आस्था से अर्थव्यवस्था के विकास की गंगा-यात्रा

0
194

-ललित गर्ग-
गंगा की सफाई, उसे प्रदूषण मुक्त करने एवं गंगा के माध्यम से आर्थिक विकास, धार्मिक आस्था एवं पर्यटन की संभावनाओं को तलाशने की दृष्टि से वर्तमान उत्तरप्रदेश सरकार एवं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रयास रंग दिखाने लगे हैं। इस संदर्भ में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 27 से 31 जनवरी तक राज्य के 26 जनपदों में 5 दिवसीय गंगा यात्रा निकालने की घोषणा की तो एक बात साफ हो गई कि इसके माध्यम से गंगा के तटवर्ती गांवों में रहने वाले लोगों को सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं से जोड़ा जाना है। अच्छा हो कि योगी सरकार यह समझे कि उसे केवल गंगा को साफ ही नहीं करना, बल्कि उसकी निर्मलता एवं अविरलता के लिये एक अनूठा उदाहरण भी पेश करना है। गंगा यात्रा ऐसा करके ही देश की अन्य नदियों को भी प्रदूषणमुक्त करने की दिशा में सकारात्मक वातावरण निर्मित कर सकेगी।  ‘गंगा-यात्रा’ गंगा को आस्था से अर्थव्यवस्था तक ले जाने का एक महाभियान है, नयी उम्मीदों को अवतरित करते हुए एक पावन संस्कृति को जीवंत करने का उपक्रम है।
गंगा यात्रा एक अनूठा प्रयास है, जिसके माध्यम से गंगा तट के किनारे स्थित सभी धार्मिक, आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक केंद्रों को आस्था के साथ ही पर्यटन की गतिविधियों से जोड़ने की कोशिश हो रही है। इससे स्थानीय स्तर पर स्वरोजगार बढ़ेगा। क्योंकि गंगा जितनी धार्मिक आस्था की आधार केन्द्र है, उतनी ही आर्थिक विकास का भी माध्यम है। देखने में आ रहा है कि जिस बड़े पैमाने पर विविध रूपों में गंगा सफाई परियोजना को जमीन पर उतारा गया है, उससे लगता है कि गंगा सफाई की पिछली सरकारों के जो प्रयास, गंगा को पहले से कहीं ज्यादा प्रदूषित करने के रूप में सामने आते रहे हैं, वैसा हश्र इस परियोजना का नहीं होगा। एक और राहत की खबर जो उम्मीद की किरण बन कर सामने आयी है कि गंगा में विषाक्त कचरा उड़ेलने वाली औद्योगिक इकाइयों में कमी आ रही हैं। सरकार के प्रयासों से गंगा के तटों का सौन्दर्यकरण भी बड़े पैमाने पर किया जा रहा है, जिससे पर्यटन को प्रोत्साहन मिलेगा।
वास्तव में गंगा एक संपूर्ण संस्कृति की वाहक रही है, जिसने विभिन्न साम्राज्यों का उत्थान-पतन देखा, किंतु गंगा का महत्व कम न हुआ। आधुनिक शोधों से भी प्रमाणित हो चुका है कि गंगा की तलहटी में ही उसके जल के अद्भुत और चमत्कारी होने के कारण मौजूद है। यद्यपि औद्योगिक विकास ने गंगा की गुणवत्ता को प्रभावित किया है, किन्तुु उसका महत्व यथावत है। उसका महात्म्य आज भी सर्वोपरि है। गंगा स्वयं में संपूर्ण संस्कृति है, संपूर्ण तीर्थ है, उन्नत एवं समृद्ध जीवन का आधार है, जिसका एक गौरवशाली इतिहास रहा है। गंगा ने अपनी विभिन्न धाराओं से, विभिन्न स्रोतों से भारतीय सभ्यता को समृद्ध किया, गंगा विश्व में भारत की पहचान है। वह मां है, देवी है, प्रेरणा है, शक्ति है, महाशक्ति है, परम शक्ति है, सर्वव्यापी है, उत्सवों की वाहक है। एक महान तीर्थ है। पुराण कहते हैं कि पृथ्वी, स्वर्ग, आकाश के सभी तीन करोड़ तीर्थ गंगा में उपस्थित रहते हैं। गंगाजल का स्पर्श इन तीन करोड़ तीर्थों का पुण्य उपलब्ध कराता है। गंगा का जल समस्त मानसिक एवं तामसिक दोषों को दूर करता है। यह जल परम पवित्र एवं स्वास्थ्यवर्धक है, जिसमें रोगवाहक कीटाणुओं को भक्षण करने की क्षमता है। गंगा के जल से उन्नत खेती एवं स्वस्थ जीवन संभव है। गंगा का दर्शन मात्र ही समस्त पापों का विनाश करना है। जिस गंगा का इतना महत्व है, उपयोगिता है तो फिर क्यों उसके प्रति उपेक्षा एवं उदासीनता बरती जाती रही है? इस प्रश्न का उत्तर बन कर गंगा-यात्रा एक नये युग का सूत्रपात कहीं जा सकती है।
