विश्ववार्ता

डोनाल्ड ट्रंप और इस्लाम

Trump-1रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप के अगले अमेरिकी राष्ट्रपति बनने की संभावना अधिक है। न केवल राजनीतिक, बल्कि आर्थिक और अंदरूनी नीतियों पर भी वे हिलैरी क्लिंटन से अधिक लोकप्रिय दिख रहे हैं। वैसे भी, विगत आठ साल डेमोक्रेटिक राष्ट्रपति होने से हिलैरी को इस दौरान ओबामा नीतियों की गलतियों, विफलताओं, निराशाओं का मतदाताओं पर प्रतिकूल असर झेलना होगा। क्योंकि दिखाने के लिए ओबामा प्रशासन की कोई उल्लेखनीय उपलब्धि नहीं है। अन्यथा हिलैरी उसे जोर-शोर से बता रही होतीं!

दूसरी ओर, ट्रंप के असामान्य नेता होने, यानी पारंपरिक रिपब्लिकन न होने से अमेरीकी जनता में उन के प्रति एक अपनी तरह का आकर्षण भी बना है। कुछ ऐसा भाव, कि देखें, यह गैर-पारंपरिक नेता क्या कर दिखाता है! इसलिए कई कारणों से आगामी नवंबर में ट्रंप के ही जीतने की संभावना लगती है।

लेकिन राष्ट्रपति के रूप में डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका से अधिक विश्व में चल रही इस्लामी राजनीति के लिए रोचक विषय है। क्या ट्रंप के आने से मध्य-पूर्व, सऊदी अरब, ईरान, पाकिस्तान के प्रति बनी-बनाई, मगर प्रायः विफल रही अमेरिकी नीतियाँ बदलेंगी? क्या विश्व मंच पर हर बात में इस्लामी दावों, विशेषाधिकारों, संवेदनाओं को आदतन सम्मान देने की राजनीतिक परंपरा में कोई बदलाव होगा? तमाम मुस्लिम देशों में मानवाधिकारों की दुर्गति पर गैर-मुस्लिम दुनिया क्या अपना रुख बदलेगी?

ये सब प्रश्न इसलिए ऊपर आ गए हैं, क्योंकि डोनाल्ड ट्रंप ने दुनिया में चल रही इस्लामी राजनीति पर गैर-पारंपरिक नेता जैसे बयान दिए हैं। उन का सब से विवादास्पद और चर्चित बयान है – ‘हम मुसलमानों को अमेरिका नहीं आने देंगे।’ अभी तक इसी बयान को ट्रंप के बुरे उम्मीदवार होने के प्रमाण रूप लहराया गया। लेकिन अमेरीकी मतदाताओं के बड़े वर्ग ने इसे बुराई नहीं माना, इस का भी अर्थ समझा जाना चाहिए। कि अमेरिकी लोग इस्लामी राजनीति के दोहरे मानदंड, तानाशाही रवैया और स्थाई शिकायती अंदाज से आजिज आ चुके हैं। अतः नोट करना चाहिए कि जिसे दुनिया के लिबरल नेता, बुद्धिजीवी ‘इस्लामोफोबिया’ कह कर ट्रंप की निन्दा करते रहे, उसे बड़ी संख्या में अमेरिकी लोग दो-टूक सचाई कहना मान रहे हैं।

इसलिए ट्रंप की बात को उस के पूरे संदर्भ में देखना चाहिए। उन के बयान को दुनिया भर के लिबरल मीडिया ने आदत के मुताबिक अधूरा प्रचारित किया, ताकि ट्रंप-विरोधी भाव को जमाया जा सके। मगर ट्रंप ने मुसलमानों को अमेरिका नहीं आने देने वाले बयान में यह भी कहा था कि, ‘क्योंकि वे हम से घृणा करते हैं।’ क्या यह बात सच नहीं है? और, सामान्य बुद्धि से हम क्या किसी ऐसे व्यक्ति का स्वागत अपने घर में करेंगे जो हम से आदतन घृणा करता हो? इसलिए ट्रंप की पूरी बात और संपूर्ण स्थिति की समीक्षा होनी चाहिए। लाग-लपेट और बनाव-छिपाव ने तो केवल हानि की है।

कारण जो हो, यह निर्विवाद है कि पूरी दुनिया में मुसलमानों में आम तौर पर एक अमेरिका-विरोधी भाव है। मगर इस भाव के कारण उचित हैं, यह मानने का कोई आधार नहीं। क्योंकि मुसलमानों में वही विरोधी भाव यूरोप के प्रति भी है। नहीं तो, इंग्लैंड, फ्रांस, बेल्जियम, जर्मनी, आदि सभी देशों में रहने वाले मुसलमान नागरिकों में अपने-अपने उन्हीं देशों के विरुद्ध आतंकी कांड करने, उन देशों के संविधान-कानून की धज्जियाँ उड़ाने, और अफगानिस्तान से लेकर सीरिया तक जिहादी लड़ाई लड़ने जाने वाले क्यों मिलते रहे हैं? वे कांड करने वाले यूरोपीय मुस्लिम खुल कर अपने-अपने देशों के विरुद्ध जहाँ वे जन्मे, पले-बढ़े, सुविधाएं उठाईं भी घृणा प्रकट करते हैं, के विरुद्ध भी घृणा प्रकट करते रहे हैं। और सारी दुनिया के अनगिन मुस्लिम प्रवक्ता ऐसे मुसलमानों का बचाव भी करते हैं।

