जन-जागरण

हिंदी की आम-बोलचाल में अंग्रेजी की सेंध

पियूष द्विवेदी

‘आय विल गो नाव’, ‘वी विल कम’, ‘राम डोंट कॉल मी’, ‘ही डोंट नो मी’ अगर आपने इन वाक्यों को ध्यान से पढ़ा है, तो आपको पता चल ही गया होगा कि ये सभी वाक्य अंग्रेजी-व्याकरण के अनुसार गलत हैं| अंग्रेजी-व्याकरण के अनुसार, प्रथम के दोनों वाक्यों में ‘विल’(will) की जगह ‘शैल’(shail) का तथा अंत के दोनों वाक्यों में ‘डू’(do) की जगह ‘डज’(does) का प्रयोग होगा, पर यहाँ ऐसा नहीं है| ये सिर्फ कुछ वाक्य हैं, ऐसे ही और भी तमाम वाक्यों, जोकि अंग्रेजी-व्याकरण के नियमानुरूप नहीं है, का प्रयोग हमारे अंग्रेजी-माध्यम से शिक्षा प्राप्त कर रहे आधुनिक-युवाओं द्वारा धड़ल्ले से किया जा रहा है| विडम्बना तो ये है कि इन अशुद्ध अंग्रेजी-वाक्यों का सर्वाधिक प्रयोग उस वर्ग द्वारा हो रहा है, जो अपनी राष्ट्रभाषा हिंदी के माध्यम की शिक्षा को छोड़कर, जीविका के लिए ही सही, अंग्रेजी-माध्यम से शिक्षा प्राप्त कर रहा है या कर चुका है| इस वर्ग में अंग्रेजी-माध्यम शिक्षा के कारण हिंदी के अल्पज्ञानियों की बहुसंख्यता तो है ही, पर साथ ही ये अंग्रेजी के भी शुद्ध ज्ञान से वंचित ही हैं, पर इससे इस वर्ग को कोइ विशेष फर्क नहीं पडता, बल्कि व्याकरण आदि की बात करने वालों को ये वर्ग मूर्ख ही कहता है| इस वर्ग के लिए ये कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण है कि अंग्रेजी बोली जाय, बजाय इसके कि अंग्रेजी जानी जाय, समझी जाय|

आज हमारे देश में अंग्रेजी-माध्यम की शिक्षा के प्रति जो सनक दिख रही है, मानता हूँ कि इसका मूल कारण रोजगार की विवशता ही है, क्योंकि आज एक साधारण नौकरी के लिए भी अंग्रेजी अनिवार्य आवश्यकता है| अतः इसकी तो अनदेखी संभव नहीं लगती, पर इस विषय में एक बात है जिसकी हम पूर्णतया अनदेखी ही कर रहे हैं, वो ये कि आज अंग्रेजी सिर्फ रोजगार की विवशता तक सीमित नहीं रह गयी है, वरन धीरे-धीरे वो अपने को और विस्तारित कर रही है| आज अंग्रेजी नौकरी के साक्षात्कारों तथा परीक्षा के प्रश्न-पत्रों आदि से आगे बढ़कर आम-बोलचाल में भी स्वास्तित्व प्रतिस्थापन के प्रयास में है| इसका सशक्त प्रमाण आधुनिक-युवाओं द्वारा आम-बोलचाल में प्रयोग की जा रही एक भाषा है, जिसे उनके द्वारा ‘हिंगलिश’ नाम दिया गया है| हिंगलिश, ये कोइ प्रामाणिक भाषा नहीं, वरन युवा मन की उपज मात्र है| इसके अंतर्गत हिंदी-अंग्रेजी को मिश्रित करके बोला जाता है| अगर हिंगलिश के परिप्रेक्ष्य में हम ये कहें, तो शायद अतिशयोक्ति नहीं होगी कि रोजगार के अवसरों पर अंग्रेजी के लगभग अनिवार्य अस्तित्व के बावजूद भी, सामान्य-बोलचाल में हिंदी का जो संप्रभु अस्तित्वा था, उसमे हिंगलिश के रूप में अंग्रेजी द्वारा एक बड़ी सेंध लगी जा चुकी है, जिसको कि या तो हम समझ पा नहीं रहे हैं, या फिर समझना चाहते ही नहीं हैं|

गांधी जी ने कभी भी, किसी भी भाषा का विरोध नहीं किया, अंग्रेजी का भी नहीं, पर जिस भय के कारण वो बार-बार हिंदी के संरक्षण और संवर्धन कि बात करते थे, वो भय एक राष्ट्रवादी-सोच के लिए लाजिमी है| उन्हें भय था कि कहीं, कोइ अन्य भाषा हिंदी का विकल्प न बन जाए, और आखिर आज उनकी इस दुष्कल्पना का क्रितरूप, एक हिंदीभाषी राष्ट्र के सर्वक्षेत्रों में अंग्रेजी के बढ़ते वर्चश्व के तौर पर हमारे सामने है| एक बात और कि गांधी जी ने कभी अंग्रेजी को त्यागने की बात भी नहीं कही, वरन उनका कथनाम ये था कि अंग्रेजी बोलो, पर उसे आत्मशात, उससे आत्मा से मत जड़ों, पर वर्तमान में आधुनिक-युवा का अंग्रेजी-प्रेम आत्मशात करने जैसा ही हो गया है|

ये इस हिंदीभाषी राष्ट्र का दुर्भाग्य ही है कि यहाँ जो बच्चा हिंदी-माध्यम से शिक्षा प्राप्त कर रहा है, उसे संज्ञा-सर्वनाम के साथ-साथ नाउन-प्रोनाउन तथा एक-दो के साथ-साथ वन-टू आदि भी पता है, पर वहीँ अंग्रेजी-माध्यम से शिक्षा प्राप्त कर रहा बच्चा सिर्फ नाउन-प्रोनाउन और वन-टू ही जानता है, संज्ञा-सर्वनाम और एक-दो नहीं| इससे सिर्फ दो ही बातें साफ़ होती हैं कि या तो हिंदी-माध्यम की शिक्षा अंग्रेजी-माध्यम शिक्षा से अधिक गुणवत्तापूर्ण है, या फिर हम हिंदी से अधिक दिल से अंग्रेजी को समझ रहे हैं, अपना रहे हैं|

मै इससे कत्तई इंकार नहीं कर रहा कि आज के इस अर्थ-प्रधान युग में आर्थिक-अर्जन के लिए अंग्रेजी-शिक्षा एक अनिवार्य तत्त्व है, पर साथ ही मुझे ये कहने में भी कोइ हिचक नहीं है कि हर भारतीय का प्रथम दायित्व उसकी राष्ट्रभाषा के प्रति होना चाहिए, इसके बाद ही क्षेत्रीय या अन्य किसी भी भाषा की बात आती है| अंग्रेजी रोजगार के लिए हमारी विवशता है, पर साथ ही हमें ये भी नहीं भूलना चाहिए कि हम एक हिंदीभाषी राष्ट्र के वासी हैं| अगर इन बातों के प्रति हम अभी सजग नहीं हुवे, तो वो समय दूर नही, जब इस हिंदीभाषी राष्ट्र की आगामी पीढ़ियों को शायद ये पता भी न हो कि वो जिस राष्ट्र में जन्मे हैं, वहां की राष्ट्रभाषा हिंदी है| वो अंग्रेजी बोलते परिवार में जन्मेंगे, अंग्रेजी बोलते समाज में पलेंगे-बढ़ेंगे और सिर्फ अंग्रेजी ही सीखेंगे, क्योंकि तब शायद हमारे देश में हिंदी होगी ही नही, या बहुत ही कम होगी|