भाजपा नहीं समझ पाई कर्नाटक के यक्ष प्रश्न

डा० कुलदीप चंद अग्निहोत्री

कर्नाटक विधान सभा के नतीजे , लगभग उसी तर्ज पर आये , जिसका डर मतदान के बाद व्यक्त किया जा रहा था । कांग्रेस राज्य में सरकार बना लेगी , ऐसी संभावना व्यक्त की जा रही थी । लेकिन उसे सरकार बनाने के लिये किसी की सहायता की ज़रुरत पड़ेगी , ज़्यादातर विश्लेषक यही मान कर चल रहे थे । देवगौडा के बेटे कुमारस्वामी और कर्नाटक जनता पार्टी के निर्माता निर्देशक येदियुरप्पा भी इसी ज़रुरत को मद्देनज़र रखते हुये अपनी भविष्य की रणनीति बना रहे थे । प्यासा कुएँ के पास आयेगा , यह सोच कर कुमारस्वामी और येदियुरप्पा अपने अपने कुँए में ज़्यादा से ज़्यादा पानी भर लेने के प्रयास में जुटे हुये थे । लेकिन कर्नाटक की जनता ने कांग्रेस को प्यासा नहीं रहने दिया । उसने उनके घड़े में ही इतना पानी भर दिया कि उसे इस कड़कती धूप में इन दो कुओं के पास जाने की ज़रुरत से मुक्त कर दिया । बैसे भी जनता ने जनता दल सैक्युलर के कुमारस्वामी के कुएँ में तो फिर भी इतना पानी भर दिया कि फ़िलहाल उनके परिवार और नज़दीक़ के मित्रों की कुछ वर्षों तक प्यास बुझती रहेगी , लेकिन उसने येदियुरप्पा के कुएँ में ज़्यादा पानी नहीं भरा । उथला कुआँ गर्मी में जल्दी सूख जाता है । हाँ , यदि येदियुरप्पा अपना सारा ज़ोर इस की रक्षा में ही लगा दें तो यह थोड़े पानी के बाबजूद देर तक चल सकता है ।

लेकिन असली प्रश्न भारतीय जनता पार्टी का है । कर्नाटक के लोगों ने इस बार शर्त लगा दी थी कि भाजपा को सत्ता के तालाब से पानी पीने से पहले उसके कुछ प्रश्नों का सही सही उत्तर देना पड़ेगा । भाजपा के लोगों के हार के बाद जो बयान आ रहे हैं , उससे लगता है कि भाजपा को अभी भी यह विश्वास है कि उसने जनता के यक्ष प्रश्नों का उत्तर सही सही दे दिया था । भाजपा का कहना है कि येदियुरप्पा भ्रष्टाचारी थे , जैसे ही उनके इस आचारण का पार्टी को पता चला , वैसे ही तुरन्त कार्यवाही करते हुये , पार्टी ने उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया । अब जब जनता को उसके प्रश्न का सही उत्तर मिल गया था , तब भी जनता ने पार्टी को क्यों हराया ? भाजपा इस पर हैरानी ज़ाहिर कर रही है । यह एक ऐसा चौराहा है जिसे पार किये बिना भाजपा की हार के कारण तक नहीं पहुँचा जा सकता ।

असली मामला इसके बाद ही शुरु होता है । क्या भाजपा सचमुच कर्नाटक की जनता के यक्ष प्रश्न को समझ पाई थी ? या ध्यान से उसने प्रश्न को सुना भी था ? कर्नाटक में कन्नड़ बोली जाती है । वहाँ की जनता अपने यक्ष प्रश्न कन्नड़ भाषा में पूछ रही हो और दिल्ली वाले अंग्रेज़ी भाषा में पकड़ होने के कारण उसको समझ ही न पाये हों ? जनता ने प्रश्न कोई और पूछा और भाजपा ने उत्तर किसी और प्रश्न का दे दिया । येदियुरप्पा भ्रष्टाचारी हैं , यह प्रश्न तो शायद संतोष हेगड़े ने पूछा था ।यह भी कहा जाता है कि संतोष हेगड़े के प्रश्नों के पीछे भी उनके पिता रामकृष्ण हेगड़े के वक़्त की राजनीति रही है ।  कर्नाटक की जनता का शायद  संतोष हेगडे के इस प्रश्न से कुछ लेना देना था ही नहीं । भाजपा ने संतोष हेगड़े के प्रश्न को ही कर्नाटक की जनता का प्रश्न समझ लिया और हर गली कूचे से उसका उत्तर देना शुरु कर दिया । इसी उत्तर देने में येदियुरप्पा का बलिदान हुआ । कर्नाटक की जनता ने तो अपने यक्ष प्रश्न तब पूछने शुरु किये जब चौराहे पर येदियुरप्पा का बलिदान दिया जा रहा था । जनता सवाल पूछ रही थी कि येदियुरप्पा का बलिदान क्यों किया जा रहा है और बलिदान देने वाले संतोष हेगड़े की सीडी सुना रहे थे । सवाल चना जवाब गन्दम । जब सवाल चना हो और जबाव गन्दम का दिया जा रहा हो तो परिणाम वही आता है जो बेंगलुरु से आया है ।

