सनातन की सांस्कृतिक छाया में जी-20 सम्मेलन

0
165

प्रमोद भार्गव

दिल्ली में होने जा रहा जी-20 सम्मेलन इस बार सनातन संस्कृति की छाया में होगा। इसी भाव को दृष्टिगत रखते हुए शिखर सम्मेलन स्थल पर भगवान शिव की 28 फीट ऊंची ‘नटराज‘ प्रतिमा को प्रतीक रूप में स्थापित किया गया है। इस प्रतिमा में शिव के तीन प्रतीक-रूप परिलक्षित हैं। ये उनकी सृजन यानी कल्याण और संहार अर्थात विनाश की ब्रह्मांडीय शक्ति का प्रतीक हैं। अष्टधातु की यह प्रतिमा प्रगति मैदान में ‘भारत मंडपम‘ के द्वार पर लगाई गई है। इस प्रतिमा की आत्मा में सार्वभौमिक स्तर पर सर्व-कल्याण का संदेश अंतर्निहित है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसी शाश्वत दर्शन से भारतीय संस्कृति के दो सनातन शब्द लेकर ‘वसुधैव कुटुंबकम्‘ के विचार को सम्मेलन शुरू होने के पूर्व प्रचारित करते हुए कहा है कि ‘पूरी दुनिया एक परिवार है। यह ऐसा सर्वव्यापी और सर्वकालिक दृष्टिकोण है, जो हमें एक सार्वभौमिक परिवार के रूप में प्रगति करने के लिए प्रोत्साहित करता है। एक ऐसा परिवार जिसमें सीमा, भाशा और विचारधारा का कोई बंधन नहीं है। जी-20 की भारत की अध्यक्षता के दौरान यह विचार मानव केंद्रित प्रगति के आवाहन के रूप में प्रकट हुआ है। हम एक धरती के रूप में मानव जीवन को बेहतर बनाने के लिए एक साथ आ रहे हैं। जिससे सब एक-दूसरे के सहयोगी बने रहें और समान एवं उज्जवल भविश्य के लिए एक साथ आगे बढ़ते रहें।‘ विश्व कल्याण का यह विचार आज तक किसी अन्य देश  के राष्ट्र  प्रमुख ने नहीं दिया। क्योंकि ये देश  असामनता के संदर्भ में ही अपने पूंजीवादी, बाजारवादी और उपभोक्तावादी अजेंडे को आगे बढ़ाते रहे हैं। पष्चिमी देशों  द्वारा हथियारों का उत्पादन और फिर उनके खपाने का प्रबंध कई देशों  की प्रत्यक्ष लड़ाई और देशों  के भीतर ही धर्म और संस्कृति केे अंतर्कलहों में हम देखते रहे हैं। अतएव विश्वव्यापी भाईचारे के लिए वसुधैव कुटुंबकम् से उत्तम कोई दूसरा विचार हो ही नहीं सकता।

थोड़ा ठहरकर शिव  के ‘नटराज’ रूप के प्रतीक रहस्यों को समझ लेते हैं। यह प्राचीन कथा स्कंद पुराण में मिलती है। यह शिव  के थिलाई-वन में घूमने और इसी वन में ऋषि यों के एक समूह के रहने से जुड़ी है। थिलाई वृक्ष की एक प्रजाति है, जिसका चित्रण मंदिर की प्राचीरों पर भी मिलता है। परिवार सहित रहने वाले ये ऋषि  मानते थे कि मंत्रों की शक्ति से देवताओं को वश में किया जा सकता है। एक दिन शिव  दिगंबर रूप में अलौकिक सौंदर्य और आभा के साथ इस वन से गुजरे। शिव  के इस मोहक रूप से ऋषि  पत्नियां मोहित हो उठीं और यज्ञ एवं साधना से विचलित होकर शिव  के पीछे दौड़ पड़ीं। इस अप्रत्याषित घटनाक्रम से साधुगण क्रोधित हो उठे और उन्होंने मंत्रों का आवाहन कर शिव  के पीछे विषैले सर्प छोड़ दिए। शिव  ने सर्पों को गहना मानकर एक को गले में, एक को षिखा पर और एक को कमर में धारण कर लिया। शिव का यह उपक्रम वन्य जीवों के संरक्षण द्योतक है।

