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प्रत्येक मनुष्य को देश व समाज को सुदृण करने का कार्य करना चाहिये

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मनमोहन कुमार आर्य

               हमारा जन्म भारत में हुआ। अनेक मनुष्यों का जन्म भारत से इतर अन्य देशों में हुआ है। सभी मनुष्यों का एक सामान्य कर्तव्य होता है और अधिकांश इसका पालन भी करते हैं कि जो जिस देश में उत्पन्न होते हैं वह उस देश की उन्नति व सम्पन्नता सहित उसकी रक्षा और उसके सम्मान का ध्यान रखते हैं। हमारा देश इन बातों का पूरा-पूरा पालन नहीं करता। हमारे देश में अनेक मत-मतान्तर हैं जिनकी मान्यतायें एक समान व एक दूसरे की पूरक न होकर भिन्न-भिन्न व परस्पर विरोधी भी हैं। सामान्य बात है कि सभी मतों को किसी के प्रति द्वेष नहीं रखना चाहिये और न किसी मनुष्य व प्राणी की हिंसा ही करनी चाहिये परन्तु भारत में यदि सभी मतों की परीक्षा करें व उनके इतिहास को खंगाले तो यह तथ्य सामने आता है कि अनेक मतों ने अतीत में अनेकों बार धार्मिक आधार पर अमानवीय जघन्य हिंसा की है। पाकिस्तान बना तो बताते हैं कि वहां लगभग 20 लाख से अधिक निर्दोष मनुष्यों को केवल धर्म के आधार पर मारा गया जिसमें स्त्री व पुरुष सहित कन्यायें, युवतियां व बच्चे सम्मिलित थे। स्त्रियों के साथ तो बहुत ही घृणित कार्य किया गया जिस पर हमारे देश के सेकुलर नेताओं ने सहानुभूति के दो शब्द कहना भी उचित नहीं समझा था। इससे पूर्व भी ऐसे अनेक उदाहरण मिल जायेंगे जब धर्म व सम्प्रदाय के आधार पर इस प्रकार की हिंसा के कार्य किये गये। मारे गये लोगों का कोई कसूर नहीं था। बस मारने वालों के मन में व उनके प्रेरकों व जातीय नेताओं के मन में हिन्दु जाति के प्रति द्वेष था। यह घोर निन्दनीय था। इसलिये आवश्यकता दीखती है और यह सभी देशवासियों के लिये अनिवार्य होना चाहिये कि वह देश हित का विचार करें और देश की रक्षा व उसके सभी नागरिकों को अपना भाई व बहिन स्वीकार करें। यदि कोई प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से ऐसा नहीं करता और इसके नेता आदि दूसरे मतों के प्रति द्वेष व स्वार्थवश हिंसात्मक प्रवृत्ति रखते हैं तो ऐसा करना अमानवीय, अनुचित एवं गलत होता है। ऐसा करना धर्म नहीं अधर्म होता है। इसकी सबको एक स्वर निन्दा करनी चाहिये।

               उपर्युक्त स्थिति में अतीत में की गई हिंसा से पीड़ित मतों के लोगों को अपनी रक्षा के उपाय अवश्य ही करने चाहियें। देश के संविधान में यह प्राविधान होना चाहिये व जोड़ना चाहिये कि देश के सभी नागरिक अन्य सभी नागरिकों को अपना भाई व बहिन समझें और यदि कोई व्यक्ति व समूह हिंसात्मक प्रवृत्ति रखेगा, उसका ज्ञान उनके किन्हीं कार्यों व प्रदर्शनों आदि से होगा तो उन पर कठोर कार्यवाही की जायेगी। ऐसा होने पर ही समाज में परस्पर हिंसा व अशान्ति को रोका जा सकता है। इसकी साथ ही सामूहिक हिंसा करने वाले लोगों के पीछे कार्य करने वाली विदेशी शक्तियों के देश को कमजोर करने के प्रयत्नों को विफल भी किया जा सकता है। हमारे देश में ऐसा कानून व व्यवस्था न होना चिन्ता की बात है। हमारी राजनीतिक व्यवस्था में भी अनेक खामियां हैं। हमारे देश के राजनीतिक दल सत्ता प्राप्ति के लिये अनेक प्रकार के अनैतिक व देश हित के विरुद्ध कार्य करते हैं और उन पर किसी प्रकार की दण्डात्मक कार्यवाहीं नहीं होती। अतीत में यह भी देखा गया है कि देश में बड़े बड़े घोटाले हुए, हजारों व लाखों करोड़ रुपये कुछ लोग षडयन्त्र कर हड़प गये परन्तु ऐसे अपराधियों को सजा नहीं मिल सकी। रक्षा सौदों में दलाली के भी अनेक उदाहरण हैं। कुछ मामले अत्यन्त पुराने हैं परन्तु उनका भी सन्तोषजनक हल नहीं हुआ। वर्तमान में भी अनेक पुराने मामलें विभिन्न स्तरों पर विचाराधीन है। अब पहले वाली सरकार नहीं है। इस कारण से अनुमान किया जा सकता है कि राजनीतिक कारणों से भ्रष्टाचार के मामलों को दबाया नहीं जायेगा अपितु न्यायसंगत कार्यवाही होगी। वर्तमान मोदी जी की सरकार ने अनेक अच्छे कार्य किये हैं जिससे राशन कार्डों, गैस कनेक्शन, फर्जी एनजीओ के नाम पर लूट तथा फर्जी पेंशन आदि के षडयन्त्र समाप्त हुए हैं। ऐसे अच्छे कार्य सरकार के प्रमुख व्यक्ति के इमानदार होने तथा देशहित की भावनाओं से युक्त होने पर ही सम्भव होते हैं।

