
जंगल में मन रही दीवाली,
बिना पटाखों बिन बम वाली।
शेर सिंह ने दिए जलाए।
हाथी हार फूल ले आए।
भालू लाई बताशे लाया।
चीतल पंचा मृत ले आया।
सेई लाई पूजा की थाली।
हिरण ढेर फुलझडियां लाए।
नेवलों ने लड्डू बंटवाए।
गेंडा ढोल बड़ा ले आया।
बांध गले में खूब बजाया।
ना ची बंदर की घरवाली
शक्कर घी की बनी पंजीरी,
सिर पर रखकर लाई गिलहरी।
पांडा सेव संतरे लाया।
कौआ बीन बजाता आया।
कूदी खूब गधे की साली।
सभी जंतु खुशियों के मारे।
लगा रहे थे जय -जय कारे।
फुलझडि यों की हुई रोशनी।
गले मिले सब भूल दुश्मनी।
खुशियों की बारात निकाली।
सबने मिलकर धूम मचाई।
नारियल लाई पंजीरी खाई।
नहीं पटाखे चले एक भी।
नहीं धमाका हुआ एक भी।
सभी ओर छाई खुशहाली।