पंच पवित्र नारियों में एक थी द्रौपदी

—विनय कुमार विनायक
पंच पवित्र नारियों में एक थी द्रौपदी,
ऐसा शास्त्र कथन इसमें क्यों आपत्ति,
प्रेम कोई एक देह से जुड़ी चीज नहीं,
प्रेम व्यक्ति विशेष तक सीमित नहीं!

प्रेम मुट्ठी में कैद होते हवा हो जाती,
खुली मुट्ठी में हवा, बंद होते सरकती,
तुम पुष्प गंध चाहो तो उसे खिलने दे,
नहीं तो कली रहेगी वो किस काम की!

धूप अगरबत्ती की खुशबू चहुंओर फैलती,
अगर करोगे स्वनासिका में उसे केन्द्रित,
तो तुम्हारे मुखमंडल में कालिमा घिरेगी,
प्रेम नहीं दैहिक वह हार्दिक अभिव्यक्ति!

समस्या है प्रेम को देह तक समझने में,
समस्या है प्रेम को रिश्ते में जकड़ने में,
जबकि ऐसा प्रेम नहीं, वासनात्मक वृत्ति,
द्रौपदी का प्रेम दैहिक नहीं सात्विक थी!

द्रौपदी का प्रेम तत्व कुछ वैसा संतुलित,
ना किसी से अधिक नहीं किसी से कम,
द्रौपदी बहुपतित्व प्रथा की कड़ी आखिरी,
जिसे द्रौपदी ने नियति मान निभाई थी!

द्रौपदी नारी जाति की सर्वोच्च रत्न थी,
द्रौपदी ने एक सड़ी गली रीति मान ली,
द्रौपदी की नियति पर कटाक्ष होता नहीं,
द्रौपदी ने विषम स्थिति में सतीत्व पाई!

द्रौपदी के पारिस्थितिक प्रेम सतीत्व को,
जिसने भी लांक्षित करने की इच्छा की,
उन सबों की दुर्योधन, दुशासन, जयद्रथ,
कीचक जैसी दुर्गति हुई ऐसी थी द्रौपदी!

द्रौपदी बहुपति विवाह वक्त मान्य होगी,
जैसे कि अरब के लड़ते मरते कबीले में
पुरुषों की कम स्त्री की बहुत संख्या को
नियंत्रण हेतु पैगंबर ने बहुपत्नी प्रथा दी!

निश्चय ही ऐसी मान्यताएं कालातीत हुई,
इस बदलते युग में ऐसी रीति दकियानूसी,
किसी धर्म-मजहब को तुम क्यों ना मानो,
पर स्त्री जाति को न कहो खुदा की खेती!
—-विनय कुमार विनायक

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