               हमारे देश में जिस परिवर्तन की आवश्यकता प्रतीत होती है वह यह है कि देश के प्रत्येक नागरिक का यह अनिवार्य कर्तव्य होना चाहिये कि वह देश व समाज को सुदृण करने पर विचार करे। इस विषय के आचार्यों व विद्वानों की शरण लेकर उनसे मार्गदर्शन प्राप्त करे और देश को कमजोर करने वाली शक्तियों के विषय में भी जानकारी प्राप्त कर उनके विरुद्ध संगठित हों। उन्हें सरकार से शान्तिपूर्वक प्रदर्शन कर उन देश विरोधी शक्तियों पर कार्यवाही करने की मांग करनी चाहिये। वर्तमान में देखा जाता है कि देश विरोधी लोग संगठित होकर आन्दोलन करते हैं परन्तु देश रक्षक लोग ऐसे लोगों का प्रतिकार करने के लिये कुछ नहीं करते। हमें लगता है कि देशप्रेमी लोगों को भी देशविरोधी लोगों के विरुद्ध प्रभावशाली धरना व प्रदर्शन कर सरकार से उनके विरुद्ध कठोर कार्यवाही की मांग करनी चाहिये। प्रत्येक नागरिक से यह भी अपेक्षा की जाती है कि वह देशभक्त व राष्ट्रवादी दलों की ही सरकारों का चयन करें व उन्हीं पार्टियों को अपना मत दें। जिन लोगों पर भ्रष्टाचार के दाग हैं, उनकी सत्ता में किसी भी स्थिति में वापसी नहीं होनी चाहिये। यदि होगी तो वह लोग राष्ट्र को कमजोर ही करेंगे। यह बात सिद्धान्त रूप में ठीक है परन्तु हमारे देशवासियों द्वारा इस बात की उपेक्षा की जाती है।

               राजनीतिक नेता भोलीभाली जनता को मूर्ख बना कर सत्ता प्राप्त करने में सफल हो जातें हैं और अपना स्वार्थ सिद्ध करते हैं। परिस्थितियों को देखकर यह भी कहा जा सकता है कि व्यवस्था में देशहित का विचार कर परिवर्तन करने की आवश्यकता है। क्या ऐसा हो सकेगा, यह प्रश्न है? वर्तमान में जो स्थिति है वह देश की एकता व अखण्डता की दृष्टि से अत्यन्त चिन्ताजनक है। देश में खुले आम देश तोड़ने के नारे लगते हैं। ऐसे लोगों को सत्ता से बाहर विभिन्न राजनीतिक दलो का समर्थन, प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष, देखकर दुःख व चिन्ता होती है। यह काम कैसे होगा जिससे देश के विरोध में किसी भी व्यक्ति को बोलने व कहने पर कड़े दण्ड की व्यवस्था होगी, इसका विचार सभी राजनीतिक दलों को करना होगा। देश विरोधी नारे वस्तुतः राजद्रोह होता है। हमारे देश में ऐसा होना आजकल आम बात है। ऐसे राजद्रोहियों के समर्थन में अनेक राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि आदि प्रत्यक्ष रूप से घुमा फिराकर बातें करते हैं और उनका कुछ नहीं होता। इसका परिणाम यह हो रहा है कि विगत 70 वर्षों में देश विरोधी लोगों की प्रवृत्तियों के कारण देश कमजोर हुआ है। आजकल जो बातें संविधान का अंग हैं, उसके खिलाफ भी हमारे देश की विधान सभाओं में प्रस्ताव पारित किये जा रहे हैं। व्यवस्था तमाशा देख रही है। किसी के विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं हो रही है। लोग टीवी चैनलों पर कुतर्क देते हैं और हमारे देश के लोग उनको सुनने के लिये मजबूर हैं। अतः एक ही मार्ग है कि व्यवस्था परिवर्तन पर विचार किया जाये जिससे देश का कोई नागरिक देश हित के विरोध में कोई बात कर सके। वह किसी भी विचारधारा सिद्धान्त को मानने वाला हो, यदि कोई देश हित के विरुद्ध बात करता है तो उसे शीघ्र दण्डित किया जाना चाहिये। ऐसी व्यवस्था देश में होनी चाहिये और सरकार को विचार कर इसका समाधान करना चाहिये।

               मनुष्य को आध्यात्मिक साधना के साथ समाज को सुदृण करने का कार्य करना चाहिये। हम जानते हैं कि संसार में वेद मत व विचारधारा से अच्छी व उत्तम कोई विचारधारा, मत व धर्म नहीं है और हो भी नहीं सकता, अतः हमें वैदिक धर्म के प्रति निष्ठावान होकर इसके अन्धविश्वासों व अज्ञान से रहित स्वरूप को जन-जन में प्रचारित करना चाहिये। सबको संगठित रहने की शिक्षा देनी चाहिये। सब बच्चों व युवाओं को घर में व आर्यसमाजों में वेद और आर्य महापुरुषों राम, कृष्ण, चाणक्य, दयानन्द आदि के जीवन विषयक विचारों व कार्यों से परिचित कराना चाहिये। समाज में कोई अन्धविश्वास एवं अवैदिक पक्षपात से युक्त परम्परा नहीं होनी चाहिये। जो हैं उन्हें समाप्त करना चाहिये। निर्बल समाज पर सभी वर्गों को विशेष ध्यान देना चाहिये। दीनों की सेवा भी एक प्रकार की ईश्वर भक्ति होती है। हम जितने लोगों का जीवन अज्ञान सहित निर्धनता व दुर्बलता से दूर करेंगे उतना ही अधिक हमारा देश व समाज लाभान्वित होगा। परमात्मा से हमें इन सब कार्यों का फल सुख के रूप में मिलेगा। महाभारत काल के बाद हमारे कुछ भ्रमित पूर्वजों ने ज्ञान की उन्नति व सामाजिक उन्नति के कार्यों की उपेक्षा की थी। उनकी अकर्मण्यता के कारण से समाज में अज्ञान व अन्धविश्वासों में वृद्धि हुई जिससे हमारा समाज दुर्बल व निस्तेज होकर विश्रृंखलित एवं कमजोर हुआ और दुष्ट लोगों के पराधिन हो गया।

               हमें इतिहास की अपने पूर्वजों की गलतियों से शिक्षा लेनी है और उन्हें दोहराना नहीं है। यह काम आर्यसमाज के सत्संगों आयोजनों में जाने पर ही हो सकता है। आर्यसमाज के प्रत्येक सत्संग में एक विद्वान का उपदेश होता है जो वैदिक विचारों सिद्धान्तों का परिचय कराता उनकी व्याख्या करता है। इससे बच्चों व बड़ों सभी को समान रूप से लाभ होता है। आर्यसमाज के सत्संगों तथा सत्यार्थप्रकाश आदि ऋषि ग्रन्थों सहित वैदिक साहित्य एवं आर्य विद्वानों के साहित्य को पढ़कर मनुष्य की आत्मा व शरीर की उन्नति होती है। अन्य प्रकार से यह लाभ प्राप्त नहीं होते। अतः अपने-अपने जीवन को उच्च व श्रेष्ठ बनाने के लिये हमें असत्य, अज्ञान, अन्धविश्वासों एवं कुरीतियों से हटकर वेद एवं विद्या की शरण लेनी चाहिये। ऐसा करने से हमारा निश्चय ही कल्याण होगा और हम जीवन के लक्ष्य मोक्ष को भी प्राप्त कर सकते हैं। यदि इस मार्ग का अनुसरण नहीं करेंगे तो हमारा समस्त पुरुषार्थ अर्जित धनसम्पत्ति नहीं छूट जायेगा। मृत्यु का कोई निश्चित समय नहीं है यह आज, अभी तथा कालान्तर में कभी भी हो सकती है। अध्ययन, समाज सेवा तथा कर्तव्य पालन के कामों को कल पर नहीं छोड़ना चाहिये। धन कम होगा तो हम व हमारी जाति जीवित रहेगी परन्तु यदि हमने अपने सामाजिक  दायित्वों की उपेक्षा की तो हमारा समाज, देश व संस्कृति सब समाप्त हो सकती है। विरोधी ताकते देश-विदेश में बैठकर रातदिन देश को तोड़ने और वैदिक हिन्दू धर्म को नष्ट करने की योजनायें बना रही हैं। देश में सहस्रों गुमराह व्यक्ति व युवक हैं जो उनके सहायक है। कुछ राजनीतिक दल सत्ता प्राप्ति के लिये उनको सहयोग देने को तत्पर हैं व कर रहे हैं। अतः अपने कर्तव्य को पहचान कर हमें अपने जीवन में देश व समाज हित के कार्यों सहित वैदिक जीवन व्यतीत करने का ही चयन करना चाहिये। ओ३म् शम्। 

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