प्रवीण दुबे
मुजफ्फरनगर से 30 किलोमीटर दूर बस्सी कला गांव इस कारण से देशभर के मीडिया में छाया हुआ है क्योंकि यहां उत्तरप्रदेश सरकार ने हिंसा से प्रभावित मुस्लिमों के लिए शरणार्थी शिविर स्थापित किया है। देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया और उनके पुत्र राहुल गांधी ने सोमवार को इन शिविरों का दौरा किया। यहां मुस्लिमों से मनमोहन सिंह ने कहा कि दंगा भड़काने वालों पर कड़ी कार्रवाई और पीडि़तों को वापस उनके घर पहुंचाना यह हमारी प्राथमिकता होगी। इस सारे घटनाक्रम का अगर विश्लेषण किया जाए तो मनमोहन, सोनिया और राहुल का गिरगिटी चरित्र एक बार पुन: देश के सामने आ गया है। मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी जब बस्सी कला गांव का दौरा कर रहे थे और उनके सामने मुसलमानों द्वारा जिस प्रकार का विधवा विलाप किया जा रहा था उसे देखकर ऐसा लगा जैसे इस देश में सबसे ज्यादा यदि कोई प्रताडि़त है तो वह है मुस्लिम समाज। यहां मुसलमानों द्वारा आंसू बहा-बहाकर यह संदेश देने की कोशिश की गई कि जैसे मुजफ्फरनगर में हुए दंगों के पीछे केवल बहुसंख्यक समाज ही दोषी है। देश के सर्वोच्च पद पर आसीन मनमोहन सिंह और सत्ताधारी कांग्रेस की अध्यक्षा सोनिया गांधी ने इस दौरान जिस प्रकार के बयान दिए अथवा हाव-भाव का प्रस्तुतिकरण किया वह भारत जैसे देश के लिए बेहद चिंता भरा कहा जा सकता है। यह दृश्य इस दृष्टि से बेहद शर्मनाक भी था क्यों कि इन दंगों में बहुसंख्यक समाज भी प्रभावित हुआ और उसको भी जान-माल की व्यापक हानि हुई।
इस मौके पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह यह कैसे भूल गए कि वे देश के प्रधानमंत्री हैं, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी यह कैसे भूल गई कि केन्द्र में सत्तासीन संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार की सबसे बड़ी सहयोगी कांग्रेस की वह अध्यक्षा हैं, राहुल गांधी कैसे भूल गए कि आगामी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की तरफ से प्रधानमंत्री पद की दौड़ में वे सशक्त नाम हैं। क्या प्रधानमंत्री का यही चरित्र अथवा राजधर्म होता है कि वह देश की जनता को समान रूप से न देखते हुए राजनीतिक चश्मे से उनका सुख-दुख देखें, क्या सत्ताधारी यूपीए के सबसे बड़े घटक दल की अध्यक्षा होने के नाते सोनिया गांधी को दंगों के पीछे का सच जानकर व्यवहार नहीं करना चाहिए था, प्रधानमंत्री बनने की लालसा संजोए बैठे राहुल गांधी को क्या दूरदृष्टि नहीं दिखाना चाहिए थी? मुजफ्फरनगर में जो कुछ हुआ वह अचानक घटा घटनाक्रम नहीं था। लगातार एक पखवाड़े तक मुजफ्फरनगर में चिंगारियां उठती रहीं आखिर क्यों आग भड़कने का इंतजार किया जाता रहा? केन्द्र का गृहमंत्रालय सांप्रदायिक दंगों के लिए राज्य सरकारों को आगाह करने की बात कहता है। क्या सोनिया, राहुल या मनमोहन ने कभी देश के गृहमंत्री से यह पूछा कि केवल अलर्ट जारी करना ही गृहमंत्रालय का काम है? आखिर क्यों दंगे भड़कने का इंतजार किया जाता रहा। दूसरा सबसे बड़ा सवाल है कि कहां थी उत्तरप्रदेश की अखिलेश सरकार? 27 अगस्त की घटना के बाद लगातार दस दिनों तक वह हाथ पर हाथ धरे क्यों