कर्नाटक के पूरे चुनाव में कांग्रेस कहीं नहीं थी । केवल भाजपा थी या येदियुरप्पा थे । कर्नाटक के लोगों ने बस भाजपा को हराया है । उन्होंने कांग्रेस को जिताया नहीं है । कांग्रेस को जिताने का दोष कर्नाटक की जनता पर नहीं मढ़ा जा सकता । जब भाजपा को हारना था तो स्वभाविक ही किसी न किसी की जीत की लाटरी लगनी ही थी । कर्नाटक में यह लाटरी कांग्रेस की लग सकती थी । इस लिये कर्नाटक में जीतने का दोष कांग्रेस को नहीं दिया जा सकता । अब कुछ विद्वानों ने भाजपा को एक और ही पाठ पढ़ाना शुरु कर दिया है और भाजपा ने भी पढ़ाकू बच्चे की तरह उसे दोहराना शुरु कर दिया है । उनका कहना है कि भाजपा तो भ्रष्टाचार से लड़ रही है , लेकिन जब जनता ही भ्रष्टाचारियों का साथ दे तो क्या किया जा सकता है ? अब इस जनता से कोई आशा नहीं रखी जा सकती । भाजपा को ऐसे मार्गदर्शकों से तुरन्त छुटकारा पा लेना चाहिये । यदि कोई राजनैतिक दल जनता से ही निराश होने लगे और उस पर ही दोषारोपण करने लगे तो यह उसके स्वास्थ्य के लिये सचमुच चिन्ताजनक है । इस मनोवृत्ति से जितनी जल्दी छुटकारा पाया जाये उतना ही भाजपा के लिये श्रेयस्कर रहेगा ।

कर्नाटक चुनाव में विकल्पहीनता के कारण अनायास मिली जीत के बाद कांग्रेस ने फिर भालू और बन्दर वाला नाच जनता को दिखाना शुरु कर दिया है । सारे दरबारी एक स्वर से कांग्रेस की जीत का दोष भाजपा को न देकर , उसका श्रेय राहुल गान्धी को दे रहे हैं । कांग्रेस भ्रष्टाचार के भार से डूबती है या नहीं , इस पर दो राय हो सकती है , लेकिन दरबारी परम्परा निश्चित ही कांग्रेस को डुबो देगी । वैसे भी कर्नाटक का पुराना हिसाब किताब रखने वालों ने बताना शुरु कर दिया है कि कर्नाटक में जब भी कोई पार्टी जीतती है तो वह अगले चुनाव में केन्द्र की सत्ता से अवश्य हाथ धो बैठती है ।

अब थोड़ा आँकड़ों पर भी दृष्टिपात कर लिया जाये । राज्य में विधानसभा की २२३ सीटों के लिये चुनाव हुये । कांग्रेस को १२१ सीटें मिलीं और उसे ४१ सीटों का फ़ायदा हुआ । भाजपा को चालीस सीटें मिलीं और उसे ७० सीटों का नुक़सान हुआ । जनता दल सैक्युलर को भी चालीस सीटें मिलीं और उसे भी १२ सीटों का लाभ हुआ । येदुरप्पा की कर्नाटक जनता पार्टी को छह सीटें मिलीं ।यहाँ तक मतों के प्रतिशत का हिसाब किताब है , कांग्रेस को ३७ प्रतिशत मत प्राप्त हुये । भाजपा को बीस प्रतिशत और येदुरप्पा की पार्टी को दस प्रतिशत मत मिले । यानि दोनों को कुलमिला कर तीस प्रतिशत मत मिले । कुछ प्रतिशत मत दोनों की लड़ाई के कारण दोनों से ही खिसक गये होंगे । मोटे तौर पर यदि येदुरप्पा और भाजपा अलग न होते तो भाजपा को सीटों का बहुमत ही नहीं , मतों का प्रतिशत भी कांग्रेस से ज़्यादा मिलता । लेकिन इन चुनाव परिणामों से एक बात और भी स्पष्ट हो गई है कि भाजपा के भीतर कोई नेता कितना भी ताक़तवर क्यों न हो , यदि वह पार्टी से बाहर जाता है , तो वह पार्टी को नुक़सान तो पहुँचा सकता है , लेकिन उसका अपना राजनैतिक भविष्य भी हाशिये पर चला जाता है । परन्तु इस कारण से ही दोनों पक्ष ख़ुश होते रहें , वह बुद्धिमत्ता नहीं राजनैतिक हाराकीरी ही कहलायेगी ।

भाजपा को आन्तरिक झगड़े सुलझाने के लिये अपना सक्षम आन्तरिक तंत्र विकसित करना होगा । आगामी लोकसभा चुनावों को देखते हुये यह जितना जल्दी विकसित हो सके उतना ही श्रेयस्कर रहेगा । दूसरा उसे जनता के यक्ष प्रश्नों को ठीक तरीके से समझने की क्षमता भी विकसित करनी पड़ेगी । इस क्षेत्र में प्रश्नों की ग़लत समझ कितना नुक़सान कर सकती है , यह कर्नाटक ने बता ही दिया है । जिन कारणों से भाजपा उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में हारी थी , उन्हीं कारणों से उसे कर्नाटक में पराजय मिली है । इसका समाधान पार्टी को जल्द कर लेना चाहिये ।

 

5 COMMENTS

  1. भाजपा आर्थिक eetiyon aur bhrshtachar ke maamle में congress se behtr nhi hai इस लिए आने वाले हुनाव में भाजपा को कम छेत्रियेद्लों को अधि वोट म्ल्मिल सकते हं.ai

  2. श्री नरेश कुमार गुप्ता जी के इस कथन से भाजपा के बहुत सारे सच्चे समर्थकों की सहमती होगी की भाजपा के अन्दर एक प्रभावी वर्ग है जो वास्तव में जमीन से जुड़े पार्टी के ऐसे नेताओं/कार्यकर्ताओं को बर्दाश्त नहीं कर पाते हैं जिन्होंने पार्टी को उन क्षेत्रों में ज़माने और मजबूत बनाने में खून पसीना बहाया होता है.यद्यपि ये भी एक सच्चाई है की ऐसे जमीनी नेता अनेक बार इस दंभ के कारण कि उन्होंने पार्टी को खड़ा किया है स्वकेंद्रित हो जाते हैं और पार्टी को मनमाने ढंग से चलाने कि जिद करने लगते हैं.फिर भी पार्टी के जो हालात हैं उनमे संगठन पक्ष भी अपनी भूमिका को उचित रूप से निभाने में चूक करते प्रतीत होते हैं.उठापटक कांग्रेस और एनी दलों में भी कम नहीं है.लेकिन कांग्रेस में एक परिवार के आगे सब नतमस्तक हो जाते हैं और जो भी उस परिवार को सिजदा करने से इंकार करते हैं वो ऊपर भेज दिए जाते हैं. उदाहरनार्थ: जितेन प्रसाद, माधव राव सिंधिया, राजेश पाएलट आदि कुछ उदहारण हैं.जो दल एक परिवार या व्यक्ति केन्द्रित हैं उनके बारे में कुछ कहना बेकार है.भाजपा स्वयं को सिद्धांतनिष्ठ पार्टी कहती है लेकिन अनेक बार पार्टी के कर्मठ लोगों कि जगह बाहर से आये सिद्धान्तहीन लोगों को तरजीह देदी जाती है जिससे पार्टी के मूल कार्यकर्ताओं में असंतोष उत्पन्न होता है.इसके अलावा एक शिकायत हमेशा रहती है कि भाजपा अपने कार्यकर्ताओं को सपोर्ट नहीं करती है.ये सामान्य बातें है जो केवल कर्णाटक तक सीमित नहीं हैं.लेकिन इन पर पार्टी नेतृत्व को गंभीरता से विचार करके अपने कार्यकर्ताओं के आहत मन पर मरहम लगाने का काम करना चाहिए.अक्सर नारा दे दिया जाता है ” एक बूथ,बीस यूथ”.लेकिन मतदान के दिन एक बूथ एक यूथ भी अनेकों स्थानों पर नहीं दिखाई देता है. इसका कारण केवल यही हो सकता है कि सिस्टम खड़ा करने का ठोस प्रयास नहीं होता और गणेश परिक्रमा करने वालों कि चापलूसी भरी बातों पर यकीन करके मन को तसल्ली दे ली जाती है कि सब ठीक ठाक है.उनकी बातों का क्रोस वेरिफिकेशन नहीं किया जाता है.इन पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है.

