
डॉ. मधुसूदन
(१) घन घन घण्ट देवालय टकोरे,—अविरत गूँजे जा रहे हैं।
मेरे भारत की आरति–आज, विश्व सारा गा रहा है॥
—आनंद आकाश छू रहा है॥
(२) पांचजन्य* सुन, बज रहा है—हो रहा, विलम्बित *सबेरा।
भोर की, आरति भारत की—–गा रहा है विश्व सारा ॥
घन घन घण्ट देवालय टकोरे,—अविरत गूँजे जा रहे हैं।
(पांचजन्य* =श्री कृष्ण का शंख})
(विलम्बित* सबेरा= सच्ची स्वतंत्रता का दूसरा अवसर)
(३) मुहूर्त पर इस, जाग भारत,— सोने का अवसर नहीं है।
युगों तक, पछताते रहें हैं, —-विश्राम का अवसर नहीं है॥
घन घन घण्ट देवालय टकोरे,—अविरत गूँजे जा रहे हैं।
(४) समृद्धि अब तक ना आई?——क्यों पूछता है, भाई?।
भलमनसी छोड पीछे,—-रिश्वतखोरी तूने जिताई ।
घन घन घण्ट देवालय टकोरे,—अविरत गूँजे जा रहे हैं।
(५) साथ दे तो, विकास का दे—तब, सफल निःस्वार्थ शासन
पांचजन्य भी कह रहा है —घट कर रहेगा, तब, युगान्तर*॥
घन घन घण्ट देवालय टकोरे,—अविरत गूँजे जा रहे हैं।
{युगान्तर*= युग में बदलाव,– क्रान्ति}
(६) बहुत हुआ आलस्य, अकर्म —गाँव वहीं के वहीं रह गए॥
उन्नति में चापलूस आगे—भोले जन पीछे रह गए ॥
घन घन घण्ट देवालय टकोरे,—अविरत गूँजे जा रहे हैं।
(७) गोवर्धन पर्बत* प्रगति का — सब की ऊँगली पर उठ्ठेगा ॥
सब के धक्के के बल से ही — जगन्नाथ रथ* आगे बढेगा ॥
घन घन घण्ट देवालय टकोरे,—अविरत गूँजे जा रहे हैं।
[प्रगति के गोवर्धन पर्बत*को, उठाने में सबका योगदान चाहिए।]
(८) ग्राम-नगर-जन बढो आगे, अब—हँस कर, परिश्रम करना है।
प्रगति देवी के स्वागत में—सभी को हाथ बटाना है॥
घन घन घण्ट देवालय टकोरे,—अविरत गूँजे जा रहे हैं।
(९) पूरब गेरु उड रहा है? —पांचजन्य भी बज रहा है।
विजय नगाडा साथ है—–अब सबेरा आ रहा है।
घन घन घण्ट देवालय टकोरे,—अविरत गूँजे जा रहे हैं।
(१०) साथ दे अब नरेंद्र का इस अवसर को ना छोडना।
आषाढ* अब ना चूकना, कर्मयोग अब ना त्यागना
घन घन घण्ट देवालय टकोरे,—अविरत गूँजे जा रहे हैं।
[आषाढ़* ना चूकना, अब डाल ना चूकना। ]
बहुत सुन्दर, सामयिक, प्रेरक कविता है।
—–शकुन्तला बहादुर
जब भी संसार में अत्याचार बढ़ जाता हैं तब भगवान् या तो स्वयं धरती पर आता हैं या फिर किसी अन्य व्यक्ति को भेज देते हैं। मोदी जी एक ऐसे व्यक्ति हैं जिसे लगता हैं भगवान् ने हिन्दुओ और भारत की भलाई के लिए भेजा हैं. मोदी जी ने हिन्दुओ को भारत और विश्व में सम्मान दिलाया हैं। हिन्दू जागरण की नीब डॉ हेडगेवार ने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ बना कर रख दी थी। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सदस्यों ने सावधानी पूर्वक १९४० – १९५० में हिन्दू जाग्रति का पौधा लगाया और सावधानी पूर्वक इस पौधे को फलने फूलने दिया । ऐसे लोग केवल कार्य कर्ता बने रहे और उन्होंने कभी सत्ता प्राप्त करने का प्रयतन नहीं किया। ऐसी सेवा भावना के उदहारण बहुत काम मिलते हैं। अगर कांग्रेस पार्टी का पतन हो जाता हैं तो गाँधी की भी इच्छा पूरी हो जाएगी. गाँधी में बहुत सी कमजोरिया भी थी। गाँधी ने कहा था के भारत का बटवारा उनकी लाश पर होगा। किन्तु जब बटवारा हुआ तब गाँधी ने कोई विरोध नहीं किया और न ही अनशन किया। गाँधी ने मुसलमानो की प्रवृति को समझने का परयतन कभी नहीं किया। और गाँधी ने हमेशा मुसलमानो का समर्थन किया बिना इस बात की परबाह के उसकी नीतियों के कारन हिन्दुओ की कितनी हानि हो रही हैं. स्वंतन्त्रा के समय कई नेता जैसे नेहरू, मौलाना कलम आज़ाद, राजगोपालचार्य जैसे लोग सत्ता प्राप्ति की ललसा चरम सीमा पर थी। इस चुनाब में हिन्दुओ ने साम्यवादीओ, समाजवादीओ, धरम निर्पेक्छ्ह बाले दलों का प्रभाब बहुत काम कर दिया. यह एक ऐसी घटना थी जैसे १९२० में असहयोग आन्दोलन था, इस चुनाब में जनता ने भारतीया जनता पार्टी को बहुत सहयोग दिया। इस बार उद्देश्य था के मोदी को जिताना और हिन्दुत्व को बढ़ावा देना था डॉ. मधुसूदन जी ने अपनी कविता द्वारा मोदी की सफलता का वर्णन किया हैं.
नमस्कार मोहन जी को।
बहुत हर्षित हूँ। मोहन जी ने समय देकर दीर्घ टिप्पणी लिखी ।
विचार प्रवर्तक टिप्पणी है, मोहन गुप्ता जी की।
संघ एक नितांत राष्ट्रीय एवं समस्त जन जन को आवरित करता, सर्व स्तरों पर काम करनेवाला राष्ट्रीय़ संगठन है।
इसी प्रकार टिप्पणी देते रहें।
धन्यवाद।
डॉ. मधुसूदन