देश के सबसे ईमानदार, कर्मठ एवं युग पुरुष धरने वाले बाबा भारत के प्रधानमंत्री होते तो शायद देश के हालात कुछ इस तरह होते।
* देश मे पहली बार ‘धरने’ वाली सरकार होती।
* देश के प्रधानमंत्री का स्वतन्त्रता दिवस पर लाल किले से भाषण कुछ ऐसा होता
“हम अपने दुश्मनों से कड़े शब्दो मे कह देना चाहते है अगर हमे आँख दिखाएंगे तो हम सीमा पर धरना देंगे। ‘शान्तिप्रिय’ दूतो के साथ हम ‘धरने’ के साथ काम लेंगे” ।
* देश मे ‘धरना’ देने का प्रशिक्षण मुफ्त दिया जाता ।
* भारत रत्न की जगह ‘धरना-रत्न’ सम्मान की शुरुआत होती। सर्वप्रथम यह सम्मान ‘मन्ना मजारे’ को दिया जाता।
* देश की सडको पर ‘यू-टर्न’ के साइन की जगह ‘केजरी-टर्न’ के नए साइन लगाए जाते।
* प्रधानमंत्री महोदय पीएमओ की जगह सदेव जंतर-मंतर पर धरने पर रहते।
* देश के शिक्षण संस्थानो के पाठ्यक्रमो मे ‘धरना’ विषय अनिवार्य हो गया होता।
* पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान के नेता और ‘केजरी-शिष्य’ इरफान ‘कान’ और ‘फसादरी’ धरने के भाईचारे की नयी मिशाल बनाते।
* देश मे आपातकाल जैसे हालात खड़े हो जाते प्रधानमंत्री से लेकर राज्य के मुख्यमंत्री…..बड़े बड़े नेता…… कर्मचारी…… व्यापारी…….बिखारी…… नारी……. स्कूल और कॉलेज के छोटे-बड़े बच्चे सब अनिश्चितकालीन धरने पर चले जाते।
* देश के नेताओ का नया नारा होता “तुम मुझे वोट दो…..मैं तुम्हें ‘धरना’ दूंगा”……
* केंद्र सरकार अपना अलग ‘धरना-मंत्रालय’ खोलती। ‘एघा-नाटकर’ इसकी मुखिया होती।
* ‘धरना-दिवस’ घोषित किया जाता और प्रतिवर्ष धूमधाम से मनाया जाता।
* प्रधानमंत्री राहत कोष की जगह ‘धरना-राहत-कोष’ की स्थापना होती जिससे देश-विदेश मे हो रहे जगह-जगह धरनो को आर्थिक रूप से मदद पहुंचाई जाती।
*देश की दादी और माँ अपने पौता-पौती/बेटा-बेटी को ‘केजरी-बवाल’ के धरनो के किस्से बताती।
* दूर किसी गाँव मे जब बच्चा रोता है तो माँ कहती होगी सो जा बेटा…… सो जा…नहीं तो ‘केजरी’ बवाल करने आ जाएगा।
समाचार बने रहो।
एक धरना दो।
कछु भी करो न धरो।
बस मात्र धरना दो।
अकरमण्येऽवाधिकारस्ते।
सर्व फलेषु सदाचन॥
अकर्मण्यता अधिकार है, इनका।
पर फल तो सारे चाहिए।
प्रवक्ता पर, निम्न कडी पर डाली हुयी, “कुक्कुरमुत्तों की कविता” भी पढें।
https://www.pravakta.com/kukkurmutton-poem
बीनू भटनागर जी की बात से पूर्ण रूप से सहमत हूँ। व्यंग को व्यंग की तरह ही लिया जाए तो बेहतर है। दूसरा एक बात और स्पष्ट कर देना चाहता हूँ इस पोस्ट पर जीतने भी पात्र उल्लेखित किए गए है वह सभी काल्पनिक है किसी जीवित/मृत व्यक्ति से जोड़ना अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण होगा। शुक्रिया 🙂
क्या इस तरह के अनर्गल प्रलापों को स्थान देना उचित है
व्यंग्य को व्यंग्य की तरह लिया जाये तो इस लेख मे कुछ आपत्तिजनक नहीं है पर शिवेंद्र मोहन की टिप्पणी सुरुचिपूर्ण नहीं है।
शिवेंद्र मोहन जी बिलकुल संभव है 😀
गरिहल टाइप की टिप्पणियों का बंपर स्टॉक जमा करने का अच्छा मौका है। अभी आपिये धरना देने आएँगे आपके लेख पे.