विविधा

डॉ. मीणा अपनी आंखों से पहले भ्रष्ट कांग्रेसी चश्मा उतारिये!

इक़बाल हिंदुस्तानी

अन्ना जैसे संत महात्मा की नहीं भ्रष्ट कांग्रेसियों की जगह जेल में है। प्रवक्ता पर नववर्ष के अवसर पर मेरे लेख ‘‘ नववर्ष शुभ कहने से ही शुभ नहीं होगा’’ पर डा0 पुरूषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’ की टिप्पणी पढ़ी। पहले तो यह स्पष्ट करना चाहता हूं कि मैं डा0 मीणा का बहुत सम्मान करता हूं लेकिन उनकी टिप्पणी पूर्वाग्रह पर आधारित होने के कारण मैं उनसे सहमत नहीं हो सकता। ऐसा लगता है कि उन्होंने लेख की मूल विषय वस्तु को समझे बिना ही अपनी भड़ास टेपरिकॉर्डर की तरह उड़ेल दी है। वैसे तो उनके नाम में से ही पता लगता है कि उनकी कलम पर भी कोई अंकुश नहीं है। मैंने एक बेहद संजीदा सवाल उठाया था कि जो लोग अपने मन में किसी के लिये दुर्भावना या ईर्ष्या रखते हैं उनको नववर्ष शुभ हो कहने का कोई अधिकार नहीं है। मैंने बधाई देने को मना नहीं किया।

अगर अन्ना को कांग्रेस नेता दिग्विजय दिखावे के लिये नववर्ष की बधाई दे रहे हैं तो यह ढोंग के सिवा क्या है? यह खोखले आदर्श की खोखली हिमायत कैसे हो गयी? मीणाजी सच कड़वा होता है। सच तो यह है कि आपकी आंखों पर कांग्रेस का चश्मा चढ़ा है जिससे आप सब चीज़ों को उसी रंग के चश्मे से देख रहे हैं। इसी को पूर्वाग्रह कहा जाता है। कांग्रेस के खोखले आदर्शों की खोखली हिमायत तो मीणा जी आप कर रहे हैं। आप ने कांग्रेस के विरोध पर उसकी तरह ही मुझे भी संघ की विचारधारा से प्रभावित ठहरा दिया मगर मैं इससे न तो उत्तेजित होने वाला हूं और आपकी तरह विचलित।

इसकी ठोस वजह मेरे पास प्रवक्ता डॉटकॉम पर अब तक प्रकाशित मेरे पचास से अधिक लेख हैं जिनमें कांग्रेस ही नहीं भाजपा, सपा बसपा और वामपंथियों सहित जब जिसकी कमी नज़र आई मैंने उसके खिलाफ़ क़लम चलाई है। एक लेखक को निष्पक्ष और तर्कशील होना चाहिये जिससे वह आपकी तरह सदा कांग्रेस के गीत नहीं गा सकता और न ही भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे पर अन्ना का समर्थन करने पर संघ और अन्यों को संघ समर्थक ठहरा सकता है। कांग्रेस से ख़फ़ा होने का पर्याप्त कारण है। सबसे अधिक समय तक देश और राज्यों में अब तक कांग्रेस ने ही राज किया है।

कश्मीर समस्या से लेकर साम्प्रदायिकता, जातिवाद, क्षेत्रवाद, माओवाद, आतंकवाद, दंगे, मंदिर मस्जिद विवाद, गरीबी, पूंजीवाद,और भ्रष्टाचार जैसी तमाम समस्याओं की जड़ कांग्रेस ही है। यह भी ज़रूरी नहीं कि कांग्रेस का विरोध करने वाला हर आदमी संघ और भाजपा का समर्थक होगा जैसा कि मीणा जी पूर्वाग्रह रखते हैं। क्या सपा, बसपा और कम्युनिस्ट कांग्रेस का विरोध नहीं करते? आपके हिसाब से तो वे भी संघी ही होंगे?

अन्ना जी को बिना किसी सबूत के सर से पांव तक भ्रष्टाचार में डूबा बताकर बाद में डर से माफी मांग चुके कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी और आप में अन्ना जी को अपराधी बताने में मुझे कोई अंतर नज़र नहीं आता फर्क इतना है कि मनीष क्षमा मांग चुके हैं और आपको एक दिन ऐसा करना पड़ सकता है। माना अन्ना को किसी को शराब छोड़ने को सार्वजनिक रूप से नहीं पीटना चाहिये लेकिन उनकी नीयत समाज सुधार की रही है जिससे वे अपराधी नहीं हो जाते। उनकी नहीं भ्रष्ट राजनेताओं की जगह जेल में है।

आपने एक मिसाल सुनी होगी कि लातों के भूत बातों से नहीं मानते। चोर डाकू और आज़ादी के सिपाही की हिंसा में अंतर होता है। एक अरबपति आदमी की चोरी और एक भूखे बच्चे की रोटी चुराने की घटना को एक ही तराजू पर नहीं तोला जा सकता। अन्ना ने शराबी की शराब छुड़ाने को कभी भी उसके तबके को देखकर खंबे से बांधने की बात नहीं की यह मीणा जी आपका झूठा आरोप है।

