जंगल की दीवाली

जंगल में मन रही दीवाली,
बिना पटाखों बिन बम वाली।
शेर सिंह ने दिए जलाए।
हाथी हार फूल ले आए।
भालू लाई बताशे लाया।
चीतल पंचा मृत ले आया।
सेई लाई पूजा की थाली।
हिरण ढेर फुलझडियां लाए।
नेवलों ने लड्डू बंटवाए।
गेंडा ढोल बड़ा ले आया।
बांध गले में खूब बजाया।
ना ची बंदर की घरवाली
शक्कर घी की बनी पंजीरी,
सिर पर रखकर लाई गिलहरी।
पांडा सेव संतरे लाया।
कौआ बीन बजाता आया।
कूदी खूब गधे की साली।
सभी जंतु खुशियों के मारे।
लगा रहे थे जय -जय कारे।
फुलझडि यों की हुई रोशनी।
गले मिले सब भूल दुश्मनी।
खुशियों की बारात निकाली।
सबने मिलकर धूम मचाई।
नारियल लाई पंजीरी खाई।
नहीं पटाखे चले एक भी।
नहीं धमाका हुआ एक भी।
सभी ओर छाई खुशहाली।

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प्रभुदयाल श्रीवास्तव
लेखन विगत दो दशकों से अधिक समय से कहानी,कवितायें व्यंग्य ,लघु कथाएं लेख, बुंदेली लोकगीत,बुंदेली लघु कथाए,बुंदेली गज़लों का लेखन प्रकाशन लोकमत समाचार नागपुर में तीन वर्षों तक व्यंग्य स्तंभ तीर तुक्का, रंग बेरंग में प्रकाशन,दैनिक भास्कर ,नवभारत,अमृत संदेश, जबलपुर एक्सप्रेस,पंजाब केसरी,एवं देश के लगभग सभी हिंदी समाचार पत्रों में व्यंग्योँ का प्रकाशन, कविताएं बालगीतों क्षणिकांओं का भी प्रकाशन हुआ|पत्रिकाओं हम सब साथ साथ दिल्ली,शुभ तारिका अंबाला,न्यामती फरीदाबाद ,कादंबिनी दिल्ली बाईसा उज्जैन मसी कागद इत्यादि में कई रचनाएं प्रकाशित|

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