तंबाकू की मौत न मरें!

महेश दत्त शर्मा

काली स्याह रात में मि. कमल सोफे पर बैठे सिगरेटपर-सिगरेट पिए चले जा रहे हैं। उनके माथे पर चिंता की रेखाएँ खिंची हुई हैं। उनका मानना है कि सिगरेट पीने से
दिमाग तेज काम करने लगता है, चिंताएँ मिट जाती हैं। बहुत से लोग ऐसा ही मानते हैं। लेकिन यहाँ तो उलटा ही हो रहा है, मि. कमल की रेखाएँ और गहरी होती जा रही हैं। सिगरेट की राख को वे एक ऐशटे में छिड़कते जा रहे हैं। वह ऐशटे कंकाल की खोपड़ी के आकार की है। एकाएक उस खोपड़ी से तेज धुआँ निकलता है और वह धुआँ एक मानवाकार लेकर तेज अट्टहास करने लगता है, हाहा-हा…।

“क-कौन हो तुम?’’ मि. कमल बड़ी मुश्किल से हकलाते हुए बोलते हैं।”मैं….मैं भी कभी तेरी तरह इस सोफे पर बैठता था और तेरी तरह चेनस्मोकर था।
लेकिन देख, मेरी क्या हालत हो गई।सिगरेट पीपीकर अकाल मौत मारा गया और ये ऐशटे बन गया कंकालवाली। कमल, तू भी ऐसी ही मौत मारा जाएगा और एक दिन तू भी ऐसी ही ऐशटे बन जाएगाकंकालवाली। हाहा-हा खूब सिगरेट पी, हाहा-हा।’’अचानक मि. कमल हड़बड़ाकर उठ बैठे। वे सपना देख रहे थे।

कहीं आप भी तो सिगरेट नहीं पीते हैं। वरना यह सपना आपकी भी हकीकत बन सकता है। यह भ्रम दिमाग में न पालें कि सिगरेट पीना, तंबाकू और गुटखे खाना र्दानगी की निशानी है या इस भ्रम में न पड़े कि सिगरेट पीने से थकान दूर होती है या ताजगी आती है। इसे इस प्रकार समझेंसिगरेट-बीड़ी पीने से आदमी का दिमाग गधे जैसे हो जाता है, बल्कि यूँ कहिए आदमी गधा बन जाता है। जैसे गधे पर वजन लादते रहिए, लादते रहिए वह बेचारा बगैर चूँचपड़ किए वजन धोता  रहता है, उसी तरह सिगरेटबीड़ी पीने के बाद आदमी गधे की तरह काम में जुटा रहता है। वह अपने दिमाग को इस तरह से प्रोगाम कर देता है कि सिगरेट पीने से तुझे ताकत मिलती है और बस उसका दिमाग उस लिखे गए प्रोगाम की तरह काम करने लगता है। यह अलग बात है कि इस क्रम में शरीर के बाकी सभी अंग दिमाग का साथ छोड़ देते हैं।
और यही कारण है कि शरीर की कोशिकाएँ जर्जर होने लगती हैं। वक्त से पहले ही नए कोशों का पुनर्निर्माण रुक जाता, तंत्रिका तंत्र की संवेदनशीलता प पड़ने लगती है, रक्त संचरण का प्राकृतिक प्रवाह बाधित होने लगता है और आदमी की औसत आयु घटकर आधी रह जाती है।

दुनिया भर में आँकड़ों पर नजर डालें तो हम सिहर उठेंगे। सिगरेट और तंबाकू उत्पादों से हर वर्ष करोड़ों लोग असमय मौत का निवाला बन जाते हैं। लाखों लोग लीसड़ी
बीमारियों के शिकार बनते हैं। कितने अचंभे की बात है कि अपनी मौत हम पैसों में खरीदते हैं। हम जानबूझकर तिलतिल मौत का शिकार होते रहते हैं।इस दृष्टि से गरेट पीनेवालों को समझदार तो हरगिज नहीं कहा जा सकता है।द्वापर में यक्ष के एक प्रश्न के जवाब में युधिष्ठिर ने कहा था कि मृत्यु सबसे बड़ी सच्चाई है फिर भी इनसान उसे मानने से, स्वीकारने से कतराता है। आज कलियुग का सबसे बड़ा यक्ष प्रश्न यह हो सकता है कि आदमी जानबूझकर और खरीदकर मौत को गले कब
लगाता है? जवाब होगा सिगरेट पीकरऔर फिर भी उसे स्वीकारने से कतराता है।