  3. अनिल जी , असावधानी से के एस हेगड़े की जगह मुझसे रामकृष्ण हेगड़े लिखा गया , उसके लिये क्षमाप्रार्थी हूँ । आशा है आप क्षमा करेंगे । ऐसी असावधानी नहीं होनी चाहिये थी । कुलदीप चन्द अग्निहोत्री

  4. मैं डॉ. कुलदीप चन्द्र अग्निहोत्री जी का बहुत सम्मान करता हूँ.लेकिन इस आलेख में एक बहुत बड़ी त्रुटी उन्होंने की है.संतोष हेगड़े स्व.रामकृष्ण हेगड़े के पुत्र नहीं हैं बल्कि उनके पिता न्यायमूर्ति के.एस.हेगड़े थे जो सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश रहे थे और इंदिरा गाँधी द्वारा वरिष्ठता लांघकर ऐ. एन.रे को मुख्या न्यायाधीश बनाये जाने के विरोध में त्यागपत्र देने वाले तीन न्यायाधीशों में एक थे.एवं वो बाद में लोकसभा के अध्यक्ष भी रहे थे.हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय में न्यायमूर्ति के पद पर आसीन होने से वर्षों पूर्व वो कांग्रेस के टिकट पर राज्य सभा के सदस्य रह चुके थे. लेकिन इमरजेंसी में हुए लोकसभा चुनाव में वो जनता पार्टी के टिकट पर लोकसभा में चुने गए थे और प्रथम बार लोकसभा के सदस्य होने के बावजूद लोकसभा के अध्यक्ष सर्वसम्मति से बनाये गए थे.अतः जस्टिस संतोष हेगड़े को राम कृष्ण हेगड़े का पुत्र बताया जाना सर्वथा असावधानी को दर्शाता है.
    जहाँ तक लेख के अन्य विचारों का प्रश्न है मई सहमत हूँ.और ये भी जोड़ना चाहता हूँ की कर्णाटक के हार के लिए दिल्ली में बैठे भाजपा के कुछ बड़े किन्तु कालवाह्य हो चुके नेता जिम्मेदार हैं जिन्हें वहां की जन भावनाओं का कोई ज्ञान नहीं था.
    २००८ में कर्णाटक की जनता ने भाजपा को सत्ता इस आशा के साथ सोंपी थी की भाजपा अपने घोषित विचारों के अनुरूप हिंदुत्व के अजेंडे के साथ कर्णाटक का विकास करेगी.येदियुरप्पा ने ये किया भी.कृषि के क्षेत्र में राष्ट्रिय औसत से लगभग दोगुनी वृद्धि हुई.मेट्रो लायी गयी.वर्षो से तमिल संत तिरुवल्लुवर की प्रतिमा लगये जाने का विरोध हो रहा था उसे समाप्त करके संत तिरुवल्लुवर की प्रतिमा बंगलुरु में लगवाई और कन्नड़ के महँ कवी की प्रतिमा चेन्नई में लगवाई.लेकिन मीडिया ने उनके ये सब पोजिटिव कामों की चर्चा न करके कांग्रेस द्वारा राजनीतिक आरोपों को ज्यादा महत्त्व दिया और एक प्रकार से मीडिया ने भाजपा विरोधी की भूमिका ऐडा की वजह क्या थी ये मीडिया के संचालक ही जाने या क्या इसके पीछे उन्हें केंद्र की कांग्रेस/युपीऐ सर्कार से कोई वित्तीय लाभ प्राप्त हुए?
    वास्तव में भाजपा का कर्णाटक अर्थात दक्षिण भारत में किसी राज्य में सत्ता आना ही मनो उनकी उम्मीदों पर वज्रपात जैसा था.पहले दिन से ही विपक्ष और मीडिया ने भाजपा सरकार केविरुद्ध युद्ध छेड़ रखा था.ऐसा नहीं था की कांग्रेसी सरकारों ने या जनता दल की सरकारों ने विवेकाधीन कोटे के तहत अपने नजदीकियों को प्लाट न बांटे हों.