परिचर्चा हिंद स्‍वराज

परिचर्चा : हिंद स्वराज की प्रासंगिकता

hind swarajjहिंद स्वराज’ महात्मा गांधी की चर्चित कृति है। इसे प्रकाशित हुए 100 साल हो गए। यह एक बीज पुस्तक है। यह भारतीय व्यवस्था का वैकल्पिक मॉडल है। गांधीजी ने इस पुस्‍तक में अहिंसा, नैतिकता, स्वदेशी, स्वावलंबन, समता, सभ्यातागत विमर्शों पर अपने विचार प्रस्तुत किए हैं। उन्होंने मशीनी सभ्यता की आलोचना करते हुए पश्चिमी देशों के विकास को अस्‍वीकार कर दिया और स्पष्ट शब्दों मे लिखा कि हमें ऐसे विकास की आवश्यकता नहीं है।

ध्यातव्य है कि गांधीजी ने ‘हिंद स्वराज’ पुस्तक 1909 में लंदन से केपटाउन (दक्षिण अफ्रीका) जाते वक्त जहाज में 21 दिनों में लिखी थी। पुस्तक लेखन के लिए उन्होंने जहाज में इस्तेमाल हो चुके पन्नों के पिछले हिस्से का उपयोग किया था। मूल पुस्तक गुजराती में लिखी गई थी, जिसे ब्रिटिश सरकार ने प्रतिबंधित कर दिया था। तत्पश्चात् उन्होंने स्वयं ही इसका अंग्रेजी अनुवाद किया। सर्वप्रथम यह पुस्तक दक्षिण अफ्रीका में छपने वाले साप्ताहिक ‘इंडियन ओपिनियन’ में प्रकाशित हुई थी। 20 अध्यायों में रखे अपने विचारों के माध्यम से गांधीजी ने तथाकथित आधुनिक सभ्यता पर सख्त टिप्पणियां करते हुए अपने सपनों के स्वराज की तस्वीर प्रस्तुत की थी। इसमें गांधी जी ने पाठकों के सवालों के जवाब एक संपादक की तरह दिया।

‘हिंद स्वराज’ पुस्तक को जहां अधिकांश चिंतकों ने प्रकाशस्तंभ बताया वहीं इस पुस्तक के विरोध में भी आवाजें उठीं। विरोध करने वालों में गांधीजी के गुरु गोपाल कृष्ण गोखले और उनके शिष्य जवाहरलाल नेहरू का नाम उल्लेखनीय है, जिन्होंने इस पुस्तक को बकवास करार दिया। गोखले जी का मानना था- ‘यह विचार जल्दबाजी में बने हुए हैं, और एक साल भारत में रहने के बाद गांधीजी खुद ही इस पुस्तक का नाश कर देंगे’। नेहरूजी ने 1945 में इस पुस्तक को ठुकरा दिया था। तब गांधीजी ने जवाहर लाल नेहरू को पत्र लिखा कर कहा था, ‘हिंदुस्तान को बदलने के लिए और आजाद भारत के नवनिर्माण के लिए हिंद स्वराज प्रासंगिक है। लेकिन मैं इसमें एक परिवर्तन करना चाहूंगा। यह कि किताब में मैंने प्रजातंत्र को वेश्या कहा है, जबकि अब मैं इसे बांझ करना चाहता हूं।’ तब नेहरूजी ने इसे ‘अयथार्थवादी’ कहकर टाल दिया था। इसके बाद गांधीजी ने नेहरूजी को दूसरा पत्र लिखा, जिसका उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया। वहीं दूसरी ओर विदेशी चिंतकों ने इसे हमेशा सराहा। रूसी चिंतक और उपन्यासकार लियो टॉलस्टॉय ने ‘हिंद स्वराज’ को ऐतिहासिक करार देते हुए ‘न केवल भारत, बल्कि पूरी मानवता के लिए महत्वपूर्ण’ बताया था। गांधीजी ने पुस्तक प्रकाशन के 30 साल बाद 1938 में नए संस्करण के प्रकाशन पर अपने सन्देश में कहा कि-‘यह पुस्तक अगर आज मुझे फिर से लिखनी हो तो कहीं-कहीं मैं इसकी भाषा बदलूंगा, लेकिन…….इन 30 सालों में मुझे इस पुस्तक में बताये हुए विचारों में फेरबदल करने का कुछ भी कारण नहीं मिला।’

आज देश में अराजकता व्याप्त है। हिंसा का बोलबाला है। कानून-व्यवस्था ध्वस्त है। विषमता की खाई लगातार चौड़ी होती जा रही है। वास्तव में हम विकल्पहीनता के दौर से गुजर रहे हैं। ऐसे में हमें ‘हिन्द स्वराज’ की याद आना स्वाभाविक ही है। ‘प्रवक्ता डॉट कॉम’ गांधीजी की पुस्तक ‘हिंद स्वराज’ पर एक व्यापक बहस की शुरुआत कर रहा है। इसी क्रम में 2 अक्टूबर (गांधी जयंती) से लेकर 13 नवंबर (जब ‘हिंद स्वराज’ किताब लिखी गई थी) तक हम दो चरणों में अभियान चलाएंगे। पहले चरण में ‘हिंद स्वराज’ का सम्पूर्ण पाठ प्रकाशित करेंगे उसके बाद दूसरे चरण में गांधीवादी विद्वानों, प्राध्यापकों, राजनीतिक विश्लेषकों, पत्रकारों, साहित्यकारों, शोध विद्यार्थियों के लेख एवं साक्षात्कार प्रकाशित करेंगे। हमारा उद्देश्य है ‘हिंद स्वराज’ में लिखी गयी बातें हमारे राष्ट्रीय-जीवन का हिस्सा बने और सामाजिक बदलाव का जरिया बने। इस संबंध में सत्ता प्रतिष्ठानों से उम्मीद करना बेमानी है। हमें स्वयं जागरूक होना होगा और अपने जीवन को नैतिक आचरणों से ओत-प्रोत करना होगा। जन-दबाव से ही बदलाव साकार होगा।

आज भी काफी संख्या में ऐसे लोग हैं जो ‘हिंद स्वराज’ को विज्ञान और टेक्नोलाजी विरोधी करार देते हैं। इस संबंध में नोबल विजेता वीएस नायपॉल की टिप्पणी एकदम सटीक जान पड़ती है कि ‘हिंदुस्तान के लोग ‘हिंद स्वराज’ नहीं पढ़ते हैं।’ वास्तव में सतही बातों से राय बना लेना खतरनाक प्रवृति है।

आइए, ‘हिंद स्वराज’ को हम तन्यमयतापूर्वक पढ़ें। विवेकपूर्ण विचार करें। और इस पर अमल करने की कोशिश करें। हमारे इस अभियान में आपकी सक्रिय भागीदारी अपेक्षित है। ‘हिंद स्वराज’ के संबंध में अपने विचार ‘प्रवक्ता डॉट कॉम’ पर अवश्य साझा करें।