इसलिए ठहरिए, जरा सोचिए सिगरेट पीकर आप दोहरा नुकसान क्यों उठाने पर तुले हुए हैं? आइए आज ही संकल्प करें कि अब नहीं! हम कंकालवाली ऐशटे नहीं नना चाहते! हम सड़ीगली बीमारियों को पैसे देकर नहीं खरीदना चाहते। आप कभी नहीं चाहेंगे कि आपके बच्चे आपका अनुसरण करें, इसके लिए पहल आपको ही करनी होगी।पहले आपको अपनी आदत बदलनी होगी। शुरुआत आज और अभी से हो सकती है, बस संकल्प शक्ति होनी चाहिए। वह आपमें है।

कुछ सिहरन भरे तथ्य

कुछ लोग तंबाकू उत्पादों को ईश्वर का उत्कृष्ट उपहार कहते हैं क्योंकि वे समझते हैं कि इससे उनकी बहुत सी शारीरिक व्याधियाँ दूर हो जाती हैंया उन्होंने अपना मानस ऐसा ही बना लिया होता है कि ये अकेलेपन का सहारा हैं, उनकी प्रेरणा शक्ति हैं और न जाने क्याक्या। सदियों तक आदमी इन अवधरणाओं का हुक्का ड़गुड़ाता रहा। लेकिन अब जब इस पर नौ लाख से अधिक रिसर्च पेपर आ चुके हैं, तो नतीजे विस्फोटक और जानलेवा सामने आए हैं। यह दुनिया का एकमात्र ऐसा उत्पाद है जो मनुष्य को सबसे अधिक बीमारियाँ उपहार में देता है और मनुष्य उन्हें पैसा देकर गले लगाता है।

भारत में स्थिति

भारत में तंबाकू सेवन की आदत में, लाख जागरूकता अभियानों के बावजूद, निरंतर बढ़ोत्तरी हो रही है। एक मोटे अनुमान के अनुसार भारत में लगभग 15 करोड़ लोग धूम्रपान करते हैं इसमें बच्चे, स्त्री, पुरुषसभी शामिल हैं।

देश की लगभग एक तिहाई आबादी; लगभग 30 फीसदी लोग, जिसमें 15 से 49 वर्ष की आयु के लोग शामिल हैं, किसीन किसी रूप में तंबाकू उत्पादों का सेवन करते हैं।यदि हम स्त्रीपुरुषों की संख्या अलग कर दें तो इनमें से 57 फीसदी पुरुष और स्ति्रयाँ तंबाकू उत्पादों का सेवन करते हैं।

13 से 15 वर्ष की आयु के 4 फीसदी किशोर धूम्रपान की गिरफ्त में जकड़े हैं। इनमें किशोर और किशारियों का अलगअलग प्रतिशत क्रमशः 5 और 2 है।12 फीसदी किशोर दूसरे प्रकार के तंबाकू उत्पादों का सेवन करते हैं।

तंबाकू उत्पादों में बीड़ी का सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाता है। तंबाकूबाजार में इसका हिस्सा 48 फीसदी है। गुटखे का हिस्सा 38 फीसदी है और सिगरेट का 14
प्रतिशत।

तंबाकू उत्पादों की घातकता

तंबाकू सेवन बुरी मौत को आमंत्रण देता है। इसका उपभोक्ता अपनी आयु को अपने हाथों कतरकर आधी कर लेता है।तंबाकू उत्पाद प्रतिवर्ष लगभग 12 लाख भारतीयों की बलि ले लेते हैं।बीड़ी और सिगरेट पीनेवाले अन्य स्वस्थ लोगों की अपेक्षा 8 से 12 वर्ष पहले स्वर्ग सिधार जाते हैं। इसके पहले बहुधा उन्हें मौत से भी बुरी बीमारियों से जूझना पड़ता है।

