बिहार में शिक्षकों की नियोजनवाद से मुक्ति

अंबुज कुमार

   ये नया साल 2025 बिहार के शिक्षकों के लिए भी नया है। लोग 22 वर्षों से गिरमिटिया के तर्ज पर नियोजन का दंश झेल रहे थे। उस समय से लगातार आंदोलन चल रहा था। शिक्षकों ने कमियों के बावजूद एकजुटता के साथ संघर्षों के बाद इस उपलब्धि को प्राप्त किया है। एक बार फिर साबित हो गया कि दुनिया में संघर्ष से बढ़कर दूसरा रास्ता नहीं है।

   इसको कुछ चरणों में समझा जा सकता है –

1. नियत वेतन युग…. यह 2003 से शुरू होकर 30 जून 2015 तक चला। इसमें 2005 का शिक्षा मित्रों का ऐतिहासिक प्रदर्शन मिल का पत्थर बना और लोग स्थायी हो गए। गौर तलब है कि शिक्षा मित्रों की बहाली अधिकतम 33 महीने के लिए 1500रुपए मासिक मानदेय पर हुई थी।।2009 में दक्षता परीक्षा के विरुद्ध संघर्ष हुए और सरकार वेतन वृद्धि पर राजी हुई। 2010 में हड़ताल हुए लेकिन आपसी सहयोग के अभाव में वह निष्फल रहा, लेकिन सरकार को सोचने पर विवश किया और एक बड़ा मुद्दा बन गया। इसका लाभ आगे आंदोलन में मिला।

  इसी में टेट स्टेट का दौर आया और शिक्षा के अधिकार कानून बनने के बाद परीक्षा से शिक्षक भर्ती होने लगी। 2013 और 2014 में बड़े पैमाने पर शिक्षक बहाल हुए। इससे शिक्षक संघों की ताकत भी बढ़ गई थी।

2. चाईनीज वेतन युग …2012-2013 में केंद्र में मोदी युग के आहट होते ही पहली बार बिहार में राजनीतिक उथल पुथल हुई थी। इससे सरकार मजबूर दिख रही थी। राजद पार्टी बाहर से समर्थन कर रही थी। इसी का फायदा उठा कर सभी संगठनों ने 2015 में निर्णायक हड़ताल किया,जो काफी सफल रहा। लाख धमकियों का असर शिक्षकों पर नहीं हुआ। दरअसल यह सवाल रोटी का था। मामूली वेतन में न शिक्षक खा रहे थे और न उनके बच्चों को भरपूर भोजन, शिक्षा, स्वास्थ्य मिल रहा था। ऐसी स्थिति में लोग नौकरी जाने से भी नहीं डर रहे थे। मुझे अच्छी तरह याद है कि दाउदनगर प्रखंड पर प्राथमिक शिक्षक संघ गोपगुट का धरना था और मुझे भी बुलाया गया था। चूंकि उस समय मैं हाई स्कूल में आ गया था और माध्यमिक शिक्षक संघ से जुड़ गया था, लेकिन प्राथमिक विद्यालय से लंबे वक्त तक जुड़े रहने के कारण मित्रों ने आमंत्रित किया था। मैं उस धरना में साफ कहा था कि सरकार या तो हमें सम्मान जनक जीने लायक वेतन दे या हटा दे। अब हम डरने वाले नहीं हैं। इसी पर उसी संगठन से जुड़े एक वरिष्ठ शिक्षक ने कहा था कि जब ऐसी सोच आ गई है तो सफलता मिलनी तय है।

महागठबंधन का घटक दल राजद भी सरकार से मांगों पर विचार कर हड़ताल खत्म कराने का प्रयास किया था। उसके थिंक टैंक रघुवंश प्रसाद सिंह ने कहा था शिक्षक डरेंगे क्यों,,, उनकी मांगों पर ध्यान देना चाहिए।। उस साल का सदन भी काफी हंगामेदार रहा था। अंत में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी को कहना पड़ा कि हम वेतनमान देने के लिए एक कमिटी का गठन करेंगे। उसके बाद शिक्षक संघ काम पर लौट आए। कमिटी के रिपोर्ट के मुताबिक 5200-20200 और प्राथमिक,माध्यमिक और उच्च माध्यमिक के लिए क्रमशः 2000,2400 और 2800 ग्रेड पे तय किए गए। शिक्षकों ने इसे स्वीकार नहीं किया और मूल वेतनमान की मांग जारी रखने की प्रतिबद्धता व्यक्त की। फिर भी इस पहल ने शिक्षकों में वित्तीय सुरक्षा की भावना का संचार किया। लोगों की स्थिति में अपेक्षाकृत सुधार हुआ।

