आज इस कलयुग में जहॉ कुछ लोग बेटी के जन्म को मुसीबत मानने लगे है और कन्या भ्रूण हत्या का प्रचलन तेजी से बता चला जा रहा है। बेटी के पैदा होने पर घरो में मातम छा जाता है।
साझे चूल्हे और संयुक्त परिवार लगभग खत्म होते जा रहे है। हर एक रिश्ता सिर्फ और सिर्फ मतलब का रिश्ता बनता चला जा रहा है। वही आज कन्या भ्रूणहत्या रोकने के लिये राम के इस देश भारत में एक जिला ऐसा भी है जिस में बसने वाले लोग खासकर युवा वर्ग आज जिस युग में जी रहे है उसे रामराज कहना ही उचित होगा। सोनभद्र जिले के राबर्टगंज ब्लाक के छोटे छोटे तीन गॉव मझुवी, भवानीपुर और गडईग के 60 युवाओ ने एक मण्डली तौयार की है। मण्डली अपने गॉव में होने वाली किसी भी धर्म और जाति की कन्या की शादी में टेंट,तम्बू से लेकर बर्तन भान्डे का काम खुद सभालती है।ं इस समूह ने बडे बडे दानियो से दान लेकर नही बल्कि खुद अपने संसाधनो से शादी ब्याह में काम आने वाले तमाम छोटे बडे साजो सामान जुटा लिये है। संगठन से जुडे युवा लडकी के घर वालो को आर्थिक मदद देने के साथ साथ मिनटो में हर सामान की व्यवस्था कर देते है।इस युवा समूह के सदस्य शादी ब्याह के वक्त लडके वालो की आवभगत और खाने पीने की व्यवस्था भी खुद ही देखते है। सन 2002 में बने इस संगठन के द्वारा लाभान्वित कई ग्रामिणो का कहना है कि उन्हे बेटी की शादी में कोई भी परेशानी या भाग दौड नही करनी पडती है।
पिछले वर्ष 2009 के राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आकडो के अनुसार कन्या भ्रूण हत्या के मामलो में पिछले कई वर्ष से आज भी पंजाब की हालत सब से ज्यादा खराब है। पिछले तीन सालो में देश भर में दर्ज हुए कुल 294 मामलो में 81 मामले अकेले पंजाब में भ्रूण हत्या के थे। हालाकि हम सब जानते है कि ये आंकडे वास्तविक आंकडो से बहुत कम है वास्तविक आकडे इस से कही ज्यादा होते है क्यो कि इन आंकडो से छनकर आती सच्चाई यह है कि आज देशभर में लाखो कि तादाद में अल्ट्रासाउड केन्द्र कुकरमुत्तो की तरह खुले है आज डाक्टर बिना किसी डर खौफ के भ्रूण परिक्षण करते है जिस कारण आज सामाजिक संरचना में अनेक विकृतिया आ रही हैं ऐसा नही है कि इस प्रवृति को रोकने के लिये कोशिश नही कि जा रही है।लेकिन भ्रूणहत्या का यह रक्तबीज ऐसा है कि एक जिले में सफाये के बावजूद दूसरे जिले में प्रकट हो जाता है।वर्ष 1991 की जनगणना में पंजाब में 1000 पुरूषो में 882 स्ति्रया थी ,2001 में ये सॅख्या घटकर 874 हो गई जबकि पुरूषो के मुकाबले स्ति्रयो कि यह संख्या देश में प्रति 1000 से 927 से बकर 933 हो गई। आज देशभर में भ्रूणहत्या के आंकडे यह कहते है कि जो परिवार ज्यादा संपन्न और पढ़े लिखे है वो लोग ही इस अपराध में ज्यादा डूबे हूए है, जो कि आज देश और समाज के लिये सब से बडी चिन्ता का विषय है। इस पर देश का दुर्भाग्य यह है हमारे देश के धार्मिक नेता धर्म बचाए रखने की अपील करते रहते है पर कन्या भ्रूणहत्या रोकने की अपील अपने अपने समाज से नही करते। क्या केवल सरकार के प्रयासो से ही कन्या भ्रूणहत्या करने वाले और करवाने वाले राक्षसो पर नकेल कसी जा सकती है। शायद ये सम्भव नही है,इस के लिये धार्मिक,सामाजिक और प्रशासनिक ,सारे स्तरो पर हमे मिलकर काम करना होगा।
यू तो बेटी का विवाह एक सामाजिक परम्परा है। लेकिन अगर ऐसी ही एक सोसायटी हम सब लोग भी मिलकर बना ले और आपस में एक दूसरे का हाथ बटाने लगे तो बेटियो की शादी हम लोग और अच्छे से कर सकते है। इन युवाओ की पहल और इन के इस जज्बे को पूरे देश को सलाम करना चाहिये और अपनाना चाहिये आज इस दौर की जरूरत इस अच्छी और आपसी प्रेम और भाईचारे को बनाने वाली इस परम्परा को। किन्तु आज हम लोग जिस समाज का हिस्सा बन रहे है उस में हिन्दी मराठी बिहारी के झगडे है,तो कही मन्दिर मस्जिद के झगडे है प्रेम का रिश्ता, अपनापन, छोटे बडे का आदर, मॉबाप का सम्मान, राष्ट्रप्रेम और कुर्बानी का जज्बा, बिल्कुल दिखाई नही दे रहा। दिखाई दे रहा है। झूट कपट, घात प्रतिघात, भाई भाई में नफरत, घरो में फूट, हिँसा, बेहयाई।
क्यो आज हम अपनी सभ्यता अपने आर्दशो और अपनी अपनी उन मजहबी किताबो के उन रास्तो से भटकने लगे है जो हमे इन्सान बनाती है और अच्छे और सच्चे रास्तो पर चलना सिखाती है। इन्सान से मौहब्बत करना सिखाती है। शायद पैसे का लालच, समाज में मान सम्मान पाने का जुनून, अपने बच्चो के लिये राजसी सुख सुविधाओ का ख्वाब या फिर आज हमारे समाज में विकराल रूप धारण कर चुके दहेज के दानव के कारण हम कन्याओ को जन्म दिलाने से डरने लगे है जो कि कन्या भ्रूणहत्या का मुख्य कारण है। किन्तु आज हम इन्सान, इन्सान बनना क्यो भूलते जा रहे है ये हम सब को सोचने की जरूरत है क्यो कि इत्तेफाक से हम सब इन्सान है। बेटियो से घर आंगन में रौनक है। ममता, प्रेम, त्याग, रक्षा बन्धन और ना जाने कितनी परम्पराये जीवित है। कन्या भ्रूणहत्या पाप ही नही देश और समाज के लिये अभिशाप है।
शादाब जी, इस कलयुग में कुछ युवकों द्वारा कायाकल्प कार्य का उल्लेख आपने किया है.. यह काबिलेतारीफ है.. इस लेख को जोर-शोर से जनता के समक्ष ले जाने की जरुरत है.. साथ ही आपने भ्रूण हत्या का जो आपने उल्लेख किया वह काफी मर्मस्पर्शी है….आपको बहुत-बहुत बधाई….
शादाब जी इस उत्तम लेख हेतु बधाई स्वीकार करें.