें और गलत आधार पर टिप्पणी न करें । मेरा इतना विनम्र अनुरोध है ।
        डा कपूर पर जितने भी टिप्पणियां की जा रही है और उनके साथ साथ अन्य संगठनों व व्यक्तियों पर बिना किसी तर्क व कारण पर टिप्पणियां की जा रही है जिनका मूल विषय से दूर दूर तक कोई संबंध नहीं है । इस कारण ये सारे लोगों द्वारा की जा रही टिप्पणियों को एक ही व्यक्ति द्वारा सुनियोजित तरीके से किया जा रहा है ऐसा प्रथमदृष्टा लग रहा है ।

        मेरी हिन्दी अच्छी नहीं है । उत्तर भारत में कुछ दिन रहने कारण कुछ लिख लेता हूं । उसमें कुछ व्याकरणगत या बनानगत तृटि हो तो फिर क्षमा करें ।
        शुभकामनाओं सहित
        विकास

        • आदरणीय विकास जी, वास्तव में मेरा इरादा आपके नाम को हिन्दी के साथ-साथ अंग्रेजी में लिखने के पीछे और ही कुछ था, जिसको प्रकट करना आपकी टिप्पणी पढने के बाद प्रासंगिक नहीं रह गया है। लेकिन मैं इस बात को खुले हृदय से स्वीकार करता हँू कि चाहे मैंने आपका नाम कितनी भी पवित्र भावना से लिखा हो, लेकिन यदि इसके कारण आपकी भावना आहत हुई हैं या आपको वैसा लगा है, जैसा कि आपने वर्णन किया है तो निश्चय ही इसके लिये मेरे शब्दों की जिम्मेदारी है, मेरी अभिव्यक्ति की यह कमजोरी ही कही जानी चाहिये। जिसे मैं स्वीकारता हँू। जिसके लिये मुझे बेहद अफसोस है। कृपया हो सके तो अपने मन से इस बात को निकालने का कष्ट करें। मेरा इरादा आपको दुःख पहुँचाना या आपके बारे में व्यंग करना कदापि नहीं था। आपके मन में जो भी विचार आये उन्हें प्रकट करके आपने मुझ पर जो उपकार किया है, उसके लिये मैं आपका आभारी हँू।

          विकासजी अभी मेरी ओर से आपको मैंने डॉ. कपूर साहब का जो सम्पूर्ण वाक्य दौहराया था, उस पर आपकी ओर से या डॉ. कपूर साहब की ओर से किसी भी प्रकार की सीधी प्रतिक्रिया नहीं मिलने को मैं क्या समझूँ? इसके विपरीत आप अभी भी मुझ पर गलत टिप्पणी करने का आरोप अधिरोपित कर रहे हैं।

          तीसरी बात आपने उठायी है कि जो टिप्पणियाँ की जा रही हैं, उनका मूल विषय से कोई सम्बन्ध नहीं है। इससे पूर्व भी यह विषय उठाया गया है और उसका जवाब भी दिया गया है। हो सकता है कि आपको पढने में नहीं आया हो मैं आपकी जानकारी के लिये दौहराने के बजाय आपसे आग्रह करूँगा कि कृपा करके परिचर्चा के आलेख की अन्तिम टिप्पणियों एवं दीपा शर्मा जी की नवीनतम टिप्पणी दि. ०७.०८.१० समय ०३.३९ को पढने का कष्ट करेंगे तो आपको ज्ञात हो जायेगा कि परिचर्चा का विषय क्या है?
          जहाँ तक हिन्दी में गलती की बात है, इस पर मैं ध्यान नहीं दूँगा आपने पहले बताया होता कि आप पूर्वी भारत से हैं तो और अच्छा होता। इसके बावजूद भी आप हिन्दी में इतनी अच्छी टिप्पणी लिख रहे हैैं। यह काबिले तारीफ है। आपने पृथमदृष्टया शब्द का प्रयोग करके, पिछली टिप्पणी में लगाये गये सीधे आरोप को सुधार दिया है, इस उदारता के लिये आपका आभार।
          धन्यवाद।

          • आदरणीय डा पुरुषोत्तम जी

            प्रणाम
            किसी पाठक पीएस चौहान ने अपनी प्रतिक्रिया में आरएसएस की बात कही है । किसी पाठक ललिता गर्ग ने तोडगिया की बात कही है । मुझे कृपया यह समझाने की कृपा करें कि इस चर्चा में आरएसएस या फिर तोगडिया का कैसे संबंध है । मैने यही लिखा था कि जिन संगठन व व्यक्तियों के बारे में टिप्पणी की जा रही है उनका इस चर्चा के साथ दूर दूर तक कोई संबंध नहीं है । मेरी ऊपर की टिप्पणी को ठीक से पढें । शायद आपने ठीक से नहीं पढा । मैने लिखा है कि —- और उनके साथ साथ अन्य संगठनों व व्यक्तियों पर बिना किसी तर्क व कारण पर टिप्पणियां की जा रही है जिनका मूल विषय से दूर दूर तक कोई संबंध नहीं है । -आप मुझे यह बताइये कि मूल चर्चा से संबंध से इनका क्या संबंध है । केवल अपनी व्यक्तिगत भडास निकालने के लिए चर्चा का उपयोग नहीं होना चाहिए । कुछ भी हो तो आरएसएस को गाली दो , इस मानसिकता को सही नहीं कहा जा सकता ।

            इसके अलावा एक और बात किसी ने हिन्दू धर्म ग्रंथ के नाम से टिप्पणी की है । भला बताइये ऐसा कोई व्यक्ति होगा जिसका नाम हिन्दू धर्म ग्रंथ है । इन पूरी टिप्पणियों को देखने के बाद एक चीज स्पष्ट हो रही है । किसी एक व्यक्ति द्वारा विभिन्न नामों से टिप्पणियां करने संबंधी जो मुझे लग रहा था उसकी पुष्टि हो रही है ।

            मुझे केवल इतना ही कहना है ।

          • एक व्यक्ति है जो मारीच की भांति वेश तो नही पर id और नाम बदल कर इधर उधर प्रकट होता रहता है, इस परिचर्चा मे वो दीपा शर्मा के नाम से टिप्पणियां कर रहा है। उसका असली नाम है —> कैरानवी।

  46. Mujhe is site par pata chala hai ki RSS ki vichardhara ko nahin manane wale hinduon ko bhi bharat virodhi mansikta ka kaha jata hai. ham muslaman vaise hi RSS valon par naraj hote rahte hain. lgata hai ki inko to vo har vyakti jo inki baat nahin manta deshdrohi hi nazar aata hai. pata nhin is desh ko ye kahan le jayenge. hamara desh dunaya men samman pa raha hai aur ham faltu ki baton men uljh rahe hai. main hundu dharam ke bare men ek shabd bhi nahin khunga kyonki mujhe uska gyan nhin hai aur khud hamar dharm abhi bhi udarta ko janta hi nahin. lekin mujhe jahan tak jankari hai islam ki kamiyon ki aalochna karne vale kisi bhi insan ko bharat ya pakistan ya bangladesh ya anya islamik deshon men kahin bhi deshdrohi nhin kaha jata hai. dhramdrohi aur deshdroihi dono men fark hota hai. thanks.

    • महोदय,
      आपने बिलकुल सही कहा देशद्रोह और धर्मद्रोह में फर्क होता है ,
      आपका आभार व्यक्त करते हुए दीपा शर्मा

  47. महोदय, यहाँ कई लोग हैं जब उनको जवाब नहीं सूझता है तो अनाप शनाप कहने लगते हैं, नारी की कितना पूजा और सम्मान करते हैं ये लोग इसकी बानगी तनवीर जी के लेख क्या हकीकत है सच्चे मुसलमान की पर देखि जा सकती है जहाँ पर इन जेसे कई महानुभावों की धमकी और बदतमीज़ी साफ़ साफ़ दिख रही है बहस इन लोगो के बस की बात नहीं है ये सिर्फ कुतर्क ही कर सकते हैं………….
    नारी का सम्मान विदेशों से ज्यादा है भारत में………….
    इससे बड़ा कुतर्क क्या होगा मतलब हम इसलिए खुश रहे की विदेशी अपने यहाँ नारी का सम्मान कम करते हैं ………………
    हद हो गयी दिमागी दिवालियेपन की………………
    मीणा जी यहाँ ये लोग सिर्फ तालिबानी रवेया ही अपना सकते हैं बहस करना यहाँ कुछ लोगो के बस की बात नहीं है, उन्हें तो झुण्ड में चलना ही आता है अतः बेहतर है उनको उनके हाल पर छोड़ दिया जाये

  48. अरे भाई ये क्या हो रहा है, होता है उसे होने दो न, क्या फरक पडता है हम सब को, आज ये हो रहा है, कल और कुछ होगा, परसो और कुछ, हम दो-चार दिन चिल्लायेंगे फिर भुल जायेंगे, मजा करो न यारो.३ ईडियट्स देखो और मस्त हो जाओ…………

  49. अरण्य कुमार जी, धन्यवाद. डा. पुरुषोत्तम मीना जी के उद्धरणों के उत्तर में जो कहने की ज़रूरत थी, वह आपने प्रस्तुत कर दिया है. भारत विरोधी मानसिकता का सर्वाधिक शिकार अंग्रेज़ी पढ़े होते हैं. अतः अंग्रेज़ी में इस सामग्री का उनके लिए उपयोग है. पर इस हिन्दी पत्रिका में यह सामग्री हिन्दी में हिने पर अधिक उपयोगी होजायेगी. इस बारे में डा. मीना जी का सुझाव सही है. संभव हो तो इसे पुनः हिन्दी में उपलब्ध करवाने का प्रयास करें.
    इस सुंदर सामग्री हेतु मेरी बधाई व शुभकामनाएं.

    • आदरणीय कपूर साहब।

      मुझे तो ऐसा लगता है कि आपकी नजर में इंसाफ और मानवता की बात करना ही भारत में भारतविरोधी मानसिकता का परिचायक है। मैं आपको सार्वजनिक रूप से चुनौती देता हँू कि मेरा एक भी शब्द भारत विरोधी मानसिकता का प्रमाणित करके दिखावें।

      सभी पाठकों से भी आग्रह है कि कृपया कृपा करके मेरी टिप्पणियों के एक-एक शब्द को पढने का कष्ट करें और उसमें से भारत विरोधी मानसिकता वाले शब्दों से मुझे अवगत करवाने का कष्ट करें, जिससे कि मुझे भी जरूरी हो तो सुधार करने और प्राशश्चित करने का अवसर प्राप्त हो सके।

      अन्यथा डॉ. राजेश कपूर जी अपनी इस अमर्यादित, गरिमा रहित और बेहद घटिया टिप्पणी करने के लिये क्या करना चाहेंगे ये उनके अपने विवेक पर निर्भर करता है।

      हाँ यदि हिन्दू धर्म के अमानवीय, भेदभावूपर्ण और नाइंसाफी से परिपूर्ण प्रावधानों को सार्वजनिक करना और उनका विरोध करना ही आपकी नजर में भारत विरोधी मानसिकता है, तो मुझे इस पर गर्व है और इसके लिये मुझे नहीं, हिन्दू धर्म के उन अन्धभक्तों को शर्म आनी चाहिये, जिनको नारी में केवल भोग की वस्तु स्त्री ही दिखती है। स्त्री में उन्हें अपनी दादी, नानी, माता, बहन, पुत्री आदि नजर ही नहीं आती, जिसका प्रमाण है मेरे द्वारा नारी के अपमान में हिन्दू ग्रन्थों में लिखे गये धार्मिक प्रावधानों पर, मुझे भारत विरोधी मानसिकता का सिद्ध करने का डॉ. कपूर का कुत्सित प्रयास।

      यदि आपको ईश्वर में आस्था एवं विश्वास हो तो ईश्वर आपको सद्‌बुद्धि प्रदान करे, ताकि आप नारी को स्त्री के अलावा अन्य रूपों में भी देखने का प्रयास कर सकें। स्त्री को एम मानवी समझ सकें। धन्यवाद।

      • आदरणीय मीणाजी, राजेशजी ने आपको भारतविरोधी मानसिकता वाला व्यक्ति नहीं बताया है. वे तो आपकी ही बात को आगे बढा रहे हैं कि हिन्दी में अपनी बात रखें. कृपया टिप्पणी को ठीक से पढकर ही अपने विचार व्यक्त किया करें और बहस को भटकाने की कोशिश न करें.

        • आदरणीय सौरभ करण जी,

          टिप्पणी देने और मुझे हिदायत देने के लिये धन्यवाद।

          भाई करण जी लगता है, आप एक सज्जन व्यक्ति हैं। शायद आप अपनी जैसी ही पवित्र और सच्ची सोच दूसरों की भी समझते हैं। काश ऐसा होता? भाई सच तो ये है कि आपने स्वयं ही डॉ. राजेश कपूर जी की टिप्पणी को न तो ठीक से पढा और न हीं ठीक से समझा! और सम्भवतः भावावेश में आपने अपनी टिप्पणी लिख दी है। कोई बात नहीं जोश की अधिकता एवं दिमाग पर गलत लोगों के प्रभाव के कारण अक्सर ऐसा हो जाता है। आपसे विनम्र आग्रह है कि कृपया एक बार फिर से मेरी और डॉ. कपूर जी की टिप्पणी को निम्न बिन्दुओं के प्रकाश में पढें :-

          १. मैंने इस आलेख/परिचर्चा में कहीं भी अंग्रेजी में कोई टिप्पणी नहीं की है। अंग्रेजी में टिप्पणी देना मेरे वश में भी नहीं है। मैं तो केवल अंग्रेजी में सोचना, बोलना और लिखनाभर ही जानता हँू। मैंने ऐसे सम्पन्न और धनाढ्य परिवार में जन्म ही नहीं लिया, कि मुझे अंग्रेजी पढने का अवसर मिल पाता। संस्कृत एवं अंग्रेजी पढना एक वर्ग विशेष के हिस्से में है।

          २. अंग्रेजी में दी गयी टिप्पणी श्री अरण्य कुमार जी की है। जल्दबाजी में जिस पर आपने गौर नहीं किया।

          ३. डॉ. कपूर जी को भाषा का बहुत अच्छा ज्ञान है, जिसका वे जमकर लोगों का मजाक उडाने और लोगों को व्यक्तिगत रूप से अपमानित एवं आहत करने के लिये उपयोग/दुरुपयोग करने में कंजूसी नहीं करते हैं। सबसे बडा आश्चर्य तो ये है कि इनकी ऐसी असंयमित और अमर्यादित टिप्पणियाँ अनेक आलेखों पर लगातार प्रकाशित/प्रदर्शित भी हो रही हैं। जबकि स्वस्थ चर्चा के दौरान केवल प्रस्तुत विषय पर चर्चा होती है, तर्क दिये जाते हैं, आजकल कुतर्क भी दिये जाने लगे हैं, लेकिन पढे-लिखे एवं बुद्धिजीवी लोगों से व्यक्तिगत आक्षेप करने की अपेक्षा नहीं की जाती।

          परन्तु दुर्भाग्य से श्री कपूर जी ने ऐसा किया है, परिणामस्वरूप प्रतिक्रिया में भी कुछ ऐसी ही टिप्पणियाँ प्रकट हो रही हैं। जिसका मुझे तो अत्यन्त दुःख है। फिर भी मैं तो यही कहँूगा कि डॉ. कपूर साहब इस स्थिति पर विचार करेंगे, मैं समझता हँू कि उनका इरादा भी गलत नहीं रहा होगा। शायद आवेश में उन्होंने ऐसा कर दिया होगा। हालांकि उनके जैसे व्यक्तित्व से आवेश में संयम खोने की अपेक्षा नहीं की जा सकती। डॉ. कूपर साहब तो इस क्षेत्र में हम सबके अग्रज और मार्गदर्शक हैं, जिनका आशीर्वाद सदैव अपेक्षित है।

          श्री करण जी यदि आपको उक्त बातें पढने के बाद ऐसा लगे कि आपने भूलवश या जल्दबाजी में गलत टिप्प्णी दी है, तो आपके पास अपनी उदारता दिखाने एवं अपनी भूल को सुधारने का सुअवसर है। हाँ यदि भूल सुधार करने से आपके अहंकार को चोट लगती हो तो कोई बात नहीं, आपकी असंगत टिप्पणी के प्रदर्शित रहने में कोई खास असुविधा भी नहीं है। हाँ एक बात और आप नये सिरे से टिप्पणी देने के लिये भी आजाद हैं।
          शुभकामनाओं सहित।

      • आदरणीय डा पुरुषोत्तम मीणा निरंकुश जी
        महोदय
        डा राजेश कपूर जी ने आपको भारत विरोधी मानसिकता का व्यक्ति नहीं बताया है । उन्होंने यह कहा है कि भारत विरोधी मानसिकता का सर्वाधिक शिकार अंग्रेज़ी पढ़े होते हैं । आपने स्वयं अंग्रेजी की खिलाफत की है और अरण्य कुमार जी को हिन्दी में लिखने की हिदायद दी है । ऐसे में डा कपूर द्वारा की गई टिप्पणी आप पर कैसे की गई है जो आप मान रहे हैं । आप विद्वान आदमी हैं । यह कतई नहीं लगता कि आप डा कपूर जी की टिप्पणी को नहीं समझे हैं । बल्कि यह लगता है कि आप जान बूझ कर ऐसे कह रहे हैं । बिना मतलब के बखेडा कर रहे हैं और ऐसी बात पर कर रहे हैं जो कही ही नहीं गई है ।
        सधन्यवाद

        विकास

        • आदरणीय विकास जी,

          आपकी ओर से गलत को गलत कहने वाले प्रत्येक व्यक्ति/पाठक की प्रतिक्रिया पर टिप्पणी दी है और मुझे भी अपनी टिप्प्णी से अवगत करवाया गया है। इसके लिये आपका आभार।

          आदरणीय विकासजी, एक ओर तो आप मुझे विद्वान कह रहे हैं, दूसरी ओर आप मुझ पर बिना मतलब बखेडा करने का आरोप लगा रहे हैं। दोनों विरोधाभाषी बातें एक व्यक्ति में आपको दिख रही हैं। आपकी दृष्टि को प्रणाम।

          आदरणीय विकासजी, आपने हर टिप्प्णीकार को डॉ. कपूर जी की अधूरी पंक्ति का उल्लेख करके बात को स्पष्ट करने का प्रयास किया है, आपने साथ ही प्रत्येक पर बखेडा खडा करने का आरोप भी लगाया है। इससे यह बात तो स्पष्ट है कि आपकी टिप्पणी सत्य निष्ठा एवं सुहृदयतापूर्वक की गयी निष्पक्ष टिप्पणी तो नहीं ही कही जा सकती। फिर भी आपने विचारों को दबाने का अनैतिक प्रयास करके उसी भाषा और अभिव्यक्ति को बढावा दिया है, जो डॉ. कपूर साहब ने शुरु किया है।

          भाई विकास जी हम तो हजारों सालों से चुप हैं। आप लोग माननीय सम्पादक महोदय से इतना सा कहलवा दो कि आपको (मुझे) इस मंच पर सच्चाई बयान करने का हक नहीं है। हम एक शब्द भी यहाँ पर नहीं लिखेंगे। रही बात डॉ. कपूर साहब की टिप्पणी तो श्री विकास जी आपको पढने के लिये उनकी टिप्प्णी की पूरी आपत्तिजनक लाईन को दौहरा रहा हँू-

          “अरण्य कुमार जी, धन्यवाद. डा. पुरुषोत्तम मीना जी के उद्धरणों के उत्तर में जो कहने की ज़रूरत थी, वह आपने प्रस्तुत कर दिया है. भारत विरोधी मानसिकता का सर्वाधिक शिकार अंग्रेज़ी पढ़े होते हैं. अतः अंग्रेज़ी में इस सामग्री का उनके लिए उपयोग है. ”

          आदरणीय विकासजी, आप इस पूरी पंक्ति को अपने अन्तःकरण को तटस्थ रखकर पढें। आपको खुद को ज्ञात हो जायेगा कि आपने जो उपरोक्त टिप्पणी की है, वह सही है या डॉ. कपूर साहब की टिप्पणी पर की जा रही आपत्तियाँ सही हैं? वैसे आपने अपनी अन्तिम टिप्पणी में यह लिखकर कि ये सभी टिप्पणियाँ एक ही व्यक्ति द्वारा की जा रही हैं। अपनी सत्यनिष्ठा सन्देह के कटघरे में खडी कर ली है एवं डॉ. कपूर साहब की गलत बयानी का पक्षपाती होने का आपने स्पष्ट प्रमाण भी दे दिया है। अतः आपको हमें समझाइश देने का कोई नैतिक हक नहीं है। फिर भी विचार प्रकट करने के आपके अधिकार का मैं सम्मान करता हँू।

          आदरणीय विकासजी, क्यों इस मामले को उलझाया जावे। मैं तो डॉ. कपूर साहब से हर प्रकार से बहुत छोटा हँू। मैं व्यक्तिगत रूप से उनका आदर भी करता हँू, यदि स्वयं कपूर साहब स्वयं ईमानदारी से एक लाइन लिखकर स्पष्ट करदें कि वास्तव में उन्होंने अरण्य कुमार जी के अ्रंगेजी में लिखे विचार को आधार बनकार व्यंगात्मक तरीके से उक्त लिखी टिप्पणी में मेरा अपमान नहीं किया है। बस कम से कम मेरी ओर से तो इस मुद्दे पर बात यहीं समाप्त हो जायेगी।

          आदरणीय विकासजी, अन्यथा सम्पादक जी को अपनी निष्पक्षता का परिचय देना ही होगा। मैं नहीं चाहता कि ऐसी स्थितियाँ निर्मित हों, जिनमें पाठकों के बीच उपस्थित होकर सम्पादक जी को अपने अधिकार का प्रयोग करना पडे। आभार सहित मेरी ओर से स्वस्थ एवं सफल जीवन की शुभकामनाएँ।

    • dr. kapoor ji aapki kament galat hai, aap dr. meena ji ke vichron ko bhartvirodhi nhin kahna chahiye, charcha men tark vitark tak to theek hai, lekin vyaktigat aarop lagana theek nhin hai. aap jaise safed daadi vale log aisee bate likhege to kam aayu ke logon ka kya hal hoga. main aapki tippani ki ninda kartee hun aur isko theek nahin mantee. aap poorv men bhee Deepa Sharma ji ke vicharon ko bhee bharat virodhi bata chuke hai. bharat virodhi kise kahte hai ye aapko samjhane ki jaroorat nahin honi chahiye, lekin aap hindoo dharm ki gandgi ki aalochna ko bharat virodhi mansikata bata rahe hai, ye kisi bhi nyaypriy insan ko many nahin hoga. aapse vinanti hai ki apni bhasha ko theek karen.

      • रश्मी शाह जी
        महोदया
        डा राजेश कपूर जी ने डा मीणा जी को भारत विरोधी मानसिकता का व्यक्ति नहीं बताया है । उन्होंने यह कहा है कि भारत विरोधी मानसिकता का सर्वाधिक शिकार अंग्रेज़ी पढ़े होते हैं । उन्होंने स्वयं अंग्रेजी की खिलाफत की है और अरण्य कुमार जी को हिन्दी में लिखने की हिदायद दी है । ऐसे में डा कपूर द्वारा की गई टिप्पणी उन पर कैसे की गई है जो आप मान रहे हैं । बिना मतलब के बखेडा कर रहे हैं और ऐसी बात पर कर रहे हैं जो कही ही नहीं गई है । कृपय़ा इस तरह के निराधार आरोप मत लगाएं ।
        सधन्यवाद

    • डॉ. राजेश कपूर जी, नमस्कार.
      आपकी उम्र के हीसाब से तो उमरा प्रणाम है.
      आपकी भाषा असंयमीत है. आप स्त्री वीरोधी हे, ये तो पक्का हो गया, लेकीन आपकी उपरोकत टीप्पणि से ये भी पता चल गया की आप तोगडिया, बाल ठाकरे आदी की संगत के आदमी है. आपको स्त्री के लिये सम्मान नही करना जानते. आप डा. मीना का भारत वीरोधी कहकर अपने लेवल का परिीचय देचुके है. आपसे नीवेदन है कि अपनी बात को वपास लें में आपकी बात का वीरोध ओर आलोचना करती हू.

      • o आदरणीया ललिता जी
        मुझे नहीं पता कि आपकी आयु क्या है । फिर भी मैं उस देश में जन्मा हूं जहां यह मान्यता है कि जट चेतन में ब्रह्म हैं । इसलिए मैं आपके अंदर स्थित ब्रह्म को प्रणाम कर रहा हूं ।

        आपकी टिप्पणी पढने के पश्चात मुझे लगता है कि आपकी भाषा असंयमित है । कष्ट हो तो माफ करें । आपने लेवल की बात की है । आपका लेबल क्या है । यह भी पाठको को पता चल चुका है । आपने किसी व्यक्ति को बिना किसी कारण के स्त्री विरोधी घोषित कर दिया है। इससे आपकी फासीबादी लेबल का पता चल गया है । आप की इस बिना आधार के आरोप की मैं निंदा करता हूं ।
        पुनः आप के अंदर स्थित ब्रह्म को प्रणाम ।

        सधन्यवाद

        विकास

    • pravakta.com par achhi charcha hoti hai, lekin kuchh log jinmen vishwas ranjan, Dr. Rajesh kapoor Jaise log RSS ke kattar bhat hain jinko hindu dharm ki kmi nazr nhin aatee ye log khush hote hai, jab ghatiya tippani karte hai, ya kisi ko deshdrohi ya bharat viridi kehe hai, lekin sach ye hai ki ese logo ki vajh se hi RSS aur BJP hartee hai. aap logo ko manna padega ki is desh me brahamano ne dharma ke aadhar par naree aur SC/ST par hataron saal tak atyachar kiya hai. aapk logon ne hamare poorvajon ko bhi moorkh banaya aur hamare hatho atyachar karvaye, jiska khamiyaja ham aaj ki peedhi bhugat rahi hai. Dr. purushottam Meena ji ST ke hain so aapko unko vidwan manen men sharm aati hai so aur kuch nahi to Dr. meena ko deshvirodhi kah karke hi badnam karne ka kukarm kar rahe ho. aap nahin jante Dr. P. Meena Bhrashtachar aur Atyachar ke khilaf rajasthan, MP. Gujarat, haryaan, Delhi sahit anek rajon men vo kam kar rahe hain jo rojana saikdon logon ke aanso pochhne wakla siddh ho raha hai. Dr. Meena ki teem men har jatee aur dharm ke log hai, ve gareebon, majloomon. vraddhon, striyon, balikaon, viklangon, nishkton aadee har tarah se peedito ke liys lagataar kam kar rahe hai, lekin aap jaise laog samaj ka mahol khrab karke satyanash kar rhe ho. kevl kagj par likhna matra kuchh nahin hai, jameeni hakeekat kaya hai? Dr. Meena ji ke liya hataron brahaman, rajput, baniya, kayasth apni jaan dene ko taiyar hai. Dr. kapoor ji aapni bhasha par cantrol rakhen, kishi ko bhart virodhi kahen ke liye sabooton ki jaroort hiti hai, shrm karo.

      • श्री चौहान जी
        महोदय
        डा राजेश कपूर जी ने डा मीणा जी को भारत विरोधी मानसिकता का व्यक्ति नहीं बताया है । उन्होंने यह कहा है कि भारत विरोधी मानसिकता का सर्वाधिक शिकार अंग्रेज़ी पढ़े होते हैं । उन्होंने स्वयं अंग्रेजी की खिलाफत की है और अरण्य कुमार जी को हिन्दी में लिखने की हिदायद दी है । ऐसे में डा कपूर द्वारा की गई टिप्पणी उन पर कैसे की गई है जो आप मान रहे हैं । बिना मतलब के बखेडा कर रहे हैं और ऐसी बात पर कर रहे हैं जो कही ही नहीं गई है । कृपय़ा इस तरह के निराधार आरोप मत लगाएं ।

        मीणा जी जहां कहीं भी अच्छे काम कर रहे हैं कोई उनकी खिलाफत नहीं कर रहा है । समाज सुधार का काम होना चाहिए और यह निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है । लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आप बिना किसी आधार पर किसी व्यक्ति के खिलाफ अनाप शनाप टिप्पणी करें ।

        आपने अंत में शर्म करो लिखा है । वैसे आपको शर्म करना चाहिए जो इस तरह के निराधार आरोप लगा रहे हैं ।

        सधन्यवाद

        विकास

      • श्री चौहान जी
        महोदय
        डा मीणा जी को भारत विरोधी मानसिकता का व्यक्ति कहीं पर भी डा राजेश कपूर जी ने नहीं बताया है । उन्होंने इतना कहा है कि कि भारत विरोधी मानसिकता का सर्वाधिक शिकार अंग्रेज़ी पढ़े होते हैं । डा कपूर ने स्वयं अंग्रेजी की खिलाफत की है और अरण्य कुमार जी को हिन्दी में लिखने की हिदायद दी है । ऐसे में डा कपूर द्वारा की गई टिप्पणी उन पर की गई है ऐसा मामना गलत होगा । बिना मतलब के बखेडा कर रहे हैं और ऐसी बात पर कर रहे हैं जो कही ही नहीं गई है । कृपय़ा इस तरह के निराधार आरोप मत लगाएं ।

        मीणा जी जहां कहीं भी अच्छे काम कर रहे हैं कोई उनकी खिलाफत नहीं कर रहा है । समाज सुधार का काम होना चाहिए और यह निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है । लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आप बिना किसी आधार पर किसी व्यक्ति के खिलाफ अनाप शनाप टिप्पणी करें ।

        आपने अंत में शर्म करो लिखा है । वैसे आपको शर्म करना चाहिए जो इस तरह के निराधार आरोप लगा रहे हैं ।

        सधन्यवाद

        विकास

    • डॉ० कपूर जी,
      सादर नमस्कार.
      आपकी टिप्प्णी असंमित, अमर्यादित, अगम्भीर, व्यंगात्मक, तीखी, चुभनेवाली, जानबूझकर मजाक उडाने और अपमानित करने वाली है. इसमें आपने केवल डॉ० मीना जी के विरुद्ध ही नहीं लिखा है, बल्कि आपने अंग्रेजी लिखने और समझने वालों पर भी प्रहार किया है, जो किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं ठहराया जा सकता. मैं इसकी कटु निन्दा करता हँू और इस टिप्पणी को वापस लेने की आपसे अपील करता हँू. आप उम्र में बडे हैं, अनुभव में बडे हैं और आपको दुनियादारी का अधिक ज्ञान है. आप हमें क्या सिखा रहे हैं. आपसे ऐसी आशा नहीं की जाती. कृपया ऐसा नहीं करें. इससे माहौल खराब होता है. आपने दीपा शर्मा जी के बारे में भी अनेक जगह पर गलत और असंमित टिप्पणी की हैं. आप हैल्दी डिसकस करें। धन्यवाद।

    • Sh. Dr. Rajesh Kapoor Ji, Aapki anek jaghon par tippni padhi hai, jisse aapke gyani aur gahre anubhavi hone ka pata chlata hai, lekin pichhle kuch samay se aap hindu dhramshastron ki galat baton ko lekar itne uttejit aur asanymit ho rahe hai ki tippani likhane walon ko bharat virodhi tak kahne lge hai. kisi bhi nagrik ko isse bura kuchh bhi nahi lag sakta, aap kisi ki deshjbhakti evam rashtra ke prati nishtha par prashn uthkar apna hi Maan ghata rahe hai. yahan par kisi ne bhi desh ke khilaf ya hindu dharm ke khilaf ek shabd bhi nahin likha hai, keval hindu dharmshastro men likhi gaye galat, anyaaypurn aur vibhed karne vali baaten hi likhi gayee hai, jo hindu dharmshastron ki sachchi hai, jiske liye inke lekhkon ko doshi mankar ham sabko hindo dharm ko sudharne ki baat karni hogi. aisee aalochnaon se hi to hindu dharm jinda bachega. balki ye log hindu dharm ke schche rakshak hai. aap dr. meen ji, deepa ji ya anya kisi ke khilaf kyon nijee tippani karte hai. kisee ko bhi aap bharat virodhi kah kar apna star hi kam kar rahe hai. aapki tippani nindneey to hain hi gair jarooree bhi hai . krpayaa aap bhasha ko theek karen.

      • महोदय,
        आपको अपने नाम से टिपण्णी करनी चाहिए थी क्योंकि किसी भी व्यक्ति का नाम हिन्दू धर्म ग्रन्थ नहीं हो सकता है भले ही आपने हमारी बात का समर्थन किया है और संतुकित टिपण्णी की है परन्तु आपका नाम न लिखना आपके प्रति नकारात्मक विचार उत्पन करता है , आशा है की आप इसका ध्यान रखेंगे ……
        आपका कहना उचित है की ये हमारी ही ज़िम्मेदारी है की yadi hamare dhrmgranton me कुछ गलत है तो उसको सामने लाया जाये,

  50. यहां बात चल रही है कि सरकार किस तरह पश्चिम का अंधानुकरण कर रही है और ये दीपा शर्मा जी अलग ढोल बजा रही है.कहते है न कि “खुरपी की शादी में हंसुआ का गीत “. नारी मुक्ति , नारी स्वतंत्रता, जैसी बातों की जुगाली करने के लिये और भी बहुत सारे मंच हैं, वहां गाल बजाइये न.यहां पर इतनी गंभीर परिचर्चा पर रायता क्यों बिखेर रही हैं?

    • Mahoday. Mein paricharcha se bahar nahi gayi. Last line padhen aur mere comment par dhyan dein. Apko samajh aa jayga.

    • आदरणीय श्री रणजीत जी, परिचर्चा के लेखक ने लेख के अन्त में क्या लिखा है और क्या सवाल पूछा है, किस बात पर परिचर्चा करवाने की मंशा व्यक्त की गयी है, जिससे परिचर्चा की शुरुआत हुई है। कृपया उसको ध्यान से पढें और उस पर गौर करें।

      यदि परिचर्चा कराने वाले स्वयं ही गलत बयानी करके परिचर्चा को गुमराह करने का प्रयास करेंगे तो परिचर्चा उसी दिशा में कैसे चलेगी, जैसी कि आप चाहते हैं या लेखक ने शीर्षक दे दिया है? अब चर्चा तो होगी ही?

      आप इसकी अकारण ही निन्दा करके परिचर्चा को क्यों भटकाना चाहते हैं? जब इस देश में नारी की पूजा होती ही नहीं तो क्यों पूजा की बात कह कर लोगों, विशेषकर महिलाओं की भावनाओं के साथ खिलवाड किया जा रहा है?
      अब जब चर्चा शुरू हो ही गयी है, तो इसे चलने दिया जावे। देखते हैं कैसी-कैसी बातें सामने आती हैं?

      जब कुछ भी तर्क या समाधान नहीं मिलता तो कुछ पाठक तो यही कह कर पीछा छुडा रहे हैं, कि विदेशों से तो भारत में स्त्री की हैसियत अच्छी ही है। बेशक ऐसे पाठकों ने विदेश तो दूर देश की महिलाओं को भी नजदीक से नहीं देखा हो।
      धन्यवाद।

  51. इस न्यूज़ को पढने के बाद एषा लगता हैं की इस देश मैं अब सरकार में राष्ट्रीय शर्म नाम की कोई चीज बाकी नहीं बची हैं बचे भी कैसे जिस देश का विपक्ष नाश्ते की टेबल पर बिक सकता हैं उस देश की सत्तारूढ़ पार्टी के लोगो से और क्या उपेक्षा की जा सकती हैं संसद मैं गरमा गरमा बहस सायद इस लिए की जाती हैं की सत्तारूढ़ पार्टी द्वारा किये गए भार्स्ताचार में विपक्ष को भी हिस्सा मिल सके अब इन सब चीजो के बाद इन गेम डीके नाम कोमोंवेल्थ गेम की बजाये कोमिसन व वेल्थ गेम किया जाना चाहिए

  52. महोदय तुलसीदास जी की रामायण में अवश्य ही उनका स्त्रियों के प्रति दुराग्रह सा दिखता है। अफसोस कि मैंने वाल्मिकी रामायण नहीं पढ़ी है। ।
    फिर भी जितना भी धर्म, पंथ या रिलिजन अधिक सही शब्द हैं, को समझा है या यह कहिए उसके प्रभाव को समझा है वह स्त्री को स्वतंत्र तो कदापि नहीं करता। सनातन धर्म, वैदिक धर्म इतना विस्तृत है कि उसे पढ़ना समझना प्रत्येक के लिए असंभव सा है। संभव तब हो सकता है जब उसे पढ़ने समझने को ही जीवन का उद्देश्य बना लिया जाए।
    एक और समस्या है, जिनसे हम धर्म के बारे में सिखाने की आशा कर सकते हैं वे अधिकतर कोई न कोई स्त्री विरोधी बात करके पहले ही स्त्री के मन में संशय पैदा कर देते हैं।
    बहुत अच्छा होता कि कोई धर्म का ज्ञाता भी होता और स्त्री को बराबर भी मानता और यहाँ बहस में भाग भी लेता।………..
    fir भी नारी तुलसी की नज़र में क्या है देख सकते हैं ………..
    “जननी उमा बोलि तब लीन्ही। लै उछंग सुंदर सिख दीन्ही।
    करेहु सदा संकर पद पूजा। नारि धरम पति देव न दूजा।
    बचन कहत भरि लोचन बारी। बहुर लाइ उर लीन्हि कुमारी।
    कत बिधि सृजी नारि जग माहीं। पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं।
    भै अति प्रेम बिकल महतारी। धीरज कीन्ह कुसमउ बिचारी।“
    तुलसी नारी को कैसी ऊंटपटांग सलाह रहे हैं। मानो स्त्री का कोई वजूद ही न हो, वह मात्र पति की दासी हो। पति के चरणों की पूजा करना, और यही नहीं, इसे ही नारी का धर्म बताना, कितनी घिनौनी, नारी-विरोधी बात है। जिस ग्रंथ में ऐसा कहा गया हो, उसे तुरंत जला डालना चाहिए।“
    —————“ढोल गँवार शूद्र पशु नारी ताड़न के अधिकारी“ —————-
    इससे बुरा भी भारतीय संस्कृति में सुनने को मिलेगा मिल जायेगा………..
    अगर हम यहाँ ये भी मान le ke तुलसीदास नारी का सताया था तो भी ये केवल एकमात्र udahran तो नहीं जहाँ नारी का निरादर किया गया है

    …..स्त्री धर्म की व्याख्या करते करते और स्त्री को उसका धर्म सिखाते सिखाते युग बीत गए हैं, उसने सीख भी लिया -हिन्दू स्त्री का जीवन ऐसा हो , मुस्लिम हो तो स्त्री ऐसी होनी चाहिए , ईसाई हो तो स्त्री को ऐसा होना चाहिए………धर्म और धर्म को बनाने वाला ईश्वर(पता नही कोई कैसे इस बात मे यकीन रख सकता है कि किसी धर्म को ईश्वर ने बनाया है, खैर) और उस धर्म को मानने वाले उसके बन्दे सब मिलकर स्त्री को पाठ पढाते आए हैं।कभी सिखाया गया कि पति परमेश्वर है, कभी सिखाया गया कि स्त्री को पुरुष की अनुगामिनी होना चाहिए , कभी सिखाया गया कि उसे पुरुष की परछाई होना चाहिए,पुरुष के बिना स्त्री के लिए स्वर्ग भी नरक समान है,सभी नाते सूर्य से भी बढकर ताप देने वाले हो जाते हैं……..(अयोध्या काण्ड , रामचरितमानस) और इसलिए यदि वह विधवा है या अविवाहित है तो उसका जीना उसे खुद भी दुश्वार लगने लगे दुनिया को तो बाद मे लगे।पतिव्रत धर्म का पाठ जो अनुसूया सीता को पढाती है वह आज तक हिन्दू स्त्री को घोल घोल कर पिलाने की चेष्टा की जाती है(अरण्य काण्ड) अनुसूया कहती हैं – “पति प्रतिकूल जनम जँह जाई ।विधवा होई पाई तरुनाई” माने – जो अपने पति की बात नही मानती वह जहाँ भी जन्म लेती है भरी जवानी मे विधवा हो जाती है।माने जन्म जन्मांतर के डर भी स्त्री को दिखलाए जाते हैं, वह कभी किसी हाल मे पति के खिलाफ न चले रामचरितमानस का पाठ इसी लिए उसे कराया -समझाया जाता है।कीर्तन, मंडली,पाठ , जागरण सभी मे स्त्रियाँ ही बढ चढ कर भाग क्यों लेती हैं – धर्म सीखने की उन्हे ही सबसे ज़्यादा ज़रूरत है?क्योंकि वे दर असल इस योनि मे किसी पाप या दोष के कारण आई हैं ? यही कहता है न धर्म ?
    इस्लाम में नारी की व्यथा का अनुमान देखिये की नारी किन हालत से गुज़रती होगी और उसके मन में क्या क्या भावनाएं आती होंगी …………
    इस्लाम मे तो औरतों को घर से बाहर निकलकर तालीम व तरक्की हासिल करने की मनाही है’ तो उस बेचारी को कैसा लगता होगा? जब कोई यह पूछती है कि आपको तो हमेशा यह डर लगा रहता होगा कि अगर पति नाराज़ हो गया तो तलाक न देदे ,तो कैसा कोड़ा पड़ता होगा आत्मसम्मान पर?जब कोई यह पूछता है कि ‘मुसलमान औरत होने के नाते आप तो पति की दूसरी, तीसरी,चौथी शादी के लिए ज़हनी तौर पर तैयार रहती होंगी? तो कैसा खून खौलता होगा हमारा! या जब कोई बड़ी सहानुभूतिपूर्वक कहता है कि ‘आप लोगों मे तो पर्दे के कारण लड़कियों को पढाते लिखाते नही , ज़रा बड़ी हुई कि शादी कर दी, तो कितना कमतर महसूस होगी और जब कोई अश्चर्य से पूछता है कि ‘अरे, मुसलमान होकर आप इतनी पढे लिखी हैं और घर से बाहर रह सकती हैं तो फख्र नही अफसोस होता होगा
    ज़रा सोचिये मुझे बताइये कि ऐसे मे स्त्री के हाथ जब दुनिया ने धर्म की ज़ंजीरों से जकड़े हों तो वह अधर्मी हुए बिना अपना अस्तित्व कभी पा सकती है क्या और धर्म के फिर में रही तो उसका कोई भला होने से तो रहा दुनिया का कोई भी धर्म , समाज या कानून नारी को बराबरी या सम्मान नहीं देता सब फालतू की बातें और बयानबाज़ी ही करते हैं इससे तो बेहतर है की नास्तिक बन जाया जाये, जब ईश्वर के नाम पर उसे तरह तरह के भय और सज़ाओं के साए में पालतू बना कर रखा जाता हो तो क्या वह नास्तिक हुए बिना कभी अपनी स्वतंत्र पह्चान बना सकती है, कभी नहीं बना सकती है …………………………..
    इस्लाम हो या हिन्दुज्म या इसाई नारी के लिए तो सब एक जेसे ही हैं………
    इस्लाम का शुरुआती स्वरूप ऐसा नही था ,उसे सातवीं शताब्दी के बाद पुरुषों ने ही 73फ़िरक़ों मे बांट दिया , यानि इस्लाम की 73 व्याख्याएँ कर दी गयीं ,सबका अलग नज़रिया है अलग है , लेकिन एक 74 वीं नयी व्याख्या जो स्त्री करना चाहती है उसके विरोध मे ये सभी एकजुट हैं।
    रामचरितमानस भी एक पुरुष द्वारा रची गयी और उसका पाठ हिन्दू घरोंमे जिस तरह से किया जाता है वह सिद्ध करता है कि स्त्री के लिए हिन्दू धर्म क्या स्थिति तय करता है। ———————
    और इतने सब पर भी बेशर्मी से लिख दिया जाता है की जहाँ पर नारी की पूजा की जाती थी मुझे हैरत होती है कहाँ से ये शब्द प्रायोजित किये जाते हैं
    बिलकुल उसी प्रकार से ” नक्टो की नाक कटी सवा गज और बढ़ गई”
    इस सब dhoke से तो अच्छा है की नारी को, हर धर्म की नारी को, धर्म ही त्याग देना चाहिए अब जहाँ तक सवाल है कि नास्तिक हो जाने से क्या इससे स्त्री को समाज मे उचित स्थान , मानवीय अधिकार और सुरक्षा मिल जाएगी?क्या वह इससे आज़ाद हो जाएगी?
    हाँ , यह एक बेहद ज़रूरी कदम होगा , क्योंकि इससे स्त्री को मूर्ख बनाना आसान नही रह जाएगा , उसे भ्रमित नही किया का सकेगा , कम से कम वह खुद अपनी जड़ताओं , भयों और अन्धविश्वासों से मुक्त हो पाएगी , आत्मविशाव हासिल कर पाएगी , और यही मुक्ति की पहली शर्त होगी कि वह अपनी स्थिति का आलोचनात्मक अध्ययन कर सके , सवाल उठा सके ।हमें स्वीकार करना होगा कि धर्म समाज की मानव की बनाई हुई एक संरचना है जिसमे खामियाँ हैं और इसलिए उसकी पवित्रता मे आँख मून्द कर विश्वास नही किया जा सकता वेसे भी ऐसे धर्मो को मानने का कोई फायदा नहीं जहाँ नारी को सिर्फ पूजा जाता है इस बात का दुष्प्रचार किया जाये जहाँ नारी को भौग की वास्तु समझा जाये और अगर सत्य सामने आये तो संस्कृति की झूठी दुहाई दी जाये …………..
    आज की नारी को कोरी बकवास से नहीं बहलाया जा सकता है……
    सरकार क्या कर रही है वो तो अलग बात है लेकिन आप लोग भी कोई बेहतर नहीं कर रहे है आजकी नारी को पूजो मत क्रप्या उसके अधिकार उसे दिलवाने में सहायता करो नारी पूज पूज के थक गई है अब उसमे और पूजे जाने की हिम्मत नहीं है
    शुभकामनाओं के साथ …………………………………………………………… दीपा शर्मा

    • deepa ji , jitnaa samman nkri ki bhaarat men hoti hai kyaa aur bhi koi desh hai jahan itnaa samman miltaa hai? kripyaa aap apne man ke duragrah ko dur kar bhartiya samaaj ko dekhen aap goarwanwit anubhav karengi.

      • मुझे यह समझ में नहीं आ रहा है कि चर्चा राष्ट्रमंडल खेल और सेक्स के बारे में हो रही है या फिर भारत में महिलाओं की स्थिति व सम्मान को लेकर हो रहा है । कुछ लोग पता नहीं क्यों चर्चा को दूसरी दिशा में मोड देना चाहते हैं । मुझे लगता है कि भारत में महिलाओं की स्थिति व सम्मान के बारे में अलग से चर्चा हो सकती है । अतः मेरा विनम्र अनुरोध है कि चर्चा जिस विषय पर हो रही हो, उसी विषय पर ही अपनी टिप्पणी प्रदान करें । अगर फिर भी लोग मुद्दे को भटकाने की कोशिश करते हैंतो मेरा संपादक जी से अनुरोध रहेगा कि चर्चा के शीर्षक को बदल दें ।
        धन्यवाद
        विकास

        • आदरणीय श्री विकास जी, सम्पादक को शीर्षक बदलने की कहाँ जरूरत है। परिचर्चा के लेखक ने लेख के अन्त में क्या लिखा है और परिचर्चा में भाग लेने वालों से क्या सवाल पूछा है, किस बात पर परिचर्चा करवाने की मंशा व्यक्त की गयी है, जिससे परिचर्चा की शुरुआत हुई है। कृपया उसको ध्यान से पढें और उस पर गौर करें।

          यदि परिचर्चा कराने वाले स्वयं ही गलत बयानी करके गलत तथ्यों को प्रस्तुत करके परिचर्चा को गुमराह करने का प्रयास करेंगे तो परिचर्चा उसी दिशा में कैसे चलेगी, जैसी कि आप चाहते हैं या लेखक ने जैसा शीर्षक दे दिया है? अब चर्चा तो होगी ही?

          आपसे अनुरोध है कि अकारण को रोकने में सहयोग नहीं देकर, इसमें भाग लेने का कष्ट करें। जब इस देश में नारी की पूजा होती ही नहीं तो क्यों नारी पूजा की बात कह कर लोगों, विशेषकर महिलाओं की भावनाओं के साथ खिलवाड किया जा रहा है?

          विकासजी अब जब चर्चा शुरू हो ही गयी है, तो इसे चलने दिया जावे। देखते हैं कैसी-कैसी बातें सामने आती हैं? आप भी कुछ कहो स्त्रियों के बारे में, आखिर स्त्री ही हमारी माँ है, बहन है और पुत्री है। उसके हालात के बारे में चर्चा करने से हमें, समाज को या राष्ट्र को नुकसान नहीं होने वाला।

          जब कुछ भी तर्क या समाधान नहीं मिलता तो कुछ पाठक तो यही कह कर पीछा छुडा रहे हैं, कि विदेशों से तो भारत में स्त्री की हैसियत अच्छी ही है। बेशक ऐसे पाठकों ने विदेश तो दूर देश की महिलाओं को भी नजदीक से नहीं देखा हो।
          धन्यवाद।

    • kash aap hamare samne hote aur hum aapke bhaavon ka rasaswdan apke sanidhya me karte,aapka lekh nari ke prati swchcha dristikon ka dyotak avm unki duniya ke dard ko prakatit karta pratit ho raha hai,apke katu saty par akaty saty bade marmsprshi aur uddwelit karne wale hai.meri to janm janmanttar me yahi prarthna hai jab ek aisa bhi samay aaye jab nari bhog vilas ki kutsit dristi se upar samjhi jaye aur jan manas yatharth ko apnaye aur nari ki nari shakti pahchane.bahut bahut dhanywad deepa ji apki vykhya ke liye au spast tarkpurn prastuti ke liye

  53. धन्यवाद प्रवक्ता के संपादक जी का जिन्होंने हमें इक मंच दिया जहां हम लोग गंभीर विषयों पर चर्चा कर सकते है।

    आदरणीय दीपा जी। धन्यवाद कि आपने मेरे इस कथन का आधार पूछा। न्यूस चैनल पर इस संदर्भ में बताया जा चुका है, हां रही बात सरकार की तो अभी तक सरकार की तरफ से कहीं कोई स्वीकारोक्ति या खडन नही आया है। किन्तु जब राष्ट्रमण्डल खेलों के लिए सरकार जी जान लगा रही है और १० रूपये की चीज १००० रूपये में खरीद रही है, तो सरकार हो सकता है इसका भी अनाधिकृत रूप से खयाल रख रहीं होगी। काश मेरी बात गलत हो तो मुझे बहुत खुशी होगी।

    आदरणीय रद्गिम जी का धन्याद की। आप कह रही हैं कि – आप जिन ग्रन्थों की पूजा करने की बात कह रहे हैं, उनके पुरुष लेखकों ने जानबूझकर अपनी कथा के नारी पात्रों के मुःह से ही नारी की कटु आलोचना करवाई है,………….

    आपकी बात सही हो सकती है. आप अपने चारो तरफ देखे तो पायेगी की महिलाओ पर अत्याचार में मुखय भूमिका महिला की होती है। यह बात समान्यहः के आधार पर कह रहा हूं। ७० से ८० प्रतिद्गात मामलों में महिला के उपर किसी अत्याचार में महिला की कहीं न नहीं कहीं हिस्सेदारी और बल्कि प्रमुख भूमिका होती है। महिला पर अत्याचार दो जगह होता है – पहला घर में और दूसरा समाज में।

    घर में –
    १. जब लड़की ४ से ६ साल की होत है तो मा सिखाती है कि बेटी जूठे बर्तन किचन मे रख दो। कभी लड के से नहीं कहती है।
    २. कपडे में खाने में अक्सर मा लडकीयों से भेद भाव करती है। (पिछले १०-१५ सालों में जब से टीवी आम हो गये है, लडकियों को बराबर के अधिकार मिलने लगे हैं)
    ३. लड के को बहुत छोटी उमर से खर्चे के लिए पैसे दिये जाते है किन्तुं लड कियों को बहुत कम अवसर पर पैसा दिया जाता है और दिया भी जाता है तो पूछा जाता हैॅ कि क्या खर्च किया है।
    ४. अक्सर घर के सारे काम लड कियों से ही कराए जाते है और लड को से बाहर के कुछ भारी कार्य ही कराऐ जाते है।
    ५. अक्सर लड कियों को डांटा जाता है।
    ६. दहेज के लिए लड की को प्रताडि त करने मे सबसे बड ा हाथ सास (महिला) का होता है और लड का (महिला का पति) न चाहते हुए भी मा का विरोध नहीं कर पाता है।

    समाज में
    जब लड का बचपन से ही देखता है कि घर के सारे कार्य की जिम्मेदारी तो लड की की है और मेरा कार्य तो बाहर का है। डांट खाने का काम तो लड की का है तो जब समाज में महिला के साथ कुछ गलत होता है तो स्वभावकिक प्रकृति के कारण वह उस पर उतना ध्यान नहीं देता है। घर में जब कभी जरूरत पड ती है तो महिलओं पर डांटता है। अगर मां उसे बचपन से बराबरी सिखाऐगी तो १०-१५ की उम्र के बाद वह जिन्दगी भी महिला की इज्जत करेगा।

    आदरणीय डा साहब को धन्यवाद. मेरे जैसे करोड लोग (सामान्य लोग) रामायण को न सिर्फ धर्मग्रंथ बल्कि जीवन का आधार भी मानते हैं। मैं और मेरे जैसे करोड ो लोग रामायण मे विशवास रखते हैं, भगवान श्री राम, माता सीता को नमन करते हैं, हनुमान जी को जपते है बिना यह संदेह किऐ कि वे सत्य हैं कि नहीं. जहां विद्गवास होता है वहां संदेह की जगह नहीं होती है। आराध्य के प्रति श्रद्धा है यह मायने नहीं रखता कि उन्हें वाल्मिकी जी या तुलसी जी ने लिखा है। लोगो ने रामायण पर बहुत संदेह किया है और बहुत गलत भी लिखा है और रामायण के बारे में दुद्गप्रचार करने वाली कुछ किताबे भी बांटी जाती रहीं हैं किन्तु क्या फिर भी रामायण में विशवास रखने वालो के श्रद्धा में क्या कमी आई है।

  54. इस बहस में जब सेक्स को लेकर चर्चा हो रही है लेकिन इसी बहाने भारतीय संस्कृति पर हमला हो रहा है और चुन चुन कर उद्धरण भारतीय संस्कृति को नीचा दिखाने के लिए दिये जा रहे हैं, ऐसे में इसे भी एक बार पढ लिया जाए तो अच्छा रहेगा ।

    धन्यवाद
    अरण्य कुमार

    Vedas On girl child
    यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता: !
    यत्रेतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफला: क्रिया: !! मनु:
    Prosperity reigns supreme where women are held in high esteem. All their actions fail to bring wellbeing, where women are held in disrespect.
    This has been a uniquely Indian tradition from Vedic times, and is not found in any other world civilization.
    Modern world society seeks to draw attention to important issues, by assigning a DAY to each issue. Not inappropriately, we have a ‘Girl Child’ day also. This day should also help us to do a little introspection on the state of our society.
    Our elitist educated class in imitating the west is seeking for women in the Indian society an equal opportunity statute.
    Swami Vivekand was asked by an American in 1890, if women enjoyed status equal to men in India. Eloquent Swami ji is reported to have dumb founded Indians in his audience by saying ‘NO’, and then after a pause, ‘The women India are accorded a higher status than men.’
    In the above quote from Manu it is stated that all efforts of a society to achieve well fare for its people bear no fruit, if the women in that society are not treated with respect.
    Reflecting on the state of our Indian society today, we witness even our elected leaders, surrounded by high security, constantly living under fear of violent attacks by members of our own society. Daily violent attacks on innocent people, miseries and crimes against society fill the front page space in our media. We are witnessing hunger, poverty, social, educational inequalities. Worsening food security and food safety are of great concern. Adverse climate changes seem to be beyond our control. With all the advances of sciences and technology in the modern world, with the best of intentions, think tanks, task forces, missions and commissions, we find all our efforts slipping, in addressing these problems. Has the mankind ‘really’ made real progress?
    It may come as a surprise that description of such a society is found verbatim in Vedas.
    “Where the truth speaking learned men and honest citizens do not enjoy, free speech; Where there is no audience to hear sane voices of reason; Where members of its society are maltreated because they are poor, meek and soft; Where girl child and women are left uncared, unkempt, unsafe, and exploited; Where learning, education, knowledge and scholarship are not given due importance and Where the unborn fetuses are aborted.”
    There the king and his bejeweled consort, even under best of security feel threatened and spend sleepless nights in their chambers. High remunerations paid to the employees in administration, services and defense forces fail to ensure expected good performances.
    Where prosperity earned out of honest living is not adulated, Health from good milk giving cows, good food from fertile fields and bulls and lotus bearing ponds are missed, Strong horses are not yoked to the chariots, People plunder, exploit and shed blood of each other, Brothers cheat and kill each other, Calamities rain on the society, like thunder bolts from the sky, or rain of blazing hot lava rocks.”
    Vedas point out that this situation is brought about by not understanding the role of women in inculcating right values in the society and by the unmindful neglect of the female of the species.
    Girl child starting from her birth, growing through infancy, adolescence, puberty and marriage, performs the role of continuing the human society by giving birth to new generations.
    Mother is the first teacher to cultivate sense for aesthetics to avoid ugliness in life and cultivate the right value system for the human society by proper family upbringing of the young ones. Vedas attribute this most important role assigned by nature to the female of the species.
    Rig Veda and Atharva Veda mention the deliberation of the divine forces on this subject, when female of the species was created. Role of females in society, duties of the society in development of the full potential of female talents, and finally the consequences of abrogation and neglect by the society of its duties towards the welfare of female, are the topics covered very exhaustively in Vedas. It is left to the learned audience to judge as to how relevant and erudite are these ideas, even in the light of modern sociology.
    It may be considered inappropriate but the truth of the matter is that this present state of our Indian society is that of a ‘TALIBANISED’ society. Is it not the hall mark of most Islamic nations in which girl child and female of the species is not accorded due respect and protection, and treated as very inferior? It may not be out of place to mention that according to Christian and Islamic scriptures females did not have a soul.
    From Vedas वेदों से
    On the conceived Role of Female in building Human Society
    1-.तेS वदन् प्रथमा ब्रह्मकिल्विषे S कूपार: सलिलो मातरिश्वा ! वीडुहरास्तप उग्रं मयोभूरापो देवी: प्रथमजा: ऋतस्य !! ऋ10/109/1, अथर्व 5/17/1
    “In the beginning three devataas viz. akoopaar, salilo and matarishwa, (Solar energy, the primordial soup and the moving winds laden with microbes) – that had taken part in creation of the physical humans, te awadan- deliberated among themselves. To brahmkilvishe – plan for preventing degradation of human society by Veeduharaastapugram – defeating the fires of strong dominating commandeering forces, of ugliness, violence, gross selfishness and over confidence uncivilized behavior, by mayobhoorapo dousing these fire with cool waters. For this prathamaaja devee first born female was conceived by ritasya – by God almighty’s wisdom.
    (Invincible Samson was cooled off by Delilah in bible) Vedas are in fact giving the same allegorical interpretation, but in a more comprehensive and scientific form, as follows.
    2- सोमो राजा प्रथमो ब्रह्मजायां पुनः प्रायच्छदहृणीयमानः ।
    अन्वर्तिता वरुणो मित्र आसीदग्निर्होता हस्तगृह्या निनाय॥ ऋ10-109-2, अथर्व 5-17-2
    सोमस्य जाया प्रथमं गन्धर्वस्तेऽपरः पतिः।
    तृतीयो अग्निष्टे पतिस्तुरीयस्ते मनुष्यजाः॥ अथर्व 14-1-3, ऋ 10-85-40
    सोमो ददद्‌ गन्धर्वाय गन्धर्वो ददग्नये।
    रयिं च पुत्रश्चादादग्निर्मह्यमथो इमाम्‌॥ अथर्व14-2-4, ऋ10-85-41
    These three Ved mantras also occurring in different places explain the same three stages in the development of the female temperament.
    In the beginning is what modern science refers to the age before formation of ‘the blood brain barrier’ in the children i.e. up to about 4 years age. According to our Shastras the girl child is under the guardianship of Soma.
    Vedas elaborate on Soma as god of intellect and poetically describe Soma being the first husband of the females during their infancy.
    (Modern science tells us that that DHA (Decosa Hexaenoic Acid) and EPA (Ecosa Pentaenoic Acid) are the two fatty acids that power the human brain in all its activities related to human faculties. DHA is particularly associated with eyesight. Both DHA and EPA are made in the human body from ALA the Omega 3 fatty acids.
    In young females capacity for conversion of dietary Omega 3 to DHA is nearly 20 higher and EPA is nearly three times higher than males. Thus it is the female of the species that has been given the extra responsibility to ensure good brains, eye sight, the intellectual strength for the human progeny.
    Nature has thus provided the females with a far superior role in building a human society than men, because to start with only sharp and farsighted brains ensure a sustainable happy society.
    This fact is borne out by the observation that in modern society not only in India but even in the Ivy leage colleges in USA, girls are regularly obtaining the academic laurels far ahead of boys. This is no different from Indian experience. Girls are seen to be snatching the top scholastic positions in all examinations in India.
    This is the scientific basis of the unique Vedic Culture that addresses the girl child as an object of veneration and the females to be accorded high position and treated with respect in society.
    In the second stage till the age of puberty around 12/13 years, during adolescence the girl child is possessed by Gandharvas.
    Gandharwas represents aesthetics, all which is beautiful, delicate, sensitive, empathic and virtuous in this world. In visuals the talents for appreciation of beauty in nature, arts, physical forms, and ability to replicate the same in paintings/sculptures and such visual art forms. In audiovisual areas gandharwas, would represent good sounds, music, dance forms and drama, good vocal abilities, creative writings. Sensitivity for harmonious relations and peace loving attitudes, delicacy, creativity are the gifts to humanity of the Gandhrwas. The girl child in her teens remains preoccupied with these artistic pursuits. These natural traits of females must be given full opportunities to develop. Females thus become the embodiment of these qualities for the human race. Poetically Vedas describe the Gandhrwas as the second husbands of the females.)
    In the third stage, with development of physical body functions, in Vedic language female body is as if afire with – the flesh gets stronger – by कामाग्नि.
    Female becomes ready for taking on her role of a wife by being married to a human being. And thus bring forth good progeny for progress and continuation of human society.
    3-हस्तेनैव ग्राह्यआधिरस्या ब्रह्मजायेयमिति चेदवोचन्‌ ।
    न दूताय प्रह्ये तस्थ एषा तथा राष्ट्रं गुपितं क्षत्रियस्य॥ ऋ 10-109-3अथर्व 5-17-3
    But it is also said that at this age to prevent the young females from being led astray, they require protective hand holding, just like a nation whose safety and security is ensured by the Kshatriyas.
    4-यामाहुस्तारकैषा विकेशीति दुच्छनां ग्राममवपद्यमानाम्‌ ।
    जाया वि दुनोति राष्ट्रं यत्र प्रापादि शश उल्कुषीमान्‌ ॥ अथर्व-5-17-4
    (It is at this stage here that this first Veda mantra is added by Atharwa Veda as a further elucidation of the subject.)
    Symbolized like unkempt hair of neglected deprived women, are the grown up undisciplined-unprincipled and ignorant females. When they bear children they propagate ignorance and lack of wise counsel to their young offspring. This brings to bear upon the society as a great scourge, like the destructive thunder bolts falling from the sky.
    5-ब्रह्मचारी चरति वेविषद्विषः स-देवानां भवत्येकमङ्‌गम्‌ ।
    तेन जायामन्वविदद्‌बृहस्पतिः सोमेन नीतां जुह्वं ने देवाः ॥
    ऋ 10-109-5 अथर्व 5-17-5
    Brahmcharis the young well educated learned youth have ability to take even the fallen women and bring them to flower, their hidden potential to bear good progeny for intellectual progress of the human race as originally the Gods had desired.
    6-देवा वा एतस्यामवदन्त पूर्वे सप्तऋषयस्तपसे ये निषेदुः ।
    भीमा जाया ब्राह्मणस्योपनीता दुर्धां दधाति परमे व्योमन्‌ ॥
    On this subject, based on the observation and experience of the elders through Saptrishis –The seven observers.
    (SevenRishis are named Kashyap,Atri,Bharadwaj, Jamadagni, Gautam. The seven sensory organs two eyes, two ears, two nostrils and mouth are also described as representing these Seven Rishis) i.e. basically what could be called ‘media reports’, it was expressed that women who are led astray by kidnapping or enticing, bring to bear upon the society very heavy social calamities, and it is the duty of the media to highlight such issues.
    7- ये गर्भा अवपद्यन्ते जगद्‌ यच्चापलुप्यते।
    वीरा ये तृह्यन्ते मिथो ब्रह्मजाया हिनस्ति तान्‌॥ अथर्व 5-17-7
    Even female fetuses that are destroyed bring forth in the society an atmosphere of rampant violence where chivalrous, strong men start violence and fights among themselves. This is seen as the curse of female fetuses destroyed.
    8-उत यत्‌ पतयो दश स्त्रियाः पूर्वे अब्राह्मणाः।
    ब्रह्मा चे द्वस्तमग्रहीत्‌ स एव पतिरेकधा ॥ अथर्व-5-17-8
    But a fallen woman even if she has been exploited by tens of men, finally gets accepted in a proper marriage to a good virtuous man, she is rehabilitated as being married to one man.
    9-ब्राह्मण एव पतिर्न राजन्यो3 न वैश्यः।
    तत्‌ सूर्यः प्रब्रुवन्नेति पञ्चभ्यो मानवेभ्यः ॥ अथर्व 5-17-9
    Like the illuminating light of the sun on the entire earth, this fact should also be very well known in the world that all people must develop their intellect. Merely on the strength of acquiring a higher status of a ruler over men, or a big warrior or a big moneyed person in life, no body acquires the qualification to be a good parent to father a progeny by taking a wife.
    10-पुनर्वै देवा अददुः पुनर्मनुष्या उत । राजानः सत्यं कृण्वाना ब्रह्म जायां पुनर्ददुः ॥ ऋ 10-109-6 अथर्व 5-17-10
    In case of any female if kidnapped or exploited, it becomes the duty of the state to rescue her and rehabilitate her in the society with due respect.
    11-पुनर्दाय ब्रह्मजाया कृत्वी देवैर्निल्बिषम्‌ ।
    ऊर्जं पृथिव्या भक्तवायो रुगायमुपासते ॥ ऋ 10-109-7 अथर्व 5-17-11
    Such women are considered innocent of any crime, and if need arises their rehabilitation should be at state expense.
    12-नास्य जाया शतवाही कल्याणी तल्पमा शये ।
    यस्मिन राष्ट्रे निरुध्यते ब्रह्मजायाचित्या ॥ अथर्व 5-17-12
    Even the ruler protected/surrounded by hundreds of security force does not feel secure enough, to have a sound sleep in his chamber, in a Nation where females are commandeered/forced upon against their free will.
    13-न विकर्णः पृथुशिरास्तस्मिन्वेश्मनि जायते ।
    यस्मिन्‌ राष्ट्रे निरुध्यते ब्रह्मजायाचित्या ॥ अथर्व 5-17-13
    That nation/society becomes deaf/ignorant to the voice of the people and no intellectual scholars grow, where females are commandeered/forced upon against their free will.
    14-नास्य क्षत्ता निष्कग्रीवः सूनानामेत्यग्रतः ।
    यस्मिन्‌ राष्ट्रे निरुध्यते ब्रह्मजायाचित्या ॥ अथर्व 5-17-14
    Chivalrous strong men do not show up in nations, where females are commandeered /forced upon against their free will.
    15-नास्य श्वेतः कृष्णकर्णो धुरि युक्तो महीयते ।
    यस्मिन्‌ राष्ट्रे निरुध्यते ब्रह्मजायाचित्या ॥ अथर्व 5-17-15
    By not being able to mount the horses in their chariots – to perform Aswamedh yagna – That nation/state loses face and influence in the world, where females are commandeered/forced upon against their free will.
    16-नास्य क्षेत्रे पुष्करिणी नाण्डीकं जायते बिसम्‌ ।
    यस्मिन्‌ राष्ट्रे निरुध्यते ब्रह्मजायाचित्या ॥ अथर्व 5-17-16
    Water bodies do not sport lotus flowers and the lotus flowers do not bear seeds to propagate themselves, – The environment suffers, where females are commandeered/forced upon against their free will.
    17-नास्मै पृश्नि वे दुहन्ति ये ऽस्या दोहमुपासते ।
    यस्मिन्‌ राष्ट्रे निरुध्यते ब्रह्मजायाचित्या ॥ अथर्व 5-17-17
    Cows are no longer able to provide good quantities of milk, where females are commandeered /forced upon against their free will.
    18-नास्य धेनुः कल्याणी नानड्‌वान्त्सहते धुरम्‌ ।
    विजानिर्यत्र ब्राह्मणो रात्रिं वसति पापया ॥ अथर्व-5-17-18
    Neither the cows bring welfare to society nor oxen get yoked, and without active participation of the women in the society, men are given to crime in night life.

    • महोदय,
      आदरणीय अरण्य कुमार जी,
      आपने प्रस्तुत आलेख को हिन्दी में पढकर समझा है, अन्य टिप्पणीकर्ताओं की हिन्दी में प्रदर्शित टिप्पणियों को भी पढकर समझा है एवं अपनी टिप्पणी में संस्कृत के सन्दर्भों को भी देवनागरी में प्रदर्शित किया है।

      इन तीन तथ्यों के प्रकाश में, मैं ऐसा विश्वास करता हँू कि आप अच्छी तरह से हिन्दी पढना एवं लिखना जानते और समझते हैं। इसके उपरान्त भी आपने अपनी लम्बी टिप्पणी उस भाषा में दी है, जिसे आज भी इस देश में ठीक से १० प्रतिशत लोग भी नहीं समझते हैं। हो सकता है, इसके पीछे आपकी कोई विवशता रही हो, लेकिन आपकी टिप्पणी अधिक सार्थक हो सकती थी, बशर्ते कि हिन्दी में होती। इच्छा आपकी।
      शुभकामनाओं सहित।

      • मीना जी आपके विचारों को पढ़कर लगता है आप विषय विशेष के बारे में अधजल गगरी चालकत जाये से ग्रसित हैं, आपको शायद अचम्भा होगा की दुनिया में सबसे ज्यादा और शुद्ध अंग्रेजी बोल वालो में भारतीय दुसरे नंबर पर हैं. हिंदी भारत में सिर्फ cow belt यानि सात राज्यों या ३० करोड़ लोगो की भाषा है. भारत में अधिकृत १६ भाषाएँ और भी हैं जो शायद आपकी लेखनी नहीं समझ पाएं, प्रवक्ता और अभिव्यक्ति के इस मंच पर सबको अपनी बात अपने ढंग से कहने का अधिकार है. असे में आपके विचार पढ़कर लगता है की अप उन थाले लोगो में से हैं जो तर्क कम कुतर्क ज्यादा करते हैं. मंच विहारों के अदन प्रदन का है, व्यक्तिगत टिप्पणी करने लगे तो राम में भी खोट निकालने वाले आपको भी नहीं बख्शेंगे. विद्वान् हैं तो पहले सहनशील बने, फिर सत्य स्वीकार्यता विकसित करें. हो सकता है आप वाकई विद्वान् हो लेकिन जब तक यह आपके व्यवहार विचार में नहीं झलके, आप सामान्य ही नज़र आयंगे. मुझे मालूम है इतना पढने के बाद अप मेरी बात का छिद्रान्वेषण कर तरकश भर चुके होंगे. मई यही आपको अनुभव कराना चाहता था कि अब आप सार्थक बात करने कि स्थिति में नहीं रह सकते और आप विषय से भटक इस मंच का स्थान दूसरो का वक्त साईट कि गरिमा, अपना दिमाग, उर्जा और देश कि बिजली के साथ न जाने क्या-क्या खराब करेंगे, ऐसा ही आपके विचारों को पढने के बाद और लोग करते हैं और विषय से भटक जाते हैं. जैसे कि मैं, जो पहली बार इस साईट पर आया और आप लोगों के विचार के नाम पर ‘ भड़ास भरी किताबें’ देख विचलित हूँ.

    • यह लेख बहुत सुंदर और ज्ञान वर्धक है। भारत्तीय ग्रंथ और वेद जो इस सभ्यता के मूल श्रोत थे, उनके नष्ट होने से, यह देश सिर्फ कहने को ही भारत है।

      अथर्व वेद, जीवन (प्राण, विचार) के परिवर्तन को परिभाषित करता है, और उसके भौतिक और मानसिक प्रभाव के ज्ञान के मंत्र हैं।

      लेखक को मेरा धन्यवाद।

      महिलाओं के रूप, सेक्स, सेवा भाव, बुद्धि और अहिंसा का सम्मान होना चाहिए। किन्तु जो इसे नहीं करते हैं, उनका दुर्भाग्य उनका साथी बना ही रहेगा। कालांतर में महिलाओं में अब आदम स्वभाव आ गया है, और वे महिलाएं केवल शरीर से ही है, मन से नहीं। इसलिए, धीरे धीरे, परस्पर प्रतिस्प्रढ़ा में, यह लिंग भेद भी समाप्त हो जाएगा।

  55. डा. मीणा जी , काफी अध्ययन और मेहनत की है आप ने. आप द्वारा उधृत कथनों को सादर स्वीकार करते हुए मेरा एक निवेदन है. क्या अपने कभी विश्व के इतिहास में महिलाओं की स्थिती के बारे में अध्ययन किया है ? चुन-चुन कर केवल पक्ष या विपक्ष के उद्धरण प्रस्तुत किये जा सकते हैं, यह तो आप जानते ही हैं. सच तक पहुँचने का यह सही तरीका हो सकता है क्या? मेरा विचार है कि पुवाग्रह रहित लोगों को दोनों पक्षों के अध्ययन के बाद विश्व के संदर्भो का भी अध्ययन करने का प्रयास करना चाहिए, तो समग्र सत्य तक शायद हम पहुंचेगे.
    केवल एक पक्षीय सोच तो हमारे अहंकार की अभिव्यक्ती ही सिद्ध होगी या फिर हमारे पूर्वाग्रहों को व्यक्त करेगी, मजबूत करेगी. आशा ही नहीं, विश्वास है कि आपकी संतुलित व इमानदार सोच से कोई समाधान निकलेगा.

    • आदरणीय डॉ. कपूर साहब आप अपनी उक्त टिप्पणी को फिर से मेरी टिप्पणी दि. ०४.०८.१० के नीचे रिप्लाई वाले बिन्दु को क्लिक करके पेस्ट करें या इसके लिये प्रवक्ता डॉट कॉम से अनुरोध करें कि इसे यथास्थान कॉपी करके पेस्ट किया जावे। पूर्व में की गयी टिपपणी भी गलत स्थान पर पेस्ट की गयी है। जिससे कि अन्य/नये पाठक भी आपकी टिपपणी के भाव/सन्दर्भ को आज और कभी भी सही प्रकार से समझ सकें। इसके बाद मैं आपकी टिप्पणी के सन्दर्भ में कुछ विचार प्रकट करने की उत्सुक हँू।
      प्रवक्ता डॉट कॉम सम्पादक मण्डल से भी अनुरोध है कि पाठकों को तकनीकी ज्ञान नहीं होने पर अपनी ओर से भी टिप्पणी के सन्दर्भ को ध्यान में रखते हुए, उसे यथास्थान प्रदर्शित करने की व्यवस्था करने पर विचार किया जावे। धन्यवाद।

    • पहिले वर्तमान देख, फिर इतिहास पढ़ना।
      कार चलाते समय आगे देखना चाहिए, और इतिहास वह मिरर है जो पीछे से आने वाली गाड़ियों को देखने ने लिए है। इतिहास ही देखते रहेंगे, तो टक्कर हो कार ही रहेगी।
      इतिहास में सब कुछ है, और जो वह देखना चाहेगा, दिखगा, इसलिए वही इतिहास आज वर्तमान है, यदि वही ठीक हो, तो भी चलेगा।

  56. कामनवेल्थ गेम्स के दौरान सेक्स परोसने की खबर पहली बार पढ़ी. अगर ऐसा हुआ है तो वाकई निंदनीय कृत्य है. O.P. Pareek

    • आदरणीय पारीक जी, इस देश में बनावटी एनकाउण्टर करके अपराधियों को मारा जा सकता है। गास भेंसों की चर्बीयुक्त बनावटी देशी घी बेचा जा सकता है। कोल्ड ड्रिंक में गन्दगी भरकर बेची जा सकती है। ऐसे में खबरों को भी तो उत्पादित किया जा सकता है? क्या मानना है आपका? विशेषकर तब जबकि सेक्स वर्कर्स का सरकार द्वारा पंजीकरण किये जाने की बात कहीं जा रही है और वो भी नारी की पूजा को याद करते हुए। कहाँ पर निशाना और कहाँ पर नजर है, ये समझने की जरूरत है।

  57. मैं गुजरात से हँू, जाति से ब्राह्मण हँू। एक पढीलिखी नारी हँू और अपना एवं देश का भलाबुरा ठीक से जानती हँू।

    इस बात में कोई दो राय नहीं कि यदि सेक्स सरकार के द्वारा परोसा जाना है और इसके लिये सरकार ने 37900 सेक्स वर्कर पंजीकृत किये हैं, तो न मात्र यह निन्दनीय और शर्मनाक है, बल्कि अपराध भी है।

    लेकिन प्रवक्ता.कॉम की ओर से चर्चा शुरू करवाते समय इस सवाल का जवाब नहीं दिया गया है कि केन्द्र एवं दिल्ली की राज्य सरकार ने ऐसा किस कानून के तहत किया है? मेरी जानकारी के अनुसार क्या भारत में ऐसा कोई कानून नहीं है, जिसके अनुसार सरकार या अनय किसी के भी द्वारा सेक्स वर्कर को पंजीकृत किया जा सकता हो।

    मुझे तो अनेक बार ऐसा लगता है कि यह न मात्र एक अफवाह है, बल्कि यह भाजपा सहित, काँग्रेस विरोधी ताकतों की चाल है। जो संस्कृति, धर्म आदि संवदेनशील मुद्दों के बहाने समाज में आक्रोश पैदा करने अपनी रोटी सेकने में विश्वास करते हैं। जिसका प्रमाण राम मन्दिर, समान नागरिक संहिता और कश्मीर मसला है। जबकि इन बहरूपियों का असली मकसद केवल सत्ता पाना है, जिसमें समस्त उद्दोगपति और हिन्दूवादी मीडिया खुलकर भाजपा का साथ देता रहा है, इसके बावजूद भी आज तक ये देश को एवं देश के सौहार्द को तोडने वाली शक्तियाँ 6 दिसम्बर, 1992 की दुःखद घटना को छोडकर अपने नापाक इरादों को पूरे करने में कामयाब नहीं हो सकी हैं। ये कितने भी घटिया से घटिया स्तर पर गिर सकती हैं।

    भारत में ही लिखी गयी एक किताब में दर्शायी गयी शंका एवं आंकडों के अनुसार तो संसद पर हुआ हमला भी भाजपा एवं उसके समर्थकों की साजिश का नतीजा था। इस किताब पर आज तक भाजपा की ओर से किसी प्रकार का मुकदमा दायर नहीं किया गया है। यह किताब बाकायदा बाजार में खुलेतौर पर बेची और खरीदी जा रही है। जिसके बारे में राष्ट्रीय कहे जाने वाले प्रिण्ट एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में भी समाचार प्रकाशित एवं प्रसारित किये जा चुके हैं।

    मुझे तो लगता है कि बिहार विधान सभा के चुनावों के मद्देनजर इस बनावटी परिचर्चा के तार भी कहीं न कहीं इन्हीं समाज तोडक शक्तियों से जुडे हुए हैं और यदि नहीं तो पाठकों की ओर से उठाये जाने वाले सवालों के जवाब प्रवक्ता.कॉम की ओर से परिचर्चा के बीच में ही क्यों नहीं दिये जाने चाहिये?

    1. श्री चण्डीदत्त शुक्ल जी की टिप्पणी प्रवक्ता.कॉम से जवाब की प्रतीक्षा में है।

    2. श्री विश्वास प्रभुदेसाई जी की टिप्पणी प्रवक्ता.कॉम से जवाब की प्रतीक्षा में है।

    3. श्री बलराम अग्रवाल जी की छोटी सी टिप्पणी ने तो प्रवक्ता.कॉम की परिचर्चा को पूरी तरह से कटघरे में खडा कर दिया है। ये भी जवाब की प्रतीक्षा में है।

    4. मेरा स्वयं का सवाल है कि किस कानून के तहत केन्द्र एवं दिल्ली सरकारों ने सेक्स वर्कर्स का पंजीकरण किया गया है और परिचर्चा में शामिल सूचना का आधार क्या है?

    5. यदि उक्त आँकडे और सूचना सही नहीं है तो यह भी बताया जाना चाहिये कि पाठकों और देशवासियों की भावनाओं के साथ खिलवाड करने के लिये प्रवक्ता.कॉम के विरुद्ध क्या कार्यवाही होनी चाहिये?

    उपरोक्त के अलावा जैसा कि मैंने ऊपर भी लिखा है, मैं फिर से साफ कर दँू कि गुजरात के ब्राह्मण परिवार से हूँ, जहाँ का डांडिया/गरबा डांस देशभर में प्रसिद्धि पा रहा है। इसका बडा कारण धार्मिक आस्था नहीं होकर धर्म की आड में खुला यौनाचार है। इन कार्यक्रमों के आयोजन को बाकायदा प्रायोजित किया जाता है। इसमें धन लगाने वाले मूर्ख नहीं हैं। उन्हें किशोर और नवयुवतियों का गर्म गोश्त नोचने को मिलता है।

    पिछले साल कम से कम सैकडों मामलों में लडकियों के विरोध को पुलिस एवं गुजरात सरकार ने शक्ति के बल पर और कुछ गरीबों को धन के बल पर दबा दिया। वर्तमान में आरएएस, भाजपा, विश्व हिन्दू परिषद जैसे हिन्दूवादी संगठनों, इलेक्ट्रोनिक एवं प्रिण्ट मीडिया के लोगों की इस कुचक्र को तेजी से फैलाने और यौनाचार को बढावा देने में मुख्य भागीदारी है, जिसके चलते ऐसे मामले जहाँ के तहाँ दबा दिये जाते हैं।

    कुछ समय पहले तक गुजरात में तो इससे भी घिनौनी प्रथा लागू रही है, सूदखोर कर्जलेने वाले की पत्नी को ऋण की वापसी नहीं होने तक अपने पास गिरवी रख लेते थे और उसका भोग करते रहते थे। इस दौरान पैदा होने वाले बच्चों की परिवरिश की जिम्मेदारी भी ऋण लेने वाले की होती थी। इसके लिये यहाँ पर वाकयदा कागज पर करार होता था।

    आजादी के दशकों बाद तक यह व्यवस्था लिखित-पढत में चलती रही। बाद में इसे कोर्ट ने गैर-कानूनी घोषित कर दिया। तब से आज तक यह अलिखित रूप में चल रही है। आप कहते हैं स्त्री की पूजा होती थी और डॉ. कपूर साहब तो लगता है कि केवल खोखले आदर्शों के सिवा और किसी बात में विश्वास ही नहीं करते। ये दूसरों को विदेशों के ऐजेण्ट या मानसिक दिवालियेपन या अपनी संस्कृति के दुश्मन बतलाते हैं, लेकिन मैं कहना नहीं चाहती कि इन्हें स्वयं को अपनी आत्मा के आईने में देखकर निर्णय लेना चाहिये।

    एक भाई श्री पटेल जी कहते हैं कि नारी ही नारी का उत्पीडन करती है, लेकिन ये बतायेंगे कि हजारों सालों से नारी के जीवन की स्टेरिंग किसके हाथ में रही है। नारी को नारी के खिलाफ किसने किया है। आप जिन ग्रन्थों की पूजा करने की बात कह रहे हैं, उनके पुरुष लेखकों ने जानबूझकर अपनी कथा के नारी पात्रों के मुःह से ही नारी की कटु आलोचना करवाई है, जिसे नारी मन ने सच्चाई और अपनी नीयति मान रखा है। जिसके चलते नारी को नारी का दुश्मन कहकर पुरुष फिर से बच निकलना चाहता है।

    सच तो ये है कि हिन्दू धर्मशास्त्रों, उपनिषदों, वेदों, पुराणों, रामायण आदि सभी ग्रंथों एवं संस्कृति के रक्षा के ठेकेदारों ने नारी को हर हाल में निशाना बनाया है। इन सबने नारी के विरुद्ध इतनी घटिया भाषा इस्तेमाल की है, जिसे लिखने और बोलने में भी शर्म आती है। श्री मीना जी द्वारा तो कुछ भी नहीं लिखा गया है, अभी तो बहुत कुछ है लिखने के लिये।

    इस टिप्पणी को टाईप करने और मेरी भाषा को और मात्राओं को ठीक करने के लिये लखनऊ, उत्तर प्रदेश निवासी मेरी मित्र सरला दुबे की मैं तहे दिल से आभारी हँू। अन्यथा न तो मैं से इतनी बडी टिप्पणी लिख पाती और न हीं मैं इतनी अच्छी हिन्दी लिख पाती।

    आशा है कि प्रवक्ता.कॉम निष्पक्षता का परिचय देकर इस टिप्पणी को प्रकाशित करेगा और उठाये गये सवालों के जवाब देगा।

  58. एक मानसिकता होती है “पर पीडक” और एक होती है ”आत्म पीडक.” कईयों को अपने आप को याने अपने देश, समाज को अपमानित करने में आत्म पीड़ा के सुख का मज़ा लेने की आदत हो तो बड़ा मुश्किल है. आत्म आलोचन के सीमित घेरे से इनका बाहर निकलना या इन्हें निकालना असंम्भव नहीं तो कठिन तो बहुत है. इन्हें कुछ भी बर्दाश्त है एक भारत की प्रशंसा के इलावा. धन्य हैं मैकाले साहब. इतना बड़ा कमाल! ऐसे अजीब लोग दुनिया के तख्ते पर केवल भारत में ही पाए जाते हैं.छोटे से छोटे, रद्दी से रद्दी, बेकार से बेकार देश में इस प्रजाती के लोग नहीं मिलेंगे. केवल भारत में मिलते हैं ऐसे अजीब लोग जो अपनीं जड़ें अपने हाथों से काट-काट कर बड़ी त्रिप्ती का अनुभव करते हैं.