ऋषि  और अधिक क्रोधित हुए। उन्होंने मंत्रसिद्धी से एक बाघ उत्पन्न कर शिव  के पीछे दौड़ा दिया। शिव  ने बाघ को मारकर उसकी चमड़ी उधेड़ी और कमर में वस्त्र के रूप में पहन ली। यह प्राकृतिक रूप से सभ्यता की ओर बढ़ने वाला पहला कदम था। अंत में ऋषि यों ने अपनी सभी तांत्रिक शक्तियों का प्रयोग कर एक शक्ति शाली अपस्मरा नामक राक्षस सृजित किया। यह राक्षस अज्ञानता और अभिमान का प्रतीक है। शिव  सरल मुस्कान के साथ इसकी पीठ पर चढ़ जाते हैं और नृत्य करने लगते हैं। शाष्वत आनंद का यह नृत्य कुछ और नहीं अहंकार त्यागकर सहज रूप में जीवन जीने का संदेश  है, जो ऋषि यों के तप-अनुश्ठान से भिन्न मार्ग है। कलात्मक ढंग से जीने का सत्य-चित्त आनंद अर्थात सच्चिदानंद के साथ जीना ही श्रेस्यकर है। इन सब को शिव के वशीभूत देखा, तब ऋषि ईश्वर को ही सत्य मानते हुए शिव के समक्ष समर्पण कर देते हैं। गोया इस प्रतीक में विश्व कल्याण का संदेश प्रकट है।

इन्हीं संदेशों  की कड़ी में भारतीय प्रधानमंत्री का मानना है कि कोविड महामारी ने विश्व वयव्स्था को बदल दिया है। नतीजतन तीन महत्वपूर्ण परिवर्तन दिखाई दे रहे है, पहला यह अनुभव हो रहा है कि दुनिया के जीडीपी केंद्रित दृष्टिकोण से हटकर मानव केंद्रित दृष्टिकोण को अपनाने की जरूरत है। दूसरा, दुनिया वैश्विक  सप्लाई चेन में सुदृढ़ता और विश्वसनीयता के महत्व को पहचान रही है। तीसरा, वैश्विक  संस्थानों में सुधार के माध्यम से बहुपक्ष को बढ़ावा देना। ये तीन प्रयोजन सिद्ध हो जाते हैं तो एक बड़ा वैश्विक  मानव समुदाय चैन की नींद सोने लायक हो जाएगा। लेकिन इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि जी-20 षिखर सम्मेलन के दौरान भी देश  गुटों में विभाजित हैं। जबकि भारत विभिन्न पांच मुद्रदों पर आम सहमति बनाने में जुटा है। इन मुद्दों में रूस-यूक्रेन युद्ध की समाप्ति, महंगाई पर नियंत्रण और खाद्य-आपूर्ति, ऊर्जा, हथियारों की होड़ और जलवायु परिवर्तन। भारत की कोशिश  है कि इन पांच मुद्दों पर सम्मेलन के अंतिम दिन एक संयुक्त बयान जारी हो जाए। लेकिन दुनिया के दो बड़े देशों  के रक्षत्राध्यक्ष शामिल नहीं हो रहे हैं। नतीजतन भारत के सामने षिखर सम्मेलन को सफल बनाने की बड़ी चुनौती पेश  आ रही है। रूस के राष्ट्र पति व्लादिमीर पुतिन नहीं आ रहे है। उनकी जगह विदेश मंत्री सगेंई लावरोव आएंगे। इसी तरह चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के भारत नहीं आने को लेकर असमंजस की स्थिति रही। लेकिन अब चीन के विदेश मंत्रालय ने साफ कर दिया है कि जिनपिंग के स्थान पर प्रधानमंत्री ली कियांग चीन का प्रतिनिधित्व करेंगे।