यदि यही रुझान जारी रहा तो सन 2020 तक देश में प्रतिवर्ष कुल होनेवाली अकाल मौतों में तंबाकू उत्पादों से होनेवाली मौतों का हिस्सा 13 से 15 फीसदी हो जाएगा।यदि हम किसी एक वर्ष का आँकड़ा उठाएँ तो सन 2004 में देश में 7,700 करोड़ रुपए तंबाकू उत्पादों पर फूँके गए थे।इसी वर्ष लगभग 5,400 करोड़ रुपए तंबाकू से जुड़ी बीमारियों पर खर्च किए गए थे।यही नहीं, तंबाकू उत्पादों ने बड़ेबड़े अग्निकांडों से न केवल आर्थिक हानि की है बल्कि पर्यावरण को भी भारी नुकसान पहुँचाया है।13 से 15 वर्ष के 27 फीसदी किशोर और किशोरियाँ घर में सेकंड हैंड स्मोकिंग करते हैं, जबकि 40 फीसदी सार्वजनिक स्थानों पर।

सेकंड हैंड स्मोकिंग

जब कोई व्यक्ति आपके निकट बीड़ीसिगरेट चिलम, हुक्का आदि पीता है तो आप सेकंड हैंड स्मोक में साँस लेते हैं और छोड़ते हैं। सेकंड हैंड स्मोक में बीड़ीसिगरेट के अधजले टुकड़ों का धुआँ और स्मोकरों द्वारा साँस और मुँह से छोड़ा गया धुआँ शामिल होता है। जब आप सेकंड हैंड स्मोक को साँस में खींचते हैं तो वैसा ही है मानो आप स्मोकिंग कर रहे हैं। यही सेकंड हैंड स्मोकिंग है। दूसरे शब्दों में, जब आप स्मोकिंग करते लोगों के पास खड़े होते हैं तो उन्हीं खतरनाक रसायनों का कश लगाते हैं, जिनका स्मोकिंग करनेवाले लगाते हैं।जैसा कि पहले ही बताया गया है, तंबाकू उत्पाद अनगिनत नामुराद बीमारियों के जन्मदाता हैं। इनमें कैंसर और हार्ट अटैक सबसे अधिक जानलेवा हैं।

वर्ष 2000 में दुनिया भर में लगभग 17 लाख लोग धूम्रपान की आदत के कारण असमय मौत का शिकार बने।इसी वर्ष दुनिया भर में लगभग सा़े आठ लाख लोग म्रपान की आदत के कारण ‘लंग कैंसर’ के शिकार होकर मरे।इससे ज्यादा लोग अक्षमता और अनेक धीमी बीमारियों के शिकार बने।

सिगरेट के धुएँ में 4 हजार से अधिक रासायनिक पदार्थ होते हैं, इनमें से 200 जहरीले और 60 से अधिक कैंसरजन्य होते हैं। विश्लेषण के तौर पर हम कह सकते हैं कि
धूम्रपान एक घातक लत है।

विश्व में स्थिति

अनुसंधानों से यह तथ्य निकलकर सामने आए हैं कि धूम्रपान की लत हमारी एड़ी से लेकर चोटी तक विपरीत प्रभाव डालती है। यह हमारी रोग प्रतिरोधक शक्ति को धीरेधीरे करके क्षीण करती जाती है और एक दिन हमें नपुंसक तक बना देती है। सिगरेट की ब़ती आदत धीरेधीरे इतनी मजबूती अख्तियार कर लेती है कि यह हम और हमारे मानस के बीच प्रतिरोध की इतनी मजबूत दीवार खड़ी कर देती है कि हम इसकी बुराइयों पर लाख चाहकर भी कान नहीं दे पाते।

हम इस भ्रम में जीने लगते हैं कि यह किसी हद तक हमें राहत देती है। इसे छोड़ने के लिए अभी काफी वक्त बाकी है, यह हमें बीमार नहीं बना सकती। लेकिन धीरेधीरे हमारे भ्रम की दीवार भुरभुराने लगती है और हम बुरी तरह धूम्रपान की गिरफ्त में जकड़ जाते हैं। और यही वह वक्त होता है, जब हर धूम्रपानकर्ता सोचने लगता है कि वह कैसे इस बुरी लत से छुटकारा पाए?

