फेसबुक और विचार

जगदीश्‍वर चतुर्वेदी

फेसबुक लेखन को कचड़ा लेखन मानने वालों की संख्या काफी है। ऐसे भी सुधीजन हैं जो यह मानते हैं कि केजुअल लेखन के लिए फेसबुक ठीक है गंभीर विचारों के प्रचार-प्रसार के लिए यह माध्यम उपयुक्त नहीं है। यह धारणा बुनियादी तौर पर गलत है। फेसबुक पर आप चाहें तो विचारों का गंभीरता के साथ प्रचार-प्रसार भी कर देते हैं।

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फेसबुक पर व्यक्त विचारों का वैसे ही असर होता है जैसा असर किसी के भाषण को सुनते हुए होता है। एक ही शर्त है विचार खुले मन और बिना शर्त के साथ व्यक्त हों। पढ़ने वाला माने तो ठीक न माने तो ठीक। फेसबुक विचारों की कबड्डी का मैदान है।

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फेसबुक में विचार महान होता है बोलने वाला नहीं। यहां पर आप अपने विचारों को अनौपचारिक तौर पर वैसे ही पेश करें जैसे चाची अपने विचार पेश करती है। बातों बातों में विचारों की प्रस्तुति ही फेसबुक की विचार-कला की धुरी है।

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फेसबुक में विचार रखें और चलते बनें,विचारों के शास्त्रार्थ की यह जगह नहीं है। यह कम्युनिकेशन का मंच है और विचार को भी कम्युनिकेशन के ही रूप में आना चाहिए।फलतः विचार को विचारधारा के बंधनों से यहां मुक्ति मिल जाती है। विचार यहां कम्युनिकेशन है ,विचारधारा नहीं। कम्युनिकेशन सबका होता है ,जबकि विचारधारा वर्ग विशेष की होती है।

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फेसबुक पर अनेक विचारवान लोग हैं जो अपने सुंदर विचारों को व्यक्त इसलिए नहीं करते क्योंकि उनके विचारों को कोई चुरा लेगा।

विचारों की चोरी अच्छी बात है इसका ज्यादा से ज्यादा विकास होना चाहिए। यह विचारों का लोकतांत्रिकीकरण है। फेसबुक ने इस अर्थ में ज्ञान और विचार के लोकतांत्रिकीकरण को डिजिटल आयाम दिया है।यहां व्यक्त विचार कभी नहीं मरते।

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मनुष्य का दिमाग बना है विचारों के प्रचार-प्रसार के लिए, वह विचारों को कैदगाह करने के लिए नहीं बना। फेसबुक ने रीयल टाइम कम्युनिकेशन की संभावनाओं को साकार करके विचारों के पंखों को साकार किया है। संसार में विचारों से सस्ती कोई चीज नहीं है।

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विचार तो जीवन का मूल्यवान उपहार है। आप किसी व्यक्ति को कोई अच्छा विचार सम्प्रेषित करते हैं तो मूल्यवान गहना देते हैं। विचारों को पढ़ना और सुनना चाहिए। इससे मानवीयबोध समृद्ध होता है। फेसबुक की थुक्का-फजीहत और शैतानियों से निजात दिलाने में अच्छे विचार बड़ी मदद कर सकते हैं।

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फेसबुक की खूबी है कि इसमें आप इमेजों का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। इमेजों के साथ विचारों को भी बदलना चाहिए। हमारे अनेक फेसबुक मित्र हैं उनको उन्मुक्त भावों की इमेज या फोटो तो अपील करती है लेकिन उन्मुक्त उदार विचार अपील नहीं करते। मसलन् दुर्गा की इमेज तो अपील करती लेकिन दुर्गा के विचार अपील नहीं करते। इमेज बदलने के साथ विचारों में बदलाव आता है।

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फेसबुक पर सामान्य और विशिष्ट, शिक्षित और विद्वान सभी किस्म के लोग हैं जो लिख रहे हैं। बड़े दिमाग के बड़े आइडिया को सही परिप्रेक्ष्य में देखने में फेसबुक कम मदद करता है। बड़े आइडिया को कम बुद्धि के लोग जब देखते हैं तो उलझन में पड़ जाते हैं और अंटशंट लिखने लगते हैं। वे अपनी कम बुद्धि से बड़े विचारों को प्रदूषित करने की असफल चेष्टा करते हैं।

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फेसबुक पर ऐसे भी मित्र हैं जो किसी भी विचार को पसंद नहीं करते और बकबास करने में सिद्धहस्त हैं। इस तरह के लोग अमूमन व्यक्तिगत हमले करते हैं। फेसबुक पर की गई बकबास अंततः बकबास है वह विचार नहीं है।

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फेसबुक पर ऐसे भी लोग है जिनके कोई विचार नहीं हैं लेकिन वे किसी न किसी विचार की छाया में रहते हैं। विचार की छाया में रहना ,विचारों में रहना नहीं है। ये वे लोग हैं जो विचार को ग्रहण नहीं कर पाए हैं,समझ ही नहीं पाए हैं। यानी वे विचार को मानते हैं,जानते नहीं।

2 COMMENTS

  1. आपने आदर्श स्थिति दिखा कर अपना विषय प्रस्तुत किया है, जबकि सच्चाई इसके सर्वथा विपरीत है

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