    • कृपया आप अपनी उक्त टिप्पणी को फिर से मेरी टिप्पणी के नीचे रिप्लाई वाले बिन्दु को क्लिक करके पेस्ट करें या इसके लिये प्रवक्ता डॉट कॉम से अनुरोध करें कि इसे यथास्थान कॉपी करके पेस्ट किया जावे। जिससे कि अन्य/नये पाठक भी आपकी टिपपणी के भाव/सन्दर्भ को आज और कभी भी सही प्रकार से समझ सकें। इसके बाद मैं आपकी टिप्पणी के सन्दर्भ में कुछ विचार प्रकट करने की उत्सुक हँू।
      प्रवक्ता डॉट कॉम सम्पादक मण्डल से भी अनुरोध है कि पाठकों को तकनीकी ज्ञान नहीं होने पर अपनी ओर से भी टिप्पणी के सन्दर्भ को ध्यान में रखते हुए, उसे यथास्थान प्रदर्शित करने की व्यवस्था करने पर विचार किया जावे। धन्यवाद।

  59. कुछ नहीं कहने को….
    आक्रोश का आवेग शब्द बहा कर ले जाता है अपने साथ…

  60. लेखक सही कह रहें हैं खेल और सैक्स. सरकार भी पूरे जोर शोर से लगी है हर तरह के इन्तजाम करने में। जब भी मेले त्यौहार आते हैं हर कोई लग जाता है खर्च करने में या कमाने में. सभी के रास्ते अलग अलग हैं। पर सरकार को चाहिए की खेल जो कि दम खम दिखाने के लिए होते हैं उनमें सैक्स का इन्तजाम करना … ठीक नहीं लगा।

    रही बात डा. पुरशोत्तम जी की तो यह सही है कि नवरात्र में गरवा की आड़ में युवा युवतियों में एक राज्य विशोष में बहुत कुछ होता है। सरकार तो वहां भी कुछ कर ही रही है. जरूरत है मातापिता की जो अपने युवा बच्चों को समझाए की सही गलत क्या है। किन्तु मा बाप क्या कर सकते है जब पिक्चर, टीवी, विज्ञापन हर जगह श्रंगार रस का बोलबाला है।

    रही बात नारी को देश में पूजने की तो यह बिलकुल सही है। हमारे देश में पहले भी नारी को पूजा जाता था, आज भी पूजा जाता है और आगे भी पूजा जाता रहेगा। हां कुछ समाज में, परिवारों में नारी को उतना आदर नहीं दिया जाता होगा, किन्तु उसी समाज के हर परिवार में नहीं. यह एक बहुत ही विचार क मुद्दा है कि नारी का अपमान अधिकतर नारी द्वारा ही किया जाता है। अगर किसी परिवार की महिलाएं सोच ले कि नारी का अपमान नहीं होगा तो कोई भी करने की हिम्मत नहीं कर सकता है।

    रही बात मनुस्मृति की तो लोखों हिन्दू परिवारों मे से कोई इक, दो ने ही मनुस्मृति पॄी होगी। मुझ जैसे करोडौ हिन्दु तो रामायण, गीता, महाभारत को ही हिन्दु धर्मग्रंथ मानते हैं और पूजा करते हैं।
    चाणक्य पहले राजनीतिक विचारक और अर्थशात्री थे वे कोई धर्मोपदेशक नहीं थे। उनके विचार राजनैतिक विचारधारा के थे न कि धर्म के उपदेश

    • पटेल जी ,
      आप किस आधार पर कह सकते हैं की सरकार इसके पीछे है

    • आदरणीय पटेल जी टिप्पणी के लिए आभार. आपने लिखा है कि-

      “मुझ जैसे करोडौ हिन्दु तो रामायण, गीता, महाभारत को ही हिन्दु धर्मग्रंथ मानते हैं और पूजा करते हैं।”

      कृपया ये भी बतला दें कि आप रामायण किसे मानते हैं, तुलसी की रामचरित मानस को या बाल्मीकी कृत को?

  61. ye dono vishay alag hai mujhe nahi lagta ki in dono vishay ko ek sath jora ja sata hai. CWG or sex alag alag vishy hai

    • आदरणीय श्री अराफात जी चरिचर्चा कराने वाले लेखक की ओर से अन्त में लिखा गया है कि-

      “सीता, सावित्री के देश भारत में जहां नारी की पूजा की जाती है, वहां सरकार की ओर से नारी को भोग की वस्तु बनाकर प्रस्तुत करना क्या उचित है? आप क्या सोचते हैं?”

      यही नहीं बल्कि लिखा हा कि-

      “यूपीए सरकार और दिल्ली सरकार ने राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान विदेशियों को सेक्स परोसने के लिए दिल्ली में 37900 सेक्स वर्कर पंजीकृत किए हैं।”

      फिर भी आप कह रहे हैं कि आपको नहीं लगता कि दोनों विषयों को एक साथ जोड़ा जा सकता है? ऐसा तो नहीं कि आपने परिचर्चा के आलेख के केवल शीर्षक को पढकर ही अपनी टिप्पणी लिखदी हो। कृपया अन्तिम वाक्य तक पढने के बाद ही निचोड़ निकालें तो बेहतर होगा।

  62. ज़रा आराम से सोचें कि ————-
    चोरी, हत्याएं होती हैं तो क्या चोरों और हत्यारों को मान्यता दे देनी चाहिए ?
    काम वासना को, स्त्रियों को बाजारी बना देना चाहिए क्यों कि चोरी-छुपे यह अनाचार होता है ? ऐसी भ्रमित सोच तो हमें बर्बाद नहीं कर देगी?
    एक सही मुद्दा काफी संवेदन शील ढंग से उठाया गया है. इसपर ठीक से सोचा जाना चाहिए. हमारे समाज के मजबूत ढांचे को समाप्त करने का यह एक षड्यंत्र होने में संदेह करने की कोई गुंजाईश नज़र नहीं आती. सरकारी संरक्षण में कामवासना का बाज़ार शुरू करने की ‘प्रवक्ता.कॉम’ की यह सूचना सही हो सकती है. क्रिकेट मैच के अवसर पर भी तो कई बार चीयर गर्ल्स को लाने के प्रयास जनता के विरोध के चलते असफल हो गए थे. पर केवल १-२ साल में हालात यहाँ तक पहुँच गए हैं कि अनेकों बुद्धिजीवी कहलानेवाले इस वासना के व्यापार को प्रतिष्ठा, मान्यता , संरक्षण देने का समर्थन करने लगे हैं. मानवीय दुर्बलताओं को बढ़ावा देने वाली व्यवस्था बबाद्य की और ले जाती है और इन दुर्बलताओं को नियंत्रित करने वाली व्यवस्था कल्याण कारी सिद्ध होती है. ये क्या कुतर्क हुआ कि हम में वासना की कमजोरी है अतः उसे स्वछन्द, निर्लज्ज होकर भोगने में जुट जाएँ.
    सीधी-सरल बात है कि मानवीय दुर्बलताओं से उपजे विकृत व्यवहार को मान्यता देने की भारत की संस्कृती नहीं रही है. वर्तमान प्रयास का सबसे भयावह पहलू है, ” कदाचार और कदाचारियों को मान्यता, प्रतिष्ठा दिलवाने का.” अमेरिका और यूरोप में सबसे अधिक टूटते-बिखरते परिवार हैं, भारत और चीन में नहीं. बहुत भ्रष्ट होजाने के बाद भी संसार के सबसे मजबूत चरित्र के लोग भारत में अभीतक हैं. वे नहीं रहने चाहियें,ये प्रयास है इन वासना का बाज़ार फैलाने वाली ताकतों का.
    बड़ी हैरानी की बात है कि हम इस तथ्य को नहीं समझ पाते कि अपनीं कमियों का ढिंढोरा पीटने से नहीं, अपने वास्तविक गुणों का स्मरण करने से हम प्रेरित होंगे और सारे सामाजिक, राजनैतिक दोषों को दूर कर सकेंगे. केवल कमियों के गीत गा-गा कर तो हम अपने दुश्मनों का काम ही आसान कर रहे हैं.
    *कितनी अजीब बात है कि जिन शास्त्रों के उद्धरण देकर हम अपने देश व संस्कृति को लांछित करते हैं, उन्ही शास्त्रों की श्रेष्ठ बातों को किसी गिनती में नहीं लाते. क्या यह भारत विरोध का सिंड्रोम नहीं जिसका अनेक लोग शिकार बन रहे हैं.

    • आदरणीय कपूर जी प्रणाम,
      सरकारी सरंक्षण में कामवासना का बाज़ार……. सही हो सकती है? आपको अजीब नहीं लगता है की इस बात की जिस पर परिचर्चा की जा रही है उसकी सत्यता का कोई पता ही नहीं है, बस किसी का मन आया और उसने लिख दिया बाकि लोग आदत के मुताबिक शुरू हो गए पहले तो ये परिचर्चा ही बकवास है
      …………सीधी-सरल बात है कि मानवीय दुर्बलताओं से उपजे विकृत व्यवहार को मान्यता देने की भारत की संस्कृती नहीं रही है………………………..
      ये बिलकुल गलत है भारत की संसकिरती की झूठी गाथा जो रटी रटाए है उससे अगर हम बहार नहीं निकले तो शायद जो कुरित्य हम दूर कर सकते हैं वो भी नहीं कर पाएंगे. नारी को जितना भोग की वास्तु हमारी संस्कृति में समझा गया है मुझे नहीं लगता है शायद उसको झुटलाया जा सकता है… आपकी एक और भावुक अपील और पश्चिमी संसकिरती की बुरी करके अपनी कमियों को छुपाने का प्रयास असफल है
      ……………………..हैरानी की बात है कि हम इस तथ्य को नहीं समझ पाते कि अपनीं कमियों का ढिंढोरा पीटने से नहीं, अपने वास्तविक गुणों का स्मरण करने से हम प्रेरित होंगे और सारे सामाजिक, राजनैतिक दोषों को दूर कर सकेंगे. केवल कमियों के गीत गा-गा कर तो हम अपने दुश्मनों का काम ही आसान कर रहे हैं……………………….
      बस yahi fark है आप और हम में , हमको झूठे गीत गाने नहीं आते हैं मीना जी सब कुछ लिख दिया है,,,,,,,,, कालिदास का अभिज्ञान शाकुंतलम और कुछ मंदिर जेसे अजंता अलोरा रह गए भले ही वो कला का अद्भुत नमूना हो लेकिन अश्लीलता का सागर है जो बतलाता है की नारी की क्या दशा है शुरू से ही, मेने धार्मिक ग्रंतोहं का नाम नहीं लिया है क्योंकि अब सब ही जानते हैं की नारी की दशा क्या थी, आपसे भी निवेदन है की लोगो को झूट पर प्रोत्साहित न करें …………………….. शुभकामनाओ के साथ दीपा sharma

  63. आप कहते हैं कि खेलों के दौरान यौन-संक्रमण फैलने का पूरा खतरा मौजूद है। यौन-संक्रमण छूत की बीमारी है क्या? इसके विषाणु हवा में तैरकर संक्रमण फैलाते है? 37900 को अगर 3 गुना कर दें तो 1लाख 14 हजार के करीब सेक्स-वर्कर्स बैठते हैं। अगर ये सभ्य घरों में घुसे बैठे हैं तो खेलों के दौरान ही क्यों, हमेशा ही उनसे खतरा है–सांस्कृतिक-संकृमण का खतरा न कि एच आई वी, एड्स मात्र का। और अगर ये जी बी रोड या कुछ विशेष स्थानों पर ही बैठकर अपना धन्धा चला रहे हैं तो किसे खतरा है?

    • Bahut sahi kaha jab hum sahi to koi kaya kar sakta he yonachar kaha nahi he sabhi jagah he bas najar uthake dekhne ki jarurat he, is tarah ki paricharcha samay ki barbadi he

  64. सारा निष्कर्ष तो पहले से ही प्रदर्शित किया जा चुका है। चर्चा के लिये शेष है भी क्या? परिचर्चा में भाग लेने वालों से केवल इतना सा पूछा गया है कि जहाँ नारी की पूजा की जाती है, वहाँ नारी को भोग की वस्तु बनाकर सरकार की ओर से प्रस्तुत करना क्या उचित है? इसमें सरकार की ओर से पेश करने पर आपत्ति अधिक नजर आ रही लगती है।

    परिचर्चा की भूमिका में एक ओर तो भारतीय संस्कृति और जीवन मूल्यों के संरखण की बात कही गयी है, दूसरी ओर कहा गया है कि विदेशों में ऐसे आयोजन होते हैं, वहाँ पर सुरक्षित सेक्स की सुनिश्चितता होती है। यदि भारत में भी ऐसे आयोजनों के समय पर सेक्स सुरक्षित हो तो क्या उचित है?

    जब भारत के एक हिस्से नवरात्रों के दौरान युवा अविवाहित लडकियों एवं औरतों के द्वारा गर्वा नाच में माँ दुर्गा की भक्ति के पवित्र उद्देश्य से भाग लिया जाता है, उस दौरान भारत सरकार द्वारा गर्वा नाच में भाग लेने वाली अविवाहित लडकियाँ गर्भवति नहीं हों, इस उद्देश्य से गर्भनिरोधक गोलियाँ मुफ्त में बांटी जाती हैं। इसके बावजूद भी यदि स्थानीय मीडिया की बात पर विश्वास किया जाये तो गर्वा नाच आयोजन क्षेत्रों में गर्भ समापन (गर्भपात नर्सिंग होंम) पर गर्भपात की दर तीन सौ से पाँच सौ प्रतिशत तक बढ जाती है। क्या इसमें भी किसी विदेशी का हाथ है।

    क्या भारत के अतीत में सेक्स वर्कर नहीं रही/रहे हैं? क्या बिना किसी आयोजन के सेक्स वर्कर अपना व्यवसाय नहीं करती हैं? कुछ पूर्व न्यायाधीशों सहित अनेक सामाजिक कार्यकर्ताओं का तो यहाँ तक मानना है कि सेक्स व्यवसाय को कानूनी मान्यता मिल जाने पर ही सुरक्षित सेक्स को सुनिश्चित करने की दिशा में कुछ ठोस कदम उठाये जा सकते हैं। अन्यथा इस देश में सेक्स व्यवसाय फलता-फूलता तो रहेगा, लेकिन सुरक्षित नहीं हो सकता।

    जहाँ तक पश्चिम के अन्धानुकरण का सवाल है, हमें पश्चिम की वो सब बातें तो उचित लगती हैं, जिनसे हमें सुख-सुविधाएँ, आराम और धन प्राप्त होता है, लेकिन पश्चिम की जिन बातों से हमारी कथित पवित्र संस्कृति को खतरा नजर आता है, वे सब बातें हमें बुरी, बल्कि बहुत बुरी लगती हैं। इसी प्रकार से जब भी पश्चिम की ओर से कोई कल्याणकारी खोज की जाती है तो हम कहाँ-कहाँ से आडे-टेडे तर्क/कुतर्क ढँूढ लाते हैं और सिद्ध करने में जुट जाते हैं कि पश्चिम की ओर से जो कुछ आज खोजा गया रहा है, वह तो हमारे वेद-पुराणों के अनुसार हजारों वर्षों पहले ही हमारे पास मौजूद था। क्या यह हमारा दौहरा और नाटकीय चरित्र नहीं है?

