आप में दुर्दिन क्यों ?

दिल्ली की सत्ताधारी आम आदमी पार्टी को आज जो दुर्दिन देखने को मिल रहे हैं, उनके लक्षण स्पष्टतः पार्टी के जन्म से ही परिलक्षित होने लगे थे हालांकि वे दृष्टव्य होने के बावजूद अनदेखी किये जाने के फलस्वरूप नासूर बन गये। राम नवमी पर 28 मार्च को राष्ट्रीय परिषद – आप की बैठक में वह कथित नासूर विस्फोटक रूप ले सकता है, जरूरी है कि सियासी पारी में कथित राष्ट्रीय परिषद सहित सभी इकाईयों को भंग कर एकल प्रणाली के तहत पार्टी प्रमुख एवं सीएम केजरीवाल को सर्वेसर्वा हो जाना चाहिए। इसके बाद अपनी मनचाही राष्ट्रीय परिषद, अन्य कमेटियां गठित करनी होंगी। यहां तक कि राज्य व जिला संयोजकों के साथ उन इकाईयों का पुनगर्ठन करना होगा। सवाल उठता है कि आखिर ये सब तमाशा क्यों खड़ा हुआ?
दरअसल में दुर्दिन का मूल कारण है आंदोलन  बनाम राजनीति। दोनों उत्तर-दक्षिण धु्रव हैं, जिन्हें एक करने का दुस्साहस ऐसे ही रासायनिक विस्फोटक का विज्ञान-सूत्र सिद्ध करता है। जब आन्दोलन को सियासी जामा पहनाया गया तो जो अनासक्त भाव से व्यवस्था परिवर्तन की नियत से आन्दोलन रत सत्यनिष्ठ जनों की जमात थी, उसे ही राष्ट्रीय परिषद आदि में समायोजित कर लिया गया, फलस्वरूप कथित रूप से व्यवस्था परिवर्तन की सियासी पारी में जिस मन्तव्य से उस सत्यनिष्ठ जमात ने अपनी स्वीकृति दी थी, वही अब प्रदूषित होती सियासी पारी में घुटन महसूस कर रहे हैं, और क्रमशः विद्रोही साबित होते जा रहे हैं। जिनमें अश्विनी उपाध्याय, पूर्व कानूनमंत्री शान्तिभूषण, मयंक गांधी, शाजिया इल्मी, विनोद कुमार बिन्नी, प्रशान्त भूषण आदि के नाम उल्लेखनीय है। इस स्वच्छ मानसिकता के लगभग 200 लोग आपकी राष्ट्रीय परिषद में हैं, जिनसे ही सियासी जमात को खतरा है। यही कारण है योगेन्द्र-प्रशान्त द्वारा राष्ट्रीय परिषद के सदस्यों के नाम सार्वजनिक करने की मांग उठाते ही इस जोड़ी को अस्तित्व हीन करार दे दिया गया।
अन्तोगत्वा विस्फोटक हालात में पहुंच चुकी आप में अब एक ही विकल्प है कि इंडिया अगेंस्ट करप्शन नामधारी आन्दोलनसेवी सत्यनिष्ठों को मातृ-संस्थावत मानकर सियासत से अलग किया जाये। जो काम शुरू में नहीं हुआ तो अब हो सकता है। दरअसल आन्दोलन के राजनीतिकरण का अंकुरण ठीक 4 साल पहले हो चुका था, जब लखनऊ, वाराणसी, कानपुर, रामपुर, मैनपुरी व इटावा आदि जगहों पर तेजी से घटनाक्रम का दौर चला आईएसी के प्रारंभिक संस्थापक सदस्यों को हासिये पर लाते हुए अनैतिक घुसपैठ को बढ़ावा दिया गया, जब उन्हीं आंदोलन सेवी सत्यनिष्ठ जनों को सियासी पारी के संस्थापक सदस्य के रूप में समायोजित किया गया तो नैतिक मूल्यों के होते हृास को देखकर घुटन महसूस करने लगे और उन्हें विद्रोही की उपाधि देने का क्रम शुरू हो गया था, जो थमने का नाम नहीं ले रहा।
– देवेश शास्त्री
(लेखक आईएसी के प्रारंभिक कोआर्डीनेटरों शामिल है।)

2 COMMENTS

  1. आप में दुर्दिन हैं ही नहीं,यह शुद्ध रूप से केजरीवाल की ”आप” नहीं किन्तु ”खुद” है. भाजपा के नितिन गडकरी होन.सतीश उपाध्या य हों। सलमान खुर्शीद हों रोबर्ट वाड्रा हों सब पर इल्जाम लगाना ,इनका शगल है. दूसरे को गलत , दूसरे को बेईमान बताना इनका इनका स्थाई भाव है. भाजपा और कांग्रेस इनकी फिरकनी में उलझ गयी. सतीश उपाध्या य को ही मुख्यमंत्री के दावेदार रहने देते और केजरीवाल के आरोप पर जो बिजली कंपनी , से सांठ गांठ लेकर ध्यान नहीं देते तो यह आदमी कभी नहीं जीत सकता था. ”आप” में दुर्दिन नहीं हैं. अब तो ” सुदिन” हैं. तभी तोइस शख्स ने कहा की में ६७ विधायकों की अलग पार्टी बनाता हुँ. और आप ”आप”’ को चलाओ. अब केजरीवाल का मतलब रह गया है ६७ विधायक और मुख्य मंत्री पद।

  2. आज राष्ट्रीय कायकारिणी में जो कुछ भी हुआ वह सब अपेक्षित ही था , क्योंकि केजरीवाल की रीति नीति दोनों ही अहंकार युक्त तानाशाही से भरी हुई हैं केजरीवाल यादव व भूषण दोनों को ही खुद के लिए खतरा समझ रहे हैं उन्हें विरोध बर्दाश्त नहीं है अन्ना आंदोलन में भी जब अनुयायियों की संख्या बढ़ गयी थी व आगे आने की होड़ मच गयी थी तब ही केजरीवाल ने अपने अस्तित्व को खतरा भांप कर उसे राजनीतिक दाल के रूप में बदलने का सोच लिया था , वैसे भी केजरीवाल” धोया, निचोड़ा पोंछा और फेंका” के सिद्धांत में यकीन रखते हैं अन्ना, बेदी,जस्टिस हेगड़े व अन्य लोगों के साथ उन्होंने ऐसा ही किया अब यादव, भूषण, अजीत झा व आनंद प्रधान को किनारे लगा दिया है व और कुछ लोगों को तैयार हो जाना चाहिए यह इस बात की भी चेतावनी है कि भविष्य में यद्दी कोई ऐसी मांग व हरकत करेगा तो उसका क्या अंजाम होगा , इस लिए अभी तो बहुत कुछ होना बाकी है ,आप की सरकार को कोई खतरा नहीं है व न ही होगा पर सरफुटौवल चलती रहेगी जो उसके दुर्दिनों की और ले जाती रहेगी

Leave a Reply to sureshchandra.karmarkar Cancel reply

Please enter your comment!
Please enter your name here