आर्थिकी

देश पर आर्थिक संकट…. कैसे निकलें?

rupeeदेश की कठिन आर्थिक स्थिति  और लगातार कमज़ोर होता रुपया भारत वासियों के लियें चिन्ता का बहुत बड़ा कारण है। मौजूदा सरकार के भ्रष्टचार और घोटालों की वजह से उसकी साख पूरी तरह गिर चुकी है, अगामी चुनाव तक उसपर भरोसा करना हमारी मजबूरी है।विदेशों से काला धन वापिस आजाये तो यह समस्या  सुलझ सकती है, पर इस सरकार मे ऐसा करने की इच्छा शक्ति का पूरा अभाव है। आनेवाली  सरकार कितनी कारगर साबित होती हैं यह अभी कहा नहीं जा सकता। नई सरकार के आने मे अभी समय है , तब तक भारत के आम नागरिक हाथ पर हाथ रखकर अच्छे समय का इन्तज़ार तो नहीं कर सकते, हमारे वश मे जो है वह हमे करना चाहिये और हम करेंगें।

भारत का आम नागरिक होने के नाते हम कुछ ऐसे क़दम उठा सकते है जिससे रुपया कुछ ऊपर उठ सके, इसके लियें आवश्यक है कि आयात मे कमी की जाय और निर्यात को बढ़ावा दिया जाये।

हमारे देश मे इलैक्ट्रौनिक उपकरण लगभग सभी आयात किये जाते हैं, जो यहाँ बनते भी हैं उनके पुर्ज़े आयात होते हैं। अतः इन्हे ख़रीदना जितना टाल सकते हैं उसे टालना चाहिये। किसी नये माडल से आकर्षित होकर अपना लैपटौप या मोबाइल अभी मत बदलिये।यदि ख़राब भी होजाये तो ठीक करवा के काम चला लीजिये। इलैक्ट्रौनिक सामन के आयात को कम करने का यही तरीका है कि उसकी मांग को नियंत्रण मे रखने की कोशिश करें।

मैन्यूफैक्चरिंग सैक्टर को भारत मे इलैक्ट्रौनिक सामान विश्वस्तरीय गुणवत्ता का कम दाम मे बनाने के लियें प्रयत्नशील रहना पड़ेगा।जनता ने यदि किसी एक पार्टी को बहुमत नहीं दिया तो वो अपनी कुर्सी बचाने मे लगी रहेगी और विकास से ध्यान हटेगा इसलियें जाति धर्म से उठकर पार्टियों द्वारा दिये प्रलोभनो से बचकर वोट देना होगा। अच्छी स्थिर सरकार आने से ही इस सैक्टर मे उन्नति होगी। उत्पादन बढ़ेगा तो धरेलू उपभोक्ता को भी लाभ होगा और निर्यात भी बढ़ेगा।

पैट्रोल के प्रयोग को भी कम करने की ज़रूरत है, आसपास के लियें कार न निकालें पैदल चलें।दूसरे शहरों की यात्रा पर कार से न जायें ट्रेन से सफ़र करें।आवश्यक न हो तो सफर करें ही नहीं, फोन, वीडियो कांन्फैंसिंग से काम चलालें। विदेश जाने का कार्यक्रम जब तक हो सके टाल दें। शिक्षा के लियें भी जब तक बिलकुल ज़रूरी नहो बच्चों को विदेश न भेजे।ऐसा करने से काफ़ी विदेशी मुद्रा बचाई जा सकती है।सरकार और कांग्रेस पार्टी ही ग़लत उदाहरण सामने रख रही है भारत मे सब तरह के इलाज की सुविधा होते हुए भी सोनियां गांधी का इलाज अमरीका मे हो रहा है जबकि आर्थिक संकट देश पर छाया है। उन्हे शीघ्र स्वास्थ्य लाभ हो पर इस समय विदेश मे इलाज के लियें जाना उनकी और उनकी पार्टी की देश के प्रति असंवेदनशीलता को दर्शाता है।

अपने रोज़ाना काम आने वाले सामान शैम्पू साबुन, डिटर्जैंट भारतीय कंपनियों के ही ख़रीदने चाहियें, बहुराष्ट्रीय कंपनियों का सामान कम से कम खरीदना चाहिये खाने पीने का सामान कौर्नफ्लैक्स, चौकलेट, कोल्डड्रिक और चिप्स भी  देशी कंपनी के लेना सही है। चीन मे बनी सस्ती चीज़ों का मोह भी छोड़ना होगा जिससे विदेशी मुद्रा की बचत हो।

सोने के गहने या निवेश के लियें सोना ख़रीदने के लियें यह समय सही नहीं है।भारत मे सोने का आयात कम करना ज़रूरी है।परिवार मे होने वाले शादी ब्याह मे भी मातायें बहू बेटियों को अपने गहने देकर काम चला सकें तो अच्छा होगा। स्वर्णकार भी यदि घरेलू खपत की बजाय निर्यात के लियें मांग के अनुसार 14 से 18 कैरेट सोने के गहने बनाये तो बहतर होगा।गहनों के डिज़ाइन भी निर्यात की मांग के अनुसार बनाने होंगे। गहनो के निर्यात से काफी विदेशी मुद्रा कमाई जा सकती है।

यद्यपि आम जनता इस दिशा मे कुछ नहीं कर सकती पर सरकार को विदेशों मे जमा काला धन देश मे वापिस लाने का प्रयत्न करना चाहिये। देश के कई मंदिर हैं जहां के कोषों मे अपार सोना भरा पड़ा है। सोना संकट के समय काम न आये तो किस काम का  ! वैसे  भी भगवान को तो सोने से मोह नहीं है, ये तो इंसान की फितरत है ।कुछ लोग काले धन से ख़रीदा गया सोना मन्दिरों मे चढ़ा कर अपना अपराध बोध कम करते हैं , है तो ये भी काला धन ही!   बस डर ये है कि ऐसा करने की कोशिश मे देश के काम न आकर ये सोना देश के नेताओ के पास न चला जाये।

चित्रकार और अन्य कलाकार विदेशियों की रुचि के अनुसार अपनी कला को रूप देकर निर्यात मे सहयोग दे सकते हैं।भारत का होज़री ,जूते, चप्पल,तैयार कपडों, मसालों,  नकली आभूषणों का  भी विदेशों में बाज़ार है माल की गुणवत्ता से समझौता किये बिना इनका निर्यात बढ़ाना चाहिये।

जैसे संकट की घड़ी मे एक परिवार आपसी मनमुटाव भूलकर एक हो जाता है उसी तरह से हमे एक दूसरे की ग़लतियों को नज़र अंदाज़ करके अपने देश को संकट से उबारना है। किसी भी राजनैतिक पार्टी के पास कोई जादू की छड़ी नहीं है जो जनता के सहयोग के बिना देश को इस आर्थिक संकट से निकाल सके।