कविता

गांधी जी का जन्म दिवस या भारत का मरण दिवस

माना गाँधी ने कष्ट सहे थे
अपनी पूरी निष्ठां से
भारत विख्यात हुआ है
उनकी अमर प्रतिष्ठा से

किन्तु अहिंसा सत्य कभी 
अपनों पर ही ठन जाता है
माना घी और शहद अमृत है
पर मिलकर विष बन जाता है

अपने सारे निर्णय हम पर
थोप रहे थे महान गाँधी जी
पर तुष्टिकरन में खुनी खंजर
घोप रहे थे अमर गाँधी जी

महा क्रान्ति का हर नायक
उनके लिये एक खिलौना था
उनके अपने हठ के आगे
अखंड भारत भी बोना था

इसलिए अखंड भारत में ही
अखंड भारत का दौर गया
भारत से पंजाब,सिंध
और रावलपिंडी लाहौर गया

तब जाकर सफल हुए
जालिम जिन्ना के मनसूबे
गाँधी जी अपनी जिद में
पूरे भारत को ले डूबे

भारत के इतिहासकार
थे चाटुकार दरबारों में
अपना सब कुछ बेच चुके थे
नेहरु गाँधी के परिवारों में

भारत का सच लिख पाना
था उनके बस की बात नहीं
वैसे भी सूरज का लिख पाना
जुगनू के बस की बात नहीं

आजादी का श्रेय नहीं था
गाँधी के आंदोलोनो को
आजादी को सफल बनाया
शेखर के पिस्टल ग्नो को

जो जिन्ना जैसे राक्षसों से
मिलने जुलने जाते थे
जिनके कपड़े डुलने के लिये
लंदन पेरिस में जाते थे

आर के रस्तोगी