इतना समझ लें कि अब तक जिसे आप अपना सबसे अच्छा दोस्त समझते थे, वास्तव में वह आपका पक्का दुश्मन, आपका हत्यारा है। यही वक्त है कि आप इसे अपने से दूर कर दें। इससे कुट्टी कर लें। इसने दुनिया में अब तक लाखोंलाख लोगों को अपना निवाला बनाया है, आप इसका निवाला बनने से बचें।

दुनिया में धूम्रपान का कहर

दुनिया भर में प्रति मिनट 1 करोड़ सिगरेटें खरीदी जाती हैं, 1500 करोड़ प्रतिदिन बेची जाती हैं और एक वर्ष में यह आँकड़ा 5 लाख करोड़ तक पहुँच जाता है।चीन में 30 करोड़ से अधिक लोग सिगरेट पीते हैं, जो प्रति मिनट 30 लाख और प्रति वर्ष पौने दो लाख करोड़ सिगरेटें पी जाते हैं।दुनिया भर में एक मोटे अनुमान के अनुसार 110 करोड़ लोग धूम्रपान करते हैं और झुकाव ऐसा ही रहा तो सन 2025 तक यह संख्या ब़कर 160 करोड़ हो जाएगी।5 लाख करोड़ सिगरेटों के फिल्टर का वजन लगभग 80 करोड़ कि.ग्रा. होता है। ये सिगरेटें और इनके फिल्टर प्रति वर्ष लाखों टन विषैला कचरा और विषैले रसायन पर्यावरण में घोल देते हैं।

सिगरेट का फिल्टर सफेद रूई की तरह दिखाई देता है, लेकिन यह सैल्युलस एसिटेट नामक प्लास्टिक के बेहद महीन रेशों से बनाया जाता है। सिगरेट का एक फिल्टर अपघटन में 18 महीनों से 10 वर्ष तक ले सकता है।जटिल रूप से तैयार एक सिगरेट में 8 या 9 मिलिग्राम तक निकोटिन होता है जो सिगार में बढ़कर  100 से 400 मिलिग्राम तक हो सकता है।चार या पाँच सिगरेटों में इतना निकोटिन होता है कि यदि उसे किसी वयस्क व्यक्ति के शरीर में इनजेक्ट कर दिया जाए तो उसकी मृत्यु हो सकती है। अधिकतर धूम्रपानकर्ता प्रति सिगरेट एक या दो मिलिग्राम निकोटिन ग्रहण करते हैं, बाकी जलकर पर्यावरण में घुलमिल जाता है।अधिक सिगरेट पीने से उलटी भी हो सकती है।बेंजीन से ल्युकेमिया; श्वेत रक्तकणों में वृद्धि हो जाती है और सिगरेट का धुआँबेंजीन का एक बड़ा स्रोत है।

लेड (सीसा) और पोलोनियम जैसे रेडियोधर्मी तत्त्व थोड़ी मात्रा में सिगरेट के धुएँ में पाए जाते हैं।दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान हाइड्रोजन सायनाइड गैस का नरसंहार के लिए रासायनिक एजेंट के रूप प्रयोग किया गया था। इसने सैकड़ों जानें ली थीं। यह गैस सिगरेट में एक विषैले सहउत्पाद के रूप मौजूद होती है।सेकंड हैंड स्मोकिंग में 50 से अधिक कैंसर के कारक रासायनिक पदार्थ होते हैं, इनमें से 11 तीव्र कैंसरजन्य होते हैं।दुनिया भर में 13 से 15 वर्ष के प्रति पाँच किशारों में से एक किशोर सिगरेट पीता है।

किशोर प्रतिदिन 80 हजार से 1 लाख सिगरेटें पी जाते हैं।अनुमान है कि 20वीं सदी में लगभग 10 करोड़ लोग तंबाकू उत्पादों के सेवन के चलते मौत का निवाला बने। इस प्रकार, तंबाकू हमें गुलामी का जीवन, दीर्घकालिक रोग और अंत में मौत की सौगात देती है। जरा सोचिएइस ॔सौगात’ का हम भारी दाम चुकाते हैं। दुःखद लेकिन हकीकत।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के आँकड़े

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू.एच.ओ.) के फरवरी 2006 में आयोजित तंबाकू नियंत्रण सम्मेलन में जारी आँकड़े और चौकानेवाले हैं। आइए इन पर भी एक नजर डालते हैंतंबाकू दुनिया भर में मौत का एक ऐसा कारण है जिसे रोका जा सकता है। यह हमारे हाथ में है।तंबाकू एक ऐसा उपभोक्ता उत्पाद है, जिसे निर्माता बनाते हैं और उपभोक्ता खाकर मरते हैं।तंबाकू से प्रति वर्ष लगभग 50 लाख लोग मरते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो इससे हर साधे छह सेकंड में एक मौत होती है।यदि यही रुझान जारी रहा तो सन 2020 तक इससे प्रतिवर्ष एक करोड़ लोग मरेंगे यानी हर सवा तीन सेकंड में एक मृत्यु।दुनिया भर में 29 फीसदी लोग धूम्रपान करते हैं। इनमें लगभग 48 फीसदी पुरुष और 11 फीसदी महिलाएँ शामिल हैं।जो लोग तंबाकू का नियमित सेवन करते हैं, उनमें से आधे असमय मृत्यु के शिकार हो जाते  हैं हर दो में से एक व्यक्ति।

आज दुनिया भर में 130 करोड़ लोग धूम्रपान करते हैं, इनमें से लगभग 65 करोड़ लोग धीरेधीरे मौत की और ब़ रहे हैं। इनमें से साधेबत्तीस करोड़ लोग 35 से 60 वर्ष की आयु के हैं।विश्व के 84 फीसदी धूम्रपानकर्ता या 90 करोड़ लोग विकासशील और संक्रमणशील अर्थव्यवस्थता वाले देशों में रहते हैं।सन 2030 तक तंबाकू से होनवाली 70 फीसदी मौते विकासशील देशों में होंगी।20वीं सदी में तंबाकू उत्पादों ने 10 करोड़ लोगों की बलि ले ली थी। यदि यही रुझान जारी रहा तो 21वीं सदी में यह संख्या दस गुना ब़कर 100 करोड़ हो जाएगी।

सबसे अधिक सिगरेट कौन पीता है?

‘विकिपीडिया’ के अनुसार, यूनानियों में धूम्रपान की आदत सबसे अधिक है। सन 2007 के सर्वेक्षणों के अनुसार एक यूनानी व्यक्ति साल भर में लगभग 3000 सिगरटें पी जाता है।जैसा कि आपने पीछे पढ़ा है, तंबाकू के धुएँ में 4000 से अधिक रसायन होते हैं। इनमें से बहुत से बेहद घातक होते हैं।इनमें शामिल हैं टार, निकोटिन, कार्बन मोनोऑक्साइड, बेंजीन, फारमलडिहाइड और  हाइड्रोजन सायनाइड। इनमें 50 से अधिक रसायन कैंसरजन्य हैं। निकोटिन एक ऐसी तेज लत
है जो धूम्रपानकर्ताओं को बुरी तरह अपनी गिरफ्त में ले लेती है। विशेषज्ञ कहते हैं  कि निकोटिन अल्खोहल, कोकेन और हेरोइन से भी ज्यादा घातक है, क्योंकि इसे
खुल्लमखुल्ला, धड़ल्ले से इस्तेमाल किया जाता है।

चबाकर खाई जानेवाली तंबाकू

चबाकर खाई जाने वाली तंबाकू भी समान रूप से घातक है। इसमें भी घातक रसायन निकोटिन मौजूद होता है जिसे आप जानबूझकर गले लगाते हैं। इस तंबाकू के अनगिनत दुष्प्रभाव होते हैं जो आपके भीतरी अंगों को भी विकृत कर सकते हैं। कुछ दुष्प्रभाव  ये हैंधूम्रपान रहित तंबाकू में बीड़ीसिगरेटों के अलावा कुछ और तत्त्व शामिल होते हैं। ये हैं: कंकर, रेत, बजरी और जबरदस्ती घुसेड़े गए रसायन। ये सभी आपके दाँतों की बनावट को बुरी तरह क्षतिग्रस्त कर देते हैं, फलतः दाँतों में सड़न बढती है और वे गलने शुरू हो जाते हैं। दाँतों पर  मसुढे की पकड़ ढीली  पड़ने लगती है। मसुढे फैल जाते हैं, जिनमें कीटाणु अपना घर बना लेते हैं।तंबाकू की दुगरंध आपके मुँह में स्थायी बसेरा कर लेती है। जो तंबाकू नहीं खाते, आपके पास बैठना बंद कर देते हैं।

आपके मुँह का स्वाद खत्म हो जाता है। आप ज्यादा मिर्चमसाले खाने लगते हैं, जिसका घातक असर यह पड़ता है कि आपका रक्तचाप गड़बड़ा जाता है।आपके होंठों का रंग बदल जाता है। होंठ जगहजगह से फट जाते हैं। उनसे खून और मवाद भी आ सकता है। आप होंठों के कैंसर से भी ग्रस्त हो सकते हैं।आपकी जुबान में जलन और खुजली होने लगती है। गले में सूजन और पकने की शिकायत घर कर लेती है।आपकी जुबान और जबड़े सख्त हो जाते हैं। बोलने में कठिनाई होने लगती है।तंबाकू से गले, जुबान, मुँह, गाल, फेफड़ों और पेट के कैंसर हो सकते हैं।आधा घंटा तंबाकू चबाकर आप चार सिगरेटों के बराबर निकोटिन उदरस्थ कर लेते हैं।