बैठी रही? क्यों मुस्लिम सांसद के भड़काऊ भाषण के खिलाफ कोई कड़ा कदम नहीं उठाया गया? सिर्फ इसी कारण से कि दंगे भड़कें और फिर दंगों की आग पर राजनीतिक रोटियां सेंकी जा सकें। जैसा कि मनमोहन, सोनिया, राहुल और स्वयं उत्तरप्रदेश की अखिलेश सरकार कर रही है। जब से उत्तरप्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार बनी है वहां मुस्लिम तुष्टीकरण का खुलेआम प्रदर्शन हो रहा है, इसी का परिणाम है कि उत्तरप्रदेश में मुस्लिम आक्रामकता सारी सीमाएं लांघ गई है। उत्तरप्रदेश में लव जेहाद का भूत मुस्लिम युवकों के सिर चढ़कर बोल रहा है। हिन्दू लड़कियों से छेड़छाड़, उन्हें परेशान करना, अपहरण की कोशिशें लगातार बढ़ती जा रही हैं। मेरठ, अलीगढ़ में दर्जनों ऐसी घटनाएं सामने आई हैं। मुजफ्फरनगर में भड़का दंगा भी इसी तरह की घटना के परिणाम स्वरूप सामने आया है। मुजफ्फरनगर की जानशट तहसील के कवाल ग्राम में मुस्लिम लड़कों द्वारा हिन्दू लड़कियों के साथ दिनदहाड़े छेड़-छाड़ के चलते जो झगड़ा बढ़ा उसने दंगे का रूप लिया। मुजफ्फरनगर में आंसू बहाने पहुंचे मनमोहन सिंह ने कभी इस बात का पता लगाने की कोशिश नहीं की कि आखिर लव जेहाद क्या है? केरल से लेकर कश्मीर तक और आसाम से लेकर उड़ीसा तक मुस्लिम कट्टरवादी हिन्दू लड़कियों को फंसाने के लिए लव जेहाद षड्यंत्र चला रहे हैं और हिन्दू यदि अपनी बेटियों को सुरक्षित रखने का प्रयास करता है तो मुजफ्फरनगर जैसे हालात पैदा किए जाते हैं। शर्म आना चाहिए मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी को, वोटों की राजनीति के चलते मुस्लिम तुष्टीकरण में इस देश के बहुसंख्यक हिन्दू समाज के साथ धोखा कर रहे हैं। कैसी विडंबना है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को मुजफ्फरनगर के मुस्लिम शरणार्थी शिविर का दर्द ही दिखाई देता है, उन्हें यहां के पीडि़तों को सम्मानपूर्वक उनके घर पहुंचाने की चिंता है उन्हेे इस बात की भी चिंता है कि मुजफ्फरनगर में हिन्दू नेताओं के खिलाफ कड़ी कार्रवाई नहीं हुई। बड़े अफसोस के साथ यह कहना पड़ रहा है कि देश के प्रधानमंत्री रहते मनमोहन सिंह ने कभी भी उन कश्मीरी पंडि़तों के शरणार्थी शिविरों में जाने की सहृदयता नहीं दिखाई जो कश्मीरी मुसलमानों की जेहादी और खूनी मानसिकता का शिकार होकर देशभर में जीवन काट रहे हैं। प्रधानमंत्री ने ऐसे मुस्लिम कट्टरपंथियों के खिलाफ कार्रवाई के न तो कभी निर्देश दिए और न कभी शरणार्थी जीवन जी रहे कश्मीरी पंडितों को वापस उनके घर भेजने की बात कही हद हो गई तुष्टीकरण की।
कश्मीरी हिन्दू शरणार्थी तो दूर की बात है इन मुस्लिम वोट के भूखे कुत्तों को मुजफ्फरनगर में ही मुस्लिम हमलों के शिकार हुए हिन्दुओं का हाल जानने की फुर्सत नहीं थी.केवल सड़क पर चल रहे कुछ हिन्दुओं से उनका हाल पूछकर ये प्रचार कर दिया की हिन्दुओं से भी मुलाकात की गयी.किसी हिन्दू परिवार से या अपने घरों को छोड़ गए हिन्दुओं से मिलकर उनका दुखदर्द बांटने या लविंग जिहाद पर अंकुश लगाने का कोई बयां तक नहीं दिया गया.अब ये तो हिन्दू मतदाता चुनाव में बताएँगे की वो किस प्रकार इस बेरुखी का जवाब देंगे.
आपका आक्रोष हमारा आक्रोष है।