3. न्यायपालिका युग..इसे 2016 से 2019 का काल कह सकते हैं। एक पूर्व से पटना हाइकोर्ट में चल रहे मामले में शिक्षकों को पूर्ण वेतनमान देने का फैसला आ गया। इसने लाखों शिक्षकों में आशा की किरण जगा दी। इस दौर में सरकार फिर पलट गई थी और एनडीए की सरकार बन गई थी। शिक्षकों ने उस फैसले को लागू करने की मांग की, लेकिन सरकार हाइकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी। यहीं से शिक्षकों के हाथ से सब कुछ निकल गया। जानकारों का कहना था कि यदि सरकार नहीं पलटती तो शायद हाइकोर्ट के फैसले लागू हो जाते। बहरहाल बड़े अदालत में मामला चला और शिक्षकों के विरुद्ध फैसले आए। 

4. कोरोना युग….. अदालत में हारने के बाद एक बार फिर शिक्षकों ने आंदोलन का रुख किया। 2020 में मूल्यांकन बहिष्कार के साथ हड़ताल हुए, लेकिन उसी समय विश्व व्यापी कोरोना संकट ने सभी संभावनाओं को खत्म कर दिया,,, लेकिन शिक्षकों के लिए सरकार ने सेवा शर्त तय कर दी। यह भी एक आंशिक सफलता थी।

5. बीपीएससी युग…2020 में एनडीए की सरकार बनने के बाद फिर 2022 में पलटकर महागठबंधन की सरकार बन गई और वह भी मात्र सत्रह महीने रही। लेकिन इसी बीच 2023 में बीपीएससी के द्वारा परीक्षा से पहली बार राज्यकर्मी शिक्षक भर्ती की नियमावली बनी। शिक्षक संघों ने भारी विरोध किया। उसका कहना था कि नियोजित शिक्षकों को पहले राज्यकर्मी बनाएं उसके बाद जैसे भी बहाली करें। सरकार इसके लिए राजी नहीं हुई लेकिन मुख्यमंत्री ने कहा कि मामूली परीक्षा लेकर नियोजित शिक्षकों को राज्यकर्मी का दर्जा दे देंगे। इसके पूर्व दो चरणों के शिक्षकों की बहाली हो चुकी है। इसमें काफी संख्या में नियोजित शिक्षकों ने भी सफलता प्राप्त किया है। शिक्षक संघों ने सभी परीक्षाओं के बहिष्कार की घोषणा की थी लेकिन इस बार विशेष प्रभाव नहीं दिखाई दिया। अब संघ सेवा निरंतरता की बात कर रहा है,,, लेकिन बड़ा सवाल है कि जो लोग सक्षमता परीक्षा भी नहीं दिए, उनका क्या होगा!!

   बहरहाल सक्षमता परीक्षा में सफल नियोजित शिक्षकों के नए साल के प्रथम दिन अपने विद्यालय में पुनः योगदान देते ही विशिष्ट शिक्षक के पद पर राज्यकर्मी का दर्जा मिल गया और नियोजनवाद रूपी दंश से मुक्ति मिल गई। अब जो बच गए हैं वे समझा जा रहा है कि अगले चरणों में परीक्षा देकर विशिष्ट शिक्षक बन जाएंगे।

     इन दो दशकों के शैक्षणिक उथल पुथल में निश्चित तौर पर शिक्षा के नुकसान को इनकार नहीं किया जा सकता। लोगों का सरकारी शिक्षा से विश्वास खत्म हुआ है। अब राज्यकर्मी शिक्षकों, अभिभावकों, जन प्रतिनिधियों और पदाधिकारियों को एक विशेष अभियान चलाकर शिक्षा व्यवस्था को दुरुस्त करने का काम करना चाहिए। यह राज्य के मानव संसाधन के विकास के लिए यथेष्ठ रूप से आवश्यक होगा।

अंबुज कुमार 

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