चबाकर खाई जानेवाली तंबाकू में 25 से ज्यादा कैंसरजन्य घटक होते हैं।91 फीसदी मुँह और गले के कैंसर चबाकर खाई जानेवाली तंबाकू के कारण होते हैं।गले में कुछ अटका सा प्रतीत होने लगता है। गटकने में परेशानी होने लगती है।तंबाकू खानेवालों में दिल से जुड़ी बीमारियों का खतरा कई गुना ब़ जाता है।निकोटिन विष रक्तवाहिका धमनियों को सिकोड़ या सँकरा कर देता है, रक्तचाप ब़ाता है और रक्त में ऑक्सीजन की मात्रा को घटा देता है, जिसका सीधा दुष्प्रभाव हृदय पर पड़ता
है और दिल से जुड़ी बीमारियों का जोखिम बढ़जाता है। (क्रमशः )

Previous articleचर्च चक्रव्यूह में फंसे धर्मांतरित ईसाई
Next articleसत्ता बुनती है गरीबी का मकड़जाल
महेश दत्त शर्मा
जन्म- 21 अप्रैल 1964 शिक्षा- परास्नातक (हिंदी) अनेक प्रमुख हिंदी पत्र-पत्रिकाओं में महेश दत्त शर्मा की तीन हज़ार से अधिक विविध विषयी रचनाएँ प्रकाशित हो चुकी हैं। आपका लेखन कार्य सन १९८३ से आरंभ हुआ जब आप हाईस्कूल में अध्ययनरत थे। बुंदेलखंड विश्वविद्यालय, झाँसी से आपने 1989 में हिंदी में एम.ए. किया। उसके बाद कुछ वर्षों तक विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के लिए संवाददाता, संपादक और प्रतिनिधि के रूप में कार्य किया। आपने विभिन्न विषयों पर अधिकारपूर्वक कलम चलाई और इस समय आपकी लिखी व संपादित की चार सौ से अधिक पुस्तकें बाज़ार में हैं। हिंदी लेखन के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए आपने अनेक पुरस्कार भी अर्जित किए, जिनमें प्रमुख हैं- नटराज कला संस्थान, झाँसी द्वारा लेखन के क्षेत्र में 'यूथ अवार्ड', अंतर्धारा समाचार व फीचर सेवा, दिल्ली द्वारा 'लेखक रत्न' पुरस्कार आदि। संप्रति- स्वतंत्र पत्रकार, लेखक, संपादक और अनुवादक।

2 COMMENTS

  1. शर्मा जी जानकारियों से ओत प्रोत इस लेख के लिए बहुत बहुत बधाई

    एक बात बताओ जब आप के पास तम्बाकू से जुडी इतनी जानकारी है तो भारत सरकार के पास कितनी होगी जरा कल्पना कीजिये ,

    केवल तम्बाकू उन्मूलन के नाम पर लाखो लोगो के रोटी रोजी का जुगाड़ हो रहा है क्या दुश्मनी है बेचारो से,
    क्यों बेचारे कांग्रेसियों को रोड पर लाना चाहते हो

    इस तम्बाकू से आज टाटा इंस्टिट्यूट के साथ साथ तमाम कैंसर इंस्टिट्यूट में कर्यरत डाक्टरों कर्मचारियों के बीवी बच्चो का भी ख्याल नही किया आपने .

    अगर इस तरह के ज्ञान वर्धक लेख लिखोगे तो आपको ऐसी ऐसी बददुआये सुनने को मिलेगी

    भगवान करे ऐसा लेख लिखने वाले को१०० बच्चे पैदा हो ,

    अब लिखने बताने से कुछ होने वाला नही सीधे तम्बाकू उत्पादों को बंद करने की जरूरत है

    पर ऐसा देश की निकम्मी सरकारे करेगी नहीं

    फिर भी अभियान जरी रखिये

    धन्यवाद

Leave a Reply to vimlesh Cancel reply

Please enter your comment!
Please enter your name here