फेसबुक ने की निजी डाटा में सेंधमारी

प्रमोद भार्गव

करीब 5 करोड़ फेसबुक उपयोगकर्ताओं का डेटा चुराकर अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में दुरुपयोग के खुलासे के बाद अमेरिकी राजनीति में उठा भूचाल भारत भी आ धमका है। केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने इस चोरी को गंभीरता से लेते हुए फेसबुक को चेतावनी दी है कि यदि गलत तरीके से भारतीय निर्वाचन प्रक्रिया को प्रभावित करने की कोशिश की गई तो फेसबुक के मुखिया मार्क जुकरबर्ग को भारत तलब किया जाएगा। भारत में फेसबुक के 20 करोड़ यूजर्स हैं। गोया, सोशल मीडिया पर मौजूद इस बड़े डाटा का चुनाव अभियान में इस्तेमाल भारतीय लोकतंत्र के लिए नया खतरा साबित हो सकता है। आज फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम जैसे कई बेव ठिकाने हैं, जिनके पास करोड़ों लोगों की व्यक्तिगत जानकारी है। हालांकि ये साइट्स गोपनीयता का भरोसा देती है, लेकिन फेसबुक पर डाटा चुराकर उसका प्रयोग चुनाव प्रचार में करने का जो पर्दाफाश हुआ है, उसने इस भरोसे को तोड़ने का काम किया है।

यह खुलासा ब्रिटिश चैनल-4 के स्टिंग के माध्यम से हुआ है। चैनल ने कैंब्रिज एनालिटिका के आधिकारियों का स्टिंग कर उनसे काबूलवाया है कि डाटा की बड़े पैमाने पर चोरी की गई है। यह कंपनी दुनिया भर के राजनीतिक दलों के लिए चुनाव के दौरान सोशल मीडिया कैंपेन चलाती है। अपने उम्मीदवार को जिताने के लिए यह फर्म हनी ट्रैप, फेक न्यूज जैसे गलत हथकंडे भी अपनाती है। 2016 में अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव और यूनाइटेड किंगडम में हुए ब्रेक्जिट के समर्थन में भी इन हथकंडों का इस्तेमाल किया गया। डोनाल्ड ट्रंप के चुनाव अभियान में फेसबुक पर पर्दे के पीछे से रूस के इशारे पर काम करने का गंभीर आरोप भी लगा है। ये खुलासे न्यूयाॅर्क टाइम्स और लंदन आॅब्जर्वर ने भी किए हैं। फेसबुक ने अपने करोड़ों यूजर्स के डाटा से उनकी व्यक्तिगत जानकारी और रूचि के आधार पर अमेरिकी चुनाव में व्यापक स्तर पर हस्तक्षेप किया। इससे मतदाता ने प्रभावित होकर ट्रंप के पक्ष में मतदान किया। इस खुलासे के बाद स्वयं फेसबुक ने 1 लाख 70 हजार अमेरिकियों के डाटा लीक करने की बात मान ली है। हालांकि वास्तव में यह संख्या 10 करोड़ के करीब है। ट्रंप की जीत में फेसबुक समेत अन्य सोशल साइट्स की अहम् भूमिका मानी गई है। इस कंपनी ने अमेरिका एवं ब्रिटेन के अलावा नाइजीरिया, केन्या, ब्राजील और भारत में भी चुनावी अभियान चलाकर यूजर्स की निजता का दुरुपयोग करते हुए जनमत को प्रभावित किया है। कैम्ब्रिज एनालिटिका ने अपनी बेव प्रोफाइल में दावा किया है कि 2010 में उसने भारत के बिहार में और 2017 में गुजरात तथा पंजाब के विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस की मदद की। भारत में कैम्ब्रिज एनालिटिका का नाम एससीएल इंडिया से जुड़ा है। इसके बेव ठिकाने के मुताबिक यह लंदन के एससीएल समूह और ओवलेनो बिजनेस इंटेतिजेंस का साझा उपक्रम है। यदि वाकई फेसबुक ने किसी दूसरे देश की चुनाव प्रक्रिया में हस्तक्षेप कर जनमत को प्रभावित करने की शक्ति हासिल कर ली है तो यह राजनैतिक दलों के लिए गंभीर चिंता का विशय है। क्योंकि भारतीय चुनाव के संदर्भ में जो जानकारी सामने आई है, उससे पता चलता है कि 2010 के बिहार विधानसभा चुनाव में इसे जिन सीटों को प्रभावित कर अनुकूल परिणाम लाने का लक्ष्य दिया गया था, उसमें यह 90 फीसदी सफल रही। मसलन जिन उम्मीदवारों को जिताने की जिम्मेबारी सौंपी गई थी, उसमें से 90 प्रतिशत उम्मीदवारों ने जीत हासिल की। इन्हीं परिणामों के बूते अब यह कंपनी भारत में होने वाले 2019 के आमचुनावों के लिए राजनीतिक दलों से संपर्क में हैं। लिहाजा इस पर लगाम लगाने की जरूरत है।

