परिचर्चा: जम्मू और कश्मीर पर वार्ताकारों की रिपोर्ट

समस्या सुलझाने की बजाय और उलझाने का प्रयास

सन् 2010 में राज्य में पत्थरबाजी की घटना हुई। इसी परिदृश्य में केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने जम्मू और कश्मीर में स्थायी शांति, स्थिरता और खुशहाली को सुनिश्चित करने और कश्मीर मुद्दे का व्यापक राजनीतिक समाधान निकालने के लिए तीन वार्ताकारों के एक दल का गठन किया। वार्ताकारों के दल ने ‘जम्मू और कश्मीर की जनता के साथ एक नया समझौता (ए न्यू कॉम्पैक्ट विद द पीपुल ऑफ जम्मू एंड कश्मीर) नाम से रिपोर्ट बनाई। वार्ताकारों ने कुल 11 बार राज्य का दौरा किया और राज्य के सभी जिलों में प्रवास किया। उन्होंने 22 जिलों में 700 से अधिक प्रतिनिधियों से बात की और तीन गोलमेज़ सम्मेलनों में समूहों के साथ वार्ता की। वार्ताकारों ने राज्यपाल एनएन बोहरा, मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला, पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती और अन्य राजनीतिक पार्टियों के नेताओं, सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों, पत्रकारों और विभिन्न वर्गों के लोगों से व्यापक बातचीत की। जबकि कश्मीर के अलगाववादी नेताओं ने इन वार्ताकारों से मिलने तक से इनकार कर दिया।

क्या है उद्देश्य ?

केन्द्रीय गृह मंत्रालय द्वारा जम्मू और कश्मीर के लिए तीन वार्ताकारों के एक दल का गठन। इस दल का उद्देश्य था जम्मू-कश्मीर में स्थायी शांति, स्थिरता और खुशहाली के लिए समाधान ढूंढ़ना।

कौन-कौन हैं वार्ताकार ?

तीन सदस्यीय वार्ताकार हैं- वरिष्ठ पत्रकार दिलीप पडगांवकर, शिक्षाविद् राधाकुमार और पूर्व केन्द्रीय सूचना आयुक्त एम.एम. अंसारी।

गठन कब हुआ ?

13 अक्टूबर 2010 को केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने जम्मू-कश्मीर पर वार्ताकारों के दल का गठन किया।

रिपोर्ट कब सौंपी ?

12 अक्टूबर 2011 को वार्ताकारों के दल ने केन्द्रीय गृह मंत्री श्री पी. चिदम्बरम को 176 पृष्ठ की रिपोर्ट सौंपी।

रिपोर्ट कब सार्वजनिक हुई ?

सात महीने बाद 24 मई 2012 को यह रिपोर्ट सार्वजनिक हुई।

प्रमुख सिफारिशें

-संविधान के अनुच्छेद 370 के शीर्षक और भाग ग्ग्प् के शीर्षक से ‘अस्थायी’ शब्द हटाना। इसके बजाए अनुच्छेद 371 (महाराष्ट्र और गुजरात), अनुच्छेद 371-ए (नागालैण्ड), अनुच्छेद 371-बी (असम), अनुच्छेद 371-सी (मणिपुर), अनुच्छेद 371-डी और ई (आन्ध्र प्रदेश), अनुच्छेद 371-एफ (सिक्किम), अनुच्छेद 371-जी (मिज़ोरम), अनुच्छेद 371-एच (अरुणाचल प्रदेश), अनुच्छेद 371-आई (गोवा) के अधीन अन्य राज्यों की तर्ज पर ‘विशेष’ शब्द रखा जाए।

-राज्यपाल के चयन के लिए राज्य सरकार विपक्षी पार्टियों से परामर्श करके राष्ट्रपति को तीन नाम भेजेगी। आवश्यक होने पर राष्ट्रपति अधिक सुझाव माँग सकते हैं। राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी और वह राष्ट्रपति जी की कृपा से पदधारण करेगा।

-अनुच्छेद 356: वर्तमान में राज्यपाल की कार्रवाई को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है। वर्तमान व्यवस्था इस परन्तुक के साथ जारी रह सकती है कि राज्यपाल राज्य विधानमण्डल को निलम्बित अवस्था में रखेगा और तीन महीने के भीतर नए चुनाव कराएगा।

-अनुच्छेद 312: अखिल भारतीय सेवाओं से लिए जा रहे अधिकारियों का अनुपात धीरे-धीरे कम किया जाएगा और प्रशासनिक दक्षता में रुकावट बिना राज्य की सिविल सेवा से लिए जाने वाले अधिकारियों की संख्या बढ़ाई जाएगी।

-अंग्रेजी में गवर्नर और मुख्यमंत्री के नाम जैसे आज हैं वैसे ही रहेंगे। उर्दू प्रयोग के दौरान उर्दू पर्यायवाची शब्द इस्तेमाल किए जा सकते हैं।

-तीन क्षेत्रीय परिषदें बनाना , जम्मू, कश्मीर और लद्दाख के लिए अलग-अलग (लद्दाख आगे से कश्मीर का एक मण्डल नहीं रहेगा)। उन्हें कुछ विधायी, कार्यकारी और वित्तीय शक्तियां दी जाएं। समग्र पैकेज के भाग के रूप में पंचायती राज संस्थाओं को राज्य के स्तर पर, ग्राम पंचायत, नगर-पालिका परिषद या निगम के स्तर पर कार्यकारी और वित्तीय शक्तियां भी देनी होंगी। ये सब निकाय निर्वाचित होंगे। महिलाओं, अनुसूचित जाति/जनजाति, पिछड़े वर्गों और अल्पसंख्यकों के प्रतिनिधित्व के लिए प्रावधान होंगे।

-विधायक पदेन सदस्य होंगे, जिन्हें मतदान का अधिकार होगा।

-संसद राज्य के लिए कोई कानून तब तक नहीं बनाएगी जब तक इसका संबंध देश की आंतरिक और बाहरी सुरक्षा से और इसके महत्वपूर्ण आर्थिक हित, विशेषतः ऊर्जा और जल संसाधनों की उपलब्धि के मामलों से न हो।

-पूर्व शाही रियासत के सब भागों में ये परिर्वतन समान रूप से लागू होने चाहिए। नियंत्रण रेखा के आर-पार सहयोग के लिए सब अवसरों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। इसके लिए पाकिस्तान नियंत्रित जम्मू और कश्मीर में पर्याप्त सांविधानिक परिवर्तन आवश्यक होंगे।

-दक्षिण और मध्य एशिया के बीच जम्मू और कश्मीर एक सेतु बन जाए इसके लिए सब उचित उपाय करने होंगे।

-सब कश्मीरियों, मुख्यतः पंडितों (हिन्दू अल्पसंख्यक) की राज्य नीति के भाग के तौर पर वापसी सुनिश्चित करना।

– 1953 में दी गई स्वायतत्ता में हस्तक्षेप करने वाले केन्द्रीय कानूनों को वापस लिया जाए और इसके लिए संवैधानिक समिति का गठन हो।

– नियंत्रण रेखा के आरपार लोगों, वस्तुओं व सेवाओं की आवाजाही की खुली छूट मिले।

– सेना व अर्द्धसैनिक बलों की संख्या घटाई जाए और उन्हें मिले विशेषाधिकार वापस लिए जाएं।

– राजनीतिक कैदियों को तत्काल रिहा किया जाए।

– छोटे और पहली बार अपराध करने वालों के खिलाफ दर्ज एफआईआर वापस लिए जाएं।

– पाक अधिकृत कश्मीर समेत पूरे जम्मू कश्मीर को एक इकाई के रूप में देखा जाए।

– पाक अधिकृत कश्मीर में बसाए गए दूसरे राज्यों के लोगों को हटाया जाए।

प्रवक्‍ता डॉट कॉम का मानना है कि उपरोक्‍त सिफारिशों के बिंदु पढ़कर इसे खारिज करना ही राष्‍ट्रहित में होगा। अनुच्छेद 370 राष्ट्रीय एकता और अखंडता में बाधक है। शेष भारत में इस अनुच्छेद को लेकर लोगों में गुस्सा है। जबकि इस रिपोर्ट में वार्ताकार इस विशेष दर्जे को बनाए रखने की बात ही नहीं करते अपितु इसके साथ लगे ‘अस्थायी’ शब्द की जगह ‘विशेष’ शब्द लिखने की भी सिफारिश करते हैं। यह रिपोर्ट अपने ही देश में शरणार्थी बने हुए कश्मीरी हिंदुओं की समस्याओं को गंभीरता से नहीं लेता। इसी तरह जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद एक प्रमुख चुनौती है, लेकिन वार्ताकारों ने इसके तह में भी जाने की कोशिश नहीं की है और न ही इसे खत्म करने के लिए कोई कारगर उपाय बताते हैं। यह रिपोर्ट इस आधार पर तैयार की गई है कि पीओके क्षेत्र का प्रशासन पाकिस्तान करता है और करता रहेगा तथा इसमें पीओके को पीएके (पाकिस्तान प्रशासित जम्मू और काश्मीर) के रूप में उल्लेख किया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक, बातचीत में अलगाववादियों, आतंकवादियों व पाकिस्तान समेत सभी पक्षों को शामिल किया जाए, यह दुर्भाग्‍यपूर्ण है।

कांग्रेसनीत यूपीए सरकार के गृहमंत्रालय द्वारा जम्मू-कश्मीर पर गठित वार्ताकारों के दल ने कांग्रेस की तरह ही ढुलमूल नीतियां बनाने की सिफारिश की है। इसकी चहुंओर आलोचना हो रही है। राष्ट्रवादी राजनैतिक दलों एवं संगठनों की ओर बुलंद होती आवाजों की प्रखरता को देखते हुए गृहमंत्रालय भी अब इसे स्वीकारने से हिचक रहा है।

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‘प्रवक्‍ता’ के सुधी पाठकों एवं लेखकों से निवेदन है कि वे विचारशील टिप्‍पणी एवं लेख लिखकर इस परिचर्चा में शामिल हों।

‘जम्‍मू-कश्‍मीर पर वार्ताकार की रिपोर्ट’ का सारांश यहां क्लिक करके आप जान सकते हैं। 

8 COMMENTS

  1. Nehru was responsible to bring back Sheikh Abdullah, ( a diplomatic failure on the part of Nehru vis-a-vis Nation) who was driven out by the Maharaja of Jammu Kashmir, with special status of the state and with designation of Prime Minister ( a chief minister as PM). Because nehru and Abdullah were both brothers because Motilal had two sons out of Muslim women by name sheikh abdullah and syud hussain. That is why Nehru right from beginning remained tilted towards muslims and till date they are doing the same thing.

  2. धारा -370 को अविलम्ब हटाना चाहिए, इससे केवल असामाजिक तत्वों को फायदा हो रहा है, अन्य किसी को नहीं -इसलिए कश्मीर ही नहीं समस्त मानवता के हित में इस धारा को हटाओ !

    जब महाराजा हरि सिंह ने बिना शर्त भारत में मिलने का प्रस्ताव भेजा था तो फिर ऐसी धारा का कोई मतलब नहीं है, ऐसे किसी भी परिचर्चा के लिए मैं तैयार हूँ ।

    Contact for Detail- 9428075674, dr.ashokkumartiwari@gmail.com

  3. जो लोग मातृभूमि को जमीन का टुकड़ा समझते हैं वे कश्मीर को बाँट लेने की राय देते हैं, इसी राय के अनुसार 15 अगस्त 1947 को भारत को बाँट दिया गया ! दुर्भाग्य से आज भी देश उन्हीं मातृभूमि भंजक लोगों के हाथ में है ! इसलिए उन्होंने ऐसे लोगों की टीम बनाई जिनका मातृभूमि-संकल्पना से दूर-दूर का भी रिश्ता नहीं है, इसलिए उनकी रिपोर्ट ऐसी ही आनी थी ! यह घातक रिपोर्ट है ! भारत देश इसे कभी स्वीकार नहीं कर सकता ! कश्मीर की जब भी बात आती है तब अंग्रेजों और साम्य-वादियों के मानस-पुत्र केवल कश्मीर की जनता का राग अलापने लगते हैं ! कश्मीर पर चर्चा और निर्णय करने में पूरा भारत सम्मिलित किया जाना चाहिए और पकिस्तान को इसमे सम्मिलित करना मूर्खता है ! यदि कश्मीर समस्या पर वार्ता में पकिस्तान को सम्मिलित करना हो तो एक ही रास्ता है कि पहले ” नक़्शे पर से नाम मिटा दो पापी पाकिस्तान का ” और फिर चर्चा करो !
    हम मातृभूमि को अपना प्राण समझते हैं ! उसका अंग-भंग अपना अंग-भंग समझते हैं ! अपने देश के लिए पुराणों में कहा गया है – ” तं देव निर्मितं देशं हिंदुस्थानं प्रचक्षते ” ! यह देश देवताओं के द्वारा बनाया गया है ! देश के रक्षकों ने इसे अपने लाल खून से सींचा है ! कोई दो-चार राक्षस अपनी हवस पूरी करने के लिए तथा-कथित वार्ता की टेबिल पर इसे अपनी कलम की लाल स्याही से बांटना चाहे तो इसकी अनुमति नहीं दी जा सकती !

  4. वास्तव में आज कश्मीर की समस्या का जो प्रारूप तेयार किया जाता है उसमे कश्मीर के मूल निवासियों की समस्या व् उसके इतिहास को गर्त में दबाकर पाकिस्तान के हित में भारत के मुसलमानों की सोच व् आस्था को ध्यान में रखकर इस समस्या के समाधान निकले जाते रहे है वो वास्तव में समाधान होते ही नहीं है वो देश के लोगो को उलझन में डालकर पाकिस्तान के हितो को बढ़ावा देने का मात्र एक प्रयास होता है ताकि देश के मुसलमान व् कश्मीर निवासी पाकिस्ता के प्रति वफादार होते जाये और हिन्दुओ में द्वेष व् कायरता बढती रहे

    और मूल रूप से इस समस्या के समाधान के लिए कुछ अग्रणी कदम उठाने चाहिए
    १ पाकिस्ता अधिक्रत कश्मीर को सेना द्वारा आक्रमण कर अधिकार कर लेना चाहिए
    2 जम्मू & कश्मीर सम्पूर्ण रूप से कुछ समय के लिए सेना के हवाले कर देना चाहिए
    3 और इसी समाया विस्थापित हिन्दुओ को वहा पर बसा देना चाहिए और इसी के साथ सेनिको के भी परिवारों को वहा पर बसा देना चाहिए
    4 कश्मीर को विशेष दर्जा न देकर सामान्य राज्य घोषित कर देना चाहिए और वहा पर कोई अलग कानून का प्रावधान नहीं होना चाहिए
    ५ और जो लोग दंगा करे या करवाए उनको विशेष कानून बनाकर तुरंत कड़ी से कड़ी सजा दी जाये
    ६ इससे ये भी पता चल जयेगाकी देश में कितने राष्ट्रवादी व् कितने गद्दार लोग रहते है
    इसी तरह के कुच्छ कड़े कदम उठाकर इस समस्या का मूल रूप से समाधान कर देना चाहिए क्योंकि बातचीत कोई हल नहीं बल्कि समय को नष्ट करने जैसा है

  5. क्षेत्रीय आपातकाल घोषित कर के मच्छर को हथोड़े से मारने का समय आ पहुंचा है|
    अकस्मात् घोषणा किए बिना, कार्यवाही की जानी चाहिए|
    सरदार पटेल जी ने हैदराबाद के निजाम से, रात्रि में शयन कक्ष में ही हस्ताक्षर करवाए थे|
    कुछ ऐसी ही किसी को भनक तक ना लगे, ऐसी कार्यवाही हो|
    क्या भारत बनाना रिपब्लिक है?
    जो यह कर के दिखाएगा, चुनाव जीत जाएगा|
    वन्दे मातरम|

  6. इस से बड़ा दुर्भाग्य क्या होगा की देश के शासक ही देश के विघठनकी योजनायें बनायें और उन्हें कार्यान्वित करें संप्रग सर्कार की नीति यही रही है की धीरे धीरे देश की जनता कश्मीर को भारत से अलग हो जाने को स्वीकार कर ले. वार्ताकारों के चयन से ही सर्कार की मंशा ज़ाहिर हो जाती है. कितने आश्चर्य की बात है की जब दो वार्ताकारों का आई एस आई एजेंट घुलाम नबी फाई से सम्बन्ध होने का तथ्य उजागर हुआ तो तीसरे वार्ताकार श्री अंसारी ने कहा था की इन दोनों वार्ताकारों को त्याग पत्र देकर इस कार्य से अलग हो जाना चाहिए . परन्तु हुआ क्या दोनों वार्ताकार निर्लज्जता पूर्वक अपने कार्य में लगे रहे . उस से भी बड़ी त्रासदी यह है की भारत सर्कार ने फाई कुचक्र में संलिप्तता को कोई दोष न मानते हुए ऐसा व्यवहार किया की जैसे कुछ हुआ ही नहीं. क्या ऐसे लोगों को शासन में बने रहने का कोई औचित्य है ? यहाँ यह बताना भी प्रासंगिक होगा की भारत सर्कार के एक और चहेते भूतपूर्व न्यायमूर्ति सच्चर भी घुलाम नबी फाई के आतिथ्य का आनंद ले चुके हैं. अब यदि आई एस आई भारत के प्रधान मंत्री कार्यालय में जड़ें जमा चूका है तो देश का क्या भविष्य होगा आप स्वयं समझ सकते हैं

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