विविधा

चूल्हे बुझ रहे हैं इंडिया ग्रेट बन रहा है

भारत की खुशकिस्मती है कि प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह और योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोटेंक सिंह अहलुवालिया जैसे नामी अर्थशास्त्री देश में मौजूद हैं। उन्हें छलांग मारते सेंसेक्स और शेयर बाजार में देश की प्रगति परिलक्षित होती है। देश की विकास दर कुलांचे मार रही है और केन्द्र में आम आदमी की सरकार होते हुए भी आम आदमी के घरों के चूल्हे बुझते जा रहे हैं। अर्थशास्त्री की नजर में मानवीय चेहरा मायने नहीं रखता। उसे महंगाई में विकास दिखायी देता है। गरीब की क्रयशक्ति घटे, बेरोजगारी में इजाफा हो थाली से दाल तो पहले गायब हो चुकी थी, अब गरीबों की चटनी पर भी प्याज की महंगाई ने तड़का लगा दिया है। योजना आयोग बढती महंगाई पर आत्ममुग्ध है और इसे देश की सुधरती माली सेहत का शुभ लक्षण मान कर अपनी पीठ थपथपा रहा है। बची खुची कसर विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष द्वारा डॉ. मनमोहन सिंह और मोटेंक सिंह अहलुवालिया को दी जा रही शाबासी पूरी कर रही है। इससे देश के ये मूर्धन्य अर्थशास्त्री गदगद हो रहे हैं। उनकी रीढविहीतना ही उनकी आर्थिक कुशलता है। कांग्रेस का हाथ आम आदमी के साथ के नारे पर कांग्रेस दोबारा केंद्र में सत्ता में लौटी थी। लेकिन अभी फिलहाल चार बरस तक न तो लोकसभा के चुनाव हैं और न हाल फिलहाल कोई विधानसभा चुनाव का सामना करना है। इसलिए कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी का महंगाई के मुद्दे पर चिंता व्यक्त करना भर पर्याप्त है। जनता ने वोट दिया है, तो उसे उसकी कीमत भी चुकाना होगी। कांग्रेस के दावे में कोई फरेब नहीं है। उसे नारा देना, घोषणाएं परोसना आता है। कांग्रेस सबसे पुरानी शासक पार्टी हैं, अब किसी को भी इसमें कोई एतराज करने की गुंजाइश नहीं है। भ्रष्टाचार और अब महंगाई के मुद्दे से ध्यान हटाने की कला कांग्रेस जानती है।

महंगाई का कांग्रेस का अपना निजी गणित है। देश में गेहूं, चावल, चीनी की कमी नहीं है, फिर इनका कृत्रिम अभाव बनाकर कीमतें बढाने की रणनीति और आयात करने के पीछे क्या रहस्य है, यह समझना होगा। एक ही वक्त में कांग्रेस ने रणनीति बना डाली और सब्सीडी देकर निर्यात खोल दिया। केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार ने घोषणा कर दी कि खाघान्न की कमी होगी। दूध सूख गया है। दूसरे दिन से बाजार में गेहूं, चांवल, चीनी, दूध का कृत्रिम अकाल आरंभ हो गया और जनता से मनमाने दाम वसूले जाने लगे। चार लाख करोड़ रुपये का फावर्ड टेडिंग कर दिया गया। कमोडिटी एक्सचेजों में हुए इस कारोबार में एक प्रतिशत माल की डिलीवरी हुई। जब निन्यानवे प्रतिशत माल गोदामों में दबा दिया गया तो गेहूं, चावल, चीनी का अभाव बनना स्वाभाविक है। इसके लिए प्रधानमंत्री, खाद्य मंत्री, योजना आयोग, गरीबों को कोसने लगे कि उन्होंने दो बार खाना शुरुकर दिया। केन्द्र में पारदर्शी, संवेदनशील सरकार का इससे बडा सबूत क्या होगा?

विश्व बैंक के पेंशन भोगी डॉ. मनमोहन सिंह और मोटेक सिंह अहलुवालिया से इससे अधिक अपेक्षाएं करने वाले स्वप्न लोक में रह रहे हैं। वे अपने काम में पारंगत हैं। इसका सबसे बडा सबूत और क्या होगा कि मल्टीनेशनल्स कंपनियों और कारपोरेट घरानों के शेयर चौदह महीनों में 300 गुना बढ गये।

भारत से गेहूं का निर्यात 10 रु किलो पर, चीनी 12 रु किलो पर और चावल 12 रु किलो पर किया गया। साथ में सब्सीडी भी दी गयी। बाद में गेहूं 20 रु चीनी 34 रु और चावल भी दो गुना दामों में आयात करके जहां देश के किसानों को लूटा गया वहीं बिचौलियों की तिजोरियां भर दी गयी। विदेश के किसानों के पौबारह कर दिये गये। देश में 87 करोड़ लोग 20रु प्रतिदिन पर गुजर करते हैं। पिछले 24 माह में 10 करोड़ व्यक्ति गरीबी रेखा के नीचे सरक गये। लेकिन भारत की विकास दर 7.5 प्रतिशत हो गयी। आंकडों का पहाड़ा पढकर प्रधानमंत्री और योजना आयोग अपनी पीठ थपथपा रहे हैं।

गणतंत्र दिवस पर राष्ट्रपति ने दूसरी हरित क्रांति का आह्वान करके किसानों की दुखती रग को छुआ है। लेकिन राष्ट्रपति का आह्वान अरण्यरोहन बनकर रह गया। यह जानबूझकर की कृषि का लागत बढ गयी है, गेहूं पर मात्र 20 रु क्विंटल समर्थन मूल्य बढाया गया। कांग्रेस किसानों पर अहसान जताती है कि 71 हजार करोड रुपये के कर्ज माफ कर दिये हैं। कांग्रेस से कौन पूछेगा कि औघोगिक घरानों को तो बजटपूर्व ही चार लाख करोड रु. की टैक्स माफी दे दी गयी थी, उसके पैकेज तो वर्ष भर जारी रखे गये। लगता है कि बाहरी दबाव में खाघान्न के मामले में आयात पर निर्भरता कांग्रेस ने कबूल कर ली है। सरकार में बैठे राजनेताओं के लिए आयात और निर्यात दोनों कमाई के स्रोत हैं, देश में विकास हो रहा है। अब तो देश की आम जनता यहीं चाहती है कि कांग्रेस देश का विकास बंद कर दे।

-सौरभ कुमार यादव