लेकिन भाजपा ने कभी उन्हें भ्रष्टाचार का मुद्दा बना कर संघर्ष नहीं किया लेकिन वाही कार्य जब येदियुरप्पा ने किया तो बवंडर खड़ा कर दिया गया. यही बात भू उपयोग परिवर्तित करने की भी है लेकिन लोकायुक्त संतोष हेगड़े सहित विपक्षी कांग्रेस और जनता दल ने ऐसा प्रचार किया मानो इससे पहले कभी भू उपयोग परिवर्तन किया ही न गया हो.इसी प्रकार लौह अयस्क की खदानों के लाईसेंस देने का मामला है.ये विषय केंद्र सर्कार का है लेकिन इसमें भी येदियुरप्पा के विरुद्ध इस प्रकार प्रचार की आंधी कड़ी की गयी मानो उससे पहले माईनिंग लीज दी ही न गयी हों.ये न भूले की भाजपा में आने से पूर्व भी रेड्डी बंधू कांग्रेस में थे और माईनिंग के व्यवसाय में लगे थे.लेकिन तब कोई गलत नहीं था. भाजप के नेताओं को येदियुरप्पा के विरुद्ध हुए इस आल आऊट युद्ध में येदियुरप्पा के साथ खड़े होकर पूरी ताकत से दुश्मन का मुकाबला करना चाहिए था. लेकिन येदियुरप्पा द्वारा बड़ी मेहनत से कर्णाटक में तैयार की गयी जमीन को पाने का लालच न केवल कर्णाटक के कुछ महत्वाकांक्षी नेताओं बल्कि दिल्ली में बैठे कुछ नेताओं में भी उत्पन्न हो गया और उन्होंने परीक्षा की घडी में अपने नेता येदियुरप्पा का साथ देने की बजाय स्वयं विपक्षी की भूमिका अपना ली.
    ऐसे में दिल्ली के एक ८५ साल काल वाह्य नेताजी को नेतिकता का पाठ पढ़ने का अवसर मिल गया और उन्होंने भी सोलह साल पहले के एक भिन्न सन्दर्भ वाले मामले के हवाले से येदियुरप्पा के विरुद्ध माहौल तैयार किया.अभी सत्ता से निष्काषित होने के बाद भी उनको समझ नहीं आई है और अपने ‘सद्विचारों’ को व्यक्त करके भाजपा विरोध के माहौल को ताकत देने का काम कर रहे हैं.
    भाजपा को अगर अगले लोकसभा चुनावों में सफलता प्राप्त करनी है तो एक निर्णय तत्काल घोषित करदें की सामान्यतया 80 से अधिक आयु वालों को केवल अम्मनित सदस्य का दर्ज दिया जायेगा और उन्हें कोई पद अथवा लोकसभा का टिकट नहीं दिया जायेगा.
    राजनाथ सिंह जी ने राजस्थान के गुलाब चाँद कटारिया के मामले में एकजुट होकर संघर्ष करने का बयान देकर अच्छा किया है.अमित शाह,कटारिया और ऐसे सभी मामले केवल राजनीतिक द्वेषवश थोपे गए है. भाजपा नेतृत्व को खुलकर कहना चाहिए की एक खूंखार अपराधी सोहराबुद्दीन को मुठभेड़ में मारना कोई गलत काम नहीं है.और जिन्होंने भी ये किया है उन्हें सम्मानित किया जाये.चाहे वो पुलिस अधिकारी ही क्यों नहों.मुठभेड़ के ९५% मामले कानून की कसौटी पर शायद ही खरे उतर पायें लेकिन पब्लिक उन्हें सही मानती है. ऐसे मामलों में जनपंचायत करके तथ्यों के आधार पर जनमत बनाना चाहिए.

  5. bjp is controled by the leadership wich on his/her credietibility can not win even gram panchayat election.there only aim is to throw the ground leaders out of party.as long this situation pervail the bjp will go on losing the elections.

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