आज कल तो जैसे हर सू है त्यौहार का मौसम
वादों और उम्मीदों का इक खुशगवार सा मौसम
रौशन तकरीरो की जवां अंगड़ाइयां
सियासी तब्बसुम की ये अठ्ठखेलियां
आबे गौहर सी सियासती शोखियां
बाग़े उम्मीद की गुलनारी मस्तियां
सियासी महक से सरोबार हर कोना
न कही मातम न किसी बात का रोना
लगता ही नहीं कि कोई परेशां है आजकल
सबने ओढ़ रखे हैं जैसे वादों के मख़मल
इनके बोलों में सोचो उनके सपनों को जियो
क्या खूब गुज़र रहे हैं दिन मगर कब तक
एक दिन तो हकीकत का सामना होगा
उस दिन जनाब क़यामत का सामना होगा
अभी तो हर सिम्त छायी बहार को और पुरबहार करें हम
फिर कल की सोच में क्यूं दिल अहमक़ सोगवार करें हम