रहा मेरा अन्ना के गांव जाकर बकरीद मनाने का आपका प्रस्ताव तो अब मुझे पूरा विश्वास हो गया कि आपने आज तक मेरे लेख ठीक से पढ़े ही नहीं। मैं एक सीधा सच्चा इंसान और हिंदुस्तानी हूं। मैं बकरीद नहीं मनाता। और स्पष्ट करदूं मैं ऐसी किसी सामाजिक, धार्मिक या क्षेत्रीय परंपरा या फ़तवे को नहीं मानता जो मानवता, समानता, भारतीयता, औचित्य , शिष्टाचार, कॉमन सेंस, तर्क या प्रगतिशील सोच के खिलाफ हो।

एक बात की आपकी तारीफ कर सकता हूं कि आपने खुद ही माना है कि बहुसंख्यक लोग आपकी सोच से सहमत नहीं हैं। इसका मतलब आपकी अन्ना के लिये भी जेल भेजने की बात केवल आप जैसे चंद कांग्रेस के ‘पेडवर्कर्स’ के दिमाग की खुराफात है। अजीब बात यह है कि मैंने अपने लेख में कहीं भी एक शब्द योग के बारे में नहीं लिखा फिर भी आपने एक रटे हुए तोते की तरह योग से लेकर आयुर्वेद पर बहुत कुछ लिख मारा। हो सकता है कि कांग्रेस पर मेरी तर्कसंगत नाराज़गी से आपके मन को इतनी अधिक पीड़ा पहंुची हो कि आप मानसिक रूप से व्यथित होकर अनाप शनाप लिख बैठे हों।

ख़ैर मैं बुरा नहीं मान रहा हूं आपके इस झूठ और बेसिरपैर के विश्लेषण पर मैं आपसे पूरी सहानुभूति रखता हूं। यह अधिकार मुझे संविधान ने दिया है कि मैं आप से रत्तीभर भी सहमत नहीं हूं। आप नववर्ष, ईद, दिवाली आदि पर्वों पर दिखावे की बधाई को ढोंग न मानकर और सलाम, नमस्ते व दुआ को बेमन से करने के बावजूद ठीक मानते हैं लेकिन इस लेख पर अन्य प्रतिक्रियाओं से ही यह तथ्य और सत्य साबित हो रहा है कि आपकी इस बेतुकी बात से कोई भी सहमत नहीं है। इस देश को बर्बाद होने से केवल अन्ना जैसा संत और महात्मा ही बचाने का सदप्रयास कर रहा है वर्ना मीणा जी आपकी भ्रष्ट कांग्रेस ने तो जनता को तबाह कर दिया है।

भ्रष्टाचार से सबसे अधिक दमित तो निचले तबके के ही लोग हैं। अन्ना नहीं बल्कि आपकी प्रिय कांग्रेस ही लचर और भ्रष्टाचारियों को बचाने और शिकायतकर्ता को फंसाने वाला लोकपाल लाने का ढोंग कर रही है। राज्यसभा में यह साबित हो चुका है। यह विपक्ष की नहीं यूपीए और वह भी सबसे अधिक कांग्रेस की ज़िम्मेदारी थी कि वह बिल पास कराती लेकिन वह तो यह चाहती ही नहीं जिससे उसके खिलाफ की मोर्चा खोला जाना बिल्कुल ठीक है। आपकी सोच नकारात्मक है कि संसार हमसे बहुत आगे है। हम भी कई अच्छे क्षेत्रों में पूरी दुनिया से आगे हैं। हां यह सच है कि मैं योग से कुछ हद तक प्रभावित हूं। मैं योग करता भी हूँ। लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि मैं एलोपैथी या किसी और पैथी के खिलाफ हूं।

यह भी सही है कि आयुर्वेद और यूनानी दवाओं को सरकार को बढ़ावा देना चाहिये इसमें क्या बुराई है? अगर भाजपा सरकार यह काम करेगी तो इसका मैं सबसे पहले स्वागत करूंगा। ढोंग तो धर्म के नाम पर भी गलत है। बेमन और ढोंग न करने पर नंगा होकर घूमने का औचित्य मेरी समझ से बाहर है। मैं इस बात पर अब भी कायम हूं कि ढोंग से बेहतर है कि चाहे कुछ भी ख़त्म हो जाये लेकिन जो कुछ किया जाये पूरे मन और दिल की गहराइयों से किया जाये फिर वह चाहे त्यौहार हों या 15 अगस्त और 26 जनवरी के नेशनल फेस्टिवल हों।

आपने मीणा जी बिल्कुल ठीक कहा कि समाज में सच्चे लोगों की कमी नहीं है लेकिन आप रूग्ण मानसिकता से बाहर तो निकलें आप तो भ्रष्ट कांग्रेस का गुणगान करने में इतने मगन हो चुके हैं कि आपको अन्ना और उनके समर्थकों चाहे वे संघ परिवार से ही हों, कुछ भी सकारात्मक और अच्छा दिखाई ही नहीं दे रहा है। मैंने तो आपको सलाह दे दी है अब यह आपकी इच्छा है कि आप कांग्रेस का अंधसमर्थन और अन्ना का अंधविरोध करके दुखी और तनाव में रहना पसंद करते हैं या फिर एक न्यायप्रिय, समदर्शी और तर्कशील निष्पक्ष कलमकार का कर्तव्य पूरा करते हैं। आपके नाम एक शेर पेश है-

मैं वो साफ ही न कहदूं जो है फ़र्क तुझमें मुझमें,

तेरा ग़म है ग़म ए तन्हा मेरा गम गम ए ज़माना।