मार्च, 2017 में उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ सरकार ने सत्ता में आने के बाद गंगा की स्वच्छता और निर्मलता सुनिश्चित करने के मोदी सरकार के लक्ष्य को आवश्यक गति और दिशा दी। अप्रैल, 2017 में कानपुर व कन्नौज में स्थित चमड़े के कारखानों को समयबद्ध योजना के तहत अन्यत्र स्थानांतरित करने की घोषणा की गई और औद्योगिक कचरे व अपशिष्ट पदार्थों के गंगा में मिलने से रोकने हेतु जलशोधन संयंत्र लगाने की योजना पर कार्य प्रारंभ किया गया। गंगा किनारे के गांवों में शौचालय निर्माण पर जोर देकर खुले में शौच पर रोक लगाने की दिशा में काम शुरू किया गया। ‘नमामि गंगे’ परियोजना व स्वच्छ गंगा हेतु राष्ट्रीय मिशन के अंतर्गत प्रदेश में गंगा किनारे के 1,604 गांवों में 3,88,340 शौचालयों का निर्माण करवाकर उन्हें खुले में शौच से मुक्त गांव घोषित किया गया और नदी किनारे एक करोड़ 30 लाख पौधों का रोपण किया गया। गंगा को निर्मल बनाने के लिए घाट, मोक्षधाम, बायो डायवर्सिटी आदि से जुड़े 245 प्रोजेक्ट पर तेजी से काम हो रहा है। गंगा की 40 सहायक नदियों में प्रदूषित जल का प्रवेश रोकने के लिए दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार में 170 परियोजनाओं पर काम चल है।
प्रयागराज में आयोजित महाकुंभ में गंगा की स्वच्छता सुनिश्चित करने के लिए भी व्यापक स्तर पर कार्य किए गए। भारत की जीवनदायिनी मानी जाने वाली गंगा नदी को निर्मल और स्वच्छ बनाने के साथ-साथ उसके परिपाश्र्व में धार्मिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, शारीरिक विकास की योजनाओं को आकार देने का संकल्प लेने वाली योगी सरकार इसको लेकर बड़ा जागरूकता अभियान चला रही है। मोदी सरकार ने एक सराहनीय पहल करके स्वच्छ गंगा कोष की स्थापना की है, जिसमें स्थानीय नागरिक व भारतीय मूल के विदेशी व्यक्ति और संस्थाएं आर्थिक, तकनीकी व अन्य सहयोग कर सकते हैं। स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उन्हें मिली विभिन्न भेंटों व स्मृति चिह्नों की नीलामी से प्राप्त 16 करोड़ 53 लाख रुपये की राशि इसी कोष में दी है।
उत्तर प्रदेश में लाखों हेक्टेयर जमीन गंगा के पानी से सिंचित होती है। सामाजिक-धार्मिक गतिविधियों के साथ-साथ इसका आर्थिक महत्व भी है। वर्तमान में कई भौतिक कारणों से इसमें प्रदूषण बढ़ा है, जिससे इसकी निर्मलता और अविरलता प्रभावित हुई है। इस समस्या को मोदी-योगी सरकार ने समग्रता में समझने की कोशिश की है। गंगा यात्रा के जरिए प्रदेश सरकार जहां एक तरफ लोगों को गंगा के प्रति जागरूक करेगी, वहीं दूसरी तरफ जनकल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से लोगों के द्वार तक पहुंचेगी। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की मंशा है कि इस यात्रा के जरिए प्रदेश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान की जाए। यात्रा के दौरान गंगा नदी के तटवर्ती गांव में कई कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। इन कार्यक्रमों के तहत गांवों में फलदार वृक्षों को बढ़ावा देने के लिए किसानों को फलदार पौध उपलब्ध कराए जायेंगे। इसके लिए प्रदेश सरकार गांवों में ‘गंगा नर्सरी’ की स्थापना के साथ ही, किसानों को ‘गंगा उद्यान’ के लिए प्रेरित करेगी। जो किसान अपने खेतों में फलदार पौध लगाते हैं उन्हें रख-रखाव हेतु तीन वर्षों के लिए सरकार की तरफ से विशेष अनुदान दिया जाएगा। अच्छे फल वाले पौधे किसानों की आर्थिक स्थिति सुधारने में सहायक होंगे। योजना यह भी है कि नगर निकायों में गंगा तट के किनारे समुचित स्थल को चिह्नित कर ‘गंगा पार्क’ को विकसित किया जाए, जहां लोगों को प्रातः भ्रमण, योग-साधना एवं व्यायाम की सुविधा उपलब्ध होगी। ग्राम पंचायतों में खेलकूद हेतु ‘गंगा मैदान’ की व्यवस्था की जाएगी और खेलकूद की विभिन्न प्रतियोगिताओं का भी आयोजन होगा।
‘गंगा-यात्रा’ गंगा से न केवल गंगा का सांस्कृतिक-आध्यात्मिक पक्ष जन-जन तक पहुंचेगा बल्कि ग्रामीण आर्थिक जीवन में बदलाव भी आएगा। जब अंग्रेजों ने हर की पैड़ी पर जलधारा आने से रोक दी थी तो पं. मदन मोहन मालवीयजी ने वहां देशभर के हिंदू राजाओं के डेरे डलवा दिए थे। अंग्रेज सरकार को अपने निर्णय से पीछे हटना पड़ा था। आज उसी तरह के संकल्पों के साथ योगीजी गंगा को नया परिवेश दे रहे हैं, उसका विरोध नहीं, स्वागत होना चाहिए। देश की लगभग 40 प्रतिशत जनसंख्या गंगा नदी पर निर्भर रहती है। गंगा की अविरलता और निर्मलता करोड़ों लोगों के भविष्य से जुड़ा मुद्दा है। जब तक आम नागरिक इस विषय की गंभीरता को समझकर गंगा नदी को स्वच्छ रखने में व्यक्तिगत जुड़ाव अनुभव नहीं करेगा, सरकारी प्रयास दीर्घकालिक परिणाम नहीं दे सकते। इसलिये जरूरी है कि हम गंगा को जीयें और उससे जुड़कर आस्था एवं अर्थव्यवस्था के ऐसे परकोटे तैयार करें जो जीवन के साथ-साथ हमारी संस्कृति का भी योगक्षेम कर सकें। प्रेषकः

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

17,871 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress