राजनीति

आडवानी जी जनसंघ और बीजेपी के संस्थापक नही थे-अनिल गुप्ता

advani 1हाल में भाजपा के वरिष्ठतम नेता श्री लाल कृष्ण अडवाणी जी द्वारा पार्टी की तीन समितियों से त्यागपत्र देने पर समाचार पत्रों और इलेक्ट्रोनिक मीडिया में चर्चाओं में बार बार ये दोहराया गया कि श्री अडवाणी द्वारा भारतीय जनसंघ और भाजपा की स्थापना की गयी थी.लेकिन ये कथन सत्य का एक अंश मात्र है.अतः सही स्थिति जानने के लिए इन दोनों दलों के गठन और स्थापना की परिस्थितियों और इतिहास की जानकारी होना आवश्यक है.

भारतीय जनसंघ का गठन डॉ.श्यामा प्रसाद मुखर्जी द्वारा आर्य समाज और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सहयोग से किया गया.भारत के विभाजन के बाद करोड़ों लोग बेघरबार होकर विस्थापित होने को मजबूर हुए और लाखों लोग दंगों में मारे गए.महात्मा गाँधी कि हत्या के बाद नेहरु जी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर प्रतिबन्ध लगा दिया और लाखों संघ कार्यकर्ताओं को बिना किसी अपराध के अंग्रेजों द्वारा बनाये गए कानूनों के अंतर्गत गिरफ्तार कर लिया गया.संघ द्वारा नेहरूजी और सरदार पटेल के साथ पत्राचार और सारी स्थिति स्पष्ट करने के बावजूद संघ से प्रतिबन्ध नहीं हटाया गया इसके विरोध में संघ द्वारा चलाये गए सत्याग्रह में एक लाख से अधिक स्वयंसेवकों ने शांतिपूर्वक गिरफ्तारी दी गयी जो गांधीजी द्वारा पूर्व में किये गए सत्याग्रहों में दी गयी गिरफ्तारियों से ज्यादा थे. लेकिन इस बारे में देश में किसी राजनीतिक दल द्वारा कोई चर्चा नहीं की और न ही संसद में इस विषय को उठाया गया.अतः प्रतिबन्ध समाप्त होने के बाद संघ द्वारा इस कमी को महसूस किया गया कि देश में हिन्दुओं के बारे में विचार करने वाला और उनकी समस्याओं को उठाने वाला राजनीतिक दल होना आवश्यक है. उसी दौरान नेहरु लियाकत समझौते के तहत पूर्वी बंगाल के हिन्दुओं को पाकिस्तान सर्कार के रहमो-करम पर छोड़ दिया गया.और उन्हें वहां से खदेड़ा जाने लगा तथा उन पर अत्याचार बढ़ गए.

इन परिस्थितियों में डॉ.श्यामा प्रसाद मुखर्जी द्वारा नेहरु मंत्री मंडल से त्याग पत्र दे दिया गया.उनका दिल्ली में जबरदस्त स्वागत सभा में सम्मान किया गया.जहाँ डॉ. मुखर्जी ने आर्य समाज और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से अपील की कि वो उन्हें सहयोग देकर एक राष्ट्रवादी दल का गठन कराएँ.संघ द्वारा उनके इस आह्वान पर अपने कुछ प्रचारकों को डॉ.मुखर्जी के सहयोग में लगा दिया गया.जिनमे पंडित दीनदयाल उपाध्यायजी, श्री अटल बिहारी वाजपेयी, बलराज मधोक आदि प्रमुख थे.अडवाणी जी भी उनमे से एक थे.लेकिन राष्ट्रीय स्टार पर उनकी कोई पहचान नहीं थी.जब १९७३ में कानपूर अधिवेशन से पूर्व श्री लालकृष्ण अडवाणी जी को जनसंघ का राष्ट्रीय अध्यक्ष घोषित किया गया तो संघ के अनेकों वरिष्ठ प्रचारक भी उन्हें नहीं जानते थे.मैं उन दिनों पी सी एस की परीक्षा देने इलाहाबाद गया हुआ था और जीरो रोड स्थित संघ कार्यालय पर रहकर परीक्षा दे रहा था. श्री वीरेश्वर द्विवेदीजी उन दिनों इलाहाबाद में नगर प्रचारक थे.तथा श्री जयगोपाल जी विभाग प्रचारक थे.श्री जयगोपाल जी ने मुझसे पूछा था कि ”ये अडवाणी जी कौन हैं भाई, इनका तो कहीं नाम ही नहीं सुना”.तब मैंने बताया था कि वो दिल्ली मेट्रोपोलिटन कोंसिल के अध्यक्ष रहे हैं.तो कहने का अर्थ ये कि भारतीय जनसंघ के गठन में अडवाणी जी कि भूमिका संस्थापक की नहीं थी.