इसलिए ये सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या दुनिया के दो बड़े देशों  के प्रमुखों का सम्मेलन में नहीं आने से उन मुद्दों पर संयुक्त बयान जारी हो पाएगा, जिन्हें भारत वैश्विक  हितों के लिए हल करना चाहता है। इन राष्ट्र प्रमुखों के नहीं आने के पीछे की मंशा में यह भाव संभव है, कि भारत यदि अपने मकसद में सफल हो जाता है तो भारत वैश्विक  शक्ति  की ओर बढ़ जाएगा। चीन भारत का पड़ोसी देश  जरूर है, लेकिन उसकी हमेशा कोशिश  रही है कि भारत में अषांति और अस्थिरता बनी रहे। इसीलिए जी-20 सम्मेलन के ठीक पहले वह अपने मानचित्र में भारत के अरुणाचल प्रदेश के भू-भाग को दिखाकर यह जताने की कुटिल हरकत को अंजाम देता है कि भारत को विश्व शक्ति के रूप में चीन देखना नहीं चाहता। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन इसी परिप्रेक्ष्य में जिनपिंग के सम्मेलन में अनुपस्थित रहने पर अपनी निराशा जाहिर कर चुके है। क्योंकि बाइडेन भली-भांति जानते है कि जिनपिंग की अनुपस्थिति में जी-20 को वैश्विक, आर्थिक सहयोग का मुख्य मंच बनाए रखने की अमेरिका की कोशिष और विकासशील देशों के लिए वित्तपोषण को सुरक्षित करने के प्रयासों को झटका लगेगा। साफ है, सम्मेलन में जिनपिंग की भागीदारी के बिना व्यावहारिक एवं कल्याणकारी परिणाम तक पहुंचना कठिन है। जिनपिंग भारत में आयोजित इस सम्मेलन में भागीदारी क्यों नहीं कर रहे है, इस परिप्रेक्ष्य में चीन ने कोई कारण नहीं बताया है। 2008 में इस संगठन को राष्ट्राध्यक्षों के स्तर पर उन्नत बनाए रखने के बाद यह पहली बार है कि चीनी राष्ट्रपति इस सम्मेलन का हिस्सा नहीं बन रहे है। हालांकि चीनी विदेश  मंत्रालय ने सम्मेलन की मेजबानी में भारत का समर्थन किया है और यह भी भरोसा जताया है कि वह सभी पक्षों के साथ मिलकर काम करने को तैयार है। लेकिन चीनी विदेश  मंत्रालय के प्रवक्ता ने पत्रकारों द्वारा यह पूछने पर बताया कि जिनपिंग की जगह ली कियांग को दिल्ली भेजने का फैसला क्या इसलिए लिया गया, क्योंकि दोनों देशों के बीच तनाव के हालात हैं। इस पर प्रवक्ता ने सीमा विवाद का तो कोई हवाला नहीं दिया, लेकिन यह जरूर कहा कि दोनों देशों के बीच संबंध यथास्थिति में हैं। मसलन तनाव में तरलता दिखाने को चीन तैयार नहीं है।

ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सम्मेलन को सफलता के कितने निकट ले जा पाते हैं, यह उनकी कूटनीतिक गतिविधियों और वाक्चातुर्य पर निर्भर रहेगा। दरअसल मोदी विभिन्न देशों  के बीच जो भी मतभेद हैं, उन्हें खत्म करने के इच्छुक हैं और विवादों के शांतिपूर्ण समाधान चाहते हैं। क्योंकि विवाद खत्म होंगे तो रूस और यूक्रेन के बीच चल रहा संघर्ष भी खत्म होने की अपेक्षा की जा सकेगी ? ऐसी ही षांति बहाली के बाद यूक्रेन में पड़ा अनाज जरूरतमंद देशों  के पास पहुंचाया जा सकेगा और रूस के पास ऊर्जा का जो भंडार है, उसे यूरोपीय देशों  तक पहुंचाना संभव होगा। वर्तमान में पष्चिमी देशों  ने रूस पर अनेक प्रतिबंध लगा रखे है। नतीजतन भविश्य में रूस की अर्थवयवस्था प्रभावित हो सकती है ? लेकिन अभी तक उसकी अर्थव्यवस्था पर कोई असर दिखाई नहीं दे रहा है। दूसरी तरफ जो यूरोपीय देश  गैस पर निर्भर हैं, उन्हें भविश्य में परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। क्योंकि रूस ने गैस की आपूर्ति रोकी हुई है। सर्दी आते-आते जर्मनी जैसे देशों  में गैस की कमी विकराल संकट का रूप ले सकती है। इस नाते भारत को तीन अलग-अलग जी-20 ऊर्जा उत्पादक देश  (अमेरिका, रूस और सऊदी अरब) बनाम ऊर्जा उपभोक्ता (यूरोप और अन्य देश ) देशों  को एक साथ लाने में मुश्किल का सामना करना पड़ सकता है। यदि मोदी इन बाधाओं को सुलटाने में सफल हो जाते हैं तो मोदी वैश्विक  नेता और भारत वैश्विक  नेतृत्वकर्ता देश  की श्रेणी में खड़ा हो जाएगा। चीन को भारत की यह प्रतिष्ठा क्यों सुहाएगी ?

 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here