भारत की उदारता का फेसबुक कितना लाभ उठा रहा है,इसका पता इस बात से चलता है कि यूरोपीय महासंघ की सर्वोच्च अदालत ने फेसबुक और गूगल द्वारा यूरोप से अमेरिका को डेटा हस्तांतरित करने पर रोक लगाई हुई है। किंतु हमारे यहां जुकरबर्ग द्वारा सरकारी दस्तावेजों समेत फेसबूक के 20 करोड़ से भी ज्यादा प्रयोगकर्ताओं की सभी सूचनाएं, मसलन चित्र, वीडियो, अभिलेख, साहित्य जो भी बौद्धिक संपदा के रूप में उपलब्ध हैं,उन्हें किसी को भी हासिल कराने का अधिकार प्राप्त कर लिया है। इन जानकारियों को कंपनियों को बेचकर फेसबुक खरबों की कमाई कर रहा है। इन्हीं सूचनाओं को आधार बनाकर बहुराश्ट्रीय कंपनियां भारतीय बाजार को अपनी मुट्ठी में ले रही हैं। इसके अलावा हरेक खाते से फेसबुक को औसतन सालाना 10,000 रुपए की आमदनी होती है। फेसबुक के 20 करोड़ और वाट्सएप के 15 करोड़ से भी ज्यादा भाारतीय ग्राहक हैं। किंतु फेसबुक भारत में आयकर  और सेवाकर से मुक्त है। फिलहाल तो फेसबुक के पास भारत के आयकर विभाग का पेन नबंर भी नहीं है।

दरअसल गोरांग महाप्रभुओं के सामने दंडवत होना हमारी पुरानी फितरत है। वह काला अथवा वर्णसंकर हो तो भी हम सरलता से सम्मोहित हो जाते हैं। इस नजरिए से एक नए अवतार के रूप में जुकरबर्ग 2 साल पहले भारत में नेट की आजादी छीनने के लिए आए थे। उन्होंने बकायदा 300 करोड़ के विज्ञापन देकर मीडिया को अपने हित में साधने की कोशिश भी की थी। उनकी इस मुहिम में एयरटेल और रिलाइंस जैसी भारतीय कंपनियां भी शामिल थीं। इस विश्वबंधु की दृष्टि हमारी सवा सौ करोड़ आबादी को फ्री बेसिक्स के माध्यम से इंटरनेट सेवाएं देने से जुड़ी थी। इसके जरिए जुकरबर्ग भारत के इंटरनेट और ई-बाजार पर कब्जा करना चाहते थे। इस नाते उनका इंटरनेट डाॅट ओआरजी प्रोजेक्ट फिलहाल भारतीय दूरसंचार विनियामक आयोग के पास लंबित था। जिसे दो टूक फैसला सुनाकर ट्राई ने नकार दिया था। जुकरबर्ग ने चालाकी बरतते हुए ट्राई को अपने पक्ष में ग्राहकों द्वारा वोट के जरिए प्रभावित करने की कोशिश भी की थी। ट्राई के पास फ्री बेसिक्स के पक्ष में ज्यादा वोट आए थे,जबकि नेट न्युट्रेलिटी के पक्ष में कम वोट थे। किंतु ट्राई ने फैसला वोट के सिद्धांत की बजाय जनता के व्यापक हितों को ध्यान में रखते हुए किया,जो देशहित में रहा। फेसबुक की चुनाव संबंधी इस नई चालाकी के सामने आने के बाद ट्राई का फैसला दूरदृष्टि रखने वाला साबित हो गया। यदि फ्री बेसिक्स को अनुमति मिल जाती तो यह बीएसएनएल समेत अन्य स्वदेषी आईटी उद्योग,स्टार्टअप और डिजीटल इंडिया का भविश्य खतरे में पड़ सकता था। बड़ी तादात में शिक्षित बेरोजगारों को रोजगार के संकट का सामना करना पड़ सकता था। क्योंकि जुकरबर्ग ने अंतिरक्ष उपग्रह के मार्फत भारत में अंतर्जाल संचालन की रूपरेखा का खुलासा करते हुए साफ किया था कि फेसबुक को भारत सरकार और भारतीय दूरसंचार कंपनियों का मोहताज नहीं रहना होगा ? मसलन संचालन के सर्वर भारत में स्थापित नहीं होंगे। ये अमेरिका और अन्य योरोपीय देशों में लगाए जाएंगे। यदि ये सर्वर भारत में लगाए जाते तो एक सर्वर पर करीब 1000 युवाओं की जरूरत पड़ती।

दरअसल फेसबुक के पास ‘कुकीज‘ नामक ऐसी फाइलें होती हैं,जो इंटरनेट यूजरों पर निगाह रखती हैं कि एक यूजर किस वेबसाइट पर गया और उसने क्या सूचना दर्ज कराई और किस अन्य वेबसाइट को साझा की। ये फाइलें यह भी नजर रखती हैं कि किस पेज पर कितना समय यूजर ने किसके साथ बिताया। मसलन फेसबुक व्यक्तिगत व सामूहिक जासूसी का बड़ा माध्यम है। निगरानी की इसी वजह से बेल्जियम की एक अदालत ने फेसबुक पर 2.50 लाख यूरो का जुर्माना लगाया था। साथ ही फेसबुक को बाध्य किया था कि लोगों की सूचनाएं एकत्र करने के लिए फेसबुक को उपयोगकर्ता से अनुमति लेनी होगी। हमारे केंद्रीय कानून व सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने इस गोरे महाप्रभु को फटकार लगाते हुए यह चेतावनी उचित ही दी है कि यदि जुकरबर्ग ने भारतीय चुनाव प्रक्रिया को प्रभावित करने की कोशिश की तो उसपर सख्त कार्यवाही होगी। वैसे भी भारत में किसी भी दल की सरकार रही हो वह संविधान की गरिमा का पालन करते हुए, समाचार माध्यमों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और देश के प्रत्येक नागरिक को बोलने की आजादी देती है। सोशल मीडिया मसलन बेवसाइटों पर भी विचारों के आदान-प्रदान की छूट है। लेकिन यदि कोई सोशल साइट भारतीय लोकतंत्र की रीढ़ चुनाव प्रक्रिया को ही अपने अनुसार ढालने के शड्यंत्र में लग जाए तो यह घोर आपात्तिजनक हरकत है। लोकतंत्र की सुरक्षा के लिए फेसबुक जैसी साइट को प्रतिबंधित भी कर दिया जाए तो किसी को कोई ऐतराज नहीं होना चाहिए।

 

प्रमोद भार्गव

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