    मुद्दा ये है कि क्या इस प्रकार के आयोजनों के समय को छोड कर सामान्य दिनों में भारत में सेक्स वर्कर्स का धन्धा बन्द रहता है। मन्दा अवश्य रहता होगा, लेकिन धन्धा तो ३६५ दिन चलता ही रहता है। जब राष्ट्रमण्डल खेलों के दौरान किये जा रहे निर्माण कार्योर्ं में भ्रष्टाचार का धन्धा जोरों पर है, सैलानियों के लिये हर प्रकार की उपभोग की वस्तुओं का धन्धा जोरों पर चलने वाला है तो सेक्स वर्कर्स बेचारी/बेचारे क्यों इस अवसर से वंचित रहें? उनका धन्धा क्यों मन्दा रहे?

    सच्चाई यह है कि हममें से अधिकतर आदर्शवादी होने या दिखने का केवल नाटकभर करते हैं। इसी नाटक को लेकर अनेक प्रकार के विवाद तक खडे कर देते हैं। जबकि सच्चाई से हम सभी वाकिफ हैं। हम यदि शहर में रहते हैं तो पश्चिमी सभ्यता की खोजों के बिना २४ घण्टे सामान्य जीवन जीना असम्भव हो जायेगा? इसलिये क्या तो पश्चिमी और क्या पूर्वी, अब तो सारा संसार एक गाँव बन चुका है। ऐसे में कोई भी किसी भी देश की संस्कृति को फैलने या लुप्त होने से रोक नहीं सकता! क्या इण्टरनैट इस देश की संस्कृति है? जब हम सब कुछ, बल्कि ५० प्रतिशत से अधिक पश्चिमी तरीके से जीवन जी रहे हैं, तो ढोंगी बनने से क्या लाभ है, बल्कि हमें पश्चिमी और पूर्वी की सीमा को पाटकर वैश्विक सोच को ही विकसित नहीं करना चाहिये? जिससे न तो किसी हो हीन भावना का शिकार होना पडे और न हीं किसी को अहंकार पैदा हो।

    अब मुद्दे की बात पर आते हैं कि जहाँ (भारत में) नारी की पूजा की जाती है, वहाँ नारी को भोग की वस्तु बनाकर सरकार की ओर से प्रस्तुत करना क्या उचित है?
    लगता है कि इसमें सरकार की ओर से पेश करने पर आपत्ति अधिक नजर आ रही लगती है। मुझे इस वाक्य पर ही आपत्ति है कि-जहाँ नारी की पूजा की जाती है।

    पहली बात तो ये कि नारी की इस देश में कहीं भी न तो पूजा की जाती है, न की जाती थी। केवल नारी प्रतिता दुर्गा आदि की देवियों के रूप में पूजा अवश्य की जाती रही है। मनु महाराज के जिस एक श्लोक (यत्र नार्यस्त पूज्यंते रमन्ते तत्र देवताः) के आधार पर नारी की पूजा की बात की जाती है, उसी मनुमहाराज की एवं अन्य अनेक धर्मशास्त्रियों/धर्मग्रन्थ लेखकों की बातों को हम क्यों भुला देते हैं? इनको भी जान लेना चाहिये :-

    मनुस्मृति : ९/३-
    स्त्री सदा किसी न किसी के अधीन रहती है, क्योंकि वह स्वतन्त्रता के योग्य नहीं है।

    मनुस्मृति : ९/११-
    स्त्री को घर के सारे कार्य सुपुर्द कर देने चाहिये, जिससे कि वह घर से बाहर ही नहीं निकल सके।

    मनुस्मृति : ९/१५-
    स्त्रियाँ स्वभाव से ही पर पुरुषों पर रीझने वाली, चंचल और अस्थिर अनुराग वाली होती हैं।

    मनुस्मृति : ९/४५-
    पति चाहे स्त्री को बेच दे या उसका परित्याग कर दे, किन्तु वह उसकी पत्नी ही कहलायेगी। प्रजापति द्वारा स्थापित यही सनातन धर्म है।

    मनुस्मृति : ९/७७-
    जो स्त्री अपने आलसी, नशा करने वाले अथवा रोगग्रस्त पति की आज्ञा का पालन नहीं करे, उसे वस्त्राभूषण उतार कर (अर्थात्‌ निर्वस्त्र करके) तीन माह के लिये अलग कर देना चाहिये।

    आठवीं सदी के कथित महान हिन्दू दार्शनिक शंकराचार्य के विचार भी स्त्रियों के बारे में जान लें :-

    “नारी नरक का द्वार है।”

    तुलसी ने तो नारी की जमकर आलोचना की है, कबीर जैसे सन्त भी नारी का विरोध करने से नहीं चूके :-

    नारी की झाईं (छांया/नजर) परत, अंधा होत भुजंग।
    कबिरा तिन की क्या गति, नित नारी के संग॥

    अब आप अर्थशास्त्र के जन्मदाता कहे जाने वाले कौटिल्य (चाणक्य) के स्त्री के बारे में प्रकट विचारों का अवलोकन करें, जो उन्होंने चाणक्यनीतिदर्पण में प्रकट किये हैं :-

    चाणक्यनीतिदर्पण : १०/४-
    स्त्रियाँ कौन सा दुष्कर्म नहीं कर सकती?

    चाणक्यनीतिदर्पण : २/१-
    झूठ, दुस्साहस, कपट, मूर्खता, लालच, अपवित्रता और निर्दयता स्त्रियों के स्वाभाविक दोष हैं।

    चाणक्यनीतिदर्पण : १६/२-
    स्त्रियाँ एक (पुरुष) के साथ बात करती हुई, दूसरे (पुरुष) की ओर देख रही होती हैं और दिल में किसी तीसरे (पुरुष) का चिन्तन हो रहा होता है। इन्हें (स्त्रियों को) किसी एक से प्यार नहीं होता।

    पंचतन्त्र की प्रसिद्ध कथाओं में शामिल श्रृंगारशतक के ७६ वें प में स्त्री के बारे में लिखा है कि-

    स्त्री संशयों का भंवर, उद्दण्डता का घर, उचित अनुचित काम (सम्भोग) की शौकीन, बुराईयों की जड, कपटों का भण्डार और अविश्वास की पात्र होती है। महापुरुषों को सब बुराईयों से भरपूर स्त्री से दूर रहना चाहिये। न जाने धर्म का संहार करने के लिये स्त्री की रचना किसने कर दी!

    मेरा तो ऐसा अनुभव है कि इस देश के कथित धर्मग्रन्थों और आदर्शों की दुहाई देने वाले समाज ने नारी को दो ही नाम दिये गये हैं, या तो दासी (जिसमें भोग्या और कुल्टा नाम भी समाहित हैं) जो हकीकत है, या देवी जो हकीकत नहीं केवल उपमा है।

    स्त्री को देवी मानने या पूजा करने की बात बो बहुत बडी है, पुरुष द्वारा स्त्री को बराबर, दोस्त, मित्र तक माना जाना भारतीय समाज में निषिद्ध माना जाता रहा है?

    जब भी दो विषमलिंगी समाज द्वारा निर्धारित ऐसे स्वघोषित खोखले आदर्शवादी मानदण्डों पर खरे नहीं उतर पाते हैं, जिन्हें भारत के इतिहास में हर कालण्ड में समर्थ लोगों द्वारा हजारों बार तोडा गया है तो भी २१वीं सदी में भी केवल नारी को ही क्यों कुल्टा माना जाता है? पुरुष को क्यों नहीं?

    भारत में नारी की पूजा की जाती है, इस झूठ को हम कब तक ढोते रहना चाहते हैं?

    जहाँ तक वर्तमान सरकार द्वारा सेक्स परोसे जाने की बात पर आपत्ति है तो कथित हिन्दू धर्म की रक्षक पार्टी की सरकार के समय गर्वा नाच में शामिल लडकियों को गर्भनिरोधक मुफ्त में बांटे जाने पर तो इस देश के हिन्दू धर्म के कथित ठेकेदारों को तो मुःह दिखाने का जगह ही नहीं मिलनी चाहिये, लेकिन किसी ने एक शब्द तक नहीं बोला!

    आखिर क्यों हम बेफालतू की बातों में सामयिक मुद्दों को शामिल करके अपनी आलोचना का केन्द्र केवल सरकारों को या विदेशी संस्कृतियों को ही बनाना चाहते हैं?

    हम स्वयं की ओलाचना क्यों नहीं कर सकते?

    आत्मालोचना के बिना कुछ नहीं हो सकता। जो अपेक्षा हम दूसरों से करते हैं, क्या उसी प्रकार की अपेक्षाएँ अन्य लोग हमसे नहीं करते हैं?

    कितना अच्छा हो कि हम हर सुधार या परिवर्तन की शुरुआत अपने आप से करें?

    कितना अच्छा हो कि हम जो कुछ भी कहें, उससे पूर्व अपने आप से पूछें कि क्या इस बात को मैं अपने आचरण से प्रमाणित करने में सफल हो सकता हँू?

    शायद नहीं और यहीं से हमारा दोगलेपन का दौहरा चरित्र प्रकट होने लगता है। मुखौटे लगाकर जीने की हमारी कथित आदर्शवादी सोच को हम अपने खोखले संस्कारों से ऐसे ही सींचने की शुरूआत करने लगते हैं।

    • मीना जी के इतना सब बता देना के बाद बचता ही क्या है लेकिन फिर भी राजेश कपूर जी अपनी आदत के मुताबिक अपील कर ही रहें हैं………………………………………….. मीने जी सही जवाब के लिए में आपकी आभारी हूँ

    • THREE CHEERS Meenaji.Sachchai yahi hai ki ham Bhaartiya bolane aur apni prashansha karne mein hameshaa maahir rahe hain aur aaj abhi amuman wahi kar rahe hain. Jabki jamini hakikat wahi hai,jo aapne kahaa hai aur yah jamini hakikat prachin kaal se hi hai.Tathakathit santon aur lekhakon ki rachnaayen iskaa pramaan hai.Aaj bhi ek sundar naari America ya England ki sarakon par Hindustan ki sarakon se jyadaa surakshit hai,khaas kar North India ki sarakon se.Aap kah sakte hain ki North aur Sauth ka bhed bhao kyon? To iska karan ye ho saktaa hai ki shtriyon ke maamale mein South ya Western Part mein Khulaapan jyadaa hai. Bengaal ya Assam ke liye bhi yahi baat laagu hoti hai.
      Main to hamesaa hi kahtaa hoon ki pahle aine mein apni shakl dekhiye,tab doosaron par kichad oochhaaliye.

  65. I doubt whether this news item is true! If it is true then it is a big shame on all the Common Wealth Games Organizers! From the manner in which the reports of swindling of tax payers money is appearing in some news media, one will not be surprised if the Office bearers of the Games Organizing Committee demand their commission in cash or kind!

    • Rashtriy Mahila Ayog aur baaki Mahila Sangathan qkea kar rahe hain?
      Jis kisike sadiyal dimag se aisi ghinauni idea janam leti hain our tax bharne walonke paise ki barbadi ki jati hai use sarvjanik taur par kadi se kadi saja dena chahiye!

  66. ae yaarrr… is aur sach men kisine dhyan hi nehin diya hai. Sach men gambhir batt hai, kahan gaye mahila sasktikarn wale. varat srkar bhi is tarha ka hin kam karenge is bare men koi socha hi nehin. Agar sarkar is taraha ka kuch galat ka kar rahahain to hum us ka Khoola ninda karten hai. sarakr rastramandal khel ke dauran aisa kuch kadam na uthae jo khiladi aur nagrikon ke swasthy ko pravhabit karen ia aur krida mantralaya dobara Bichar kren yaha hum daka karten hai

  67. चर्चा पर प्रतिक्रिया का नंबर तो बाद में आएगा, पहले एक शंका इस कथन पर–
    सरकार ने राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान विदेशियों को सेक्स परोसने के लिए दिल्ली में 37900 सेक्स वर्कर पंजीकृत किए हैं….

    इसी लेख में आगे लिखा है…
    सरकार ने सिर्फ 37900 सेक्स वर्कर्स की ही पहचान की है।

    हकीकत क्या है भाई…पहचान की है या पंजीकृत किया है? जहां तक मुझे पता है–भारत में सशुल्क यौनाचार अब तक कानूनी नहीं है।

    कहीं कुछ गड़बड़ नहीं है इस आंकड़े में?

    • चंडीजी, लेख में सही आंकड़े दिए गए हैं। लिखा है कि अब यूपीए सरकार और दिल्ली सरकार ने राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान विदेशियों को सेक्स परोसने के लिए दिल्ली में 37900 सेक्स वर्कर पंजीकृत किए हैं। आगे लिखा है कि सरकार ने सिर्फ 37900 सेक्स वर्कर्स की ही पहचान की है। इससे आगे अगला वाक्‍य है कि वास्‍तविक संख्‍या इससे तीन गुणा अधिक है।

      37900 सेक्स वर्कर, यह तो सरकार की आधिकारिक संख्‍या है जबकि वास्‍तव‍िक संख्‍या इससे तीन गुणा अधिक है।

  68. kal maine sansad me chal rahi karwaai dekh raha tha ..mahangai par khub garmagaram bahas chal rahi thi koi roti ki baat kar tha to koi daal ki …aam aadmi ke liye ghariyali aansoo bahaye ja rahe the par koi natiza nahi nikla..ab sawal iye uthta hai ki desh ki aarthik vyavastha agar sachmuch itni kharaab ho chuki hai to common wealth game karwake apni gulami ka pratik sthapit karne ki jaroorat hi kya hai….

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