१९७५ से मार्च १९७७ तक इंदिरा गाँधी जी द्वारा देश में आंतरिक आपातस्थिति लगाकर सभी राजनीतिक विरोधियों को जेल में डाल दिया गया था.संघ पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया था. संघ द्वारा लोकतंत्र की रक्षा के लिए भूमिगत अभियान चलाया गया और प्रत्यक्ष आन्दोलन द्वारा भी स्वयंसेवकों ने गिरफ्तारियां दी थीं.इनसे बौखलाकर इंदिराजी ने संघ के अधिकारीयों के पास इस आशय का प्रस्ताव भेजा था कि संघ अपने आन्दोलन को वापस लेले तो संघ से प्रतिबन्ध हटा लिया जायेगा.इस बीच इंदिराजी ने देश भर में संघ कार्यालयों से संगठन का रिकार्ड जब्त करके उनकी जांच कराई थी और जांच से ये प्रमाणित हो गया था की संघ की गतिविधियाँ पूरी तरह वैधानिक एवं पारदर्शी थीं.लेकिन संघ के नेतृत्व ने स्पष्ट कर दिया की इमरजेंसी हटाये बिना आन्दोलन वापिस नहीं होगा क्योंकि इमरजेंसी के कारण देश में लोकतंत्र को खतरा उत्पन्न हो गया है.अंततोगत्वा मार्च १९७७ में चुनाव कराये गए जिसमे भारतीय जनसंघ, लोकदल,संगठन कांग्रेस तथा कांग्रेस से अलग हुए बाबु जगजीवनराम,हेमवती नंदन बहुगुणा, नंदिनी सत्पथी आदि द्वारा गठित कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी ने जनता पार्टी का गठन करके उसके निशान पर चुनाव लड़ा.और लोकतंत्र की विजय हुई.इंदिराजी स्वयं चुनाव हार गयीं.श्री मोरारजी भाई देसाई देश के प्रधान मंत्री बने.इन चुनावों में जो लोग चुन कर आये उनमे सबसे अधिक संख्या पूर्व भारतीय जनसंघ के लोगों की थी जो ९८या ९९ थी.

सर्कार में शामिल समाजवादी घटक के सदस्यों द्वारा जनसंघ घटक के सदस्यों द्वारा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की गतिविधियों में शामिल होने पर आपत्ति करनी प्रारंभ कर दी और दोहरी सदस्यता का विवाद खड़ा कर दिया.उस समय के जनता पार्टी के अध्यक्ष श्री चन्द्र शेखर भी उनमे शामिल हो गए.सर्कार को चौधरी चरण सिंह की महत्वाकांक्षा ने गिरा दिया.१९८० जनवरी में मध्यावधि चुनाव हुए जिसमे श्रीमती इंदिरा गाँधी पुनः सत्ता में वापिस आ गयीं.अप्रेल १९८० में दोहरी सदस्यता का विवाद इतना बढ़ गया कि जनसंघ घटक के सदस्यों को जनता पार्टी से अलग होना पड़ा और भारतीय जनता पार्टी के नाम से नए दल का गठन किया गया.जिसमे मुख्य भूमिका श्री अटल बिहारी वाजपेयी,और लालकृष्ण अडवाणी की थी.लेकिन पार्टी गठन करने और उसे खड़ा करने में संघ का पूरा सहयोग था.अतः भाजपा की शापना केवल श्री अडवाणी जी ने नहीं की थी.

१९८१ में तमिलनाडु के मीनाक्षीपुरम स्थान पर एक हजार हिन्दुओं (हरिजन) को मुसलमान बना लिया गया था.इस घटना की देश में व्यापक प्रतिक्रिया हुई.और संघ के लोगों ने देश भर में विराट हिन्दू सम्मलेन आयोजित किये जिनमे लाखों की भीड़ जुडी और हिंदुत्व की रक्षा के लिए संकल्प लिए गए.संघ की योजना से विश्व हिन्दू परिषद् ने नवम्बर १९८३ में देश में एकात्मता यात्रा निकली गयी जिसमे भारतमाता और गंगामाता की प्रतिमाएं और गंगाजल के कलश को रथनुमा वाहन पर पूरे देश में घुमाया गया जिससे हिन्दू एकीकरण को बढ़ावा मिला.इसी दौरान बुलंदशहर में लोकसभा का उपचुनाव हुआ और श्री बनारसीदास जनता पार्टी के प्रत्याशी बने.उनके मुकाबले पर कांग्रेस का मुस्लिम प्रत्याशी था.चुनाव में नारा लगा ”पहले हिन्दू बाद मं बुन्दू”.और श्री बनारसीदास चुनाव जीते.

एकात्मता यात्रा के दौरान लखनऊ के मेयर श्री दाऊ दयाल संघ और विश्व हिन्दू परिषद् के संपर्क में आये और उन्होंने रामजन्मभूमि के मुक्ति का अभियान चलाने का सुझाव दिया.रामजन्मभूमि मुक्ति आन्दोलन शुरू किया गया.फरवरी १९८६ में अयोध्या की जिला अदालत ने राम जन्मभूमि पर पड़े ताले को अवैध घोषित करके ताला खोलने का आदेश दिया.ताला खुला.आन्दोलन में और तेजी आई.१९८९ के प्रारंभ में विश्व हिन्दू परिषद् ने देश भर में राम मंदिर निर्माण के लिए शिलापूजन अभियान चलाया.जिसमे देश के हर परिवार से संपर्क किया गया और एक एक ईंट और एक रूपया लिया गया. इससे हिन्दुओं में अभूतपूर्व जागरण हुआ. नवम्बर १९८९ के चुनावों में कांग्रेस का सफाया हो गया और वी पी सिंह की सर्कार भाजपा और वामपंथियों के समर्थन पर बनी.वी पी सिंह ने मंडल कार्ड चला.जवाब में अडवाणी जी ने सोमनाथ से अयोध्या तक की राम रथ यात्रा शुरू करदी. जिसे बिहार में रोककर अडवाणी जी को गिरफ्तार कर लिया गया.भाजपा ने वी पी सिंह की सर्कार से समर्थन वापिस ले लिया.

इसके बाद १९९६ में भाजपा की सदस्य संख्या लोकसभा में १६२ पर पहुँच गयी और भाजपा संसद में सबसे बड़े दल के रूप में उभरी.लेकिन इस प्रगति में किसी एक व्यक्ति का हाथ नहीं था बल्कि संघ प्रेरित हिंदुत्व का आन्दोलन, रामजन्मभूमि मुक्ति आन्दोलन आदि का योगदान रहा है.