इसी तरह, कश्मीर मुद्दा हो, या भारत पर अनगिन जिहादी हमले, या बांग्लादेश में नियमित रूप से लेखकों-कवियों की हत्याएं – ऐसे मुद्दों पर भी मुस्लिम विश्व या तो इस्लाम-परस्त रुख लेता है या चुप रहता है। स्वयं भारत के मुस्लिम नेताओं ने कश्मीर मामले पर भारत के लिए क्या किया है? यह कड़वी सचाई है कि इस्लामी राजनीति का मूल तत्व हर गैर-इस्लामी विचार, व्यक्ति, देश, समस्या, आदि का या तो विरोध करना या उपेक्षा करना है। यही सारे झगड़े की जड़ है।

अतः अमेरिका के प्रति दुनिया के मुसलमानों में विरोध-भाव का कारण अमरीकी नीतियों को मानना अपने-आपको धोखे में रखना है। सच जग-जाहिर है कि दुनिया के अधिकांश मुस्लिम नेता और शासक पूरी दुनिया पर इस्लामी दावे ठोकते रहते हैं। इस का सब से प्रत्यक्ष, विश्व-व्यापी प्रमाण यह है कि वे अमेरिका, यूरोप या भारत में अपने लिए वैसी माँगे करते, नाराज होते तथा उस के लिए हिंसा करते हैं, जो अधिकार वे मुस्लिम देशों में गैर-मुस्लिमों को नहीं देते! यह खुली सीनाजोरी, अन्यायी, विशेषाधिकारी मानसिकता सारी आफत का मूल है – कोई अमेरीकी नीतियाँ नहीं। यही सचाई ट्रंप ने खुल कर कह दी है, जिसे पारंपरिक नेता छिपाते रहे हैं।

सब से हाल में बेल्जियम और फ्रांस में हुए आतंकी हमलों में पुनः साफ-साफ दिखा कि उन्हीं देशों में रहने वाले असंख्य मुसलमानों ने अपनी बस्तियों में आतंकियों को पनाह दी। यही नहीं, जब आतंकी कांड हुए, तो पुलिस को जाँच और अपराधियों की धड़-पकड़ में संगठित रुकावट पैदा की। क्या यही चीज यहाँ भी श्रीनगर, अलीगढ़, गोधरा से लेकर माराड तक नहीं होती है? इसलिए, ट्रंप ने अमेरीकी जनता में उस हताशा, निराशा और आक्रोश को व्यक्त किया है कि तमाम मुस्लिम देशों में हर तरह की तानाशाही और बदहाली में रहने वाले मुसलमान यूरोप, अमेरिका आकर बसते रहे हैं, सारी स्वतंत्रता और सुविधाओं का उपयोग करते रहे हैं। लेकिन फिर भी इन देशों के प्रति आत्मीयता और सदभाव के बदले इन के खिलाफ अन्यायी, मध्ययुगीन इस्लामी मानसिकता का पक्ष लेते हैं। यह पूरी दुनिया में, और इतने लंबे समय से हो रहा है कि अब गैर-मुस्लिम लोकतांत्रिक जनता का धैर्य चुक गया है। डोनाल्ड ट्रंप ने इसी को व्यक्त किया है।

निस्संदेह, मुस्लम विश्व में भी ऐसे विवेकशील, न्यायपूर्ण मुसलमान हैं जो इस्लामी जड़ता और दोहरेपन को पसंद नहीं करते। तुफैल अहमद, तस्लीमा नसरीन, तारिक फतह या वफा सुलतान की तरह अनेक मुस्लिम हैं जो मुसलमानों में इस्लाम से ऊपर उठ कर मानवतावादी विचारों के प्रसार को उचित समझते हैं। आखिर बांग्लादेश में जिन लेखकों, अध्यापकों, कलाकारों को मारा जा रहा है – उन का कसूर क्या था? यही कि वे इस्लामी जड़ता, अंधविश्वास और तानाशाही को उचित नहीं मानते थे। लेकिन दुनिया भर के गैर-मुस्लिम नेताओं ने इस पर चुप्पी रखी है।

इसीलिए, डोनाल्ड ट्रंप का राष्ट्रपति बनना विश्व राजनीति में एक रोचक मोड़ हो सकता है। अभी तक सारी दुनिया के गैर-मुस्लिम नेताओं तथा संयुक्त राष्ट्र जैसे विश्व मंचों ने इस्लामी जगत में सेक्यूलर, विवेकशील स्वरों की उपेक्षा की है। जाने-अनजाने उन्होंने सभी जगह पारंपरिक इस्लामी तत्वों और कट्टरपंथियों को ही आदर, सहयोग, प्रोत्साहन दिया है। इसलिए भी अभी तक मुस्लिम विश्व में वह वैचारिक, राजनीतिक सुधार नहीं हो सका जो ईसाई विश्व में चार सौ वर्ष पहले हो चुका।

अब यदि अमेरिका जैसा देश इस के प्रति गंभीर हो जाए, तो मुस्लिम विश्व की तस्वीर बदल सकती है। इस्लाम की वकत बढ़ाने के लिए हो रही अंतहीन हिंसा से लाखों मुसलमानों समेत सारी दुनिया तंग-तबाह हो रही है। कोई भी नयी पहल घटनाओं को नई दिशा दे सकती है, क्योंकि वातावरण इस के लिए तैयार है। क्या ट्रंप की जबर्दस्त बढ़त उसी का संकेत है? यह समय ही बताएगा।