पैरों की पूजा होती मगर मुख हाथ पेट पूज्य नहीं होते

—विनय कुमार विनायक
पैरों की पूजा होती मगर
मुख हाथ पेट पूज्य नहीं होते
पैर चाहे जिनके भी हों
पैर पूजने की परंपरा है भारत भूमि में
आखिर पैर क्यों पूजनीय है
क्योंकि पैर कभी इच्छा याचना
और ग्रहण नहीं करते
पैर त्यागी और पथ प्रदर्शन करते
मुख हाथ पैर ग्रहणशील होते
मुख और पेट को चाहिए भोजन
ब्राह्मण और बनिए की तरह
एक करता है भोजन ग्रहण
दूसरा खाद्य पदार्थों का संग्रहण
हाथ को हमेशा चाहिए सहारा
कभी मां पिता की उंगलियों का
पति-पत्नी एक-दूसरे का हाथ थामते
बुढ़ापे में हाथ को लाठी का सहारा
क्षत्रिय बाहुबली होता बाहुओं के सहारे
मगर पैर किसी से कुछ ग्रहण नहीं करता
चरण आजीवन पथ प्रदर्शन करता
पथ प्रदर्शन के कारण पैर पूजनीय है
माता पिता की चरण वंदना
ब्रह्मा और ब्राह्मण मुख से करते
गुरु महाजनों के चरण रहबर होते
‘महाजनो येन गत: सो पंथा’
बड़ों के चरण कमल सरीखे पूज्य होते
चरण सेवा और त्याग का प्रतीक है
कृषक सेवक कामगार सभी पूज्य हैं
चरण कभी शूद्र नहीं क्षुद्र नहीं रुद्र सा पवित्र होते!
—-विनय कुमार विनायक

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