डॉ. अरुण दवे की कविताएं

फक्कड़वाणी

(1)

आजादी के बाद भी, हुए न हम आबाद

काग गिद्ध बक कर रहे, भारत को बर्बाद

भारत को बर्बाद, पनपते पापी जावे

तस्कर चोर दलाल, देश का माल उड़ावे

कहे फक्कड़ानन्द, दांत दुष्‍टों के तोड़ो

गद्दारों से कहे, हमारा भारत छोडो

(2)

कहता है इक साल में, लाल किला दो बार

झोपड़ियाँ चिन्ता तजे, मुझको उनसे प्यार

मुझको उनसे प्यार, कष्ट उनका हरना है

दुख लेना है बाँट, सौख्य-झोली भरना है

कहे फक्कड़ानन्द, याद फिर तनिक न आती

झोपड़ियों की आस अधूरी ही रह जाती

————————

कैसा स्वाभिमान हमारा ……..?

भूल गए हम मातृभूमि का पावन गौरव गान

कैसा स्वाभिमान हमारा कैसा स्वाभिमान?

भूल गए हम देशभक्ति की बानी को

भूल गए राणा प्रताप सैनानी को

भूल गए हम झांसी वाली रानी को

भूल गए हम भगतसिंह बलिदानी को

यौवन के आदर्श फकत शाहरुख एवं सलमान

कैसा स्वाभिमान हमारा कैसा स्वाभिमान ?

नैतिकता का पथ अब रास न आता है

सच्चाई से धक धक दिल घबराता है

सद्ग्रंथों को पढ़ना हमें न भाता है

रामायण-गीता से टूटा नाता है

पढ़ते सुनते और देखते कामुकता आख्यान

कैसा स्वाभिमान हमारा कैसा स्वाभिमान ?

तेरी मेरी सबकी रामकहानी है

चुप्पी ओढ़े बैठी दादी-नानी है

सीता-सावित्री की कथा पुरानी है

नवयुग की नारियां सयानी-ज्ञानी है

फैशन नखरों कलह-कथा का रहता केवल ध्यान

कैसा स्वाभिमान हमारा कैसा स्वाभिमान ?

भौतिकता के मद में हम सब फूल गए

स्वार्थ लोभ नफरत के बोते शूल गए

गांधी गौतम के सब छोड़ उसूल गए

पछुआ की आंधी में पुरवा भूल गए

आपस में लड़ झगड़ रहे हैं जैसे पागल श्‍वान

कैसा स्वाभिमान हमारा कैसा स्वाभिमान?

2 COMMENTS

  1. मेरे पुजनीय गुरु देव ङाँ अरूण जी दवे आपकी कविताओ ने तो मन ही मोह लिया है!

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

17,871 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress