चुहिया पहुंची थाने|
बोली चूहे के घरवाले,
हैं दहेज दीवाने|
शादी के पहले से ही वे,
मांग रहे हैं कार|
बंद करो थाने में उनको,
चटपट थानेदार|
इस पर भालू कॊतवाल ने,
चूहे को बुलवाया|
थाने में घरवालों के संग,
उसको बंद कराया|
चुहिया पहुंची थाने|
बोली चूहे के घरवाले,
हैं दहेज दीवाने|
शादी के पहले से ही वे,
मांग रहे हैं कार|
बंद करो थाने में उनको,
चटपट थानेदार|
इस पर भालू कॊतवाल ने,
चूहे को बुलवाया|
थाने में घरवालों के संग,
उसको बंद कराया|
स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान पत्रकारिता ने जन-जागरण में अहम भूमिका निभाई थी लेकिन आज यह जनसरोकारों की बजाय पूंजी व सत्ता का उपक्रम बनकर रह गई है। मीडिया दिन-प्रतिदिन जनता से दूर हो रहा है। ऐसे में मीडिया की विश्वसनीयता पर सवाल उठना लाजिमी है। आज पूंजीवादी मीडिया के बरक्स वैकल्पिक मीडिया की जरूरत रेखांकित हो रही है, जो दबावों और प्रभावों से मुक्त हो। प्रवक्ता डॉट कॉम इसी दिशा में एक सक्रिय पहल है।
चुहिया की जगह यदि हमारी लड़की हो तो अवश्य कोई बकताव्य देते यह नहीं पता चल रहा है की कवी महोदय क्या कहलवाना चाहते हैं ! यद्यपि पुरे समाज की यही मंनोदशा दर्शा रही है की हम उक्त दान दहेज़ के स्वतः जिम्मेदार हैं ! हम पडोशी के लडके को क्या दहेज़ में मिला , यह जानने के लिए अधिक उतावले रहतें हैं !! यह दहेज़ दानव कितनों का घर नष्ट करेगा कहा नहीं जा सकता ? भारत के कवी बुद्धिजीवी समजोद्धोरक , और समाज शास्त्री सब इस गूढ़ राहशी को सुलझाना चाहते हैं परन्तु कैसे ? यह कब होगा इस ज्वलंत प्रश्न का कोई उत्तर किसी के पास नहीं है? कब नया सवेरा होगा ????
चूहिया की जगह लड़की कर दे तो आज के समाज की यही हालत हो गयी है।
ध्न्यवाद प्रभुदयाल