राजनीति

संविधान के लिए असंवैधानिक है, अनुच्छेद 35 A

भारत की जनता ही समस्त राजनीतिक सत्ता का स्रोत है. यह सच है कि समस्त भारतीय जनता ने भारतीय संविधान का निर्माण नहीं किया है, फिर भी यह एक सच्चाई है कि इसके निर्माता जनता के प्रतिनिधि थे.
संविधान के अनुसार जब देश में कोई नया कानून आता है, सबसे पहले वो बिल भारतीय जनता का प्रतिनिधित्व करने वाली लोकसभा में आता है लोकसभा में सतापक्ष बिल के पक्ष में बहुमत साबित करके राज्यसभा में भेजती है, उसी प्रकार राज्यसभा में उस बिल के समर्थन में बहुमत साबित करना पड़ता है, जिसके बाद वो बिल भारत के माननीय राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद वो कानून संविधान की पुस्तक में लिखा जाता है, इन सब क्रियाकलापों से होकर गुजरना पड़ता है, तब जाकर उसे कानून का दर्जा मिलता है, अगर लोकसभा या राज्यसभा में सत्तापक्ष के पास समर्थन न हो तो ये बिल अटक जाता है.
लेकिन भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री पंडित जवाहरलाल नेहरु के कहने पर 1954 में देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद ने अनुच्छेद 35 A पर जो हस्ताक्षर किए थे, क्या देश और भारतीय संविधान को उससे मान लेना चाहिए, क्योंकि ऐसा करना संविधान के विरोध में हैं, ऐसा भारत के संविधान में लिखा है.
देश के राष्ट्रपति के पास बिना लोकसभा या राज्यसभा जाए कोई कानून पास करने का अधिकार है तो वो आर्टिकल 123 है, जो कि अल्पकालिन (6 सप्ताह) समय के लिए जिसकें बाद वह स्वयं ही समाप्त हो जाएगा. उसी प्रकार अनुच्छेद 35 A जो बिना संसद गए प्रधानमंत्री के कहने पर राष्ट्रपति ने हस्ताक्षर किया क्या उस कानून को भारत के संविधान के हिसाब से जीवित मान लेना चाहिए.
जो 35 A कश्मीर के बहन-बेटियों की आजादी पर रोक लगाकर उनकें अधिकारों का हनन करता हो, उनका गला घोंटने को मजबूर करता हो क्या इस प्रकार अनुच्छेद की जरूरत होनी चाहिए नहीं होनी चाहिएं.
बता दें कि आज़ादी के सात दशक बाद भी भारतीय संविधान के अनुसार प्राप्त अपने मूल अधिकारों से वहां का बहुत बड़ा वर्ग वंचित है. एक आज़ाद और सम्प्रभु राष्ट्र में किसी नागरिक के साथ ऐसा दुर्व्यवहार होना दुर्भाग्यपूर्ण है.
पिछलें दिनों जब देश की सुप्रीमकोर्ट में इस अनुच्छेद पर बहस करने की बात कही तो हाल ही में जम्मू कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती ने देश की राष्ट्रीयता के प्रतीक तिरंगे तक का अपमान करने तक में कोई देरी नही लगाई साथ ही उनके मुख्य विपक्षी दल नैशनल कॉन्फ्रेंस पूर्व सीएम उमर अब्दुल्लाह और गिरगिट की तरह रंग बदलनें वाला उनका पिता फारुक अब्दुल्लाह ने जम्मू-कश्मीर कहा कि स्थायी निवासियों को विशेष अधिकार और विशेष लाभ दिलवाने वाला अनुच्छेद 35(A) राज्य की जनता के लिए एक रक्षा कवच की तरह है, इस प्रकार का बयान देते हुए कहा अगर इस अनुच्छेद के साथ छेड़छाड़ हुई तो कश्मीर की जनता विद्रोह करनें के लिए मजबूर हो जाएगी, फारुक ने इस प्रकार का बयान देकर अपने देशद्रोही होने के नाम पर कोई कसर नही छोड़ी.
लेकिन उसी जम्मू कश्मीर में रहने वाले भारत के ही नागरिक वाल्मीकि समुदाय के लोग आज बेहद विकट परिस्थितियों में जीवन यापन कर रहें हैं। एक लोकतांत्रिक गणराज्य में किसी नागरिक की ऐसी स्थिति होना चिंताजनक है, वाल्मीकि समुदाय की वर्तमान में स्थिति ऐसी है कि इस समुदाय के पढ़े लिखे युवाओं को भी अंततः सफाईकर्मी ही बनना पड़ता है। कोई स्नातकोत्तर किया हुआ युवा भी अनुच्छेद 35A के कारण पूरा जीवन सिर्फ सफाईकर्मी के रूप में गुजारता है. संवैधानिक धोखे के शिकार हुए वाल्मीकि समुदाय के लड़कों की सरकारी नौकरी नहीं लगने की वजह से उनकी शादियों में भी दिक्कतें आती हैं वहीं समुदाय की पढ़ी लिखी लड़कियां किसी अन्य राज्य में शादी कर रही है जिससे की जम्मू कश्मीर राज्य में इस समुदाय की स्थिति दिन ब दिन दयनीय होते जा रही है. भविष्य अंधकार में देखकर वाल्मीकि समुदाय के पढ़े लिखे युवा अन्य राज्यों में पलायन को मजबूर हो रहें हैं.